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तारीख: कहानी 'रसूलन बाई' की, जिनका संगीत आज के जमाने में भी ट्रेंड करता है

रसूलन ने 5  साल  की उम्र से  संगीत सीखना शुरू किया. उन्होंने सबसे पहले टप्पा पर हाथ आजमाया. टप्पा, ये शास्त्रीय संगीत का एक रूप ही है.

घाटों पर ठुमरी, चैती, और दादरा की लय गंगा की लहरों से टकरा रहीं हैं. महफिलों में सुरों की जुगलबंदी में दूर दराज से बड़े बड़े उस्ताद शिरकत करने पहुंचे हैं. ganga river  तब बनारस  United Provinces of Agra and Oudh यानी  आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत का हिस्सा था. ये वो दौर था जब बनारस में ठुमरी अपने सुनहरे युग में थी. और बनारस घराना इस कला का ताज. साल था 1902. इसी साल तवायफ और फनकार अदालत बाई को एक बेटी हुई. नाम रखा रसूलन जो आगे चलकर रसूलन बाई के नाम से मशहूर हुईं. आगे चलकर मुजरे और महफिल की पहचान उसकी  कला पर भारी पड़ गई. तब रसूलन ने किसे चुना? उसकी ठुमरी में एक शब्द  'जोबनवा' ने समाज को बेचैन क्यों कर दिया था? क्या हुआ फिर इस विवादित गीत का? अपनी कला को बचाने के लिए उसे शादी का सबूत तक क्यों देना पड़ा? जानने के लिए देखें तारीख का ये एपिसोड.