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मोसाद ने ईरान में घुसपैठ कैसे की?

ईरानी एजेंसियों को शक़ है कि कोई अंदर का बड़ा आदमी इज़रायल से मिला हुआ है. जो गुप्त जानकारियां इज़रायल तक पहुंचा रहा है. अगर इन दावों में सच्चाई है, तो ये ईरान के लिए कितना बड़ा झटका हो सकता है?

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ईरान के सुप्रीम लीडर अली ख़ामेनई के साथ ईरान की क़ुद्स फ़ोर्स के मुखिया इस्माइल क़ानी

पिछले एक हफ़्ते से मिडिल-ईस्ट में एक सवाल घूम रहा है. वो ये कि, ईरान की क़ुद्स फ़ोर्स के मुखिया इस्माइल क़ानी कहां हैं? क़ुद्स फ़ोर्स, इस्लामिक रेवॉल्युशरी गार्ड्स कोर (IRGC) की सबसे एलीट यूनिट है. ये सीधे सुप्रीम लीडर को रिपोर्ट करती है. एक समय इसके मुखिया क़ासिम सुलेमानी हुआ करते थे. जब वो जीवित थे, उनको सुप्रीम लीडर के बाद ईरान का दूसरा सबसे ताक़तवर शख़्स माना जाता था. इससे आप क़ुद्स फ़ोर्स के रुतबे का अंदाज़ा लगा सकते हैं.

इस्माइल क़ानी को लेकर क्या बवाल चल रहा है?

जनवरी 2020 में अमेरिका ने बग़दाद में एक ड्रोन हमला किया. इसमें सुलेमानी मारे गए. उसके बाद क़ुद्स फ़ोर्स की कमान क़ानी के पास आई. अब उनकी गुमशुदगी की ख़बर आई है. उनको लेकर तीन दिलचस्प थ्योरियां चल रहीं हैं.

- नंबर एक. IRGC का दावा है कि क़ानी पूरी तरह से स्वस्थ हैं. उनको कुछ नहीं हुआ है. जल्दी ही वो बाहर आएंगे.
हालांकि, इस थ्योरी पर यकीन करना काफ़ी मुश्किल है. क्योंकि इस वक़्त ईरान पर इज़रायल के हमले का ख़तरा मंडरा रहा है. ऐसे में उनका छुट्टी पर जाना समझ से परे है.

- दूसरी थ्योरी है कि क़ानी इज़रायल के हमले में मारे जा चुके हैं. वो हसन नसरल्लाह की हत्या के दो दिन बाद लेबनान पहुंचे थे. हालात का जायजा लेने.
फिर 04 अक्टूबर को इज़रायल ने हिज़्बुल्लाह के हेडक़्वार्टर पर एक और हमला किया. इज़रायल की तरफ़ से कहा जा रहा है कि इसमें हाशेम सफ़ेदीन मारा गया. वो हिज़्बुल्लाह चीफ़ बनने की रेस में था. चर्चा है कि उस वक़्त क़ानी भी सफ़ेदीन के साथ मौजूद थे. मगर न तो हिज़्बुल्लाह और न ही ईरान ने इसकी पुष्टि की है. इसलिए, इस थ्योरी पर भी संशय है.

- अब तीसरी थ्योरी की तरफ़ चलते हैं. ‘मिडिल ईस्ट आइ’ ने हिज़्बुल्लाह और ईरान के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के हवाले से एक रिपोर्ट छापी है. इसमें दावा किया गया है कि क़ानी को हिरासत में रखा गया है. उनसे पूछताछ की जा रही है. हानिया और नसरल्लाह की हत्या ईरान के लिए बहुत बड़ा सिक्योरिटी ब्रीच था. ईरानी एजेंसियों को शक़ है कि उसके कुछ सीनियर अधिकारी इज़रायल के लिए काम कर रहे हैं. इसी बाबत क़ानी को हिरासत में रखा गया है. ये मिडिल ईस्ट आइ का दावा है. आइए समझते हैं.  

- इस्माइल क़ानी की कहानी क्या है?
- क़ुद्स फ़ोर्स क्या है और क्या उसमें घुसपैठ संभव है?
- और, इज़रायल, ईरान के अंदर ख़ुफ़िया ऑपरेशन कैसे चलाता है?

मामले का बैकग्राउंड क्या है?

साल 1979. ईरान में मोहम्मद रेज़ा शाह की सरकार गिरा दी गई. फिर अयातुल्लाह रुहुल्लाह ख़ोमैनी के नेतृत्व में इस्लामिक रिपब्लिक की स्थापना की गई. शाह देश और अपनी सुरक्षा के लिए रेगुलर आर्मी पर निर्भर थे. नया निज़ाम एक ऐसी सेना चाहता था, जो इस्लामिक मूल्यों के साथ-साथ इस्लामिक क्रांति के विचार की भी रक्षा करे. इसके लिए ख़ोमैनी ने इस्लामिक रेवॉल्युशनरी गार्ड्स कोर (IRGC) का गठन किया.

ईरान के संविधान में रेगुलर आर्मी के साथ-साथ IRGC को भी जगह दी गई. तय ये हुआ कि रेगुलर आर्मी ईरान के इंटरनैशनल बॉर्डर की रक्षा करेगी, जबकि IRGC घरेलू मामले को देखेगी. कालांतर में ये सिस्टम आपस में नत्थी हो गया. IRGC का दखल बढ़ता गया. उसके पास अपनी थल, जल और वायु सेना की टुकड़ी हो गई. इसके अलावा, IRGC देश से बाहर भी ऑपरेशन चलाने लगी थी.

1980 का दशक ईरान और मिडिल-ईस्ट के लिए उथल-पुथल से भरा हुआ था. ईरान में हुई क्रांति के चार महीने बाद ही इराक़ में तख़्तापलट हो गया. इराक़ में सद्दाम हुसैन राष्ट्रपति बना. सद्दाम सुन्नी था. ईरान में शिया मुस्लिमों ने क्रांति की थी. सद्दाम को डर हुआ कि इस क्रांति की आग इराक़ के शिया मुस्लिमों तक भी पहुंच सकती है. इससे उसकी कुर्सी ख़तरे में पड़ जाती. इसी डर में उसने ईरान पर हमला कर दिया. सद्दाम लड़ाई को हफ़्तों में ख़त्म करना चाहता था. लेकिन ईरान ने करारा जवाब दिया. इस वजह से लड़ाई खिंचती चली गई. इराक़-ईरान युद्ध अगस्त 1988 तक चला. अंतिम तक लड़ाई का कोई नतीजा नहीं निकल सका.

ईरान-इराक़ युद्ध के टाइम IRGC की चार यूनिट्स विदेशों में ऑपरेशंस चलातीं थी.
- इस्लामिक लिबरेशन मूवमेंट्स यूनिट.
- इरेगुलर वॉरफ़ेयर हेडक़्वार्टर्स.
- लेबनान गार्ड.
- और, रमज़ान हेडक़्वार्टर्स.

युद्ध खत्म होने के बाद IRGC में फेरबदल हुआ. इसी क्रम में चारों यूनिट्स का क़ुद्स फ़ोर्स में विलय कर दिया गया. तब से क़ुद्स फ़ोर्स ईरान से बाहर के खुफिया ऑपरेशंस को लीड करने लगी. क़ुद्स का अर्थ होता है, पवित्र. इस फ़ोर्स का एक मकसद जेरूसलम को आज़ाद करवाना है. इसलिए, कुद्स फ़ोर्स को जेरूसलम फ़ोर्स के नाम से भी जाना जाता है. इसका ओवरऑल लक्ष्य है- ईरान के दुश्मनों को ख़त्म करना. और, मिडिल-ईस्ट में ईरान का प्रभाव बढ़ाना. हमास, हिजबुल्लाह, हूती जैसे प्रॉक्सी गुटों के साथ कनेक्शन की जिम्मेदारी भी कुद्स फोर्स की है. ईरान अपनी सरहद से बाहर जितनी रणनीति बनाता है, उसके पीछे इसी यूनिट का हाथ माना जाता है.

IRGC की कुल आठ शाखाएं हैं. क़ुद्स फ़ोर्स के अलावा बाकी की सातों शाखाएं रेवॉल्युशनरी गार्ड्स के कमांडर-इन-चीफ़ को रिपोर्ट करतीं है. क़ुद्स फ़ोर्स एक पैरलल स्ट्रक्चर में काम करती है. ये सिर्फ़ और सिर्फ़ सुप्रीम लीडर के प्रति जवाबदेह है. इसका मुख्यालय ईरान की राजधानी तेहरान में है. अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, यमन, लेबनान, इराक़ और फ़िलिस्तीन में एक्टिव है.

क़ुद्स फ़ोर्स का काम क्या है?

ईरान ने क़ुद्स फ़ोर्स को लंबे समय तक सीक्रेट रखा. ईरान से बाहर किसी को इसकी भनक तक नहीं थी. इसने लेबनान में हिज़्बुल्लाह को ट्रेनिंग दी. इराक़ में बद्र ब्रिगेड बनाया. बद्र ब्रिगेड में सद्दाम के विरोधी नेता शामिल थे. उन्हें ईरान से फ़ंडिंग मिलती थी. अमेरिकी सैनिकों पर हमला कराने और देश से बाहर विरोधियों की हत्या में भी क़ुद्स फ़ोर्स का नाम आता रहा है. कुद्स फ़ोर्स ख़ुफ़िया जानकारियां जुटाती है. ईरान के प्रॉक्सी गुटों को ट्रेनिंग देती है, पैसा और हथियार पहुंचाती है.

कब लाइमलाइट में आई क़ुद्स फ़ोर्स?

2011 के बरस में. जब मिडिल-ईस्ट में अरब स्प्रिंग की शुरुआत हुई. चिनगारी भड़की तो सीरिया में भी पहुंची. राष्ट्रपति बशर अल-असद के ख़िलाफ़ विद्रोह हुआ. असद ने कुर्सी छोड़ने की बजाय बाहरी मदद बुला ली. तब पहली बार क़ुद्स फ़ोर्स सुर्खियों में आई थी. उस समय क़ुद्स फ़ोर्स के मुखिया क़ासिम सुलेमानी थे. वो 1997 से ही इस पद पर काम कर रहे थे. लेकिन लाइमलाइट में नहीं आए थे. कहा जाता है कि उन्हीं की सलाह पर सुप्रीम लीडर ख़मैनी ने असद को मदद भेजी. इसके बाद क़ुद्स फ़ोर्स ने अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में शिया मुस्लिमों को ट्रेनिंग दी. ट्रेनिंग के बाद उन्हें लड़ने के लिए सीरिया भेजा गया. इस लड़ाई में उन्हें कामयाबी भी मिली. बशर अल-असद की सत्ता अभी भी बरकरार है.

कुद्स फ़ोर्स अपने मिशन में जुटी रही. इस बीच दो बड़े घटनाक्रम हुए. 2015 में अमेरिका और ईरान के बीच न्युक्लियर डील हुई. तीन साल बाद डोनाल्ड ट्रंप ने ये डील तोड़ दी. ईरान के ऊपर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए. IRGC को आतंकी संगठनों की लिस्ट में डाल दिया गया. इसके तुरंत बाद अमेरिका के ड्रोन्स और तेल के टैंकर्स पर हमले होने लगे. इराक़ में अमेरिका के मिलिटरी बेस पर हमला हुआ. इसमें एक अमेरिकी कॉन्ट्रैक्टर की मौत हो गई. अमेरिका ने इनका आरोप ईरान पर लगाया. ईरान ने कहा, हम नहीं थे. लेकिन अमेरिका नहीं माना. उसने ईरान-समर्थित लड़ाकों पर हवाई हमले शुरू कर दिए. इसके ख़िलाफ़ तेहरान में यूएस एम्बेसी के बाहर प्रोटेस्ट हुआ.

फिर 2020 का साल शुरू हुआ. तीन जनवरी की सुबह थी. बगदाद एयरपोर्टस से गाड़ियों का एक काफिला बाहर निकल रहा था. एकाएक वहां ज़ोर का धमाका हुआ. काफिले की दो कारों पर मिसाइल दागे गए थे. इस हमले में मारे गए लोगों में से एक क़ासिम सुलेमानी भी थे. अमेरिका ने हमले की ज़िम्मेदारी ली. कहा, हमारा मकसद अमेरिकी नागरिकों की सुरक्षा करना था. सुलेमानी को ईरान में नंबर-दो माना जाता था. उनकी हत्या से अमेरिका और ईरान के बीच तनाव बढ़ गया. सीमा पर अलर्ट जारी कर दिया गया. कहा गया कि अब दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हो सकता है. हालांकि, मामला आगे नहीं बढ़ा.

इस्माइल क़ानी की कहानी क्या है?

क़ानी की पैदाइश ईरान के मशहद शहर की है. वो एक रूढ़िवादी शिया परिवार में पले बढ़े. 1980 में IRGC में शामिल हुए. 1981 में उन्होंने तेहरान की इमाम अली ऑफ़िसर्स एकेडमी से ट्रेनिंग ली. फिर इराक़ के ख़िलाफ़ जंग में हिस्सा लिया. वहां उनकी मुलाक़ात क़ासिम सुलेमानी से हुई. जंग के बाद वो कुद्स फोर्स में चले गए. वहां उन्हें खुरासान रीजन में ईरान का प्रभाव बढ़ाने की ज़िम्मेदारी दी गई. उन्होंने इस इलाक़े में ड्रग्स की तस्करी रोकने के लिए काम किया.

फिर आया साल 1997. कासिम सुलेमानी को कुद्स फ़ोर्स का मुखिया बनाया गया. जबकि क़ानी को डिप्टी कमांडर नियुक्त किया गया. सीरिया के सिविल वॉर में ईरान ने असद सरकार का समर्थन किया था. इसमें भी क़ानी की अहम भूमिका थी. फिर जनवरी 2020 में क़ानी, क़ुद्स फ़ोर्स के मुखिया बन गए. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, सुलेमानी की हत्या के बदले पूरे मिडिल-ईस्ट से अमरीकियों की लाशें निकलेंगी. हालांकि, ईरान ने कोई बड़ा क़दम नहीं उठाया.

Esmail Qani
ईरान की क़ुद्स फ़ोर्स के मुखिया इस्माइल क़ानी (फोटो-AFP)

क़ानी को क़ुद्स फ़ोर्स का मुखिया बने चार बरस होने जा रहे हैं. लेकिन अब तक उन्हें सुलेमानी जैसा मुकाम हासिल नहीं हो पाया है. दो पॉइंट्स में समझते हैं. 

- नंबर एक. जब सुलेमानी ने कुद्स फ़ोर्स की कमान संभाली थी, तब ईरान अपनी प्रॉक्सी गुटों को मज़बूत कर रहा था. लेकिन जब सदारत कानी के हाथ आई तब तक इज़रायल के जासूस ईरान और उसके प्रॉक्सी गुटों के अंदर घुस चुके थे. इसलिए उनके आगे अलग तरह की चुनौतियां थीं.

- दूसरी वजह. क़ानी, अरबी भाषा नहीं बोलते. उनके बरक्स सुलेमानी धाराप्रवाह अरबी बोलते थे. मिडिल-ईस्ट में मौजूद प्रॉक्सी गुटों के लीडरान से उनके सीधे ताल्लुक थे.

Qasim Soleimani
क़ुद्स फ़ोर्स के पुर्व कमांडर क़ासिम सुलेमानी. जनवरी 2020 में अमेरिका ने बग़दाद में एक ड्रोन हमला किया. इसमें सुलेमानी मारे गए. उसके बाद क़ुद्स फ़ोर्स की कमान क़ानी के पास आई.  (फ़ोटो-AFP)

07 अक्टूबर 2023 के बाद से ईरान डायरेक्टली गाज़ा जंग में भागीदार बना. क़ुद्स फ़ोर्स के मुखिया के तौर पर क़ानी ने ईरान के प्रॉक्सी गुटों के साथ कई मुलाक़ातें की. हसन नसरल्लाह के कत्ल के 2 दिन बाद बाद हालात का जायज़ा लेने लेबनान भी पहुंचे. लेकिन 4 अक्टूबर के बाद से उनका कोई पता नहीं चला है. उनके बारे में 3 थ्योरियां चल रहीं हैं. जिनके बारे में हमने आपको शुरू में बताया. फिलहाल हम तीसरी थ्योरी पर विस्तार से चर्चा कर लेते हैं. जिसके मुताबिक़, इस्माइल क़ानी के ख़िलाफ़ जासूसी से जुड़ी जांच चल रही है.

दरअसल, गाज़ा जंग के बीच हमास और हिज़्बुल्लाह के 20 से ज़्यादा कमांडर्स की हत्या हुई है. इनमें हमास और हिज़्बुल्लाह के चीफ़ भी शामिल हैं. जुलाई 2024 में हमास के सरगना इस्माइल हानिया को ईरान में मारा गया. वो ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान के शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचा था. फिर 27 सितंबर को हसन नसरल्लाह की हत्या हो गई. वो कई बरसों से छिपकर रह रहा था. इसके हफ़्ते बाद हाशेम सफ़ेदीन की हत्या का दावा सामने आया. जिस समय हाशेम पर बमबारी हुई, उस समय हिज़्बुल्लाह के शूरा काउंसिल की बैठक चल रही थी. यानी, उसके साथ हिज़्बुल्लाह के और भी सीनियर कमांडर मौजूद होंगे.

हालिया मुद्दा क्या है?

इतनी हाई-प्रोफ़ाइल हत्याएं सटीक इंटेलिजेंस के बिना संभव नहीं है. ईरानी एजेंसियों को शक़ है कि कोई अंदर का बड़ा आदमी इज़रायल से मिला हुआ है. जो गुप्त जानकारियां इज़रायल तक पहुंचा रहा है. मिडिल ईस्ट आइ की रिपोर्ट के मुताबिक़, इसी क्रम में इस्माइल क़ानी पर भी नज़र रखी जा रही थी. फिलहाल उनको हिरासत में रखा गया है. उनसे पूछताछ चल रही है. और क्या-क्या है रिपोर्ट में? पॉइंट्स में समझिए.
- नंबर एक. इस्माइल क़ानी पूरी तरह सुरक्षित हैं. उन्हें कोई चोट नहीं आई है. वो इस समय ईरान में हैं.
- नंबर दो. हिज़्बुल्लाह के करीबी सूत्रों ने मिडिल ईस्ट आइ को बताया कि हाशेम सफ़ेदीन ने क़ानी को शूरा काउंसिल की मीटिंग में बुलाया था. लेकिन वो नहीं पहुंचे. कुछ देर बाद इसी मीटिंग पर इज़रायल ने हमला कर दिया.
- नंबर तीन. हसन नसरल्लाह के क़त्ल वाले दिन IRGC के सीनियर कमांडर अब्बास नीलफरशां लेबनान में थे. रिपोर्ट्स हैं कि वो नसरल्लाह को आगाह करने गए थे. ये बताने कि इज़रायल हमला करने वाला है. कुछ समय के लिए लेबनान से निकल जाएं. 27 सितंबर को नीलफ़रशां एयरपोर्ट से सीधे मीटिंग हॉल में पहुंचे थे. जहां पर बाद में इज़रायल ने बमबारी की. इसमें नसरल्लाह के साथ-साथ नीलफ़रशां की भी मौत हो गई थी.
 

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