2022 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव से नौ महीने पहले योगी आदित्यनाथ को हटाने की पूरी तैयारी थी. ये दावा इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार श्यामलाल यादव ने अपनी किताब, “At The Heart Of Power: The Chief Ministers of Uttar Pradesh” में किया है.
चुनाव से पहले थी योगी आदित्यनाथ को हटाने की तैयारी? पत्रकार की किताब में बड़ा दावा
वरिष्ठ पत्रकार श्याम लाल यादव लिखते हैं कि एक वक्त पर तो ये बिल्कुल तय ही हो गया था कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटाया जाएगा. लेकिन, इससे पहले कि योगी आदित्यनाथ को नेतृत्व परिवर्तन के लिए तैयार किया जाता. बीजेपी आलाकमान को इस बात का आभास हो गया कि...
ये 2021 की गर्मियों की बात है. योगी आदित्यनाथ को सूबे की सत्ता संभाले साढ़े चार बरस हो चुके थे. आसन्न विधान सभा चुनावों में कुल नौ महीने का वक्त बचा था. ऐसे में लखनऊ और दिल्ली के स्तर पर बीजेपी-आरएसएस के नेताओं की कई दौर की मुलाकातें हुईं. श्याम लाल यादव लिखते हैं कि एक वक्त पर तो ये बिल्कुल तय ही हो गया था कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटाया जाएगा. लेकिन, इससे पहले कि योगी आदित्यनाथ को नेतृत्व परिवर्तन के लिए तैयार किया जाता. बीजेपी आलाकमान को इस बात का आभास हो गया कि अगर चलती सरकार में योगी आदित्यनाथ को हटाया गया तो पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा.
रिवीजन के लिए बता दें कि 2017 के चुनावों में 403 सीटों वाली यूपी विधानसभा में बीजेपी ने 384 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से उन्हें 312 सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि, इस तख्तापलट की प्रक्रिया पर पूर्ण विराम लगा, नवंबर 2021 में. जब नरेंद्र मोदी 56वें डीजीपी सम्मलेन में शिरकत करने लखनऊ आए. राजभवन में योगी ने मोदी से मुलाकात की. इसके बाद 21 नवंबर को योगी आदित्यनाथ के एक तस्वीर पोस्ट की, जिसमें नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ साथ में टहल रहे थे. और मोदी ने योगी के कंधे पर हाथ रख रखा था. इस तस्वीर से संगठन और सूबे में स्पष्ट सन्देश गया कि योगी की सरपरस्ती में ही आगामी 2022 का चुनाव लड़ा जाएगा. इस तस्वीर का कैप्शन था,
“हम निकल पड़े हैं प्रण करके
अपना तन-मन अर्पण करके
जिद है एक सूर्य उगाना है
अम्बर से ऊंचा जाना है
एक भारत नया बनाना है.
श्यामलाल यादव ने अपनी किताब में योगी को हटाने की इस कोशिश के पीछे के सीधे स्पष्ट कारण तो नहीं बताए हैं. लेकिन, योगी पर आधारित 16 पन्नों के उस पूरे चैप्टर को ध्यान से पढ़ने पर योगी आदित्यनाथ सरकार के विरोध में जो कुछ चीजें हो रहीं थी, उसका एक ब्यौरा मिलता है.
जैसे, उस दौर में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के साथ लगातार उनके मतभेद बढ़ रहे थे. हालांकि, श्यामलाल लिखते हैं कि आरएसएस के नेताओं के दखल के बाद 22 जून 2021 को योगी आदित्यनाथ अचानक केशव प्रसाद मौर्य से मिलने पहुंच गए थे. इसे दोनों के बीच रिश्ते सुधारने की कवायद के रूप में देखा गया. केशव को अप्रैल 2016 में यूपी बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. और मार्च 2017 में बीजेपी की जीत के बाद मुख्यमंत्री की रेस में उनका भी नाम था. लेकिन, गद्दी मिली योगी आदित्यनाथ को. तभी से दोनों के बीच एक किस्म के टसल की थियरीज चलती रहती हैं.
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दूसरा था, ब्यूरोक्रेसी का दबदबा. किताब में दर्ज है कि भाजपा की सरकारें जब-जब सत्ता में आती हैं, तो पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं की एक कॉमन शिकायत रहती हैं कि ब्यूरोक्रेसी का प्रभाव बढ़ जाता है और राजनैतिक कार्यकर्ताओं समेत चुने हुए प्रतिनिधियों का महत्त्व कम हो जाता है. यही योगी आदित्यनाथ की सरकार में भी हुआ. इस तरह की असहजता की एक बड़ी बानगी देखने को मिली 17 दिसम्बर 2019 को, जब भाजपा के लगभग 100 विधायकों ने अपनी सरकार के खिलाफ लखनऊ में धरना दिया था.
इसके अलावा योगी आदित्यनाथ पर ब्राह्मण विरोधी होने का भी आरोप लगता था. श्यामलाल लिखते हैं कि उस दौर में बीजेपी के कुछ विधायक भी ये सवाल उठाने लगे थे, कि योगी सरकार में कितने ब्राह्मणों का एनकाउंटर हुआ है? मनमोहन सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे, जितिन प्रसाद ने तो 6 जुलाई 2020 को ब्राह्मण चेतना परिषद नाम का एक संगठन भी लॉन्च कर दिया था. हालांकि, इसके कुछ महीनों बाद जून 2021 में उन्होंने भाजपा जॉइन कर ली. फिलवक्त वे पीलीभीत से भाजपा के सांसद हैं. जहां से वरुण गांधी का टिकट काटकर उन्हें चुनाव में उतारा गया था. जितिन, मोदी सरकार में मंत्री भी हैं.
इसके अलावा इस बात के भी आरोप थे कि योगी आदित्यनाथ सरकार में भर्तियों में आरक्षण नियमों की अवहेलना हुई है. श्यामलाल यादव ने फरवरी 2022 में छपी अपनी रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए लिखा है कि युवाओं में पेपर लीक और भर्तियों में हो रही देरी को लेकर भी काफी गुस्सा था.
But and it’s a big but. लखनऊ और दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में हुई इन मंत्रणाओं का कोई असर नहीं हुआ. और 27 फरवरी 2023 को योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री डॉक्टर संपूर्णानंद का एक कार्यकाल में लगातार मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड ब्रेक किया. संपूर्णानंद पहली बार दिसम्बर 1954 से अप्रैल 1957 और इसके बाद अप्रैल 1957 से दिसम्बर 1960 तक लगातार 5 साल 344 दिन मुख्यमंत्री रहे थे. इसके अलावा 30 मार्च 2024 को योगी आदित्यनाथ ने मायावती के सबसे लम्बे समय तक सीएम रहने का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया है. 2022 विधान सभा चुनावों में बीजेपी ने योगी का चेहरा आगे रखा. और पार्टी को 255 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिला.
यूपी में अभी चुनाव होने में तीन बरस का वक्त बचा है. लोक सभा चुनावों में बीजेपी को भारी नुकसान हुआ है और पार्टी सिर्फ 33 सीटों पर सिमट गयी है. ऐसे में योगी आदित्यनाथ के लिए ये चुनौती भरा समय है.
(ये किताब रूपा प्रकाशन से आई है. कीमत है, 395 रूपये. इस किताब में उत्तर प्रदेश के अब तक हुए सभी 21 मुख्यमंत्रियों के काम और जीवन से जुड़े विस्तृत ब्यौरे हैं.)
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