अमेरिकन यूनिवर्सिटीज़ में फ़िलिस्तीन के समर्थन में चल रहे प्रोटेस्ट पर राष्ट्रपति जो बाइडन का बयान आया है. डिप्लोमेटिक रंग में रंगा हुआ. 02 मई को बाइडन ने कहा, राइट टू फ़्री स्पीच यानी अभिव्यक्ति की आज़ादी और रूल ऑफ़ लॉ की रक्षा होनी चाहिए. मगर हिंसक प्रदर्शनों की इजाज़त नहीं दी जा सकती. प्रदर्शनकारी छात्रों ने इस बयान की आलोचना की है. बोले, राष्ट्रपति ने हमें निराश किया है. मगर उनसे कोई दूसरी उम्मीद भी नहीं थी. समझेंगे, बाइडन के लिए सीधी रेखा में चलना मुश्किल क्यों हो गया है? और, अमेरिका में चल रहे प्रदर्शनों पर भारत ने क्या कहा?
क्या इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को पुलिस गिरफ़्तार कर लेगी?
क्या इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को पुलिस गिरफ़्तार कर लेगी?
इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) उन ताक़तों के साथ मिल गया है, जो हमें रफ़ा में घुसने से रोकना चाहते हैं. उनकी कोशिशों का हमपर कोई असर नहीं होगा.
ये कहना है, इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का. चर्चा है कि ICC नेतन्याहू और इज़रायली सेना के कई अफ़सरों के ख़िलाफ़ अरेस्ट वॉरंट जारी कर सकती है. इज़रायली मीडिया में छपी रिपोर्ट्स के मुताबिक़, इस ख़बर ने लीडरशिप को असहज कर दिया है. वे इसको रोकने की पुरज़ोर कोशिश में जुटी है. नेतन्याहू ख़ुद दुनियाभर के नेताओं को फ़ोन कर मदद मांग रहे हैं. उनका सबसे ज़्यादा फ़ोकस अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन पर है. हालांकि, बाइडन से भी उन्हें कोई आश्वस्ति नहीं मिल पाई है.
तो, आज हम जानेंगे,
- क्या ICC अरेस्ट वॉरंट जारी कर सकती है?
- क्या नेतन्याहू को गिरफ़्तार किया जा सकता है?
- और, ICC का अरेस्ट वॉरंट कितना असरदार होता है?
इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट यानी ICC की स्थापना 2002 में हुई थी. युद्धअपराध और नरसंहार जैसे जघन्य अपराधों की जांच करने और दोषियों को सज़ा देने के मकसद से. ICC का मुख्यालय नीदरलैंड के हेग में है. ये यूनाइटेड नेशंस की सर्वोच्च अदालत इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस (ICJ) से अलग है. हालांकि, ICJ भी हेग में ही है. ICJ में इज़रायल के ख़िलाफ़ अलग केस चल रहा है. साउथ अफ़्रीका की शिकायत पर नरसंहार के मामले की सुनवाई हो रही है. उसमें अभी तक अंतिम फ़ैसला नहीं आया है.
ICJ और ICC में कुछ बुनियादी अंतर हैं. एक-एक कर समझते हैं. पहले ICJ.
- ICJ देशों के बीच होने वाले विवादों को सुलझाती है. उसका ज़्यादातर फ़ोकस सीमा विवाद सुलझाने पर रहता है. ICJ में कोई भी केस संबंधित देशों की सहमति से ही लाया जा सकता है. जेनोसाइड कन्वेंशन एक अपवाद है. इसमें नरसंहार की परिभाषा और उसके लिए सज़ा का प्रावधान दर्ज है.
अगर किसी देश को लगता है कि, कोई दूसरा देश नरसंहार करवा रहा है तो वो उसके ख़िलाफ़ ICJ में केस दर्ज कर सकता है. बशर्ते दोनों देश जेनोसाइड कन्वेंशन को मानते हों.
यहां पर एक दिलचस्प तथ्य सामने आता है. इज़रायल ICJ का सदस्य नहीं है. लेकिन जेनोसाइड कन्वेंशन को मानता है. इसलिए, उसको दक्षिण अफ़्रीका के मुकदमे में शामिल होना पड़ा.
- ICJ यूनाइटेड नेशंस (UN) के छह अंगों में से एक है. इसकी स्थापना 1945 में हुई थी.
- ICJ इंटरनैशनल लॉ किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा सकती. और, ना ही उसको सज़ा सुना सकती है. वो बस ये तय कर सकती है कि किसी देश ने अपराध किया है या नहीं किया है.
अब ICC के बारे में जान लेते हैं.
- ICC युद्धअपराध, नरंसहार और मानवता के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों की जांच और उसकी सुनवाई करती है. वो आरोपी व्यक्ति के ख़िलाफ़ मुकदमा चला सकती है.
- ICC यूनाइटेड नेशंस का अंग नहीं है. हालांकि, इसकी स्थापना UN की सहमति से ही हुई थी.
- 124 देश इसके सदस्य हैं. उन्हीं की फ़ंडिंग से कोर्ट चलता है. अमेरिका, इज़रायल, भारत, रूस और चीन जैसे देश ICC के सदस्य नहीं हैं.
- ICC में केस तीन तरीके से खुलता है,
पहला, कोई सदस्य देश अपनी सीमा में हुए अपराध की शिकायत करे.
दूसरा, यूएन सिक्योरिटी काउंसिल (UNSC) किसी मामले को ICC को रेफ़र करे.
तीसरा, ICC के प्रॉसीक्यूटर स्वत: संज्ञान लेकर जांच शुरू कर सकते हैं.
ICC नॉन-मेंबर देशों में भी जांच कर सकती है. बशर्ते वो देश ICC के अधिकार-क्षेत्र को स्वीकार करे या फिर सिक्योरिटी काउंसिल इजाज़त दे.
- ICC कई लोगों के ख़िलाफ़ सुनवाई कर चुकी है. कइयों को सज़ा सुना चुकी है. कइयों के ख़िलाफ़ वॉरंट भी जारी किया है. सबसे बड़ा मामला मार्च 2023 का था. जब ICC ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के ख़िलाफ़ अरेस्ट वॉरंट जारी किया. हालांकि, उनको अभी तक गिरफ़्तार नहीं किया जा सका है.
रूस ICC का सदस्य नहीं है. इसलिए, उसने वॉरंट को खारिज कर दिया था. मगर इसके चलते पुतिन को दक्षिण अफ़्रीका जाने से परहेज करना पड़ा था. दक्षिण अफ़्रीका ICC का मेंबर है. इसलिए, उसकी ज़िम्मेदारी बनती थी कि वो अपनी ज़मीन पर ICC के अरेस्ट वॉरंट का पालन करे. उसने पुतिन को गिरफ़्तार करने से इनकार कर दिया था. फिर भी पुतिन दक्षिण अफ़्रीका नहीं गए.
जब UN के पास ICJ था, फिर ICC की स्थापना क्यों की गई?
दुनियाभर में संगीनतम अपराधों पर लगाम कसने की कोशिशें दशकों पहले से होती रही हैं.
कुछ उदाहरणों से समझिए.
- फ़र्स्ट जेनेवा कन्वेंशन.
ये 1864 में आया. यूरोप के 12 देशों ने युद्ध पर पाबंदी लगाने के इरादे से नियम बनाए. लेकिन वे युद्ध रोकने में सफल नहीं हो पाए. इसकी सबसे बड़ी वजह थी, सज़ा का प्रवाधान न होना.
पहले विश्वयुद्ध के दौरान कई देशों को लगा कि वॉर क्राइम खत्म होना चाहिए. युद्ध में क्रूरता करने वालों को सज़ा मिलनी चाहिए. इसलिए, 1919 में ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी ने मिलकर एक संधि की. इसमें सज़ा देने का प्रावधान भी था. इसके तहत पहले विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी के सम्राट रहे कैसर-विल्हम को वॉर क्राइम का दोषी ठहराया गया. मगर उन्होंने बचने के लिए नीदरलैंड में शरण ले ली. नीदरलैंड उस समझौते में शामिल नहीं था. इसलिए कैसर को कभी सज़ा नहीं मिल सकी.
- वॉर ट्रिब्यूनल्स.दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नाज़ी जर्मनी के शासकों ने यूरोप में भयावह क़त्लेआम मचाया. विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद उनको सज़ा देने की चर्चा हुई. इसके लिए इंटरनैशनल मिलिटरी कोर्ट बनाया. जर्मनी में न्यूरेम्बर्ग ट्रायल और जापान में टोक्यो ट्रायल चला. इसके तहत वॉर क्राइम के दोषियों को सज़ा दी गई. मगर ये दोनों अस्थायी व्यवस्थाएं थी. काम खत्म होने के बाद उन्हें भंग कर दिया गया. मगर दुनिया में अपराध तो स्थायी था. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद भी लोगों ने युद्धअपराध और नरसंहार जैसे संगीन गुनाह किए. UN की बनाई ICJ देशों के बीच विवादों का निपटारा करती थी. व्यक्तियों के अपराध उसके अपराध-क्षेत्र से परे थे. इसीलिए, परमानेंट क्रिमिनल कोर्ट की मांग चलती रही. फिर 1990 के दशक में दो बड़ी घटनाएं हुईं, जिन्हें मानवता के ख़िलाफ़ अपराध की श्रेणी में रखा गया. युगोस्लाविया और रवांडा में. दोनों घटनाओं के आरोपियों के लिए फिर से अस्थायी अदालतें बनानी पड़ीं.
इसके बाद UN के देशों ने मिलकर स्थायी अदालत बनाने का फ़ैसला किया. 1998 में रोम में 160 देशों ने यूनाइटेड नेशंस डिप्लोमेटिक कॉन्फ़्रेंस में हिस्सा लिया. जुलाई 1998 में उन्होंने रोम स्टैच्यूट पर दस्तख़त किए. इसके तहत ICC की स्थापना हुई. 2002 में ICC ने काम करना शुरू कर दिया.
ICC काम कैसे करती है?इसके चार मुख्य अंग हैं,
- प्रेसिडेंसी - इसको ICC का मुखिया कह सकते हैं. ये अदालत का पूरा कामकाज देखता है.
- ज्यूडिशिल डिविजन - इसमें ICC के 18 जज होते हैं. ये जज सदस्य देशों से चुने जाते हैं.
- ऑफिस ऑफ़ प्रॉसीक्यूटर - प्रॉसीक्यूटर अदालत के अधिकार-क्षेत्र में होने वाले अपराधों पर नज़र रखता है. कोई सदस्य देश प्रॉसीक्यूटर के सामने ही शिकायत दर्ज कराता है. वो मामलों की जांच करता है और अदालत के सामने दलील भी देता है.
- रजिस्ट्री - रजिस्ट्री बाकी तीनों अंगों को अपना काम करने में मदद देती है.
ICC इंटरनैशनल लॉ के अंतर्गत चार तरह के अपराधों पर कार्रवाई कर सकती है:
- नंबर एक. नरसंहार. यानी, किसी राष्ट्रीय, जातीय, नस्ली या धार्मिक समूह को खत्म करने की साज़िश.
- नंबर दो. युद्धअपराध. युद्ध के नियमों का घोर उल्लंघन. जिसमें टॉर्चर, युद्ध में बच्चों के इस्तेमाल और अस्पतालों और स्कूलों जैसे सिविलियन टारगेट्स को निशाना बनाना शामिल है.
- नंबर तीन. मानवता के ख़िलाफ़ अपराध. बड़े स्तर पर आम लोगों का हत्या, बलात्कार, टॉर्चर आदि करना.
- नंबर चार. आक्रामकता. यानी, किसी देश की अखंडता, संप्रभुता या राजनीतिक स्वतंत्रता को ख़तरे में डालना या यूएन चार्टर का उल्लंघन करना.
अगर कोई व्यक्ति इनमें से किसी भी केटेगरी में फ़िट बैठा तो उसके ख़िलाफ़ ICC केस चला सकती है. केस चलाने का प्रोसेस क्या है?
नंबर 1. प्राथमिक जांच-ऑफिस ऑफ़ प्रॉसीक्यूटर सबसे पहले संदिग्ध की पहचान करेगा. और सुनिश्चित करेगा कि किसी शख्स के ख़िलाफ़ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं या नहीं.
नंबर 2. इन्वेस्टिगेशन –सबूत मिल गए और संदिग्ध की पहचान हो गई तो प्रॉसीक्यूटर उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ अरेस्ट वॉरंट जारी करने की मांग कर सकता है.
नंबर 3. प्री-ट्रायल स्टेज –तीन प्री ट्रायल जज संदिग्ध के पहचान की पुष्टि करते हैं. दूसरे पक्ष की भी दलील सुनी जाती है. 60 दिनों के भीतर जज फैसला लेते हैं कि आगे सुनवाई करनी है या नहीं. अगर आरोपी अदालत में पेश नहीं होता है तो सुनवाई नहीं की जा सकती.
नंबर 4. ट्रायल स्टेज –प्रॉसीक्यूटर को आरोपी के ख़िलाफ़ सबूत पेश करने होते हैं. आरोप साबित होने पर दोषी को 30 साल तक की कैद और विशेष परिस्थितियों में आजीवन कारावास की सज़ा मिल सकती है.
पीड़ितों को मुआवज़ा देने का आदेश भी दिया जा सकता है.
जिसपर आरोप लग रहे हैं. उसके पास अपील का भी अधिकार है. इसके लिए अपील चैंबर बनाया जाता है. वही इसका फैसला लेता है. आरोपी को सज़ा और मुआवज़े के ख़िलाफ़ अपील करने का अधिकार होता है. अपील बेंच में पांच जज होते हैं.
कैसे होती है गिरफ्तारी?ICC के पास अपनी कोई पुलिस नहीं है. किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए इसे सदस्य देश की एजेंसियों की मदद लेनी पड़ती है. ये तो हुई ICC की पूरी कहानी. मगर इज़रायल तो ICC का सदस्य नहीं है. फिर भी वहां हड़कंप क्यों मचा है?
पहले जानिए इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस मसले पर क्या कहा?
बहुत सारी ताक़तें हमें रफ़ा में घुसने से रोकना चाहती हैं. अब उन्हें एक नई ताक़त का साथ मिल गया है - हेग स्थित इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट. इस कोर्ट का फ़ैसला इज़रायल पर लागू नहीं होता. ये संभव है कि इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट IDF के कमांडर्स और स्टेट लीडर्स के ख़िलाफ़ युद्धअपराध के लिए अरेस्ट वॉरंट जारी कर सकती है. ये ऐतिहासिक स्कैंडल है. मैं एक बात साफ़ कर देना चाहता हूं: हेग या कहीं और सुनाया गया कोई फ़ैसला, किसी भी तरह से, हमें हमारे लक्ष्य को पूरा करने से नहीं रोक सकता. इज़रायल को उम्मीद है कि फ़्री वर्ल्ड के लीडर्स इस घटिया क़दम का मज़बूती से विरोध करेंगे. ये क़दम ना सिर्फ़ इज़रायल की आत्मरक्षा की क्षमता को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि इसका असर दुनियाभर के लोकतांत्रिक देशों पर पड़ेगा.
नेतन्याहू ने कहा कि ICC का अरेस्ट वॉरंट हमें रफ़ा पर हमले से रोकने के लिए लाया जा रहा है. लेकिन हमपर उसका कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा. एक तरफ़ नेतन्याहू खुलेआम ICC को नकार रहे थे. मगर बैकडोर से वो डिप्लोमेटिक सपोर्ट हासिल करने की कोशिश में जुटे हुए हैं. इज़रायली मीडिया में छपी रिपोर्ट्स के मुताबिक़, नेतन्याहू ने अमेरिका से मदद मांगी है. कहा है कि वो ICC पर प्रेशर डाले. अरेस्ट वॉरंट किसी तरह रुकवाए.
अमेरिकी मीडिया संस्थान Axios की रिपोर्ट के मुताबिक़, 03 मई को कई अमेरिकी सेनेटर्स ने ICC के अधिकारियों के साथ वर्चुअल मीटिंग की. उन्होंने ICC की जांच पर चिंता जताई. बाद में ICC के प्रॉसीक्यूटर करीम ख़ान ने इसकी निंदा की. बोले, अदालत को गुमराह करने की कोशिश हो रही है. हमपर दबाव बनाया जा रहा है. ये ग़लत है. हम स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीक़े से काम करते हैं.
इज़रायल की चिंता क्या है?ICC मार्च 2021 से ही इज़रायल के ख़िलाफ़ जांच कर रही है. फिर 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इज़रायल पर आतंकी हमला किया. 11 सौ से अधिक लोगों की हत्या की. 250 से अधिक को बंधक बना लिया. इसके बाद गाज़ा पट्टी में जंग शुरू हुई. गाज़ा की हेल्थ मिनिस्ट्री के मुताबिक़, इज़रायल के हमले में 34 हज़ार 500 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं.
इस बीच नवंबर 2023 में बांग्लादेश, बोलीविया, कोमोरोस, जिबूती और साउथ अफ्रीका ICC पहुंचे. बोले, आपको इज़रायल के ख़िलाफ़ जांच तेज़ करनी चाहिए. वो गाज़ा में वॉर क्राइम कर रहा है. इस शिकायत के बाद ICC की जांच तेज़ हुई. और, अब इज़रायली नेताओं और मिलिटरी लीडर्स के ख़िलाफ़ अरेस्ट वॉरंट की सुगबुगाहट बढ़ने लगी है.
लेकिन इज़रायल तो ICC का सदस्य नहीं है, फिर वो कैसे इस जांच के दायरे में आया?जैसा हमने पहले बताया, ये जांच फ़िलिस्तीन और इज़रायल दोनों जगह हुए अपराधों के ख़िलाफ़ चल रही है. और, फ़िलिस्तीन ICC का सदस्य है. 2015 में उसने अपने यहां इसके नियमों को लागू किया था. इसलिए, फ़िलिस्तीन में हुए युद्ध अपराध ICC के अधिकार-क्षेत्र में आते हैं.
किस-किस के ख़िलाफ़ जारी हो सकता है अरेस्ट वॉरंट? तीन नामों की चर्चा हो रही है.
पहला नाम प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का है.
दूसरा नाम है, रक्षा मंत्री योआव गलांत का.
और, तीसरा नाम इज़रायली सेना के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ हर्ज़ी हलेवी का है.
ICC ने आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा है. ये भी सामने नहीं आया है कि इज़रायल पर किस तरह के चार्जेज़ लगाए जाएंगे. मगर वॉरंट कभी भी आ सकता है.
अरेस्ट वॉरंट का असर क्या होगा?- नंबर एक. इज़रायल दावा करता है कि उसने गाज़ा पर हमला आत्मरक्षा में किया है. नेतन्याहू इस हमले का चेहरा हैं. अगर उनके ख़िलाफ़ ICC का अरेस्ट वॉरंट जारी होता है तो इज़रायल के मिलिटरी कैंपेन की वैधता ख़तरे में पड़ेगी. इंटरनैशनल सपोर्ट कम होगा.
- नंबर दो. अभी तक किसी भी पश्चिमी देश या उसके सहयोगी देशों के नेताओं के ख़िलाफ़ ICC ने अरेस्ट वॉरंट जारी नहीं किया है. अगर नेतन्याहू के ख़िलाफ़ जारी होता है, तो वो लिस्ट में पहले होंगे. पश्चिमी देश ख़ुद को इंटरनैशनल लॉ और मानवाधिकारों का झंडाबरदार बताते हैं. उनके लिए नेतन्याहू का सपोर्ट करना मुश्किल हो जाएगा.
- नंबर तीन. यूरोप के कई देश इज़रायल का सपोर्ट करते रहे हैं. उनमें से कई ICC के सदस्य हैं. अगर नेतन्याहू उन देशों के दौरे पर गए तो उन्हें वहां गिरफ़्तार किया जा सकता है.
- नंबर चार. रूस ने पश्चिमी देशों पर डबल स्टैण्डर्ड बरतने का आरोप लगाया है. उन्होंने पुतिन के मामले में बढ़-चढ़कर ICC का समर्थन किया था. इज़रायल के मामले में अगर वो पीछे हटे तो उनके दोहरेपन पर सवाल खड़े होंगे.
- नंबर पांच. इज़रायल में नेतन्याहू की छवि बुरी तरह प्रभावित होगी. जनता युद्धअपराध के आरोपी को अपना नेता मानने से हिचकेगी. ये अरेस्ट वॉरंट नेतन्याहू के पॉलिटिकल करियर की आख़िरी कील साबित हो सकता है.