सिम्पल शब्दों में कहें तो भाषा वो है जिससे चार लोग एक दूसरे के खयालात बेहतर ढंग से समझ सकें. भाषाविज्ञानियों की माने तो प्रोटो इंडो-यूरोपियन से यूरोप की और हमारे पूरब की जुबानें निकली. प्रोटो इंडो-यूरोपियन के टूटने से, इंडो-आर्यन और ईरानी, दो अलग भाषा समूह बन कर उभरे. इंडो-आर्यन से संस्कृत निकली और ईरानी से फ़ारसी. संस्कृत से हिन्दी का विकास हुआ और इसी हिन्दी से पनपी शौरसैनी और फ़ारसी के मिलने से हमें मिली ‘उर्दू’. क्या होती है एक भाषा/एक जुबान की अहमियत ? आखिर उर्दू का हमसे नाता कितना पुराना है? कैसी पनपी उर्दू जुबान? हिन्दी के साथ इसका रिश्ता कब और कैसा रहा? जानने के लिए देखें तारीख का ये एपिसोड.