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'परकटी महिलाएं', 'कांग्रेस का पाप', महिला आरक्षण की लड़ाई को इन बयानों ने बनाया मुश्किल

संसद में महिला आरक्षण बिल का मुद्दा जब भी उठा, विरोध हुआ. वजहें अलग-अलग रहीं. लेकिन इस विरोध में कुछ नेता महिला विरोधी टिप्पणी करने से भी नहीं चूके. इस आरक्षण के खिलाफ बीजेपी के नेता भी रहे हैं.

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महिला आरक्षण पर लंबे समय से बहस चल रही है (फोटो- इंडिया टुडे)

27 सालों से लोकसभा में अटका महिला आरक्षण बिल एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गया है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने संसद के विशेष सत्र के दौरान लोकसभा में इस बिल को पेश कर दिया है. संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण के लिए ये प्रावधान किया जा रहा है. इस बिल पर 20 सितंबर को बहस होगी. हालांकि इस बिल के क्लॉज-5(3) में ये भी लिखा है कि संसद या विधानसभा में महिला आरक्षण तब प्रभावी होगा, जब तक परिसीमन की प्रक्रिया पूरी नहीं होगी. यानी साल 2024 के चुनाव में महिला आरक्षण लागू होगा या नहीं, ये अभी स्पष्ट नहीं है. इसलिए कई विपक्षी दल इस बिल को लेकर सरकार की नीयत पर सवाल उठा रहे हैं. 

ये पहली बार नहीं है जब महिला आरक्षण बिल लाने पर सरकार के खिलाफ या बिल का ही विरोध हो रहा है. तो जरा अतीत को टटोलते हैं.

महिला आरक्षण बिल सबसे पहले सितंबर 1996 में एचडी देवगौड़ा की सरकार के दौरान पेश किया गया था. इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान भी ये बिल कई बार लोकसभा में पेश हुआ लेकिन पारित नहीं हो सका. कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार के दौरान मार्च 2010 में ये बिल राज्यसभा में पास भी हो गया था. लेकिन लोकसभा में इस पर बहस भी नहीं हो सकी थी.

विरोध से महिला विरोधी बयान तक

संसद में महिला आरक्षण बिल का मुद्दा जब भी उठा, विरोध हुआ. वजहें अलग-अलग रहीं. लेकिन इस विरोध में कुछ नेता महिला विरोधी टिप्पणी करने से भी नहीं चूके. पहला नाम जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव का है. जून 1997 में जब इस बिल पर लोकसभा में चर्चा हो रही थी तो उन्होंने विवादित बयान दिया था. शरद यादव ने कहा था, 

"परकटी महिलाएं हमारी महिलाओं (ग्रामीण महिलाएं) के बारे में क्या समझेंगी और वो क्या सोचेंगी?"

बाद में कहा गया कि 'परकटी महिलाओं' से शरद यादव का मतलब शहरी और तथाकथित ऊंची जाति की महिलाओं से था. एक बार साल 2009 में शरद यादव ने लोकसभा में कहा था कि अगर मौजूदा स्वरूप में महिला आरक्षण बिल पास हुआ तो वो सदन में ही जहर खा लेंगे. तब शरद यादव जेडीयू के अध्यक्ष थे. उनका आरोप था कि सरकार इस पर औपचारिकता पूरी कर रही है. जबकि इसमें पिछड़े वर्ग और दलित महिलाओं को शामिल करने की जरूरत है.

शरद यादव (फोटो- इंडिया टुडे)

बाद में उन्होंने कई मौकों पर साफ किया कि वे महिला आरक्षण के विरोधी नहीं हैं, बल्कि इसके भीतर पिछड़ी जाति की महिलाओं के लिए आरक्षण होना चाहिए. इंडियन एक्सप्रेस को एक इंटरव्यू में शरद यादव ने कहा था, 

"मैं महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की मांग नहीं कर रहा हूं, यह 50 प्रतिशत भी हो सकता है. लेकिन हिंदुस्तान की जमीनी हकीकत को इसमें नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. महिलाओं में कमजोर वर्ग को अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है. क्यों नहीं इसमें मुसलमान महिलाओं को हिस्सा देंगे."

आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव भी महिला आरक्षण बिल का इन्हीं दलीलों के आधार पर विरोध करते आए. साल 2010 में राज्यसभा में बिल पेश होने से पहले उनकी पार्टी ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी थी. उनकी दलील थी कि इस आरक्षण में पिछड़ी महिलाओं को अलग से आरक्षण दिया जाना चाहिए. लालू यादव ने यहां तक कह दिया था कि उनकी लाश के ऊपर से ये बिल पास होगा.

मार्च 2010 में लालू यादव ने संसद के बाहर कहा था, 

"हम विरोध में नहीं हैं. लेकिन हम उन महिलाओं के पक्षधर हैं जो ओबीसी हैं, दलित हैं, मुस्लिम हैं. आरक्षण किनको दिया जाता है? इसका मतलब ये नहीं है कि हम पढ़ी-लिखी महिलाओं का विरोध कर रहे हैं. लेकिन असल भारत को संसद में आना चाहिए."

उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव भी इसी आधार पर हमेशा बिल का विरोध किया. लेकिन विरोध करते हुए विवादित बयान भी दे आए. साल 2012 में उन्होंने बाराबंकी की एक सभा में कहा था, 

"मैं कहना चाहता हूं कि अगर ये महिला बिल पास हो जाता तो हमारी गरीब बहनों को मौका नहीं मिल सकता था. गांव की महिलाओं को नहीं मिल सकता था मौका. सिर्फ बड़े घराने की लड़कियों और महिलाओं को जगह मिल सकती थी. याद रखना, मैं आपको बता रहा हूं आपको मौका नहीं मिलता. उनके मुकाबले हमारे गांव की महिला में आकर्षण नहीं मिलेगा."

मुलायम सिंह यादव (फाइल फोटो- PTI)

इससे पहले साल 2010 में मुलायम सिंह यादव ने लोकसभा में कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि समाज को जोड़कर चलेंगी तो लोकतंत्र मजबूत होगा. उन्होंने कहा था, 

"जो आगे निकल गए उन्हीं को आगे बढ़ाने की बात हो रही है. जो पीछे रह गए, उन्हें पीछे धकेलने की बात हो रही है. दलित, पिछड़े, मुसलमान महिलाओं को आरक्षण दीजिए. ये आरक्षण किन महिलाओं का हो रहा है? बिल में संशोधन कीजिए."

इसी तरह AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी साल 2010 में महिला आरक्षण का विरोध किया था. और कहा था कि ये मुस्लिमों के हित में नहीं है. वहीं, बहुजन समाज पार्टी (BSP) प्रमुख मायावती भी महिला आरक्षण में अलग से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति और धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की मांग कर चुकी हैं. हालांकि उन्होंने अब इस बिल को समर्थन देने की बात कही है. मायावती ने समर्थन करते हुए सरकार से मांग की है कि इस आरक्षण में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग की महिलाओं का आरक्षण सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

योगी आदित्यनाथ का भारी विरोध

भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं ने भी अतीत में महिला आरक्षण बिल का खुलकर विरोध किया है. इसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल हैं. हालांकि बीजेपी इसके समर्थन में थी. तब आदित्यनाथ गोरखपुर से लोकसभा सांसद थे. उस वक्त उन्होंने एक वीडियो इंटरव्यू में कहा था, 

"इस चीज को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है. इसलिए हम लोगों ने कह दिया है कि पार्टी पहले अपने स्तर पर चर्चा करे. पार्टी में अगर आंतरिक लोकतंत्र है तो जनप्रतिनिधियों की बातों को सुना जाए. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जिन परिस्थियों में ये विधेयक आया है, इस संसद के 99 फीसदी सदस्य इसके विरोध में हैं. आप (बीजेपी) क्यों कांग्रेस के पाप को अपने सिर पर लेना चाहते हैं."

योगी आदित्यनाथ ने बिल के खिलाफ कई बार बोला था. हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में योगी ने कहा था कि वो आरक्षण के साथ (पिछड़े) या बिना आरक्षण के भी इस बिल को सपोर्ट नहीं करते. उन्होंने कहा कि स्थानीय स्तर महिलाओं के लिए आरक्षण है. इससे बच्चों की जिम्मेदारी कैसे प्रभावित होती है? इसका आकलन होना चाहिए कि महिला आरक्षण से उनकी भूमिकाएं प्रभावित नहीं होंगी. उन्होंने कहा था, 

"अगर पुरुष महिलाओं की प्रवृति अपनाते हैं तो वे भगवान होते हैं. लेकिन अगर महिलाएं पुरुषों की प्रवृति अपनाती हैं तो वो राक्षस हो जाती हैं. महिलाओं की आजादी के पश्चिमी विचार को भारतीय संदर्भ में सही तरीके से विश्लेषण करना चाहिए."

हालांकि अब योगी आदित्यनाथ ने इस बिल का समर्थन किया है. उन्होंने प्रधानमंत्री का आभार जताते हुए लिखा कि देश की आधी आबादी को उनका हक देने और भारतीय लोकतंत्र को और अधिक मजबूत और सहभागी बनाने वाला यह कालजयी निर्णय 'विकसित भारत' के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाएगा.

महिला आरक्षण का विरोध करने वालों में बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय भी हैं. उनके कई पुराने ट्वीट वायरल हो रहे हैं. 19 जनवरी 2014 को मालवीय ने एक ट्वीट किया था, 

"नरेंद्र मोदी महिलाओं को राष्ट्र निर्माता के रूप में देखते हैं. पप्पू उन्हें आरक्षण और 12 सिलेंडर देना चाहते हैं. ये अंतर है."

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के लिए बीजेपी के कई नेता ‘पप्पू’ जैसे शब्द का इस्तेमाल करते रहे हैं. अमित मालवीय ने फरवरी 2013 में एक ट्वीट पर जवाब देते हुए लिखा था, 

"अध्यादेश की हमें जरूरत है लेकिन आरक्षण- इसका कोई मतलब नहीं है. मुझे नहीं लगता है कि महिलाओं को इसकी जरूरत है. महिलाएं भी ऐसा नहीं सोचतीं कि उन्हें इसकी जरूरत है."

बहरहाल, महिला आरक्षण बिल लोकसभा में एक बार फिर पेश कर दिया गया है. इस पर 20 सितंबर को बहस होगी. बिल में प्रावधान हैं कि संसद और राज्य विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण होगा. महिला आरक्षण की समय सीमा 15 साल होगी. संसद में संशोधन के जरिये इस आरक्षण को बढ़ाया जा सकेगा. वहीं इस आरक्षण के भीतर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को करीब एक तिहाई आरक्षण मिलेगा.

अब क्या सवाल उठे?

लेकिन परिसीमन की शर्त ने विपक्ष को सवाल उठाने का मौका दे दिया है. कांग्रेस का कहना है कि ये आरक्षण अभी लागू नहीं होगा, क्योंकि इसे परिसीमन के बाद लागू किया जाएगा. कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने सवाल उठाते हुए कहा कि विधेयक में कहा गया है कि आरक्षण अगली जनगणना के प्रकाशन और उसके बाद परिसीमन प्रक्रिया के बाद प्रभावी होगा. क्या 2024 चुनाव से पहले जनगणना और परिसीमन हो जाएगा? उन्होंने इसे इवेंट मैनेजमेंट बताया है.

वहीं आम आदमी पार्टी (AAP) ने कहा कि ये महिला आरक्षण 2029 के चुनाव तक भी लागू नहीं होगा. AAP नेता अतिशी ने ट्विटर पर लिखा, 

"ये भाजपा का महिला आरक्षण बिल नहीं, ‘महिला बेवक़ूफ़ बनाओ’ बिल है. अगर बिल के प्रावधानों को पढ़ें तो ये बिल तब तक लागू नहीं होगा जब तक बिल पास होने के बाद जनगणना और परिसीमन नहीं होता. 2024 तो छोड़िए, इस प्रावधान के साथ 2029 के चुनाव तक भी महिला आरक्षण लागू नहीं होगा!"

मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता उमा भारती ने भी इस बिल पर सवाल उठाया है. भारती ने समाचार एजेंसी PTI से कहा कि उन्हें खुशी है कि महिला आरक्षण बिल आया है लेकिन उन्हें कसक है कि इसे ओबीसी आरक्षण के बिना लाया गया. उन्होंने कहा कि अगर हम ओबीसी महिलाओं को भागीदारी नहीं देंगे तो ओबीसी समाज का हमारे ऊपर भरोसा टूट जाएगा.

संसद और राज्य विधानसभाओं में महिला प्रतिनिधियों की संख्या काफी कम है. इसलिए लंबे समय से इस आरक्षण की मांग हो रही है. अभी लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 82 है, कानून लागू होने के बाद ये संख्या 181 हो जाएगी.

वीडियो: महिला आरक्षण बिल पर नई संसद की पहली ही स्पीच में क्या बता गए PM मोदी?