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इतिहास का सबसे खतरनाक स्नाइपर जिसे रूसी सैनिक 'व्हाइट डेथ' यानी सफ़ेद मौत कहते थे

96 दिन में 500 दुश्मनों को निशाना बनाया

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चेहरे पर भी वह सफेद मास्क पहनता और बर्फ में ऐसा छुपता कि बहुत नजदीक आने पर भी किसी को पता नहीं चलता (सांकेतिक तस्वीर: getty)

हड्डियां कंपकपा देने वाली ठंड में सोवियत सैनिकों का एक कौलम आगे बढ़ रहा है. चारों तरफ़ बर्फ़ की चादर तनी है. द्वितीय विश्व युद्ध की घोषणा हो चुकी है. और महान रेड आर्मी के कदम यूरोप के एक छोटे से देश फ़िनलैंड की सीमा में दाखिल हो चुके हैं. ये जनवरी का महीना है और तापमान शून्य से क़ाई दहाई नीचे पहुंच चुका है. सैनिकों की टुकड़ी एक निश्चित रफ़्तार से आगे बढ़ रही थी. कि तभी अचानक एक सोवियत सिपाही ज़मीन पर लुढ़क जाता है. गोली पहले पहुंचती और आवाज़ बाद में. गोलियां एक के बाद एक आती जा रही थीं, और सिपाही गिरते जा रहे थे. बहुत कोशिश के बाद भी सोवियत सैनिकों को आगे कुछ नहीं दिखाई देता. वो सब हैरत से एक दूसरे की तरफ़ देख रहे थे. तभी उनका कमांडर, जो अब तक एक पेड़ की आड़ ले चुका था, उनसे कहता है, "छुप जाओ, ये वाइट डेथ है". (White Death- Deadliest Sniper) 

ये कहानी है इतिहास के सबसे जानलेवा स्नाइपर की. यूरोप के छोटे से देश फ़िनलैंड का एक सैनिक, जिसने मात्र 100 दिन में आधी बटालियन बराबर सैनिकों को अपना निशाना बना लिया था. और ये गिनती तब है जब उसके हाथों मशीन गन से मारे गए दुश्मनों को इसमें जोड़ा नहीं गया. ये कहानी है सिमो हायहा उर्फ़ वाइट डेथ की.

कौन थे सिमो हायहा?

17 दिसंबर 1905 को फ़िनलैंड के एक छोटे से राज्य करेलिया में सिमो हायहा की पैदाइश हुई. 17 की उम्र में फ़ौज जॉइन की और 1939 आते आते वो एक काबिल स्नाइपर बन ग़ए थे. 1939 में जब सोवियत फ़ौज ने फ़िनलैंड पे आक्रमण किया, सिमो ने भी इस युद्ध में हिस्सा लिया. ये युद्ध कुल 109 दिन चला और सिमो खुद 98 दिन तक बैटल फ़ील्ड पर रहे. हालांकि इन 98 दिनों में उन्होंने सोवियत फ़ौज में ऐसी दहशत फैला दी थी कि सोवियत सैनिक उन्हें वाइट डेथ के नाम से बुलाते थे. युद्ध के दौरान एक दिन तो ऐसा गुजरा जब उन्होंने अकेले 25 सोवियत सैनिकों को अपना निशाना बनाया.

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सिमो हायहा उर्फ़ व्हाइट डेथ (तस्वीर: wikimedia commons) 

इस कारनामे से सोवियत फ़ौज में ऐसी दहशत फैली कि उन्हें ढूंढने के बजाय सोवियत फ़ौज ने उनकी पोजिशन पर मोर्टार की शेलिंग शुरू कर दी. एक दो मौक़े ऐसे आए जब मोर्टार के टुकड़े उनके क़रीब से गुजरे लेकिन सिमो को कोई ख़ास नुक़सान नहीं हुआ. बर्फ़ में एक जगह लेटे हुए वो कई दिनों तक उसी पोजिशन में रहते थे ताकि दुश्मन को उनका पता ना लगे. उनका नाम वाइट डेथ इसलिए पड़ा क्योंकि सफ़ेद बर्फ़ की चादर में उन्हें ढूँढना मुश्किल था. सफ़ेद कपड़े पहनने के अलावा उन्होंने अपनी बंदूक़ भी सफ़ेद रंग से पेंट करवा ली थी.

सिमो का तरीक़ा नायाब था. उस दौर में स्नाइपर अपनी राइफ़ल के आगे स्कोप लगाकर रखते थे. जैसा आपने अगर पबजी या कोई भी लड़ाई का विडीयो गेम खेला हो तो देखा होगा. स्कोप की मदद से निशाना बड़ा और साफ़ दिखाई देता है. लेकिन सिमो अपनी राइफ़ल में स्कोप का इस्तेमाल नहीं करते थे. क्योंकि स्कोप के लेंस पर रौशनी की चमक पड़ती है, जिससे दुश्मन को आपकी पोजिशन का पता चल सकता है. इसके अलावा स्कोप के लेंस में धुंध जम जाती है, जिसे बार बार साफ़ करना पड़ता है. उनके बरअक्स सोवियत स्नाइपर स्कोप का इस्तेमाल करते और इसे वजह से सिमो का निशाना बन जाते.

ठंडे मौसम में सिमो कई दिनों तक एक ही जगह पर बैठे रहते. और ठंड से बचने के लिए कई तहों में कपड़े पहने रखते थे. अपनी जेब में वो चीनी और ब्रेड के कुछ टुकड़े रखते थे ताकि समय समय पर उन्हें खाते रहने से उनका शरीर गर्म रह सके. सिमो का नियम था कि सुबह होने से पहले ही वो एक ठीक जगह चुनकर उसे अपना अड्डा बना लेते और सूरज ढलने तक वहां से नहीं हिलते. सिमो का अनुशासन इतना तगड़ा था कि लड़ाई के दौरान वो अपने मुंह में बर्फ़ डाल लेते थे, ताकि उनके मुंह से भाप ना निकले. भाप से उनकी पोजिशन का पता चल सकता था. अपने आगे रखी बर्फ़ पर भी वो पानी डाल देते थे, ताकि गोली चलाने के बाद बंदूक़ को लगने वाले झटके से बर्फ़ उड़े नहीं.

व्हाइट स्नाइपर 

सिमो हायहा की ज़िंदगी पर, 'द व्हाइट स्नाइपर' नाम से किताब लिखने वाले तापियो सारेलाइनेन एक आर्टिकल में लिखते हैं, "स्नाइपर्स को लेकर ये मिथक रहता है कि वे पेड़ों या ऊंची जगहों पर चढ़कर निशाना लगाते हैं. लेकिन हायहा से जब इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया, पेड़ों से ना सिर्फ़ सटीक निशाना लगाना मुश्किल होता है, बल्कि अगर आपकी पोजिशन पता चल गई तो आपके पास भागने का भी कोई ऑप्शन नहीं होता".

अब सवाल ये कि वो बंदूक़ कौन सी थी, जिससे सिमो हायहा ने ये कारनामा किया, और इसमें ख़ास ऐसा क्या था? हायहा के पास एक M/28 राइफ़ल थी. जो फ़िनलैंड की फ़ौज की स्टैंडर्ड इश्यू राइफ़ल हुआ करती थी. इसमें ख़ास क्या था? हायहा की माने तो ख़ास कुछ भी नहीं. ख़ास खुद हायहा थे. उनके साथियों के अनुसार वो बाक़ी सैनिकों के मुक़ाबले सबसे पहले अपनी राइफ़ल साफ़ किया करते थे. और मेंटेनेंस का काम लड़ाई के पहले और लड़ाई के बाद, दोनों बार करते थे. लड़ाई ख़त्म होने के बाद जब हायहा से उनकी सफलता का राज पूछा गया तो उन्होंने सिर्फ़ एक शब्द में जवाब देते हुए कहा, 'प्रैक्टिस'. इस प्रैक्टिस का नतीजा क्या निकला?

96 दिन की लड़ाई में सिमो हायहा ने औसतन रोज़ पांच दुश्मनों को अपना निशाना बनाया. इनमें वो लोग शामिल नहीं थे जो हायहा की मशीन गन का निशाना बने थे. युद्ध के अलग अलग दस्तावेज़ों में हायहा के हाथों मारे गए लोगों की गिनती अलग अलग बताई गई हैं लेकिन उनके खुद के संस्मरणों के अनुसार उन्होंने 509 लोगों को स्नाइपर से निशाना बनाया था. एक ख़ास बात ये भी थी कि हायहा के ये संस्मरण सालों तक छिपाकर रखे गए और साल 2017 में जाकर इन्हें प्रकाशित किया गया. 

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सिमो हायहा ने सोवियत फिनलैंड युद्ध के दौरान 500 से ज्यादा लोगों को निशाना बनाया था (तस्वीर: Wikimedia Commons)

अपनी किल लिस्ट के बारे में वो लिखते हैं, "ये मेरे पापों की लिस्ट है". लड़ाई के बाद हायहा को फ़िनलैंड में हीरो का दर्जा मिला. क्योंकि उनके बड़े योगदान के कारण ताकतवर सोवियत फ़ौज भी फ़िनलैंड को जीत नहीं पाई. 103 दिन चली लड़ाई के बाद सोवियत फ़ौज फ़िनलैंड के मात्र 9% हिस्से पर क़ब्ज़ा कर पाई. इस युद्ध में सोवियत फ़ौज को इतना नुक़सान हुआ कि अंत में उन्हें संधि करनी पड़ी और विश्व पटल में सोवियत प्रीमियर जोसेफ स्टालिन की अच्छी ख़ासी किरकिरी हो गई. इस युद्ध का एक विषयांतर ये भी है कि फ़िनलैंड में रेड आर्मी के ख़राब प्रदर्शन ने हिटलर को बढ़ावा और ये विश्वास दिया कि वो सोवियत संघ पर हमला कर उन्हें हरा सकते हैं.

जबड़े में लगी गोली 

6 मार्च 1940 की तारीख़. युद्धबंदी की घोषणा में सिर्फ़ एक हफ़्ता बचा था जब सिमो हायहा एक लड़ाई में बिजी थे. इस दौरान एक गोली आकर सीधे उनके चेहरे पर लगी और उनका जबड़ा फाड़ते हुए निकल गई. सिमो हायहा वहीं गिर पड़े. उन्हें मृत समझकर बाक़ी मृत सैनिकों के साथ रख दिया गया. क़िस्मत से उनके एक साथी ने देखा कि उनका एक पैर अभी भी हिल रहा था. सिमो को अस्पताल ले ज़ाया गया. उनका आधा चेहरा ग़ायब हो चुका था जिसे दुबारा रीस्टोर करने के लिए 26 बार ऑपरेशन किया गया.

एक दिलचस्प क़िस्सा ये भी है कि उनकी मौत की खबर जब सोवियत फ़ौज तक पहुंची तो वहां जश्न का माहौल हो गया. सिमो की मौत की खबर अख़बारों ने भी छाप दी थी. इसलिए होश में आने के बाद सिमो ने अख़बार को एक लेटर लिखकर अपनी गलती सुधारने को कहा. उन्हें पूरी तरह ठीक होने में 14 महीने का समय लग गया. ठीक होने के बाद सिमो एक बार फिर फ़ौज में जाना चाहते थे. लेकिन उनकी सेहत और उनके स्टेटस को देखते हुए उन्हें दुबारा लड़ने की इजाज़त नहीं दी गई. 

सिमो हायहा ने अपनी बाक़ी की ज़िंदगी एक फार्म में रहकर गुज़ारी. उनके ऊपर किताब लिखने वाले तापियो सारेलाइनेन लिखते हैं, "फ़िनलैंड के लोग उन्हें हीरो मानते थे, लेकिन उन्होंने अपनी ज़ुबान से कभी अपनी तारीफ़ नहीं की. एक लो प्रोफ़ाइल ज़िंदगी जीने के बाद साल 2002 में 96 वर्ष की उम्र में उनकी मौत हो गई".

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