शॉपिंग मॉल में जाते हैं. पेमेंट करते वक़्त आपसे आपका फ़ोन नंबर माँगा जाता है. आप बिना सोचे दे देते हैं. अस्पताल जाते हैं. डॉक्टर आपकी जाँच करता है और आपकी निजी जानकारियाँ अस्पताल के डेटा बेस में इकट्ठा हो जाती हैं. वहां भी आईडी आपके मोबाइल नंबर से लिंक होती है. ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे हैं. हर पोर्टल पर अपने क्रेडिट-डेबिट कार्ड की जानकारियाँ डालना ज़रूरी होता है. आपके आधार कार्ड में आपकी पूरी जनम कुंडली छिपी रहती है. देखा जाए तो आपके लिए बहुत आसान भी रहता है, बार-बार वही जानकारी मुहैया नहीं करानी पड़ती. सबकुछ पहले से सेव्ड है.
साइबर अटैक क्यों भारत में सबसे ज्यादा, पूरी दुुनिया पिछड़ी? आपका डेटा बच पाएगा?
भारत में सबसे ज़्यादा साइबर अटैक हो रह हैं. एक्सपर्ट ने बताया सरकार समाधान के लिए क्या कर सकती है
क्या आपने सोचा है कि आप ये जानकारियां दे तो देते हैं पर ये रहती किसके पास हैं और इनका उपयोग कौन करता है और कैसे? आप शायद सोचेंगे इससे हमारा और आपका क्या लेना देना. हम ऐसा कौन सा ख़तरनाक काम कर रहे हैं कि किसी के पास जानकारी जाने से भारी नुक़सान हो जाएगा. एक डरावनी तस्वीर से रूबरू होते हैं.
भारत में पिछले पांच साल के दौरान साइबर अटैक की घटनाएं 53 हज़ार से बढ़कर 14 लाख से ज़्यादा हो गई हैं. साल 2022 में पूरी दुनिया में जितने साइबर अटैक हुए उनमें से लगभग 60 प्रतिशत हमले भारत के सिस्टम पर हुए. साइबर सिक्योरिटी फ़र्म इंडसफेस ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें बताया गया है कि भारत में सबसे ज़्यादा साइबर हमले हुए हैं. 2022 के आख़िरी तीन महीनों में दुनिया भर में लगभग 85 करोड़ साइबर हमलों का पता लगाया गया. इनमें से लगभग 60 प्रतिशत मामलों में निशाना भारत था.
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (सीईआरटी-इन - CERT-in) ने इस सिलसिले में 2021 तक के आंकड़े इकट्ठा किए हैं. इनसे पता चलता है कि भारत में साइबर हमले लगातार बढ़ रहे हैं. 2019 में, सीईआरटी-इन ने कुल मिलाकर लगभग 4 लाख ऐसी घटनाओं का पता लगाया. उसी वर्ष, सीईआरटी-इन ने 204 सुरक्षा अलर्ट और 38 एडवाइजरी जारी की.
साल 2020 में घटनाओं की संख्या बढ़कर लगभग 12 लाख हो गई और ये घटनाएं वो हैं जिनका वास्ता सीईआरटी-इन से पड़ा और ये पिछले वर्ष की तुलना में लगभग तीन गुना ज्यादा हैं. यह वृद्धि 2021 में भी जारी रही. पिछले साल 14 लाख घटनाएं सामने आईं. ये 2020 से 14 प्रतिशत ज़्यादा थीं.
लेकिन साइबर एक्सपर्ट विराग गुप्ता का मानना है कि इन मामलों की के असली आंकड़े इससे भी ज़्यादा है. गुप्ता बताते हैं,
“अगर हम चार पांच तरीके के आंकड़ों को देखे तो पता चलता है कि यह पूरी तरह से मिसरिपोर्टिंग है. भारत में क्राइम का रिकॉर्ड राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) रखती है. एनसीआरबी का 2020 का डाटा कहता है कहता है कि लगभग 50,000 साइबर क्राइम के मामले दर्ज हुए. लेकिन केंद्रीय गृहमंत्रालय के अधीन आने वाले कम्प्यूटर इमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम (CERT) के अनुसार साइबर क्राइम की संख्या 14 लाख हैं. तो सरकार की दो एजेंसी के डेटा में ही मिसमैच है.”
आगे बताते हैं,
“भारत मे यूपीआई, ई-कॉमर्स का बड़े स्तर पर इस्तेमाल हो रहा है जिसमे भारी संख्या में शिकायतें आती हैं. रेलवे, एम्स और सरकारी विभागों से से 3 करोड़ लोगों का डाटा लीक हो जाता हैं लेकिन फिर भी दर्ज मामलों की संख्या कम ही हैं.”
भारत मे साइबर क्राइम के मामलों में हाईप्रोफाइल लोगों के केस में ही मामला दर्ज होता है, आम आदमी के मामलों को अक्सर दर्ज तक नही किया जाता हैं.
आपके पास अचानक वो फ़ोन क्यों आता है जिसमें आपको बताया जाता है कि आपका लोन अप्रूव हो गया है. या आपको क्रेडिट-डेबिट कार्ड ऑफ़र किया जाता है. कभी सोचा कॉल करने वाले के पास आपका फ़ोन नंबर आया कैसे...आपने तो दिया नहीं था. इसी वजह से हमें चिंतित और उससे ज़्यादा सतर्क हो जाना चाहिए. इसके ख़तरे क्या हैं… इस पर बात करेंगे औरे ये भी जानेंगे कि जब आप अपना फ़ोन नंबर, अपनी जन्म तिथि, अपना पता और ऐसी ही दूसरी जानकारियाँ किसी और को देते हैं तो आपको क्यों सावधान हो जाना चाहिए. एक उदाहरण से समझते हैं:
दिल्ली का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल AIIMS.यहाँ के कंप्यूटर सिस्टम में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों से लेकर दूर-दराज के गांव-देहातों से आए लोगों की बिलकुल निजी जानकारियाँ इकट्ठा रहती हैं. अब कल्पना कीजिए किसी बड़े आदमी का खतरनाक बीमारी की आशंका को लेकर टेस्ट हुआ हो… ज़ाहिर है ये जानकारी बिलकुल गुप्त रहनी चाहिए. पर जिस तिजोरी में ये जानकारी रखी गई है, उसकी चाबी अगर चीन या पाकिस्तान के पास पहुँच गई तो क्या होगा?
भारत ने 2015-16 में डिजिटल पुश की शुरुआत की थी. यानी बर्थ रजिस्ट्रेशन से लेकर स्कूल कॉलेज में ए़डमिशन, नौकरी के लिए एप्लीकेशन, पेमेंट्स सब कुछ ऑनलाइन करने की शुरुआत. हमें कहा गया था कि इससे जीवन बहुत आसान हो जायेगा. अब आपको दफ़्तरों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे. और काफी हद तक यह हुआ भी है. लेकिन इससे खतरा बढ़ा भी है. कैसा खतरा? साइबर अटैक का.
साइबर अटैक्स पढ़ने और सुनने में आपको दिलचस्प लग सकते हैं लेकिन इनका खामियाजा कितना बड़ा और गहरा हो सकता है इसका अंदाज़ा कम लोग ही समझते हैं.साईबर अटैक वो प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति से जुड़े डिवाइस जैसे फोन लैपटॉप कंप्यूटर सर्वर टैबलेट प्रिंटर कैमरे को अनधिकृत रूप से एक्सेस किया जाता है. और उसमें मौजूद डेटा को चुराया या डिलीट किया जाता है.
आमतौर साइबर अटैक्स करने वाले वो हैकर्स होते हैं जो पैसा कमाने के लिए हैकिंग करते हैं. वहीं, दुनियाभर में डेटा चोरी करने और जासूसी करने के लिए इंटेलिजेंस एजेंसियां अपनी साइबर आर्मी से बड़े स्तर पर साइबर अटैंक्स करवाती हैं.
इस के अलावा दुनियाभर में आतंकी संगठन भी आजकल अपने प्रचार के लिए साइबर अटैक्स का सहारा लेने लगे हैं. भारत मे हर घंटे साइबर अटैक्स हो रहे हैं, चाहे बैंकिंग सिस्टम हो या शेयर मार्केट, सेना और एयरफोर्स से जुड़े अधिकारियों से लेकर आम जनता तक सभी साइबर अटैक्स की जद में हैं. जैसे कि पहले भी बताया - इससे कई तरह के नुकसान हो सकते हैं. यहां तक कि इससे देश की सुरक्षा को ख़तरा भी हो सकता है.
कुछ दिन पहले पाकिस्तान की इंटेलिजेंस एजेंसी ISI के साइबर ऑपरेटिव ने भारतीय सेना से जुड़े अफसरों को निशाना बनाकर उनके लैपटॉप और फोन को निशाना बनाने की कोशिश की. सेना और ब्यूरोक्रेसी से जुड़े लोगों पर साइबर हमले का मकसद निजी डेटा चुराकर उसका रणनीतिक इस्तेमाल करना होता हैं. सेना से जुड़े लोगों के फोन में अक्सर कामकाज से जुड़े अहम जानकारियाँ होती हैं. हैकर्स इसी का फायदा उठाकर अटैक लांच करते हैं.
हमें क्यों सतर्क रहना चाहिए?एक्सपर्ट विराग गुप्ता बताते हैं,
“मुझे कॉरपोरेट जगत के बड़े अफसर मिले उनको बैंक से 5-6 मैसेज मिले जिसमे कोई उनके आधार कार्ड का दूसरे बैंक खाते में अनुचित उपयोग कर रहा था. इसी तरह एक बार हरियाणा में एक महिला को ठगों ने फ़र्ज़ी बैंक एकाउंट खुलवाकर मिडलमैन के साथ डेढ़ लाख रुपए की जालसाजी हुई. अगर कोई किसी के नाम का फ़र्ज़ी ट्विटर एकाउंट बना ले तो उस व्यक्ति का काफी बदनाम और परेशान करके नुकसान कर सकता है.”
गुप्ता कहते हैं,
सरकार क्या कर सकती है?“किसी आम आदमी के लिए साइबर क्राइम की शिकायत दर्ज करवाकर न्याय पाना बहुत ही मुश्किल काम हैं.इसलिए हम सभी को सतर्क रहना होगा और समझना होगा क्योंकि इससे कैसे निपटना है इसके बारे में तो अभी हमे सही सही अंदाज़ भी नहीं हैं.”
गुप्ता कहते हैं कि साइबर क्राइम से जुड़ी समस्याओं का हल सरकार को तुरंत निकलना होगा. वे बताते हैं,
“इससे बचने के लिए सरकार को सख्त डेटा प्रोटेक्शन कानून लाना होगा. अभी हमारे पास डेटा प्रोटेक्शन के लिए कोई रेग्युलेटर तक नहीं हैं. हम हर चीज़ के लिए मंत्रालय का दरवाजा नहीं खटखटा सकते. हमे लोकल लेवल पर पुलिस की तर्ज पर इसकी व्यवस्था करनी होगी.”
अंत में कहते हैं कि डिजिटल इंडिया को हमे प्राथमिकता देनी चाहिए लेकिन डेटा सुरक्षा को लेकर भी ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए. साइबर अटैक का मामला गंभीर है. समस्याएं हैं लेकिन समाधान भी है. एक्सपर्ट्स की माने तो हमें सावधान रहना है और सरकार को डाटा प्रोटेक्शन पर काम करना है.
वीडियो: साइबर अटैक से बचने के ये तरीके जान लीजिए, मुश्किल में पड़ने से बच जाएंगे