
ग्रीस की माइथोलॉजी दुनिया में सबसे ज्यादा पढ़ी-पढाई गई है. कविताओं, फिल्मों, टीवी-- हर जगह इनका जिक्र आया है. जैसे आपने ब्रैड पिट वाली 'ट्रॉय' देखी होगी हिंदी में डब. वो भी ग्रीक मिथक से ली गई थी.
अब थोड़ी बात करते हैं ग्रीक गॉड के बारे में. ग्रीक गॉड उस तरह के भगवान नहीं थे जिनके सामने हाथ जोड़कर पूजा की जाती हो या जिनके नाम पर धर्म बने हों. गॉड ज्यादा ताकत वाले इंसान होते थे. कुछ अमर होते थे. कुछ मर सकते थे. वो चोटिल भी होते थे. उनकी शक्तियां भी जाती थीं. उनमें कलह भी होती थी. गॉड अगर इंसान के साथ बच्चा कर ले तो डेमी-गॉड यानी आधे भगवान पैदा होते थे.

यूरोप की शिल्प और चित्र कला में उनके सभी गॉड दिखाई देते हैं. और सभी एक जैसे दिखते हैं. वही बॉडी. मगर बॉडी के अलावा एक और चीज है जो सबकी एक जैसी है. उनके जेनिटल. यानी उनके प्राइवेट पार्ट.
कला के कद्रदान इस बात को लेकर हमेशा कंफ्यूज रहे हैं. बड़े-बड़े भगवान, राजा और बड़े लोगों की मूर्तियों में शरीर तो खूब भारी भरकम होते हैं. मगर लिंग छोटा सा होता है. उसके शरीर के अनुपात में ही अजीब सा दिखता है.

हमारे देश में लिंग बड़ा करने के नाम पर हजारों फ्रॉड चलते हैं. क्योंकि हम ऐसा मानते हैं कि बड़ा लिंग पौरुष का प्रतीक होते हैं. हमें लगता है कि छोटे लिंग हास्यास्पद होते हैं. हजारों चुटकुले बनाते हैं. मगर प्राचीन ग्रीस में ठीक इसका उल्टा माना जाता था.आज से करीब 3 हजार साल पहले परुषों की सुंदरता के मानक वो नहीं थे जो आज हैं. ना ही बड़े लिंग को कामुक माना जाता था, न ही पौरुष का प्रतीक. प्राचीन ग्रीस के एक मशहूर नाटककार हुए हैं ऐरिस्तोफेनीज. वो लिख गए थे कि आदर्श पुरुष वो होता है जिसके पास हों 'चौड़ी छाती, सफ़ेद चमड़ी, चौड़े कंधे, छोटी जीभ और छोटा लिंग.' साहित्यकार पॉल क्रिस्टल भी कहते हैं, 'छोटे लिंग वाले परुष सबसे सभ्य और आदर्श माने जाते थे.'

बड़े लिंग असभ्य और जानवरों से माने जाते थे. जिन्हें बुद्धि और समझदारी के उलट देखा जाता था. जिसका लिंग बड़ा हो वो आम भाषा में 'जेंटलमैन' नहीं कहलाता था. वेबसाइट आर्ट्सी की राइटर अलेक्सा गोतार्द लिखती हैं कि ज्यादातर नाटकों में कॉमेडियन आदि को बड़े लिंग वाला दिखाया जाता था. जिसके माने होते थे कि वो बेवकूफ हैं. सोच-समझ नहीं सकते. माना जाता था कि बड़ा लिंग उन बर्बरों का फीचर होता है जो खुदपर कंट्रोल नहीं रख पाते. वो खब्बू होते हैं. बल्कि छोटे लिंग वाले सेल्फ-कंट्रोल का प्रतीक होते थे.

हालांकि आज पौरुष का प्रतीक बड़ा लिंग है. पॉर्न फिल्मों का इनमें ख़ास योगदान है. माना जाता है कि बड़े लिंग वाला पुरुष ही औरत को कामुक रूप से संतुष्ट कर सकता है. जबकि सेक्स एक्सपर्ट्स के मुताबिक औरतों के लिए 4-इंच से अधिक सेंसेशन की आवश्यकता नहीं होती. मगर पॉपुलर पॉर्न हमें दिखाता है कि बड़ा लिंग ही पुरुष की पहचान है.
ये बात और है कि समय के साथ पौरुष के मानक बदल गए. लेकिन पौरुष आज जभी पौरुष है. तब भी औरतों को डॉमिनेट करता था, आज भी करता है.