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गर्मी में सुलगते हुए सोचा है कभी, जून के महीने में ही क्यों आता है मॉनसून?

मॉनसून की हवाएं अब केरल से देश के और राज्यों की तरफ़ बढ़ने लगी हैं. मेहरबां के उत्तर प्रदेश में आते 18-20 जून हो सकता है. मगर क्या कभी ये ख़्याल आया कि जून के महीने में ही क्यों आता है मॉनसून?

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उत्तर भारतीयों की स्थिति कुछ-कुछ लगान में बारिश के प्रतीक्षारत लोगों जैसी है. (फ़ोटो - PTI)

कब होगी बारिश? कब आएगा मॉनसून? इस एक सवाल ने गर्मी के जले समस्त उत्तर भारत को एक सूत्र से बांध दिया है. कोस-कोस पर पानी बदलता होगा. बीस कोस पर बोली भी बदलती होगी. मगर सवाल वही है: कब भईया? कब होगी इनायत? मौसम विभाग से ख़बर आई है कि अभी तो उत्तर भारत को उबलना है कुछ और. आने वाले 3-4 दिन गर्मी बढ़ेगी, लू भी चलती रहेगी. लेकिन मॉनसून की हवाएं अब केरल से देश के और राज्यों की तरफ़ बढ़ने लगी हैं. उत्तरी अरब सागर के कुछ हिस्सों और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में मॉनसून ने दस्तक दे दी है. मेहरबां के उत्तर प्रदेश में आते 18-20 जून हो सकता है. तब तक ‘चिल’ रहने के प्रयास कीजिए. घर में रहिए, ख़ूब पानी पीजिए.

मगर मगर मगर... क्या कभी ये ख़्याल आया कि जून के महीने में ही क्यों आता है मॉनसून?

कुछेक लोग इसे ‘प्रकृति के संतुलन’ से जोड़ देते हैं, कि बंपर गर्मी में जनता को राहत के लिए मॉनसून बरसता है. होता ऐसा ही कुछ है, मगर इंसान जितना प्रकृति को अपने इर्द-गिर्द नाचता हुआ समझता है, वैसा नहीं है.

जून में ही क्यों आता है मॉनसून?

भारत के सन्दर्भ में ‘मॉनसून’ हवाओं का एक समूह है, जो हिन्द महासागर से नमी लेकर ज़मीनी इलाक़ों की तरफ़ बढ़ता है. जहां-जहां से ये हवाएं गुज़रती हैं, वहां होती है बारिश.

अच्छा, जून में ही ऐसा क्या होता है? फ़र्ज़ कीजिए: भारत एक पतीला है, जो एक चूल्हे पर रखा हुआ है. चूल्हा सूरज है. गर्मियों में चूल्हे का ज़ोर बढ़ जाता है. पतीला उबलने लगता और इस तेज गर्मी से सतह (ज़मीन) पर लो-प्रेशर वाला क्षेत्र बनता है. इस खौलते हुए पतीले के ठीक बग़ल में एक ठंडा-भरा हुआ पतीला रखा है, हिंद महासागर. चूंकि इसकी सतह पर हवाएं ठंडी और सघन होती हैं, इसीलिए इधर हाई-प्रेशर एरिया बनता है.

अब जैसे-जैसे गर्मियां बढ़ती हैं, मई-जून आता है, इंटर-ट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन (ITCZ) नाम की तेज़ और नमी से भरी हवाएं उत्तर की ओर बढ़ने लगती हैं. भू-मध्य रेखा (equator) की ओर.

भूमध्य रेखा के पास दक्षिणी गोलार्ध (southern hemisphere) की साउथ-ईस्टर्न ट्रेड हवाएं और उत्तरी गोलार्ध (northern hemisphere) की नॉर्थ-ईस्टर्न ट्रेड हवाएं आपस में मिलती हैं. जिस जगह ये टकराती हैं, उसे कहते हैं अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र या इंटर-ट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन (ITCZ). इस इलाक़े में हवाएं ऊपर की ओर उठती हैं, बड़े-बड़े बादल बनते हैं और भारी बारिश होती है.

सोर्स - IMD.

इसको कुछ-कुछ ऐसे समझिए कि समुद्र में किसी ने हिमालय की तरफ़ बहुत बड़ा सा पंखा रख दिया है और स्विच ऑन कर दिया है. अब हिमालय तो बहुब्बड़ा है. एक बड़ी सी दीवार की तरह. बेचारी हवाओं को इससे ऊंचा उठना पड़ता है. जैसे-जैसे हवाएं ऊपर उठती हैं, ठंडी होती जाती हैं. ठंडक की वजह से हवा में मौजूद नमी से बनते हैं बादल और बरसती है बारिश.

लाख टके का सवाल: गर्मियों में गर्मी क्यों पड़ती है?

धरती की पोज़िशन ऐसी होती है कि सूरज की रोशनी कर्क रेखा से मकर रेखा के बीच घूमती है. कर्क रेखा भारत के आठ राज्यों से होकर गुज़रती है. राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और मिज़ोरम. सूरज और धरती की पोज़िशन ही सबसे बड़ा कारण है. इसके अलावा, वेस्टर्न डिस्टर्बेंस और एल नीन्यो (अल नीनो) जैसे भी कुछ फ़ैक्टर्स हैं.

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एक बड़ी ज़रूरी बात. धरती पर कुल सात प्रेशर बेल्ट्स हैं. ये वायुमंडल का एक एरिया होता है, जहां हवा का प्रेशर आस-पास की तुलना में ज़्यादा होता है. दुनिया भर में मौसम के जो भी पैटर्न्स हैं, उनमें इनका बड़ा हिस्सा है. बरसात, हवा के पैटर्न जैसी तमाम क्लाइमेट कंडिशन्स को प्रभावित करती है.

मई, जून, जुलाई और अगस्त - जब उत्तरी गोलार्ध में गर्मी पड़ती है - तब सब-ट्रॉपिकल हाई-प्रेशर बेल्ट्स (subtropical high-pressure belts) उत्तर की ओर खिसक जाती हैं. इसी की वजह से उत्तर भारत तपता है.

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हां, तपने से एक शेर याद आया:

ये इश्क़ नहीं आसां इतना ही समझ लीजे 
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है 

सौ तो नहीं, मगर 97 फ़ीसदी मुमकिन है कि ये शेर जिगर मुरादाबादी ने जून में एक बल्टी पानी से नहा कर ही कहा होगा.

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