योगी आदित्यनाथ सरकार का दावा है कि उसके यहां भ्रष्टाचार नहीं होता. अगर हो जाए, तो ज़ीरो टॉलरेंस नीति है. माने किसी को बख्शा नहीं जाएगा. बावजूद इसके, तीन तीन महकमों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. और ये आरोप विपक्षियों ने नहीं लगाए हैं, सरकार के भीतर से ही ऐसे सुर उठ रहे हैं. कुछ नाम दो दिन से सत्ता के गलियारों और खबरों में तैर रहे हैं. जितिन प्रसाद, दिनेश खटिक और ब्रजेश पाठक.
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बिहार के सासाराम में 12वीं सदी के कुछ शिलालेख मिले थे. ताराचंडी धाम में मिले शिलालेखों पर शोध हुआ तो पता लगा कि वो साल 1169 के हैं. शिलालेख संस्कृत में हैं और उसकी लिपि प्रारंभिक नागरी. शिलालेख खैरवाल वंश के राजा प्रताप धवल देव का है. शोधकर्ताओं ने उसे डिकोड किया तो उसमें एक शब्द लिखा था. उत्कोच. उत्कोच का मतलब है घूस. राजा प्रताप धवलदेव कहते हैं कि क्षेत्र के दो गांवो में कर संग्रहण का अधिकार दो व्यक्तियों ने देउ को उत्कोच देकर प्राप्त किया. यहां देउ का मतलब अधिकारी, उत्कोच का आपको बता दिया घूस. घूस और अधिकारी के मिश्रण से तैयार होता है भ्रष्टाचार है.
ये कहानी इसलिए सुनाई ताकि ये दर्ज कराया जा सके कि भ्रष्टाचार हिंदुस्तान में सदियों से रचा-बसा हुआ है. आधुनिक भारत में ना जाने कितनी सरकारें आईं और गईं. भ्रष्टाचार का विरोध किया, मुखर होकर सरकार बनाई और फिर उसी भ्रष्टाचार का हिस्सा बन गई. फिलवक्त यूपी में जो हो रहा है वो भ्रष्टाचार के इर्द-गिर्द ही हो रहा है. सरकार में ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर व्यापक भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए राज्यमंत्री दिनेश खटिक ने इस्तीफा दे दिया. इससे पहले भी कई और महकमों में भ्रष्टाचार की बात सामने आई, ट्रांसफर पोस्टिंग पर विवाद हुआ और कुछ पर गाज भी गिरी.
पहले दिनेश खटिक से शुरू करते हैं. मेरठ की हस्तिनापुर रिजर्व सीट से लगातार दो बार के विधायक हैं. संगठन मंत्री सुनील बंसल के करीबी. पहली बार मंत्री 2021 के मंत्रीमंडल विस्तार में बने. तब कैबिनेट मंत्री रहे महेंद्र सिंह के मातहत जलशक्ति मंत्रालय में राज्य मंत्री बने. 2022 में दोबारा जीते तो मंत्रालय रिपीट हुआ. मगर इस बार कैबिनेट मंत्री बदल गए. मंत्री हुए स्वतंत्र देव सिंह. जो सीएम योगी के काफी करीबी बताए जाते हैं और अब भी यूपी बीजेपी के अध्यक्ष हैं. ये मात्र एक हफ्ते पहले की तस्वीर है जब स्वतंत्र देव सिंह अपने दोनों राज्यमंत्रियों रामकेश निषाद और दिनेश खटिक के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे. तब वो सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति की तारीफ कर रहे थे और सरकार के कामों पर पीठ थपथपा रहे थे.
एक हफ्ता बीता और अंदरखाने कहा जाने लगा कि दिनेश खटिक की अपने मंत्री से बन नहीं रही. इसके हुआ ये कि 19 जुलाई यानी कल से ही दिनेश खटिक से इस्तीफे की खबर सुगबुगाहट के तौर पर तैरने लगी. वही चर्चा आज इस्तीफे के कागज की शक्ल में सामने आ गई. दिलचस्प ये रहा कि जो चिट्ठी वायरल हुई, वो गृहमंत्री अमित शाह को प्रेषित करते हुए लिखी गई. आमतौर पर होता ये कि अगर किसी मंत्री को इस्तीफा देना होता है तो राज्य के पार्टी प्रमुख, या फिर मुख्यमंत्री या फिर राज्यपाल को इस्तीफा देता है. मगर यहां सीधे गृहमंत्री अमित शाह को इन्वॉल्व किया गया. दिनेश खटिक ने अपने इस्तीफे किसी नेता का नाम नहीं लिया, मगर सरकार के अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए. साथ ही खुद के दलित होने पर भेदभाव की बात कही. चिट्ठी में सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी, अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह का मंत्री बनाने पर आभार जताया, सीएम योगी के ईमानदारी की तारीफ की, फिर लिखा-
“जल शक्ति विभाग में दलित समाज का राज्य मंत्री होने के कारण मेरे किसी भी आदेश पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है और न ही मुझे किसी बैठक की सूचना दी जाती है. न ही विभाग में कौन-कौन सी योजनाएं वर्तमान में संचालित है तथा उस पर क्या कार्यवाही हो रही है इत्यादि कोई सूचना अधिकारियों द्वारा नहीं दी जाती है. जिसके कारण राज्य मंत्री को विभाग के बारे में कोई जानकारी नहीं हो पाती है. संबंधित विभाग के अधिकारी राज्य मंत्री को केवल विभाग द्वारा गाड़ी उपलब्ध करा देना ही राज्य मंत्री का अधिकार समझते हैं. इस विभाग में स्थानांतरण सत्र में बहुत बड़ा भ्रष्टाचार किया गया है.”
चिट्ठी काफी बड़ी है, सबकुछ तो नहीं पढ़ सकते. कुछ बाते और हैं. प्रमुख सचिव पर बिना पूरा बात सुने फोन काटने का आरोप लगाते हैं. आगे लिखते हैं,
"मैं एक दलित जाति का मंत्री हूं, इसलिए इस विभाग में मेरे साथ बहुत ज्यादा भेदभाव किया जा रहा है. मुझे अभी तक विभाग में कोई अधिकार नहीं दिया गया है, इसलिए मेरे पत्रों का जवाब भी नहीं दिया जाता है."
आगे लिखते हैं
"इस विभाग में नमामि गंगे योजना के अंदर भी बहुत बड़ा भ्रष्टाचार फैला हुआ है. जो ग्राउंड पर जाने पर पता लगता है. मेरे विभाग में स्थानांतरण के नाम पर गलत तरीके से धन वसूली गई है. जब विभाग में दलित समाज के राज्यमंत्री का कोई आस्तित्व नहीं है तो फिर ऐसी स्थिति में राज्य मंत्री के रूप में मेरा कार्य करना दलित समाज के लिए बेकार है. इन सब बातों से आहत होकर मैं अपने पद से त्यागपत्र दे रहा हूं."
एक तरफ सीएम योगी हैं, जो भ्रष्टाचार को बिलकुल भी बर्दाश्त ना करने की बात करते हैं, दूसरी तरफ से उन्हीं के मंत्री भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हुए इस्तीफा देते हैं. दलित के अपमान का आरोप उस मंत्रालय में लगता है जिसके कैबिनेट मंत्री और सहयोगी राज्य मंत्री दोनों ओबीसी समुदाय से आते हैं. अब नाराजगी के पहलू को और करीने से समझते हैं. इसके लिए हमने स्थानीय पत्रकारों से बात की. पता लगा बीते दिनों मेरठ के इक इलाके में दिनेश खटिक के समर्थकों और पुलिस के बीच गाड़ी टकराने को लेकर विवाद हुआ था. नौबत कहासुनी और झड़प तक पहुंची. नाराज मंत्री ने पुलिस के खिलाफ थाने में FIR दर्ज करानी चाही. पुलिस ने पहले कार्रवाई करने से इनकार, बाद में दबाव बढ़ा तो FIR दर्ज हुई. मगर दो. एक मंत्री के समर्थकों की तरफ से दूसरी क्रॉस FIR पुलिस की तरफ से. मंत्री दिनेश खटिक वहीं से नाराज थे, जिले के स्थानीय प्रशासन से भी खास बनती नहीं थी. दिनेश खटिक आरोप लगाते थे कि उनकी अधिकारी सुनते नहीं हैं. चर्चा थी कि दिनेश खटिक गृहमंत्री शाह से मिलने दिल्ली आ सकते हैं. मगर उनकी मौजूदगी मेरठ में मिली.
कोई विषय नहीं...सिर्फ इसी वाक्य को दोहराते रहे, इस्तीफे पर कुछ नहीं बोले. बड़ी तेजी से गाड़ी के गेट को बंद किया, भला हो कि रिपोर्टर ने हाथ हटा लिया. वरना, दब जाता. कुल मिलाकर पूरे विवाद से कन्नी काटकर चले गए. बुलेटिन रिकॉर्ड किए जाने तक इस्तीफा स्वीकार होने की खबर नहीं है.
कैबिनेट मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह ने कह दिया, उन्हें इस विषय की जानकारी नहीं. कुल मिलाकर यहां भी कन्नी काट ली गई. योगी सरकार के बनने के मात्र 4 महीने के भीतर भारी हलचल है. विपक्ष को सरकार हमले करने का पर्याप्त मसौदा मिल चुका है. पूर्व सीएम अखिलेश यादव एक नहीं दो-दो ट्वीट कर लिखते हैं,
"जहां मंत्री होने का सम्मान तो नहीं परंतु दलित होने का अपमान मिले… ऐसी भेदभावपूर्ण भाजपा सरकार से त्यागपत्र देना ही अपने समाज का मान रखने के लिए यथोचित उपाय है. कभी-कभी बुलडोज़र उल्टा भी चलता है."
दूसरे ट्वीट में लिखा,
" उप्र भाजपा सरकार में भ्रष्टाचार और कुशासन की क्रॉनॉलॉजी समझिए:
- पहले लोक निर्माण विभाग के मंत्रालय में विद्रोह
- फिर स्वास्थ्य मंत्रालय में विद्रोह
- अब जल शक्ति मंत्रालय में विद्रोह
जनता पूछ रही है, उप्र की भाजपा सरकार ईमानदारी से बताए… अब अगली बारी किसकी है?"
इस पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती का भी ट्वीट आया, उन्होंने लिखा-
"उत्तर प्रदेश भाजपा मंत्रिमण्डल के भीतर भी दलित मंत्री की उपेक्षा अति-निन्दनीय व दुर्भाग्यपूर्ण. ऐसी खबरें राष्ट्रीय चर्चाओं में, सरकार अपनी जातिवादी मानसिकता व दलितों के प्रति उपेक्षा, तिरस्कार, शोषण व अन्याय को त्याग कर उनकी सुरक्षा व सम्मान का ध्यान रखने का दायित्व जरूर निभाए."
विपक्ष हमलावर है और राज्य सरकार की तरफ से भरपूर खामोशी. एक बयान आजमगढ़ से नवनिर्वाचित सांसद दिनेश लाल निरहुआ का जरूर आया. उन्होंने व्यक्तिगत फायदे नहीं मिला मिला तो इस्तीफा दे दिया. दिनेश खटिक का इस्तीफा खबरों में है मगर गोमती के ठहरे पानी में हलचल तो कई दिनों से है. जानकारों ये सबकुछ सरकार के भीतर ही दो कैंपों के बीच की लड़ाई के तौर पर समझ आता है. सारा विवाद ट्रांसफर पोस्टिंग से शुरू होता है और भ्रष्टाचार के आरोपों पर खत्म होता है. इससे पहले जितिन प्रसाद के भारी भरकम PWD मंत्रालय पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. PDW पर आरोप तो और गजब. कभी सुना था ऐसा तबादला? जहां तीन साल पहले जीवन गंवा चुके जूनियर इंजीनियर घनश्याम दास का तबादला झांसी हो गया. इटावा से राजकुमार नाम के शख्स का ट्रांसफर ललितपुर हो गया. पता चला राजकुमार तो कोई है ही नहीं. जो अधिकारी-कर्मचारी एक दो साल में रिटायर होने वाले थे उनका तबादला दूर के जिलों में कर दिया गया.
2022 में यूपी के चुनाव से पहले पिछले साल कांग्रेस के बड़े नेता जितिन प्रसाद बीजेपी में शामिल होते हैं. PWD जैसा बड़ा विभाग मिला और उसी विभाग में ये सब कारस्तानी हो गई. इसके बाद सिर्फ चार महीने के भीतर ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कड़े एक्शन लेने की जरूरत पड़ जाती है. PWD विभाग में तबादलों में अनियमितता और भ्रष्टाचार के आरोप के चलते मंत्री जितिन प्रसाद के ओएसडी अनिल कुमार पांडे पर गाज गिराई गई. जितिन प्रसाद के साथ पहले भी काम कर चुके मौजूदा -
>ओएसडी अनिल कुमार पांडे को हटा दिया गया.
>फिर प्रधान सहायक संजय चौरसिया निलंबित कर दिए गए.
>साथ ही पीडब्ल्यूडी में विभागाध्यक्ष मनोज कुमार गुप्ता
प्रमुख अभियंता राकेश कुमार सक्सेना,
और वरिष्ठ स्टॉफ ऑफिसर शैलेन्द्र कुमार यादव को भी तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया.
अब यहां से सवाल ये उठता है कि जब सरकार भ्रष्टाचारियों पर सख्त है तब भी क्या मंत्री जितिन प्रसाद को इसकी कोई जानकारी नहीं थी ? अगर थी तो चिंता की बात है और अगर नहीं थी तो और चिंता की बात है. क्योंकि ये गजब संयोग है कि ऐसे मामलों में OSD ही फ़ंसते हैं. मंत्री जी को कानों कान भनक नहीं होती. सिस्टम बदनाम, मंत्री बेदाग. इस पर कहा गया कि जितिन प्रसाद भी नाराज हैं, दिल्ली में गृहमंत्री से मिलने वाले हैं.
बयान का एक तय फॉर्मेट और उसी के तहत तय बयान. ऑल इज वेल दिखाने की कोशिश. मगर जो कुछ यूपी में हो रहा है वो सबकुछ नहीं ठीक होने की ओर इशारा करता है. यूपी में हर मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी कैबिनेट की बैठक लेते हैं. सारे मंत्री शामिल होते हैं. मगर 19 जुलाई को हुई बैठक में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या शामिल नहीं हुए. उनकी तरफ से बताया गया है कि वो एम्स में इलाज कराने दिल्ली आए थे, इस दौरान पीएम मोदी के साथ मुलाकात भी हुई. ऐसे माहौल में हुई मुलाकात चर्चाओं के बाजार को और गर्म किया. कहा जाता है कि सीएम योगी के बरक्स दो डिप्टी सीएम पावर को बैलेंस करने के लिए बनाए गए हैं. मगर दोनों की तरफ से कुछ ना कुछ शिकायतें होती रहती हैं. अधिकारियों पर आदेश ना मानने के आरोप भी लगते हैं. इससे पहले दूसरे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक की एक चिट्ठी चर्चा में रही थी. उसमें ट्रांसफर पोस्टिंग के नामपर भ्रष्टाचार के ऐसे ही आरोप. बात हुई कि उनसे बिना पूछे सैकड़ों डॉक्टरों का तबादला कर दिया गया. जब डॉक्टरों के तबादले की लिस्ट आई तो डिप्टी सीएम हैदराबाद पहुंच चुके थे, जहां बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही थी. जब वे लखनऊ लौटे तो डॉक्टरों के तबादले की लिस्ट देखकर उनका गुस्सा सातवें आसमान पर. उन्होंने अपर मुख्य सचिव को लंबा चौड़ा पत्र लिखकर पूरी जानकारी मांगी है. हालांकि अपर मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद ने कहा है कि सारे तबादले डिप्टी सीएम के अनुमोदन पर ही हुए हैं. सरकार बनने के 100 दिन के भीतर ही ब्रजेश पाठक और अमित मोहन प्रसाद कई बार आमने सामने हो चुके हैं.
दोनों के बीच अनबन भी पुरानी बताई जाती है. दरअसल योगी आदित्यनाथ की पिछली सरकार में ब्रजेश पाठक कानून मंत्री थे. तब उन्होंने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लेकर एक पत्र लिखा था, जिसके बाद योगी सरकार पर काफी सवाल खड़े हुए थे. तब ब्रजेश पाठक ने अपने पत्र में कोरोना के दौरान लखनऊ में बिगड़ते हालात को लेकर अपनी चिंताएं व्यक्त की थीं. उस समय में भी स्वास्थ्य विभाग में अमित मोहन प्रसाद ही बतौर अपर मुख्य सचिव तैनात थे. पाठक के सवालों को लेकर तब सरकार की काफी किरकिरी हुई थी. इस बार भी अपने अधिकारी के खिलाफ लिखे पत्र ने सुर्खियां बंटोरी तो मामला मुख्यमंत्री तक पहुंचा.
>ब्रजेश पाठक की शिकायत के बाद मुख्यमंत्री ने स्वास्थ्य विभाग में हुए तबादलों की जांच के लिए कमेटी बना दी.
>फिर पशुपालन विभाग 50 करोड़ के घोटाले की जांच अपर मुख्य सचिव को सौंपी गई है
आज फिर डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक की तरफ से बयान आया जो रफू करने जैसा था. उन्होंने कहा सरकार में सब कुछ ठीक है, सब बहुत अच्छा है.
इन पूरे घटनाक्रम से कुछ बातें समझ आती है. पहली ये कि उन जितिन प्रसाद के मंत्रालय में सीएम की तरफ से कार्रवाई हुई. जो दिल्ली की पसंद बताए जाते हैं. दूसरी ये कि इस्तीफा उन स्वतंत्रदेव के राज्यमंत्री के इस्तीफे से हलचल मची जो सीएम योगी के करीबी हैं. अब सवाल है कि जैसे सीएम योगी ने जितिन प्रसाद के PWD मंत्रालय में हुई गड़बड़ियों के खिलाफ 4 IAS अधिकारियों की जांच कमेटी बैठाई, क्या वैसे ही स्वतंत्र देव सिंह के जलशक्ति मंत्रालय के खिलाफ भी होगा.
कुल मिलाकर कहें तो यूपी में में ग्रहों की दशा तेजी से बदल रही है. जानकार ये मानते हैं कि यही आपसी खींचतान ही वजह है जो अब तक बीजेपी यूपी में अपना नया अध्यक्ष नहीं चुन पाई है. एक कोना दिल्ली को पकड़कर खड़ा है, दूसरा लखनऊ. ताकत में कम तो कोई नहीं है, मगर जानकार मानते हैं सीजफायर नहीं हुआ तो बीच के कई और विकेट गिर सकते हैं.