1958 की बात है, देश को आजाद हुए 11 साल बीत चुके थे. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी लगातार दो चुनाव जीत चुकी थी. सरकार पर उंगली उठाना मुश्किल था, उसके खिलाफ़ कोई मुद्दा नहीं था. विपक्ष बिखरा हुआ था. कम्युनिस्ट अलग झंडा उठाए हुए थे, तो सोशलिस्टों के भी कई खेमे थे. 1952 के आम चुनाव के बाद जेबी कृपलानी और जयप्रकाश-लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी से मिलकर बनी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी भी टूट चुकी थी. डॉ लोहिया और उनके समर्थकों ने अपनी अलग सोशलिस्ट पार्टी बना ली थी. जनसंघ का प्रभाव क्षेत्र तब काफी सीमित था. यानी नेहरू की सरकार रसूख के साथ चल रही थी. सरकार के बड़े-बड़े मंत्री नैतिकता और ईमानदारी की बातें करते नहीं थकते थे. देखें वीडियो.