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क्या है भगदड़ की साइकॉलजी? ऐसी परिस्थितियों में अपनी जान कैसे बचा सकते हैं?

New Delhi Railway Station Stampede में 15 लोगों की मौत हो गई. वहीं, Prayagraj Mahakumbh Stampede में भगदड़ मचने से 30 लोगों की जान चली गई. हाल-फिलहाल में ऐसी कई खबरें आईं, जब भगदड़ मचने के चलते लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि भगदड़ मचती कैसे है और इससे बचा कैसे जा सकता है?

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Prayagraj Mahakumbh में भगदड़ मचने के बाद का दृश्य. (फोटो: PTI)

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ (New Delhi Railway Station Stampede) मचने से 18 लोगों की मौत हो गई. जबकि 25 से ज़्यादा घायल हो गए हैं. इससे पहले, प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में 29 जनवरी तड़के करीब दो बजे भगदड़ (Mahakumbh Stampede) मच गई, जिसमें 30 लोगों की मौत की आधिकारिक पुष्टि की गई.

हाल फिलहाल में ऐसी कई खबरें आई हैं, जहां भगदड़ मचने से लोगों की जान चली गई. मसलन, जलगांव में हुआ ट्रेन हादसा जिसमें ट्रेन के भीतर आग लगने की अफवाह के चलते लोग पटरियों पर कूद गए और दूसरी तरफ से आ रही एक ट्रेन की चपेट में आ गए. इसी महीने तिरुपति मंदिर में भगदड़ मची. इस भगदड़ में 6 लोगों की जान चली गई. इससे पहले, पिछले साल उत्तर प्रदेश के हाथरस में आयोजित एक धार्मिक कार्यक्रम में भगदड़ मची थी. इस भगदड़ में 121 लोगों की जान गई थी.

ऐसे में सवाल उठते हैं कि आखिर भगदड़ मचती क्यों है? उस समय भीड़ में मौजूद लोगों के दिमाग में क्या चल रहा होता है? भगदड़ को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं? और, अगर आप भगदड़ में फंस जाएं तो क्या करें?

भगदड़ क्यों मचती है?

दुनियाभर के मनौविज्ञानियों और समाजशास्त्रियों ने भगदड़ को लेकर स्टडीज की हैं. इनमें से कइयों का मानना है कि भगदड़ के पीछे घबराहट एक बहुत बड़ा पहलू है. स्विट्जरलैंड की ETH ज्यूरिख यूनिवर्सिटी में कम्प्यूटेशनल सोशल साइंस के प्रोफेसर डर्क हेलबिंग अपने एक पेपर में कहते हैं,

इस तरह के ज्यादातर हादसों को लेकर धारणा यही है कि ये घबराहट की वजह से होते हैं. भीड़ में शामिल लोगों के अंदर एक किस्म का भय होता है. एड्रेनेलीन के स्तर के साथ इस डर में बढ़ोतरी होती है. लोगों के भीतर 'फ्लाइट एंड फाइट' मोड एक्टिव हो जाता है. इसके चलते लोग भागने लगते हैं. दूसरों को कुचल देते हैं.

साइकोलॉजिस्ट एलेक्जैंडर मिन्ट्ज अपने पेपर नॉन-एडैप्टिव ग्रुप बिहेवियर में लिखते हैं कि जब भीड़ में ऐसी परिस्थिति पैदा हो जाती है, जिससे बड़े स्तर पर घबराट उपजती है तब एक दूसरे का सहयोग करने की भावना लोगों को फायदा पहुंचा सकती है, लेकिन जैसे ही ये सहयोग करने की भावना खत्म हो जाती है, भीड़ में मौजूद लोग एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने लगते हैं. मिंट्ज इसका एक उदाहरण देते हैं,

मान लीजिए किसी मूवी थिएटर में आग लग गई है. ऐसी स्थिति में थिएटर के अंदर मौजूद लोगों के लिए यही फायदेमंद होगा कि वो एक दूसरे को धक्का ना दें. लेकिन अगर इस बीच कुछ लोग थिएटर से बाहर निकलने वाले रास्तों पर इकट्ठा हो जाते हैं और पहले निकलने के लिए धक्का-मुक्की करने लगते हैं तो इससे वहां घबराहट का माहौल बन जाता है. जो भी व्यक्ति जो दूसरों को धक्का नहीं दे रहा होता है, उसे लगता है कि वो फंस जाएगा और उसकी जान चली जाएगी. ऐसे में बड़े स्तर पर धक्का-मुक्की मच जाती है और भगदड़ मच जाती है.

यहां पर एक उदाहरण तिरुपति मंदिर हादसे का लीजिए. रिपोर्ट्स के मुताबिक, श्रद्धालु एक पार्क में जमा थे. दर्शन के लिए टिकट लेने का इंतजार कर रहे थे. पार्क का गेट बंद था और वहां पुलिसवाले तैनात थे. इसी दौरान उन्हें पता चला कि एक वृद्ध महिला को सांस लेने में दिक्कत हो रही है. कुछ पुलिसवाले आए और उस महिला को भीड़ से अलग हटाने के लिए गेट थोड़ा सा खोला. लाइन में पीछे लगे लोगों को नहीं पता था कि आगे एक मेडिकल इमरजेंसी का केस है. उन्हें लगा कि टिकट काउंटर खुल गए हैं. इसके बाद पीछे के लोगों ने धक्का देना शुरू कर दिया, जिससे भगदड़ मच गई.

भगदड़ का विज्ञान भी है

स्विट्जरलैंड की सेंट गैलेन यूनिवर्सिटी में सोशल साइकॉलजी की प्रोफेसर एना सीबेन कहती हैं कि भगदड़ मचने के लिए सिर्फ ह्यूमन साइकॉलजी ही जिम्मेदार नहीं है. उनका कहना है जो लोग भगदड़ में फंस जाते हैं, कई बार उन्हें बहुत देर बाद इसका एहसास होता है. प्रोफेसर हेलबिंग इसे और विस्तार से समझाते हैं. वो भगदड़ की साइंस पर बात करते हैं और ‘क्राउड टर्बुलेंस’ जैसे शब्द का इस्तेमाल करते हैं.

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Prayagraj Mahakumbh में भगदड़ मचने के बाद अपने-अपने सामान की निगरानी करते लोग. (फोटो: PTI)

प्रोफेसर हेलबिंग के मुताबिक, 'क्राउड टर्बुलेंस' की स्थिति तब बनती है, जब एक ही समय पर बहुत सारे लोग एक ही जगह पर इकट्ठा हो जाते हैं और उनके चलने-फिरने के लिए ना के बराबर जगह मौजूद होती है. ऐसे में लोग एक दूसरे से टकराते रहते हैं. ये 'क्राउड टर्बुलेंस' एक नई स्थिति को जन्म देता है, जिसे हेलबिंग 'ट्रांसमिशन ऑफ फोर्सेज' कहते हैं. हेलबिंग आगे कहते हैं,

ये ट्रांसमिशन फोर्सेज आपस में जुड़ती जाती हैं और लोगों को अप्रत्याशित तरीके से धक्का देने लगती हैं. ऐसी स्थिति में लोगों के लिए अपना संतुलन बना पाना बहुत मुश्किल हो जाता है.

संतुलन बिगड़ने पर लोग गिर जाते हैं. इससे लोगों की भीड़ में एक ‘ब्लैक होल’ जैसा बन जाता है. एक के ऊपर एक व्यक्ति गिरने लगता है. भीड़ में दबे लोगों के लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है. दम घुटने की वजह से उनकी जान चली जाती है. प्रोफेसर सीबेन कहती हैं कि भगदड़ की ऐसी स्थिति इसलिए बनती है क्योंकि बहुत सारे लोग एक ही समय पर एक ही जगह पर जाना चाहते हैं.

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भगदड़ मचने की जिम्मेदारी कार्यक्रम का आयोजन करने वालों पर भी आती है. कई बार आयोजनकर्ता किसी कार्यक्रम में आने वाले लोगों का सही अनुमान नहीं लगा पाते और बहुत सारे लोग इकट्ठा हो जाते हैं. ऐसे में व्यवस्थाएं धरी की धरी रह जाती हैं. कई बार व्यवस्थाओं में ही कोई दिक्कत हो जाती है. प्रोफेसर शुन हाओ साओ अपने पेपर ‘स्टैंपीड इवेंट्स एंड स्ट्रैटीज’ में ऐसी कई अव्यवस्थाओं का जिक्र करते हैं. मसलन,

- लाइट की ठीक व्यवस्था ना होना
- भीड़ को व्यवस्थित करने के लिए पर्याप्त डिवाइडर्स ना होना
- बैरियर्स का गिर जाना
- एग्जिट्स का ब्लॉक होना

प्रोफेसर कहते हैं कि अगर एग्जिट्स पर भीड़ जमा हो जाती है और लोगों को निकलने में ज्यादा समय लगता है तो इससे घबराहट बढ़ती है. घबराहट बढ़ने से भगदड़ मचने का रिस्क भी बढ़ जाता है. प्रोफेसर आगे कहते हैं कि अगर आयोजनकर्ता यह अनुमान नहीं लगा पाते कि भीड़ किस दिशा में जाएगी, तो भी भगदड़ का खतरा बढ़ जाता है.

‘लोगों को पता ही नहीं चलता’

इधर, प्रोफेसर सीबेन भगदड़ के पीछे एक और वजह को जिम्मेदार बताती हैं. उनका कहना है कि भीड़ में इनफॉर्मेशन बहुत देरी से ट्रैवेल करती है. मतलब, भीड़ में आगे मौजूद व्यक्ति ने अगर कुछ कहा है तो उसे पीछे के व्यक्ति तक पहुंचने में बहुत समय लगता है. उदाहरण के लिए, अगर भीड़ में कहीं आगे कोई व्यक्ति गिर गया है और उसके ऊपर कुछ और लोग गिर गए हैं तो इस बात की बहुत आशंका है कि कुछ मीटर्स की दूरी पर मौजूद लोगों तक यह जानकारी बहुत देर से पहुंचे. या उन्हें तब तक इस बारे में पता ही ना चले, जब तक वो लोग खुद ऐसा होता ना देख लें.

सीबेन कहती हैं कि ऐसा इसिलए होता है कि अक्सर भीड़ में बहुत शोर-शराबा होता है और उसमें पीछे मौजूद लोग अपने आगे मौजूद लोगों की सिर्फ पीठ ही देख पाते हैं, उन्हें आगे की सिचुएशन दिखाई नहीं देती. वो इसको समझाते हुए कहती हैं,

भीड़ में आगे मौजूद लोग आगे नहीं बढ़ सकते क्योंकि उनके सामने लोग गिरे हुए हैं. इधर, पीछे से धक्का आ रहा होता है क्योंकि पीछे मौजूद लोगों को पता ही नहीं होता कि ऐसा कुछ हो रहा है. पीछे मौजूद लोग थोड़ा-थोड़ा धक्का देना जारी रखते हैं क्योंकि उनके लिए ये सामान्य होता है. लेकिन बहुत सारे लोगों का थोड़ा-थोड़ा धक्का भी एक बहुत बड़ी फोर्स बन जाता है. रिजल्ट ये होता है कि इस फोर्स की वजह से लोग एक दूसरे पर गिरने लगते हैं.

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15 फ़रवरी की रात प्रयागराज जाने के लिए ट्रेन में चढ़ती भीड़. (फ़ोटो - PTI)
कैसे बचें?

सबसे पहली बात तो यही है कि ऐसे किसी भी आयोजन में लोगों की संख्या नियंत्रण में रखी जाए. हालांकि, हर बार ऐसा संभव नहीं हो पाता. ऐसे में यह बहुत जरूरी हो जाता है कि कार्यक्रम वाली जगह पर कितने एग्जिट्स हैं और वो किन-किन जगहों पर बनाए गए हैं. इसके साथ भीड़ की निगरानी और उसके मूवमेंट पर कड़ी नजर रखना भी जरूरी हो जाता है. एक तरह से भीड़ की लाइव मॉनीटरिंग.

एक्सपर्ट्स सलाह देते हैं कि भगदड़ जैसी परिस्थितियों से बचने के लिए आयोजनकर्ताओं को कई पहलुओं का बहुत खास ध्यान रखना चाहिए. सबसे पहले तो यही कि जिस जगह आयोजन होना है, वहां की क्षमता कितनी है और वहां कितने लोगों के आने का अनुमान है.

इसके साथ ही किस एज ग्रुप के लोग आने वाले हैं, वो किस मूड के साथ आने वाले हैं. साथ ही साथ मौसम किस तरह का है. किसी प्राकृतिक आपदा का तो खतरा नहीं है! कहीं कोई साजिश तो नहीं रची जा रही है?

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इसके साथ ही आयोजन वाली जगह के उन पॉइंट्स पर भी खास नजर रखनी होती है, जहां 'बोटलनेक' जैसी स्थिति बन सकती है. मतलब, एक ही समय पर एक ही जगह पर ढेर सारे लोग इकट्ठा हो गए हों और एग्जिट करने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन आदमियों के निकलने में ज्यादा समय लग रहा हो. इसके साथ ही आयोजनकर्ताओं को कंट्रोल रूम, अफवाह फैलने की स्थिति में लोगों तक सही सूचना पहुंचाने की व्यवस्था, लोगों को निकालने के लिए अलग-अलग प्लान और त्वरित मेडिकल सेवाओं का इंतजाम करना चाहिए.

लोग क्या करें?

प्रोफेसर सीबेन कहती हैं कि अगर आप ऐसी किसी परिस्थिति में फंस जाएं तो सबसे जरूरी है अपनी बातों को औरों तक पहुंचाना. प्रोफेसर का कहना है कि कई बार लोग इसलिए कुछ नहीं बोलते क्योंकि उन्हें लगता है कि मदद के लिए चिल्लाने से दूसरों के बीच घबराहट और बढ़ जाएगी. लेकिन शुरुआत में ही सहायता के लिए चिल्लाने से भीड़ के पास एकदम सही-सही बात पहुंच सकती है और बाकी लोगों को भी स्थिति का सही अंदाजा हो सकता है.

प्रोफेसर सीबेन आगे कहती हैं कि भगदड़ की स्थिति में हर कोई एक ही दिशा में बढ़ने की कोशिश करता है. ऐसे में लोगों को यह एहसास नहीं होता कि पीछे या साइड में ऐसी जगहे हैं, जहां पर भीड़ कम है और उस तरफ जाया जा सकता है. साथ ही साथ ऐसी परिस्थिति में लोग एग्जिट्स पर भी ध्यान नहीं देते, उनका सारा फोकस बस भीड़ की दिशा में ही आगे बढ़ने का होता है. ऐसे में खुद को शांत रखना जरूरी है.

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