एक बीज से एक पेड़ पैदा होता है और फिर उस पेड़ से हजारों और बीज निकलते हैं. हाल ही में एलन मस्क ने ट्विटर खरीदा. और फिर उसे नाम दिया- एक्स. एक्स हालांकि नई कंपनी नहीं है. मस्क ने x.com की शुरुआत साल 1999 में कर दी थी. तब ये ऑनलाइन फाइनेंशियल सर्विस देने वाली कंपनी थी. मार्च 2000 में एक्स का विलय एक दूसरी कंपनी के साथ हुआ. जिसका नाम था कंफिनिटी. आगे चलकर ये कंपनी कहलाई पेपैल. जो ऑनलाइन पेमेंट सर्विस मुहैया कराती थी. 2002 में पेपैल को ebay ने खरीद लिया. 1.5 बिलियन डॉलर यानी, आज के हिसाब से लगभग 12 हजार करोड़ में. कंपनी के जितने शेयर होल्डर थे, जिनमें एक नाम मस्क का भी था. सबके वारे न्यारे हो गए. मस्क ने आगे चलकर टेस्ला और स्पेस एक्स की शुरुआत की. दोनों कंपनियां अपने क्षेत्र में क्रांतिकारी साबित हुईं.
कहानी यूट्यूूब की जो महज एक डेटिंग वेबसाइट बनकर आया और फिर दुनिया पर छा गया
कैसे हुई Youtube की शुरुआत? Elon Musk की कंपनी से Youtube का क्या रिलेशन था? Youtube के फाउंडर्स ने इसे Google को क्यों बेच दिया? तारीख में आज जानेंगे यूट्यूब का इतिहास . कैसे तीन लड़कों - चैड हर्ले, स्टीव चेन और जावेद करीम - द्वारा मिलकर बनाई एक डेटिंग वेबसाइट ने इंटरनेट की दुनिया बदलकर रख दी.

पेपैल से निकलकर क्रांति करने वाले मस्क हालांकि अकेले नहीं थे. साल 2005 में पेपैल के तीन पूर्व कर्मचारियों, चैड हर्ले, स्टीव चेन और जावेद करीम ने मिलकर एक वेबसाइट की शुरुआत की. जिसे उन्होंने नाम दिया - यूट्यूब. यूट्यूब की शुरुआत कैसे हुई, इसे लेकर अलग-अलग कहानियां हैं. तारीख में आज जानेंगे यूट्यूब का इतिहास . कैसे तीन लड़कों द्वारा मिलकर बनाई एक डेटिंग वेबसाइट ने इंटरनेट की दुनिया बदलकर रख दी.

बकौल करीम, यूट्यूब का आइडिया सुपरबोल के दौरान आया था. सुपर बोल यानी अमेरिकी फुटबॉल लीग का फाइनल मैच. मैच के हाफ टाइम में एक विशेष शो होता है. जिसमें स्टार्स परफॉर्म करते हैं. इसी शो का एक वीडियो करीम इंटरनेट पर ढूंढने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन उन्हें नहीं मिला. इसके बाद 2004 में जब इंडियन ओसियन में सुनामी आई, इसका भी कोई वीडियो करीम ऑनलाइन नहीं ढूंढ पाए. लिहाजा उन्हें आइडिया आया एक वीडियो शेयरिंग प्लेटफार्म का. यूट्यूब की शुरुआत की, हालांकि एक दूसरी कहानी भी है.
चैड हर्ले और स्टीव चेन के अनुसार, यूट्यूब का शुरुआती आइडिया एक डेटिंग वेबसाइट का था. 14 फरवरी, 2005 को वेलेंटाइन डे के दिन YouTube.com अस्तित्व में आया. सोच कुछ ऐसी थी कि डेटिंग के लिए पार्टनर ढूंढ रहे लोग इसपर वीडियोज़ पोस्ट करेंगे. पर ये आइडिया उतना चला नहीं बाकायदा शुरुआत में इन लोगों ने लड़कियों को पैसे देकर उनसे वीडियो भी अपलोड करवाए. लेकिन फिर भी काम न बना. लिहाजा तीनों ने तय किया कि यूट्यूब को हर तरह के वीडियो डालने के लिए खोल दिया जाएगा.
23 अप्रैल, 2005 को यूट्यूब पर पहला वीडियो अपलोड किया गया. ये वीडियो जावेद करीम ने अपलोड किया. जिसका टाइटल था 'Me at the zoo'. ये अमेरिका के सैन डिएगो चिड़ियाघर का वीडियो था. आज की भाषा में कहें तो यूट्यूब का पहला वीडियो एक व्लॉग था. यहां से कहानी शुरू हुई. और फिर चल निकली.
चैड हर्ले ने यूट्यूब का लोगो और वेबसाइट का इंटरफेस डिजाइन किया. वहीं स्टीव चेन ने सुनिश्चित किया कि वीडियो अपलोडिंग और प्ले करने के दौरान कोई रुकावट या कोई दूसरा इशू न आए. जावेद करीम चूंकि एक प्रोग्रामर थे इसलिए उन्होंने वेबसाईट और डिजाइन में मदद के साथ-साथ बैक एंड में अपना हुनर दिखाया. तीनों की मेहनत रंग लाई और जुलाई 2005 आते-आते यूट्यूब पर ठीक ठाक संख्या में वीडियो डलने शुरू हो गए. इसका शुरुआती स्लोगन था 'Your Digital Video Repository'.
यूट्यूब का अगला कदम था, एक एंजेल इन्वेस्टर की खोज. एंजल इन्वेस्टर यानी ऐसा शख्स या ऐसी कंपनी जो आपके आइडिया से प्रभावित होकर आपके बिजनेस में पैसे लगाती है. नवंबर 2005 में 'सकोव्या कैपिटल' ने यूट्यूब में साढ़े तीन मिलियन डॉलर का निवेश किया. PayPal के सीएफ़ओ रहे रोलोफ बोथा भी बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के तौर पर यूट्यूब से जुड़ गए. अप्रैल 2006 में कंपनी को एक और इन्वेस्टमेंट मिला. 'सकोव्या एंड आर्टिस कैपिटल मैनेजमेंट' ने यूट्यूब में 8 मिलियन डॉलर का निवेश किया. कंपनी के पास अब पैसा था. और अपलोड किए जाने वाले वीडियो की संख्या भी लगातार बढ़ रही थी. मई 2006 आते-आते यूट्यूब पर दो करोड़ से ज्यादा वीडियोज़ अपलोड हो चुके थे. एक साल के अंदर वेबसाइट को 10 करोड़ व्यूज मिल चुके थे. ये दुनिया की सबसे तेज़ी से उभरती वेबसाइट्स में से एक थी. हालांकि इसका दफ्तर अभी भी कैलिफोर्निया में एक पिज्जा शॉप के ऊपर चल रहा था. जहां से यूट्यूब की शुरुआत हुई थी.
अपने लॉन्च के दो साल के अन्दर ही यूट्यूब इतनी तरक्की कर चुका था कि कंपटीटर कहीं पीछे छूट गए थे. फेसबुक आदि के लिए वीडियो प्लेटफार्म तैयार करने वाले ग्रेग कॉस्टेलो बताते हैं,
"जब मैंने वीडियो पर काम करना शुरू किया, पत्रकारों ने मुझसे पहला सवाल पूछा कि जो आप कर रहे हैं, वो यूट्यूब से कैसे अलग हैं". कॉस्टेलो कहते हैं, "मैं तभी समझ गया था गेम ओवर हो गया है". वीडियो की दुनिया में यूट्यूब सबसे बड़ा और इकलौता खिलाड़ी बन गया था. अब बारी थी पैसे छापने की.
जून 2006 में यूट्यूब ने National Broadcasting Corporation, NBC के साथ एक करार साइन किया. इस तरह यूट्यूब पर विज्ञापनों की शुरुआत हुई. यूट्यूब पर जो पहला एड दिखाया गया, वो फेमस शो Prison Break का था. ये एड अमेरिका की चर्चित बिजनेस वुमन पेरिस हिल्टन के चैनल पर दिखाए गए थे. वही पेरिस हिल्टन जिनके परदादा कोनराड हिल्टन ने मशहूर हिल्टन होटल्स की शुरुआत की थी. एड्स के मामले में कंपनी के CEO चैड हर्ले ज्यादा खुश नहीं थे. उनका तर्क था कि विज्ञापन के आने से यूट्यूब उतना यूजर फ्रेंडली नहीं रह जायेगा. इसके बावजूद चूंकि मामला पैसे का था, यूट्यूब पर विज्ञापन आने जारी रहे. विज्ञापनों की बदौलत यूट्यूब जल्द की प्रॉफिट कमाने लगा. प्रॉफिट धीरे धीरे बढ़ता गया, लेकिन फिर एक रोज़ यूट्यूब को बेचने की बात चल पड़ी. हम जानते हैं यूट्यूब को गूगल ने खरीदा. लेकिन इसे बेचा क्यों गया, इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है.
Youtube को बेचा क्यों गया?यूट्यूब जितनी तेज़ी से बढ़ रहा था, उसके सामने उतनी ही चुनौतियां भी सर उठाती जा रही थीं. इतना ज्यादा ट्रैफिक मैनेज करने के लिए वेबसाइट में तकनीक अपग्रेड करनी पड़ी. और ये कोई एक बार का काम नहीं बल्कि एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया थी. जितने यूजर्स बढ़ेंगे, उस हिसाब से अपग्रेड करना होगा. इसके अलावा एक और समस्या जो आज भी यूट्यूब यूजर्स का पीछा नहीं छोड़ती वो थी कॉपीराइट की.
शुरुआती दिनों में यूट्यूब वीडियो अपलोड करने वालों को पैसा नहीं देता था. लेकिन कॉपीराइट की समस्या शुरू से थी. साल 2005 में यूट्यूब पर पहला वीडियो वायरल था. लेजी संडे नाम का एक पैरोडी वीडियो यूट्यूब पर अपलोड किया गया, जिसे 12 लाख लोगों ने देखा. कुछ समय बाद वीडियो के ओरिजिनल मालिक, NBC नाम के टीवी चैनल ने यूट्यूब पर कॉपीराइट क़ानून के उल्लंघन का आरोप लगा दिया. इसके बाद कॉपीराइट क्लेम्स की बाढ़ सी आ गई. अगले कुछ दिनों में यूट्यूब को हजारों वीडियो हटाने पड़े. हालांकि इससे भी समस्या का हल नहीं निकला. कॉपीराइट वाले नए वीडियो लगातार अपलोड हो रहे थे. जितनी तेज़ी से वीडियो अपलोड हो रहे थे, उन्हें हटाने के लिए लोग कम पड़ने लगे.
शुरुआत में इसे ऐसे ही चलने दिया गया. वीडियो अपलोड होते रहे, किसी ने कॉपीराइट के लिए कहा, तो वीडियो हटा दिया गया. इस बीच कुछ बड़े नाम यूट्यूब से जुड़े. जिसने वेबसाइट की साख में इजाफा किया. अमेरिका के कुछ टीवी चैनलों ने अपने वीडियो यूट्यूब पर अपलोड करने शुरू कर दिए. ये उनके अपने वीडियो थे. इसलिए कॉपीराइट का कोई मसला नहीं था. साथ-साथ यूट्यूब ने एक नए टर्म को भी जन्म दिया. यूट्यूबर, यानी वो शख्स जिसका नाम सिर्फ इसलिए है, क्यूंकि वो वीडियो अपलोड करता है. उस समय के लिए ये एकदम नई चीज थी.
यूट्यूब तरक्की करता जा रहा था. लेकिन उसकी कॉपीराइट की समस्या ज्यों की त्यों थी. शुरुआती दिनों में कई बड़ी कंपनियों ने यूट्यूब पर कॉपीराइट चोरी के इल्जाम लगाए. हालांकि CEO चैड हर्ले इससे परेशान नहीं थे. उनके अनुसार असली मसला पैसे का था. अंत में बड़ी कंपनियों को अपना कट चाहिए था. गूगल जो उस समय गूगल वीडियो नाम से एक प्लेटफार्म चला रहा था. उसने इस दिशा में काम भी करना शुरू कर दिया था. यूट्यूब को भी आगे यही करना था. हालांकि हर्ले के अनुसार कंपनियों के शोर मचाने के पीछे एक दूसरा कारण भी था. उन्हें डर था कि अगर कैमरा लेकर हर ऐरा गैरा कंटेंट बनाने लगेगा, तो टीवी चैनलों का धंधा चौपट हो जाएगा. इसी डर के चलते यूट्यूब पर लगातार दबाव बनाया जा रहा था कि वो कॉपीराइट कंटेंट रोके. ये बड़ी समस्या थी. किसी दिन अगर कॉपीराइट के चक्कर में कोई यूट्यूब को कोर्ट में घसीट लेता तो कंपनी बंद भी हो सकती थी. सबसे बड़ा खतरा था म्यूजिक कंपनियों से. लोग कोई भी संगीत जोड़कर वीडियो उपलोड करते थे. लिहाजा कंपनी के लिए म्यूजिक कॉपीराइट की समस्या बढ़ती ही चली गई. इस समस्या का कोई हल जरूरी था. और यही हल यूट्यूब को दिखा गूगल में.
गूगल vs याहूचैड हर्ले के अनुसार कॉपीराइट की समस्या को हल करने, और यूट्यूब को नेक्स्ट लेवल तक ले जाने के लिए किसी बड़े हाथ की जरुरत थी. म्यूजिक कंपनी के मालिक अपने कट के लिए लगातार यूट्यूब पर दबाव डाल रहे थे. लीगल खर्चे भी दिन पर दिन बढ़ते जा रहे थे. जिसके चलते अंत में फैसला किया गया कि यूट्यूब को बेच दिया जाएगा. यूट्यूब को खरीदने की लाइन में चार कंपनियां लगी थीं. न्यूज़ कोर्प (जो तब मायस्पेस नाम से सोशल नेटवर्क वेबसाइट चलाती थी), याहू, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट. चारों में कंपटीशन था. लेकिन एक मामले में तीन कंपनियां एकमत थीं. किसी भी हाल में यूट्यूब माइक्रोसॉफ्ट के हाथ न चले जाए. माइक्रोसॉफ्ट तब जायंट हुआ करता था. सबसे बड़ा. इसलिए सबके निशाने पर भी रहता था.
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शुरुआती नेगोशिएशन में यूट्यूब पर दो कंपनियों ने सबसे ज्यादा इंटरेस्ट दिखाया. गूगल और याहू. गूगल के पास अपना गूगल वीडियो नाम का प्लेटफार्म था. लेकिन ऑनलाइन वीडियो मार्केट का बड़ा हिस्सा, लगभग 60% यूट्यूब के पास था. और गूगल वीडियो के मुकाबले यूट्यूब कहीं तेज़ी से ग्रो कर रहा था. लिहाजा गूगल किसी कीमत पर ये डील हासिल करना चाहता था. अक्टूबर 2006, भारत के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा ने यूरोप की स्टील कंपनी Corus Group को 4.3 बिलियन यूरो में खरीदा. इधर भारत में टाटा साहब ने डील की, उधर अमेरिका में गूगल ने यूट्यूब का अधिग्रहण करने की प्रक्रिया शुरू कर दी. ये डील 1.65 बिलियन डॉलर में तय हुई. यूट्यूब के फाउंडर रातों-रात अरबपति हो गए. हालांकि इसके बाद भी उन्होंने कुछ साल गूगल के अंडर काम करना जारी रखा.
गूगल के अंडर रहते हुए यूट्यूब ने सफलता के नए आयाम गढ़े. आने वाले दिनों में यूट्यूब पर शुरुआत हुई इटरनेट तोड़ कंटेंट की. यानी वायरल वीडियो. Evolution of Dance, Charlie Bit My Finger, David After the Dentist - 2जी और 3जी के जमाने में ये यूट्यूब पर वायरल हुए ये पहले वीडियो थे. वायरल वीडियोज की बदौलत यूट्यूब को जबरदस्त रफ़्तार मिली. इसके अलावा गूगल का साथ तो था ही. लिहाजा 2007 में यूट्यूब बहुत तेज़ी से उभरा. 2007 में यूट्यूब ने पार्टनर प्रोग्राम शुरू किया. यानी अब यूजर यूट्यूब से पैसे भी कमा सकते थे. इस एक कदम ने यूट्यूब को नई उड़ान दे दी.
2007 में यूट्यूब पूरे इंटरनेट का इतना बैंडविथ इस्तेमाल करने लगा, जितना सन 2000 में पूरे इंटरनेट का बैंडविथ था. मार्च 2007 में यूट्यूब ने यूट्यूब अवार्ड्स की शुरुआत की. ये एक कंपटीशन था जिसमें यूजर्स को बेस्ट वीडियोज़ के लिए वोट करना था. अगला कदम था मेनस्ट्रीम में आने का. इसलिए 2007 में यूट्यूब ने CNN के साथ मिलकर अमेरिकी प्रेसीडेंशियल डिबेट का प्रसारण किया. इसमें रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक, दोनों कैंडिडेट से यूट्यूब के जरिए सवाल भी पूछे गए थे. यूट्यूब आगे और आगे बढ़ता गया.

2010 आते आते यूट्यूब ने पूरी दुनिया में अपने पैर पसार लिए थे. उस साल यूट्यूब ने एक धमाकेदार काम किया. भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता को देखते हुए IPL के मैचों का यूट्यूब पर लाइव प्रसारण शुरू किया, और वो भी मुफ़्त में. दुनिया में किसी भी खेल के ईवेंट का ये पहला फ्री प्रसारण था. इस बीच यूट्यूब लगातार अपने यूजर इंटरफेस में बदलाव करता रहा. शुरुआत में यूट्यूब पर रेटिंग देने के लिए स्टार वाले आइकॉन का इस्तेमाल किया जाता था. इन्हें बदलकर लाइक बटन और डिसलाइक बटन लाए गए. कुछ और बदलाव भी हुए. मसलन, फेसबुक पर रिएक्शन बटन होते हैं न, हंसी वाले, दुखी वाले, और गुस्सा जताने वाले. कुछ ऐसे ही बटन यूट्यूब भी लेकर आया था. ये हालांकि ज़्यादा पसंद नहीं किए गए. लिहाजा उन्हें हटा दिया गया.
मार्च 2012 में कंपनी ने एक नया फीचर निकाला, Tooltips. ये क्या है?जब आप कोई वीडियो देखते हैं तो नीचे एक टाइमलाइन चल रही होती है. घड़ी के माफिक जिसमें वीडियो कितने देर की है और कितना आप देख चुके है, ये दिखाई देता है. यूट्यूब ने इसी के साथ एक और फीचर चिपका दिया. नए फीचर में आप उस लाइन पर जहां भी ड्रैग करेंगे, वहां पर वीडियो में क्या है, ये दिख जाता था. अब ये फीचर कमाल का था क्योंकि कई बार लोग बस थंबनेल देखकर वीडियो पर क्लिक कर देते थे. अंदर खोदा पहाड़ निकली चुहिया टाइप कंटेंट होता. इस फीचर से यूजर्स का समय और डेटा, दोनों की बचत होती थी.
इसके बाद यूट्यूब एक और फीचर लाया. मार्च के महीने में एक दिन आता है जब हम अर्थ आवर मनाते हैं. एक घंटे तक लोग अपने घरों-दफ्तरों की बिजली बंद करते हैं. यूट्यूब ने 2012 में अर्थ आवर के दिन अपने यूजर इंटरफेस को डार्क कर दिया. लोगों को ये पसंद आया. 2012 में ही यूट्यूब ने एक और अहम बदलाव किया. पहले चैनल मोनेटाइज करने का पैमाना सिर्फ व्यू हुआ करते थे. 2012 में यूट्यूब ने व्यू की जगह वॉच टाइम को मॉनिटाइजेशन का पैमाना बना दिया.
2006 में गूगल ने यूट्यूब खरीद था. अगले 6 साल में यूट्यूब ने लोकप्रियता के सारे रेकॉर्ड्स तोड़ दिए. साल 2012 तक यूट्यूब, गूगल और फेसबूक के बाद इंटरनेट पर सबसे ज्यादा सर्च किया जाने वाला कीवर्ड बन गया. मई 2011 में आई एक रिपोर्ट में कहा गया कि यूट्यूब हर दिन तीन बिलियन व्यूज जनरेट कर रहा है. इस वक्त तक यूट्यूब पर हर मिनट लगभग 48 घंटे का कंटेंट अपलोड किया जा रहा था. जो 2012 में 60 घंटे प्रति मिनट तक पहुंच गया. इसमें भी एक तिहाई कंटेंट बस अमेरिका से अपलोड हो रहा था.
साल 2012 में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने थे. डेमोक्रेटिक पार्टी के बराक ओबामा के सामने मैदान में रिपब्लिकन पार्टी के मिट रोमनी थे. बराक ओबामा अपने जबरदस्त भाषणों के लिए जाने जाते थे, तो ऑडियंस की कमी तो थी नहीं. लिहाज यूट्यूब ने प्रेसीडेंशियल डिबेट के लाइव स्ट्रीमिंग के लिए पार्टनर बनाया ABC NEWS को. इसके बाद आई 21 दिसम्बर 2012 की तारीख. माया सभ्यता के कैलेंडर के हिसाब से दुनिया खत्म हो जानी थी. किस्मत थी जो हम बच गए और हमने देखा यूट्यूब का पहला 100 करोड़ी वीडियो. ये वीडियो था, कोरियन कलाकार PSY (साई) का Gangnam Style. इस गाने को एक बिलियन से भी ज्यादा व्यूज मिले.
साल 2013 में यूट्यूब आठ साल का हो चुका था. कम से कम अस्सी बार अलग-अलग तरह से अपग्रेड किया जा चुका था. 2013 में यूट्यूब एक बड़ा ज़रूरी फीचर लाया. पहले अक्सर ऐसा होता था कि वीडियो अपलोड करने के बाद किसी एक जगह पर कोई गलत टेक्स्ट या नेमप्लेट लग जाने पर एक ही ऑप्शन था, वीडियो को डिलीट करना. यूट्यूब ने इस समस्या पर गौर किया और एक फीचर लाया 'ट्रिम डाउन'. इस फीचर की मदद से यूज़र्स को किसी एक स्पेसीफिक पॉइंट पर वीडियो का हिस्सा हटाने की सहूलियत मिली. माने जिस हिस्से में कुछ गलत चला गया था, उसे उड़ा देने की. और ये सब बिना वीडियो डिलीट किये किया जा सकता था. मार्च 2013 आते-आते यूट्यूब के पास महीनावार 1 बिलियन यूज़र्स हो गए. इसी साल यूट्यूब ने मेनस्ट्रीम मीडिया के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया और लॉन्च किया. 'यूट्यूब कॉमेडी वीक' और 'यूट्यूब म्यूजिक अवार्ड्स'. हालांकि ये उतने सफल नहीं हुए जितना कंपनी वालों ने सोचा था.
समय आगे बढ़ता गया. दुनिया धीरे-धीरे उस स्टेज पर पहुंच रही थी जहां यूज़र्स का डेटा खपत तेज़ी से बढ़ रही थी. इंटरनेट यूज़ करने वालों में बस युवा नहीं, बल्कि हर वर्ग के लोगों की संख्या बढ़ रही थी. भारत में भी ये पैटर्न देखने को मिला क्योंकि यहां रिलायंस जियो ने सस्ता इंटरनेट लाकर मोबाइल नेट के जगत में क्रांति ला दी थी. जियो के बाद सभी कंपनियों ने वैसे ही प्लान लॉन्च किये. सस्ते डेटा ने अपना कमाल दिखाया. भारत में व्लॉग्स का चलन बढ़ा. लगभग हर न्यूज़ चैनल, पॉलिटिकल पार्टी, सेलिब्रिटी ने अपना यूट्यूब चैनल बनाया. इससे यूट्यूब यूज़र्स की संख्या में ज़बरदस्त वृद्धि हुई. साउथ एशिया मे भारत सबसे ज़्यादा यूट्यूब ट्रैफिक जनरेट करने वाला देश बन गया.
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इधर हालिया सालों मे खासकर कोविड के बाद यूट्यूब इतनी तेजी से बढ़ा है. इतने नए लोग यूट्यूब सेलेब्रिटी बने हैं कि सारी घटनाओं की गिनती एक रिपोर्ट में करना मुश्किल है. यूट्यूबर होना बाकायदा अब एक अलग प्रोफेशन है. इलेक्शन हो, सिनेमा हो, फाइनेंस हो या खेल. वीडियो के मामले मे इंटरनेट पर यूट्यूब सबसे बड़ा खिलाड़ी है. तमाम चीजों की तरह इसके कुछ सफ़ेद और कुछ स्याह पहलू हैं. एक उदाहरण से समझिए.
Youtube ने जब गुस्सा झेला, गोली चलीबात 2018 की है. अप्रैल का महीना था. दोपहर के 12 बजकर 45 मिनट हो रहे थे. कैलिफ़ोर्निया स्थित यूट्यूब के दफ्तर में रोज़ की तरह काम चल रहा था. तभी एक 38 साल की महिला 9 एमएम की स्मिथ एंड वेसन पिस्टल लेकर यूट्यूब के दफ्तर में घुस गई. इसका नाम नज़फी अघदम था. नजफ़ी ने अंदर घुसने के लिए पार्किंग के रास्ते को चुना. उसने पहले तीन लोगों को घायल किया और फिर खुद को उसी स्मिथ एंड वेसन से गोली मार ली. पुलिस को जांच के दौरान, उसके शरीर में न किसी तरह की ड्रग्स मिली न शराब. उसके परिवार से पूछताछ करने पर पता चला कि नजफी यूट्यूब से नफरत करती थी. वजह- यूट्यूब ने किन्ही कारणों से उसका चैनल डीमॉनिटाइज़ कर दिया था.
ये एक अकेला उदाहरण लग सकता है. लेकिन यूट्यूब एडिक्शन नए ज़माने की समस्या बन गई है. आप में हर किसी ने अपने घर में छोटे बच्चे देखे होंगे, जो वीडियो चलाए बिना खाना नहीं खाते. वक्त के साथ यूट्यूब एक वीडियो प्लेटफार्म के साथ-साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की तरह भी काम करने लगा है. इसलिए सोशल मीडिया की तमाम दिक्कतें मसलन एडिक्शन, सेलेब्रिटी कल्चर, फैन आर्मी कल्चर, साइंस के नाम पर अंधविश्वास और स्यूडोसाइंस बतियाना, फेक न्यूज़- ये सब समस्याएं इसके साथ भी जुड़ी हुई हैं.
हालांकि ये भी सच है कि यूट्यूब के कई फायदे हैं. ये सीखने-सिखाने का नया और आसान जरिया है. इसके अलावा यूट्यूब लोगों को अपनी बात रखने का एक प्लेटफार्म देता है. जैसे हम रख रहे हैं.
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