हमेशा गुलजार रहेंगे ये 7 पाकिस्तानी सीरियल
'हमसफर' और 'जिंदगी गुलजार है' नाम दिमाग में आ रहा है तो रुकिए. क्योंकि ये सीरियल ज्यादा तगड़े हैं.
बुनियाद' जानते हैं आप. घर के बड़ों से पूछिएगा. 1986 में आए सीरियल का नाम था बुनियाद. खूब देखा गया. अब जरा बॉर्डर क्रॉस करते हैं. पाकिस्तानी सीरियल के बारे में जानते हैं आप? 'हमसफर' और 'जिंदगी गुलजार है' का नाम दिमाग में आ रहा है तो रुको जी. क्योंकि हम आपके नहीं बाप के जमाने के सीरियल्स की बात कर रहे हैं. पेश हैं 7 पाकिस्तानी पुराने सदाबहार सीरियल्स के कुछ शॉर्ट डिजिटल 'एपिसोड'.... 1. खुदा की बस्ती: 1969
शॉर्ट नोट्स: इंडिया और यूरोप के ड्रामा स्कूलों में इस सीरियल को बतौर सिलेबस पढ़ाया जाता है. शौकत सिद्दीकी के नॉवेल 'खुदा की बस्ती' पर बेस्ड है. टीआरपी और 'फेमसता' के लिहाज से 'खुदा की बस्ती' ने ताबड़तोड़ रिकॉर्ड बनाए थे. सीरियल की दीवानगी इस कदर समझ लीजिए कि 1974 में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की ख्वाहिश पर इसे दोबारा से टेलीकास्ट किया गया. 2. धूप किनारे: 1987
शॉर्ट नोट्स: 'कुछ तो लोग कहेंगे' सीरियल देखा है न आपने. मोहनीस बहल वाला. छोटी उम्र की जूनियर डॉक्टर को बड़ी उम्र से सीनियर से मुहब्बत हो जाती है. फिर समाज एंड ऑल. हां तो जान लीजिए, ऐसा ही एक सीरियल पाकिस्तान में करीब 30 पहले धमाल मचा चुका है. 'धूप किनारे'. कराची के अस्पताल में डॉक्टरों की टीम. घर, मुहब्बत, ड्यूटी और जिंदगी. सीरियल की जोड़ी मरीना खान और राहत काजमी की कैमेस्ट्री को खूब पसंद किया गया. ठीक वैसे ही जैसे माहिरा खान और फवाद खान को अब पसंद किया जाता है. डायरेक्ट और लिखा था हसीना मोइन और साहिरा काजमी ने. 3. अनकही: 1982
शॉर्ट नोट्स: हजारों ख्वाहिशों वाली लड़की सना. छोटी उम्र में पिता की मौत. छोटे भाई के दिल में छेद. लिहाजा कंधों पर जिम्मेदारी. नौकरी लग जाती है. तैमूर (शकील) को सना से प्यार होता है. नौकरी मिलती है मिस्टर सिद्दीकी की वजह से. पर यहां से आता है ट्विस्ट. आंटी जकिया अमेरिका से आती हैं अपने बेटे के साथ. शादी करवाने की ख्वाहिश से. फिर लव एंड रिश्ता ट्रायंगल चालू होता है. यही सीरियल की कहानी है. दावा किया जाता है कि बॉलीवुड फिल्म 'चल मेरे भाई' इसी सीरियल की स्टोरी को ध्यान में रखकर बनाई गई. 4. तन्हाइयां: 1985
शॉर्ट नोट्स: कल्ट क्लासिक मानते हैं इसे. दीवानगी ऐसी कि 27 साल बाद सीरियल का सीक्वेल 'तन्हाइयां नए सिलसिले' 2012 में फिर से टेलीकास्ट किया गया. मां-बाप के मरने के बाद दो बहनों की जिंदगी की कहानी है. पॉपुलर इत्ता है कि कई दफे सीरियल को टेलीकास्ट किया जा चुका है. पाकिस्तानी दर्शक पहली बार समाज से लड़ते हुए दो लड़कियों को नौकरी करते, जिम्मेदारी उठाते दिखी थीं. आवाम का हौसला बढ़ाने के लिए काफी था. जारा और सान्या दो बहनें. शहनाज शेख और मरीना खान. हसीना मोइन ने लिखा और डायरेक्ट किया शहजाद खलील ने. 5. परछाइयां: 1976
शॉर्ट नोट्स: हेनरी जेम्स के नॉवेल 'पोरट्रेट ऑफ ए लेडी' पर आधारित. पाक में ये सीरियल बनाने का श्रेय हसीना मोइन को जाता है. नाजिया (साहिरा काजमी) की जिंदगी में आदिल (राहत काजमी) नाम का शख्स. दोनों के बीच मुहब्बत. आदिल की तरफ से ज्यादा. फिर होती है पैसों की खातिर नाजिया से शादी करने की इच्छा रखने वाले शिराज (तलत हुसैन) की एंट्री. नाजिया आदिल के पास लौटने के लिए शिराज को छोड़ती है लेकिन कैंसर की बीमारी से जूझ रहा आदिल मर चुका होता है. इसी कहानी और किरदारों ने पाकिस्तानी आवाम के दिल को सीधा छुआ. रुलाया. 6. वारिस: 1980
शॉर्ट नोट्स: घर में बर्तन हैं तो खनकेंगे ही. परिवार के बारीक से रिश्तों को बयां करती थी वारिस की कहानी. सिर्फ 13 एपिसोड बने थे इस सीरियल के. पर ये सीरियल ऐसी छाप छोड़ गया कि आज भी लोगों के जेहन में सीरियल के किरदार चौधरी साहेब याद आ जाते हैं. सीरियल को लिखा था अमजद इस्लम अमजद. डायरेक्ट किया था नुसरत ठाकुर और जी अली ने. सीरियल को 1980 से लेकर अब तक कई मर्तबा पड़ोसी मुल्क में टेलीकास्ट किया जा चुका है. 7. तालीम-ए-बालिघन: 1956
शॉर्ट नोट्स: सीधा तीखा व्यंग्य करता था ये सीरियल. कॉमेडी किंग ख्वाजा मोउनीद्दीन ने लिखा था. पाकिस्तान टेलीविजन के इतिहास में क्लासिक माना जाता है इसे. मदरसे के इर्द-गिर्द थी इसकी कहानी. इसकी खूबसूरती ये है कि इसे आप किसी भी दौर में देखिए, आपको मौजू ही लगेगा. पाकिस्तान के टीवी इतिहास में इसे सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाला सीरियल माना जाता है.