बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हमले क्यों नहीं थम रहे?
बांग्लादेश में घटती हिन्दू आबादी और मंदिरों पर बढ़ते हमले.
होली से ऐन पहले बांग्लादेश की राजधानी ढाका के राधाकांत मंदिर पर हमला हुआ. ये इस्कॉन का मंदिर है. ये पहली बार नहीं था जब बांग्लादेश में किसी मंदिर पर हमला हुआ हो. बीते साल बांग्लादेश नोआखाली में भी एक मंदिर पर हमला हुआ था. आज हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि क्या इन हमलों के पीछे कोई पैटर्न है? अगर हां, तो इनका प्रायोजक कौन है? और ये भी, कि न्याय कब होगा. कराची से जब होली का वीडियो आता है तो देख के हिंदुस्तान के लोगों का दिल गदगद हो जाता है, बताया जाता है कि पाकिस्तान में हिंदू अपना त्योहार मना रहे हैं. कई बार तस्वीरें ढाका से भी आती हैं. रंग खेलते हुए वहां के अल्पसंख्यक. इस बार भी होली के जश्न समेटे जा रहे थे, त्योहार की रंगत अपने खाते के रंगों के इंतजार में थी. मगर होली के ठीक एक दिन पहले बांग्लादेश की राजधानी ढाका से एक खबर आई. खबर शायद आपने देखी या सुनी भी हो. 17 मार्च को राजधानी ढाका के वारी में स्थित इस्कॉन के राधाकांत मंदिर पर 200 कट्टरपंथियों ने हमला करके तोड़फोड़ और श्रद्धालुओं से मारपीट की. इस्कॉन की ओर से जारी बयान के मुताबिक, इस घटना में तीन श्रद्धालु घायल हो गए. फेसबुक पर हंगामे के वीडियो और तस्वीरें भी आईं. लेकिन आज का क्या ? आज ये खबर क्यों ? तो आज आया है बांग्लादेश सरकार का बयान. बांग्लादेश की राजधानी ढाका के इस्कॉन मंदिर पर हुए हमले पर बांग्लादेश सरकार ने सख्ती दिखाई. बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने सोमवार को वादा किया कि इस हमले के दोषियों को कठोर सजा मिलेगी. कहा गया सजा इस तरह की सोच रखने वालों के लिए भविष्य में भी उदाहरण बनेगी. सरकार की तरफ से कहा गया कि बेशक आरोपी किसी भी धर्म के हों, उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा. सरकार की तरफ से ये भी कहा गया कि कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए इस तरह की घटना को अंजाम देकर देश को बदनाम कर रहे हैं, लेकिन ऐसा करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा. सरकार अपनी तरफ से संदेश देने की पूरी कोशिश कर रही है. मगर दो दिन पहले ही मंदिर प्रशासन की तरफ बताया गया कि उन्हें जान से मारने की धमकी तक मिली. अब सबसे पहले पूरा विवाद समझ लीजिए. मंदिर में हुई तोड़फोड़ का मुख्य आरोपी मोहम्मद शफीउल्लाह है. शफीउल्लाह दावा करता है कि ढाका में राधाकांत इस्कॉन मंदिर से सटी जमीन उसकी है. वो जमीन पर कब्जा चाहता है, बार-बार कब्जे की कोशिश भी कर चुका है. इस्कॉन मंदिर के सदस्यों ने 2016, 2017 और 2021 में सीआरपीसी की धारा 145 के तहत मोहम्मद शफीउल्लाह के खिलाफ केस दर्ज कराया था. माने कुल तीन बार मुकदमा दर्ज कराया था. मामले को खारिज करते हुए, अदालत ने शफीउल्लाह को जमीन पर कब्जा लेने की अनुमति दे दी थी. वो कहता है कि उस जमीन को लेकर उसके पास कानूनी दस्तावेज और जमीन के मूल दस्तावेज भी हैं. 17 मार्च को शफीउल्लाह जमीन पर कब्जा लेने पहुंचा, मंदिर के लोगों ने विरोध किया. शफीउल्लाह के पीछे और भीड़ आ गई. उसके बाद जो हुआ उसकी तस्वीरें सबके सामने हैं. मंदिर से जुड़े तीन लोगों को चोट भी लगी. यूएन में इस्लाबोफोबिया पर बहस हो रही है, मगर हिंदुओं के साथ जो हुआ वो नहीं दिखता. इस्कॉन के उपाध्यक्ष की तरफ से आए बयान ने सोशल मीडिया पर एक नई तरह की बहस को जन्म दे दिया. आजादी से लेकर अब तक के उदाहरण दिए जाने लगे. पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति के बारे में पूछा जाने लगा. सरकार ने भले ही सख्त कार्रवाई की बात कही है, लेकिन बुलेटिन रिकॉर्ड किए जाने तक हमें किसी की गिरफ्तारी की खबर नहीं मिली. अब बात इसके आगे की. बांग्लादेश में पिछले कुछ वर्षों के दौरान अल्पसंख्यकों-खासतौर पर हिंदुओं पर हमले तेजी से बढ़े हैं. ये सत्य है. पिछले साल की ये तस्वीरें बहुत से लोग भूले नहीं होगें. पिछले साल 13 अक्टूबर को दुर्गा पूजा के दौरान कुरान के अपमान की एक झूठी अफवाह के बाद देशभर में हिंदुओं के खिलाफ दंगा भड़क उठा था हजारों कट्टरपंथियों ने देश भर के कई मंदिरों पर हमला किया था. कई जगहों पर हिंदुओं को निशाने पर लिया गया. कट्टरपंथियों की जमात ने कई जगहों पर हिंसा की. गाड़ियों को आग लगा दी थी, दुकानों और मकानों को क्षति पहुंचाई थी. उस हिंसा में 6 लोग मारे गए थे. उस वक्त भी 15 अक्टूबर 2021 को इस्कॉन के नोआखली मंदिर पर भी हमला किया गया था, जिसमें 2 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी. पुलिस को हिंसा पर काबू करने के लिए बल प्रयोग करना पड़ा था. इस हिंसा के बाद कुल 71 मामले दर्ज हुए और 450 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. ठीक आज की तरह ही बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का तब भी यही बयान आया था कि किसी को बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वो जिस भी जाति या धर्म का हो. मगर सजा कितनों को मिले, ये सवाल अब भी बरकरार है. बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग जब 2009 में दोबारा सत्ता में आई थी, तो हिंदुओं को उनसे काफी उम्मीदें थी, लेकिन शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद से हिंदुओं के खिलाफ हमले और बढ़े हैं. बांग्लादेश मानवाधिकार संगठन ऐन ओ सलीश केंद्र (ASK) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2013 से 2021 तक बांग्लादेश में हिंदुओं को निशाना बनाते हुए 3679 हमले हुए. इन 8 वर्षों के दौरान हिंदुओं के खिलाफ हमलों में 550 से अधिक घरों और 440 दुकानों और व्यवसायों को निशाना बनाया गया और उनमें तोड़फोड़ और आगजनी की गई. इस दौरान हिंदू मंदिरों, मूर्तियों और पूजा स्थलों में तोड़फोड़ और आगजनी के 1,670 से अधिक मामले दर्ज किए गए. अपनी लाइब्रेरी में जब हम बांग्लादेश हिंदू अटैक की वर्ड सर्च करते हैं तो कई सारी तस्वीरें सामने आती हैं. कहीं मूर्ति तोड़ने की घटना तो कहीं पूजा सामाग्री को छति पहुंचाना. कई बार हिंदुओं ने वहां बड़े-बड़े प्रदर्शन भी किए लेकिन गाहे-बगाहे ऐसी घटनाएं सामने आ ही जाती हैं. तो सवाल है कि ऐसा होता क्यों? थोड़ा इतिहास की ओर चलते हैं. 19 अक्टूबर 2021 को हमारे अंतरराष्ट्रीय बुलेटिन दुनियादारी में आपको तफसील से बताया था कि बांग्लादेश में किस तरह अल्पसंख्यक निशाने पर रहे हैं. तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति संग्राम की शुरुआत से पहले पाकिस्तान की सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट चलाया था. तब पहला निशाना हिंदू ही थे. इस ऑपरेशन के शुरुआती दिनों में पूर्वी पाकिस्तान से पलायन करने वाले 80 फीसदी लोग हिंदू थे. 25 मार्च 1971 की रात ढाका यूनिवर्सिटी के जगन्नाथ हॉल में 42 लोगों की हत्या हुई थी. इनमें से 34 स्टूडेंट्स और चार प्रफ़ेसर थे. बाकी के चार वहां काम करने वाले कर्मचारी थे. इन लोगों को सिर्फ़ उनकी हिंदू पहचान के नाम पर मारा गया था. मुक्ति संग्राम में पाकिस्तान की हार हुई और शेख़ मुजीब की अवामी लीग ने सरकार बनाई. इस सरकार ने बांग्लादेश को एक ‘धर्मनिरपेक्ष’ राष्ट्र घोषित किया. लेकिन शेख मुजीब के उदार खयाल कुछ कट्टरपंथियों को रास नहीं आया. अगस्त 1975 में तख़्तापलट हुआ और शेख मुजीब के परिवार के अधिकांश लोगों की हत्या हो गई. 1977 में मेजर जनरल ज़ियाउर रहमान राष्ट्रपति बने और उन्होंने संविधान में से सेकुलर शब्द को बाहर निकाल दिया. फिर उन्होंने मुक्ति संग्राम में पाकिस्तानी सेना का साथ देने वाले संगठन ‘जमात-ए-इस्लामी’ पर से बैन हटाया. दिया. जमात देश में शरिया लागू करना चाहती थी. तीन साल बाद ही ज़ियाउर रहमान की हत्या हो गई. लेकिन उनके जाने के बाद भी कट्टरता बढ़ती रही. 1988 में बांग्लादेश की सैनिक सरकार ने इस्लाम को ‘राष्ट्रीय धर्म’ घोषित कर दिया. 1991 में दोबारा चुनी हुई सरकार आई, लेकिन सत्ता की चाबी मिली ज़ियाउर रहमान की विधवा ख़ालिदा ज़िया को. और उनके शासन के दौरान अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं के ख़िलाफ़ हिंसा बढ़ती गई. दिसंबर 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई. इसके एक दिन बाद ही बांग्लादेश में हिंदुओं के ख़िलाफ़ दंगे भड़क गए. ढाका में इंडिया ए और बांग्लादेश के बीच चल रहे मैच में हिंसक भीड़ घुस आई. बड़ी मुश्किल से खिलाड़ियों को बचाया जा सका. 2001 में BNP जब सत्ता में फिर वापसी आई, तब चुनाव के बाद हुई हिंसा में दो सौ से अधिक हिंदू महिलाओं का सामूहिक बलात्कार किया गया था. 2009 में शेख मुजीब की बेटी शेख हसीना फिर एक बार प्रधानमंत्री बनीं, तब इन मामलों की जांच हो सकी. बांग्लादेश में आज भी ज़ियाऊर रहमान की पार्टी BNP और उनके द्वारा बैन से आज़ाद की गई जमात पर अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं को निशाना बनाने का आरोप लगता है. खासतौर पर जमात के युवा संगठन शिबिर पर. अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के अलावा बांग्लादेश में कट्टरपंथ भी धीरे धीरे सिर उठाता जा रहा है. 2017 में बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट के बाहर लेडी जस्टिस की प्रतिमा हटाने को लेकर एक बड़ा आंदोलन हुआ. इसके पीछे हिफाज़ते इस्लाम जैसे संगठन थे, जो इस्लाम की एक कट्टर व्याख्या के पक्षधर हैं. शेख हसीना की समस्या ये भी है कि वो ऐसे संगठनों पर सीधे कार्रवाई करने जाती हैं, तो अपने ही देश में इस्लाम विरोधी कही जाने लगती हैं. आरोप प्रत्यारोप से इतर ये बात तो मार्के सत्य है कि बांग्लादेश में हिंदू आबादी बीते कुछ सालों में घटी है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, 16.5 करोड़ की आबादी वाले बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 8.5% है, जबकि 90% से ज्यादा मुस्लिम आबादी है. बांग्लादेश में मुस्लिम और हिंदू दोनों मुख्यत: बांग्ला हैं, यानी भाषा और सांस्कृतिक रूप से उनमें समानता है, लेकिन धर्म की वजह से उनकी दूरियों का कट्टरपंथी फायदा उठाते हैं. बांग्लादेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 1980 के दशक में बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 13.5% थी. 1947 में जब भारत, पाकिस्तान की आजादी के साथ बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान बना था, तो उस समय वहां हिंदुओं की आबादी करीब 30% थी. करीब चार दशकों में बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 13.5% से घटकर 8.5% रह गई. बांग्लादेशी सरकार के 2011 के जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, एक दशक में हिंदुओं की संख्या में कम से कम 10 लाख की कमी आई. हालांकि कुछ जानकारों का ये भी मानना है कि भारत में हिंदुत्व विचारधारा के उदय और 2014 में बीजेपी की सरकार आने के बाद बांग्लादेश में कुछ लोगों के बीच नेशनल मुस्लिम पहचान की भावना को बढ़ाया और मजबूत किया है. हो जो भी लेकिन ऐसी घटनाओं की सामूहिक रूप से निंदा जरूरी है. किसी भी व्यक्ति को अगर जाति-धर्म के आधार पर निशाना बनाया जाता है तो सरासर गलत है. इस मामले में बांग्लादेश सरकार भी सजग है. चूंकि मामला इस्कॉन मंदिर से जुड़ा हुआ है और इस्कॉन का प्रभाव पूरी दुनिया में है. इस्कॉन को हरे कृष्ण आंदोलन के तौर पर भी जाना जाता है. दुनिया के कई मुल्कों में इसके करोड़ों अनुयायी हैं. इसलिए सरकार छवि बचाने के लिए तेज कार्रवाई का आश्वासन दिया गया है. पुलिस के अधिकारी दोनों पक्षों के संपर्क में हैं और एक सौहार्दपूर्ण समाधान तक पहुंचने की कोशिश की जा रही है.