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Swiggy या Zomato नहीं बढ़ाते दाम, तो इनसे मंगाने पर रेस्त्रां का फेवरिट खाना महंगा क्यों हो जाता है?

ज़ोमैटो या स्विगी का इस्तेमाल कर कहीं आप भी तो रेस्त्रां के मेन्यू से ज़्यादा दाम नहीं भर रहे?

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(प्रतीकात्मक फ़ोटो- आज तक)
घर बैठे पसंदीदा खाना चाहिए, Zomato-Swiggy हैं ना. बड़े शहर में रहने वाला कोई शख्स शायद ही इन बैंड्स से परिचित ना हो. ये दोनों ऑनलाइन फूड प्रोवाइडिंग प्लेटफॉर्म आपके पसंदीदा रेस्त्रां और ढाबों से पका-पकाया खाना उठाते हैं और आपके घर तक पहुंचाते हैं. लेकिन बात की तरह काम सीधा नहीं है. वो अंग्रेजी की कहावत तो सुनी ही होगी- So Many Slips Between Cup and Lips. ये बात जोमैटो और स्विगी पर भी लागू होती है. इन दोनों सर्विस और इनके मोबाइल ऐप्स से जुड़ी कई समस्याएं लोग अक्सर सोशल मीडिया पर ज़ाहिर करते हैं. ऐसी ही एक समस्या है खाने के दाम की. इस मसले से कस्टमर और रेस्त्रां मालिक दोनों परेशान हैं. तो हमने जानने की कोशिश की कि स्विगी या जोमैटो इस्तेमाल करने वालों को आखिर रेस्त्रां मेन्यू से ज्यादा पैसा क्यों भरना पड़ता है. एक प्लेट पर लगभग 30 प्रतिशत कमीशन एक उदाहरण से समझते हैं. दिल्ली के वसंत कुंज इलाक़े में एक रेस्त्रां हैं. उसे हमने जोमैटो पर सर्च किया. यहां बिक रही चिकन बिरयानी की क़ीमत Rs.199 है, जिस पर 10 प्रतिशत का डिस्काउंट दिया जा रहा है. हमने जब एक प्लेट चिकन ऑर्डर करने की कोशिश की तो हमें इसके लिए कुल 234 रुपए देने पड़े. इसमें 45 रुपए जोमैटो डिलीवरी के लिए लेता है और 10 रुपए रेस्त्रां खाना पैक करने के लिए. और कुल जोड़ में 10 प्रतिशत का डिस्काउंट रेस्त्रां दे रहा था. Zomato Zomato 2Zomato 1 इसी चिकन बिरयानी की क़ीमत जानने के लिए हमने रेस्त्रां फ़ोन किया. दाम पूछने पर हमें बताया गया कि इसकी क़ीमत 140 रुपए हैं. जब हमने रेस्त्रां के मालिक से पूछा की जोमैटो और रेस्त्रां दोनों के दामों में फ़र्क़ क्यों है, तो उन्होंने नाम नहीं जाहिर की शर्त पर हमें बताया कि एक प्लेट बिरयानी या किसी भी चीज़ पर लगभग 30 प्रतिशत कमीशन जोमैटो को देना पड़ता है. लेकिन वो आगे बताते हैं कि जोमैटो किसी भी रेस्त्रां के मालिक को चीजों के दाम बढ़ाने के लिए नहीं कहता है. उन्होंने कहा,
"दाम बढ़ाना हमारी मजबूरी है. अगर 140 रुपए में से 30 प्रतिशत मैं जोमैटो को दे दूंगा तो खुद क्या खाऊंगा? इस वजह से जब लॉकडाउन में काम पूरा बंद हो गया तो मैंने परेशान होकर जोमैटो और स्विगी में रजिस्ट्रेशन कराया. इसके लिए दोनों कंपनियों को 5-5 हज़ार रुपए भी देने पड़े."
क्वांटिटी में हो सकता है फ़र्क़ कई रेस्त्रां और ढाबे के मालिक एक दूसरी कहानी बताते हैं. दक्षिण पूर्वी दिल्ली के जसोला इलाक़े में खाने की दुकान चलाने वाले एक शख्स कहते हैं की उन्होंने दाम नहीं बढ़ाया है. उनके मुताबिक कई लोग ऐसा करते हैं, लेकिन उन्होंने ये नहीं किया. हमने इसकी वजह पूछी तो उन्होंने कहा,
"कई ग्राहक कम दाम देख कर मेरी दुकान से खाना ऑर्डर कराते हैं. इससे मुझे ज़्यादा ग्राहक मिलते हैं. लेकिन आप सोच रहे होंगे कि मैं इतने कम मुनाफ़े में कैसे दुकान चला रहा हूं. तो ये बात तो सच है कि इतने कम मुनाफ़े में दुकान चलाना संभव नहीं है. अगर आप मेरी दुकान से एक प्लेट दाल फ़्राई लेते हैं जिसकी क़ीमत 100 रुपए है, और वही दाल फ़्राई आप स्विगी से ऑर्डर करते हैं तो दोनों की क्वांटिटी में फ़र्क़ होगा. स्विगी में क्वांटिटी कम होगी. ऐसा करना मेरी मजबूरी है. मुझे किराया भरना है, बिजली का बिल भरना है. काम करने वाले को पगार देनी है. और ऊपर से स्विगी को खाने का दाम का हिस्सा भी देना है. ये सब कुछ कैसे संभव होगा अगर मैं क्वांटिटी कम न करूं. ऐसा करना कोई चोरी नहीं है."
जोमैटो मार्केटिंग का ज़रिया नोएडा के सेक्टर 70 में एक कैफ़े चलते हैं मदन (बदला हुआ नाम). कहते हैं ज्यादातर कैफ़े 50 प्रतिशत का मार्जिन रखते हैं. मदन ने बताया,
"जोमैटो 28 प्रतिशत हिस्सा आप से मांग लेता है. अब अगर 50 प्रतिशत में मैं 27 प्रतिशत जोमैटो को दे दूं तो मैं खुद क्या कमाऊंगा. लेकिन इससे भी काम नहीं चलता. आपका कैफ़े या रेस्त्रां महज़ लिस्ट हो जाने से ही आपको ऑर्डर नहीं मिल जाते. इसके लिए और रुपए खर्च करने पड़ते हैं."
मदन मानते हैं कि आज की दुनिया में मार्केटिंग बहुत ज़रूरी है. वो कहते हैं कि फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम पर मार्केटिंग से अच्छा है जोमैटो और स्विगी पर मार्केटिंग करना. कई कैफ़े और रेस्त्रां के मालिक इसे बेहतर समझते हैं. हालांकि जोमैटो के विज्ञापन पर खर्च करने का उनका अपना अनुभव सुखद नहीं लगता. उन्होंने हमें बताया,
"मैंने पिछले हफ़्ते जोमैटो से 20 हज़ार रुपए का सेल किया. लेकिन इसमें कमाई महज़ 1300 रुपए हुई. 20 हज़ार में लगभग 6000 तो जोमैटो का हिस्सा हो गया. बाक़ी मुझे 10 हज़ार के विज्ञापन लेने पड़े. बचे 6000 उसमें 4700 रुपए मेरी लागत है."
एडवर्टाइज़मेंट का मायाजाल एडवर्टाइज़मेंट का भी अपना ही खेल है. मदन बताते हैं कि 10 हज़ार रुपए के एडवर्टाइज़मेंट में उन्हें सिर्फ़ 400 क्लिक्स मिलते हैं. इसे आसान भाषा में समझते हैं. मान लीजिए आप जोमैटो या स्विगी पर गए. वहां बतौर ऑप्शन जो रेस्त्रां आपको सबसे पहले दिखते हैं, वे असल में एडवर्टाइज़मेंट के लिए सबसे ज़्यादा रुपए जोमैटो या स्विगी को देते हैं. क्योंकि जो सबसे पहले दिखता है, उस पर क्लिक करने की संभावना ज़्यादा होती है. मदन ने बताया,
"अगर आप उस रेस्त्रां पर क्लिक करते हैं तो उसके लिए जोमैटो या स्विगी रेस्त्रां के मालिक से रुपए चार्ज करता है. चाहे आप वहां से ऑर्डर करें या न करें."
मसले और भी हैं. डिस्काउंट का भी अपना एक खेल है. मदन बताते हैं कि अगर डिस्काउंट अच्छे मिलते हैं तो लोग ज़्यादा ऑर्डर करते हैं. उनकी मानें तो डिस्काउंट जोमैटो या स्विगी नहीं बल्कि रेस्त्रां मालिक खुद देते हैं. ऐसे में नुक़सान रेस्त्रां मालिक हो ही होता है. वो सुबह कभी तो आएगी हालांकि हमने जिन तीन रेस्त्रां मालिकों से बात की, उन सबने एक स्वर में ये बात जरूर कही कि उनका काम जोमैटो और स्विगी की वजह से बढ़ा है. वो कहते हैं कि जोमैटो और स्विगी की वजह से दूर-दूर से कस्टमर उनके यहां आते हैं. उनके मुताबिक इन प्लेटफॉर्म्स के बिना इतने सारे लोगों को शायद ही पता होता कि ऐसी कोई जगह है और वहां खाने के लिए आते. तीनों उम्मीद भी लगाए बैठे हैं कि काश भविष्य में उनके रेस्त्रां काफ़ी पॉप्युलर हो जाएं तो उन्हें इन ऐप्स पर एडवर्टाइजमेंट के लिए ज़्यादा खर्च नहीं करना पड़ेगा.