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BRICS सम्मेलन में शामिल हुए PM मोदी अगर जिनपिंग से मिले तो क्या-क्या बात करेंगे?

BRICS सम्मेलन में पुतिन ऑनलाइन क्यों जुड़ रहे हैं?

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क्या गलवान मुद्दे पर बात कर सकते हैं पीएम मोदी और जिनपिंग

क्या चीन और भारत के बीच तनाव कम हो सकते हैं? और क्या दोनों देशों के बीच सीमा विवाद सुलझने के हालात बन सकते हैं?  इन दोनों सवालों के जवाब छिपे हैं एक और सवाल में. BRICS सम्मेलन के साथ-साथ क्या दक्षिण अफ्रीका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाक़ात होगी?

प्रधानमंत्री मोदी ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने साउथ अफ्रीका पहुंच चुके हैं.  प्रधानमंत्री के जोहानसबर्ग जाने का एजेंडा ही BRICS है. वो एथेंस भी जाएंगे. 40 साल बाद कोई प्रधानमंत्री ग्रीस के दौरे पर जा रहा है. लेकिन पीएम के दौरे में जिस बात की चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है वो है पीएम मोदी और शी जिनपिंग की 'संभावित मीटिंग'. संभावित इसलिए क्योंकि अभी इस मीटिंग की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. लेकिन विदेश मंत्रालय इस मीटिंग की संभावना को नकार नहीं रहा है.

BRICS क्या बला है? और इसका असर देश-दुनिया की राजनीति पर कैसे पड़ेगा? इस पर आएंगे. लेकिन पहले एक बहुप्रतिक्षित सवाल पर आते हैं.
जब से सम्मेलन का एलान हुआ, एक बात का बहुत बज़ था: प्रधानमंत्री मोदी, शी जिनपिंग से मिलेंगे कि नहीं? हम जानते हैं कि जून 2020 में चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी के कुछ जवान भारतीय सीमा में घुस आए थे. लद्धाख के गलवान में विवादित सीमा पर झड़प हुई थी. जिसमें 20 भारतीय सैनिक और चार चीनी सैनिक मारे गए थे. जोहानसबर्ग में अगर ये मीटिंग होती हैं तो गलवान में भारत और चीन की हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों के नेताओं की ये पहली आधिकारिक बातचीत होगी. इससे पहले नवंबर 2022 में बाली में मोदी और जिनपिंग के बीच मुलाकात हुई थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने G20 शिखर सम्मेलन के दौरान शी जिनपिंग से अनौपचारिक मुलाकात की थी.

हालांकि इसको मीटिंग नहीं कहा जा सकता. दोनों देशों ने मुलाकात के बाद कोई आधिकारिक प्रेज रिलीज़ तक जारी नहीं हुई. मुलाकात के 8 महीने बाद इस साल जुलाई में सरकार ने स्वीकार किया है कि बाली में दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच बातचीत भी हुई थी. और विदेश मंत्रालय ने बताया है कि दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों में सुधार को लेकर बातचीत की. इससे पहले साउथ अफ्रीका में BRICS देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की मीटिंग के दौरान NSA अजित डोभाल ने चीन के NSA वांग यी से मुलाकात की थी. तब भी कहा गया कि दोनों देशों ने विवाद सुलझाने के लिए अपनी प्रतिबद्धताएं दोहराई हैं.

इसके अलावा बीते तीन सालों की कहें, तो अब तक 19 दौर की सैन्य वार्ताएं हो चुकी हैं. ये वार्ताएं कोर कमांडर के लेवल पर होती हैं. साथ ही Working Mechanism for Consultation and Coordination on India-China Border Affairs (WMCC) की 27 बैठकें भी हो चुकी हैं. इसकी वजह से गलवान के बाद जो पांच तनावग्रस्त पॉइंट्स थे, उनके लिए बफ़र ज़ोन बनाया गया है. कौन-कौन से इलाक़े? गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो के उत्तर और दक्षिण तट और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में पट्रोल पॉइंट 17 और 15. इन पॉइंट्स में बातचीत के ज़रिए समाधान खोजा गया है. हालांकि, LAC पर डेमचोक और देपसांग मैदान जैसे पुराने मुद्दों का समाधान होना अभी बाक़ी है.

इन सारी बैठकों, वार्ताओं के बावजूद ये बात साफ है कि चीन की सीमा पर आज भी ओवर-ऑल हालात नाज़ुक ही हैं. और ये बात हम नहीं कह रहे, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस साल मार्च में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में यही बात दोहराई थी. युद्ध की संभावना को भले ही दोनों देश नकारते रहे हों लेकिन तैयारी युद्धस्तर पर ही है. आपके मन में भी सवाल आता होगा: सरहद का हाल क्या है? इंडियन एक्सप्रेस की अमृता नायक दत्ता की रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत ने LOC के हालात पर स्ट्रैटजी बदली है. नई स्ट्रैटजी है- 'उकसाओ मत, मगर तैयार रहो'. LAC पर निगरानी मज़बूत की गई है, संवेदनशील पॉइंट्स को चुनकर तैनाती की गई है, सीमा पर सैनिकों के लिए पर्याप्त सैन्य ढांचा तैयार किया जा रहा है. लॉजिस्टिक्स और पोज़िशनिंग को लेकर जो भी ख़ामियां थीं, उन्हें दुरुस्त किया जा रहा है.

भारत-चीन सीमा की तरफ 50 से 60 हज़ार सैनिक तैनात रहते हैं. भारत के बरक्स, चीन भी अपनी तरफ़ से लगातार निर्माण कर रहा है. मसलन, पैंगोंग झील के किनारे पर दो पुल, सड़कें और घर. लेकिन बावजूद इसके दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार उसी गति से जारी है. और चीन से भारत में जितना माल आता है, वो हमारे निर्यात से कहीं ज़्यादा है. गलवान के बाद चीन के विरुद्ध देश में बन रहे माहौल को शांत करने के लिए सरकार ने टिकटॉक, शीन समेत सैकड़ों चीनी ऐप्स पर बैन भी लगा दिया. हालांकि इस "नो-नॉर्मल" के बीच भारतीय कंपनियां, रूस से तेल ख़रीदने के लिए चीनी रुपये युआन का इस्तेमाल करती हैं. और दिल्ली के लिए ये नॉर्मल है.

रक्षा विशेषज्ञ सुशांत सिंह  ने foreignpolicy.com पर लिखा - तेल की ख़रीद के लिए युआन में लेन-देन चल रहा है. इससे पता चलता है कि सीमा पर चाहे जो हालात हों, पिछले तीन सालों में चीन पर भारत की निर्भरता बढ़ी है. द्विपक्षीय व्यापार भी बढ़ा है और ये व्यापार चीन के पक्ष में झुक गया है. भारत को चीन के मल्टी-लैट्रल बैंकों से फंडिंग मिलती है. और नरेंद्र मोदी और उनका मंत्रीमंडल BRICS और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में भाग लेने के लिए उत्साहित रहते हैं. इन दोनों ही समूहों में चीन का प्रभुत्व है.

यहां तक की जितनी कहानी हमने जानी वो सब पोस्ट गलवान डिप्लोमैटिक ड्रामा है. लेकिन राजनीतिक स्तर पर देशों देश एक दूसरे से बचते नज़र आए हैं. और अगर दो देशों के सबसे बड़े नेता साथ बैठेंगे तो उसके कुछ मायने हैं. जाहिर तौर पर बैठक के एजेंडे में सीमा विवाद होगा ही. गलवान में जो हुआ उसपर तू-तू-मैं-मैं तो नहीं होगी लेकिन मौजूदा हालात सुधारने पर बात जरूर हो सकती है. अगर बैठक हुई तो साझा बयान में इसकी तस्वीर साफ़ होगी.

मोदी और जिनपिंग की संभावित बैठक पर हमने विस्तार से चर्चा की. अब हम लौटते हैं ब्रिक्स पर. ब्रिक्स की ये बैठक भारत के लिहाज से कितनी अहम है, हम इसपर बात करेंगे. लेकिन ब्रीफ़ में पहले जान लेते हैं ब्रिक्स क्या और इसका इतिहास क्या रहा है?

2001 में गोल्डमैन सैश के चेयरमैन जिम ओ नील ने पहली बार BRIC का आइडिया रखा था. आइडिया ये था कि विकासशील देशों का एक समूह आने वाले वक्त में पश्चिम देशों को टक्कर दे सकता है. इस आइडिया को कागज़ से धरातल पर आने में लगे 5 साल. साल 2006 में जनरल असेम्बली की मीटिंग के दौरान चीन, भारत, ब्राजील और रूस ने एक अनौपचारिक मीटिंग की. यहां पहली बार एक नया समूह बनाने को लेकर बात हुई.

इसके बाद साल 2008 में जी-8 देशों के सम्मलेन के दौरान चीन, रूस और भारत के राष्ट्राध्यक्ष आपस में मिले. इसी मुलाक़ात के दौरान तय हुआ कि भारत, चीन, रूस और ब्राज़ील मिलकर एक अलग समूह बनाएंगे. जिसे नाम दिया गया BRIC. BRIC का उद्देश्य था जी-8 समूह की तर्ज पर विकासशील देशों का एक ऐसा समूह बनाना जो बेहतर आर्थिक संबंधों को बढ़ावा दे.
साल 2009 में रूस में पहले BRIC सम्मलेन का आयोजन हुआ. 2010 मे चारों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाक़ात के दौरान तय हुआ कि दक्षिण अफ्रीका को इस समूह में आमंत्रित किया जाएगा. 24 दिसंबर 2010 को दक्षिण अफ्रीका आधिकारिक तौर पर इस ग्रुप से जुड़ा और BRIC बन गया BRICS.

BRICS करता क्या है?

सरल शब्दों में समझें तो ब्रिक्स बनाने के पीछे उद्देश्य था कि ये पांच देश आपस में आर्थिक सहयोग बढ़ा सकें. यही इसका स्टेटेड गोल भी है. यहां से शुरुआत होकर दूसरे क्षेत्रों में भी सहयोग की शुरुआत हुई. मसलन विज्ञान, कृषि, शिक्षा, क्लाइमेट चेंज आदि. लेकिन इस घोषित उद्देश्य के अलावा ब्रिक्स का एक और उद्देश्य है. वो है अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर विकाशशील देशों को बेहतर आवाज़ और ताकत देना. ऐसे समझिए कि वर्ल्ड बैंक एक अंतराष्ट्रीय संस्था है. लेकिन उसका प्रेसिडेंट हमेशा एक अमेरिकन होता है. इंटरनेशनल मोनेटरी फंड यानी IMF का मैनेजिंग डायरेक्टर हमेशा किसी यूरोपियन को बनाया जाता है. और संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग के दौरान भी पश्चिमी देशों का मत अपेक्षाकृत ज्यादा भार रखता है. जबकि ब्रिक्स देश, दुनिया की 43% जनता को रिप्रेजेंट करते हैं. ग्लोबल गवर्नेन्स के मामलों में ज्यादा दखल देने वाले राष्ट्र वो हैं, जो दुनिया की 10% आबादी को भी रिप्रेजेंट नहीं करते. इसलिए ब्रिक्स की शुरुआत इस विचार पर हुई थी कि पांच सबसे बड़े विकासशील देशों को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बेहतर पहचान मिले.

साल 2009 में जब ब्रिक्स की शुरुआत हुई, अपने पहले ही जॉइंट स्टेटमेंट में ब्रिक्स ने ग्लोबल मंदी और IMF में बेहतर प्रतिनिधित्व को लेकर बात की. साल 2011 में ब्रिक्स देशों ने IMF को 50 हजार अरब रूपये देने की बात कही, बशर्ते वो अपने वोटिंग की प्रक्रिया में सुधार लाकर ब्रिक्स देशों को बेहतर प्रतिनिधित्व दें. साल 2013 में ब्रिक्स सम्मलेन के दौरान तय हुआ कि पांचों देश मिलकर वर्ल्ड बैंक की तर्ज़ पर एक फाइनेंसियल इंस्टीट्यूशन की शुरुआत करेंगे. 2014 में न्यू डेवलपमेंट बैंक की शुरुआत हुई. इसमें पांचों देशों ने मिलकर 50 हजार अरब रुपये डाले. न्यू डेवलपमेंट बैंक का हेडक्वार्टर शंघाई में बना. और इसके पहले अध्यक्ष ICICI बैंक के पूर्व CEO के. वी. कामथ बने.

न्यू डेवलपमेंट बैंक अलग-अलग प्रोजेक्टस के लिए वर्ल्ड बैंक की तर्ज़ पर लोन देने का काम करता है. न्यू डेवलपमेंट बैंक के साथ-साथ ब्रिक्स ने एक और प्रोग्राम की शुरुआत की. ‘कंटिंजेंट रिज़र्व एग्रीमेंट’ नाम का ये प्रोग्राम, जब किसी देश में लिक्विडिटी क्राइसिस की नौबत आए तो उन्हें IMF की तर्ज़ पर लोन मुहैया कराता है. ब्रिक्स समूह की शुरुआत वार्षिक शिखर सम्मलेन से हुई थी. लेकिन आने वाले सालों में ब्रिक्स देशों की बीच सहयोग और आगे बढ़ा. शिखर समेलन के इतर भी इन देशों के विदेश मंत्री, श्रम मंत्री, सूचना मंत्री, सेन्ट्रल बैंक के गवर्नर आदि आपस में मुलाकात करते रहे हैं. टेक्नोलॉजी, वैश्विक बाजार तक बेहतर पहुंच, डिजिटल करेंसी, खाद्य सुरक्षा से लेकर तमाम ऐसे मामले हैं जिन पर हर साल ब्रिक्स सम्मलेन में वार्ता होती है.

इस साल ये सम्मेलन साउथ अफ्रीका के जोहानसबर्ग में हो रहा है. प्रधानमंत्री मोदी आज सुबह जोहनसबर्ग के लिए रवाना हो गए. कोरोना की वजह से तीन साल की वर्चुलअल मीटिंग के बाद ब्रिक्स देशों के नेता एक टेबल पर बैठ रहे हैं. हालांकि, रूस के राष्ट्रपति पुतिन इस मीटिंग में भी वर्चुअली ही जुड़ रहे हैं. उनके विदेश मंत्री मीटिंग में पहुंचे हैं. इस पर हम चर्चा करेंगे, लेकिन पहले बात भारत की. इस संगठन की जिओपॉलिटिक्स पर जब चर्चा होती है, तो एक बात और उछाली जाती है. क्या ब्रिक्स में भारत अलग-थलग पड़ रहा है. तर्क ये कि रूस, चीन, ब्राजील. राजनीतिक फलक इनकी गिनती लेफ्ट में होती है. यानी ये सारे वामपंथी विचारधारा वाले देश हैं. लेकिन भारत नहीं. और इसी वजह से भारत अलग-थलग पड़ रहा है.

अब अगले मुद्दे पर चलिए. ब्रिक्स के इस सम्मेलन में एक और अहम चर्चा है. पुतिन की ग़ैर-मौजूदगी की, जिसका जिक्र हमने अभी आपसे किया भी था. कहा जा रहा है कि पुतिन गिरफ्तारी के डर जोहनसबर्ग नहीं जा रह हैं. हालांकि ये धारणा सर्वमान्य नहीं है पर कम से कम उनके आलोचक तो यही कह रहे हैं. पुतिन इसके बदले वीडियो कॉन्फ्रेंस के ज़रिए सम्मलेन में जुड़ेंगे. दरअसल इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने उनके ख़िलाफ़ अरेस्ट वारेंट निकाला हुआ है. उनके युद्ध अपराधों को लेकर. इसलिए उनपर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है. वहां का विपक्ष भी मांग कर रहा था कि जैसे ही वो मीटिंग के लिए हमारे देश आएं, उन्हें गिरफ्तार कर लेना चाहिए.  

दरअसल, फरवरी 2022 में पुतिन ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया. उनपर युद्ध अपराध के आरोप लगे हैं. मार्च 2023 में ICC, माने इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने उनके ख़िलाफ़ अरेस्ट वॉरंट जारी कर दिया. ICC ने कहा कि पुतिन पर यूक्रेन में युद्ध अपराधों के संबंध में मामला चलाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं. कहा गया अगर पुतिन देश के बाहर गए, तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए. साउथ अफ्रीका ICC हस्ताक्षरकर्ता है. इसलिए कहा जा रहा था कि जब पुतिन ब्रिक्स सम्मलेन के लिए वहां जाएं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए. सनद रहे कि अरेस्ट वॉरंट निकलने के बाद पुतिन किसी भी विदेश यात्रा पर नहीं गए हैं. वैसे भी रूस ICC के रोम समझौते का हिस्सा नहीं है. माने वो ICC के ज्यूरिस्डिक्शन को नहीं मानता.  लेकिन ये स्थिति दक्षिण अफ्रीका के लिए असहज करने वाली है. संभवतः इसीलिए अब रूस ने कहा है कि पुतिन इस सम्मलेन में हिस्सा लेने के लिए साउथ अफ्रीका नहीं जा रहे हैं. पर ये एक थियरी है.

रूस के बाद अब बात पाकिस्तान की. ईरान, सऊदी अरब, अर्जेंटीना, अल्जीरिया, इंडोनेशिया, मिस्र सहित कुल 40 से ज़्यादा देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने में रुचि ज़ाहिर की है. पाकिस्तान भी BRICS में एंट्री की जुगत लगा रहा है. उन्हें चीन का समर्थन भी प्राप्त है.

हमने आपको ब्रिक्स का पूरा ब्योरा दिया. भारत की इसमें क्या जगह है? रूस के लिए क्या मायने हैं? शी जिनपिंग के साथ मुलाक़ात से क्या बदल सकता है. कुल जमा बात ये है कि हम एक बहुध्रुवी दुनिया में रह रहे हैं. अंग्रेज़ी में जिसे कहते हैं multipolar. कुछ भी ब्लैक या वाइट नहीं है. इसमें अपने विदेशी पार्टनरों के साथ बना के और दुश्मनों से बच-बचा कर चलने में ही चतुराई है. चाणक्य वाली चतुराई. ब्रिक्स आने वाले वक़्त में एक नया वर्ल्ड ऑर्डर बनाएगा या नहीं, ये तो दूर की कौड़ी है. भारत इन संबंधों की वजह से एक बेहतर ओहदे की तरफ़ बढ़ रहा है.