साल 2011 की बात है. अहमदाबाद की साबरमती सेंट्रल जेल. जहां 94 आरोपियों पर मुक़दमा चल रहा था. जी, सही सुना आपने. मुक़दमा जेल में चल रहा था. क्योंकि किसी को अदालत ले जाना सुरक्षित नहीं था. 2011 की फरवरी में जब कोर्ट ने फैसला सुनाया, मामले को 9 साल हो चुके थे. इस दरमियान फाइल हुई दर्जनों चार्जशीट. कांस्पिरेसी थियोरीज़ के दौर चले. मीडिया रिपोर्ट्स आईं. डाक्यूमेंट्रीज़ बनीं. पॉलिटिकल तूफ़ान उठे. जांच कमेटियों की पोथी भर रिपोर्ट्स सामने आई. पर असलियत सामने नहीं आई. असलियत साबरमती एक्सप्रेस कांड की. 27 फरवरी 2002. गुजरात के गोधरा स्टेशन पर खड़ी साबरमती एक्सप्रेस में आग लगा दी गई. राम जन्मभूमि आंदोलन का दौर था. ये ट्रेन अयोध्या से कारसेवकों को लेकर लौट रही थी. कोच नंबर S6 में लगी आग से 59 लोग ज़िंदा जल गए. देखते ही देखते गुजरात दंगों की आग में झुलसने लगा.
गोधरा कांड- साबरमती एक्सप्रेस में किसने लगाई थी आग? साजिश करने वाले बरी कैसे हो गए?
The Sabarmati Report फिल्म को लेकर काफी विवाद है. लेकिन इन सबके बीच इस घटना से जुड़े कई सवालों की चर्चा फिर से हो रही है. जैसे, क्या हुआ था 27 फरवरी 2002 को? कैसे लगी थी साबरमती एक्सप्रेस में आग?
साबरमती एक्सप्रेस केस में जांच के बाद पुलिस ने 94 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की. शुरुआती सुनवाई में कोर्ट ने माना कि ये हादसा कोई एक्सीडेंटल केस नहीं था. बल्कि एक सोची समझी साजिश थी. कोर्ट ने 11 आरोपियों को फांसी और 20 को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई. बाकी 63 आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया गया. बरी होने वालों में वो भी शामिल था, जिसे पहले मुख्य आरोपी माना जा रहा था. मामला हाईकोर्ट गया. 2017 में गुजरात हाई कोर्ट ने भी इस केस में फैसला सुनाया. बस फर्क इतना था कि जिन 11 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी, उनकी सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया. २२ साल हो गए पर अभी ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. जनवरी 2025 में इसपर सुनवाई होनी है. लेकिन इससे पहले ही एक फिल्म आ गई है. नाम है- द साबरमती रिपोर्ट. और इस फिल्म को लेकर काफी विवाद है. लेकिन इन सबके बीच इस घटना से जुड़े कई सवालों की चर्चा फिर से हो रही है. जैसे -
आखिर क्या हुआ था 27 फरवरी 2002 को? कैसे लगी थी साबरमती एक्सप्रेस में आग? अब तक के फैसले के आधार पर अपराध कैसे तय किया गया, किन पर तय किया गया?
आज परतें खोलेंगे गुजरात में हुए गोधरा कांड की.
6 दिसंबर 1992. अयोध्या में विवादित ढांचे को गिरा दिया गया. इसके बाद अगले एक दशक तक रामजन्मभूमि का मुद्दा छाया रहा. 2001 में तब के इलाहाबाद में कई हिंदू संगठनों की एक बैठक में फैसला लिया गया कि 'राम मंदिर निर्माण' के लिए एक बड़ा अभियान चलाया जाएगा. इस अभियान के तीन प्रमुख चरण तय किए गए: जल-अभिषेक, जप-यज्ञ, और अंत में पूर्णाहुति महायज्ञ. इस अभियान का लक्ष्य था पूरे देश के कोने-कोने से लोगों को जोड़कर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग को बल देना. पूर्णाहुति यज्ञ की शुरुआत हुई 24 फरवरी 2002 से. विश्व हिन्दू परिषद् ने सभी कारसेवकों से पूर्णाहुति यज्ञ में शामिल होने का आग्रह किया.
गुजरात से जो कारसेवक जप यज्ञ में गए थे. उन्हें दो-दो हज़ार के तीन जत्थे में अयोध्या भेजने का प्लान बना. पहला बैच, जिसमें लगभग 2,000 कारसेवक थे, वो 22 फरवरी को गुजरात से अयोध्या के लिए रवाना हुआ. 25 फरवरी को ये बैच अयोध्या से गुजरात के लिए लौटा. आना-जाना, दोनों साबरमती एक्सप्रेस से हुआ था. रेलवे टाइम टेबल के मुताबिक, ट्रेन को 26 तारीख की रात 3 बजे तक गोधरा पहुंच जाना था. लेकिन ट्रेन करीब 5 घंटे लेट चल रही थी. 27 फरवरी की सुबह 7:43 पर ट्रेन गोधरा स्टेशन पहुंची. ट्रेन में कुल 18 डिब्बे थे, जिसमें से 10 स्लीपर क्लास, 6 जनरल, और 2 लगेज डिब्बे थे.
ट्रेन में कौन कौन था? ट्रेन की सीटिंग कैपेसिटी 1320 से ज्यादा नहीं थी. लेकिन सिर्फ कारसेवकों की संख्या ही 2000 के लगभग थी. इसके अलावा बाकी पैसेंजर भी थे. अधिकतर कारसेवकों के पास स्लीपर कोच की टिकट नहीं थी. इसके बावजूद जैसा आमतौर पर ट्रेनों में होता है, वे लोग आरक्षित डब्बों में घुस गए.
इस घटना की जांच के लिए बनी नानावती आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, कारसेवक अनरिजर्व्ड सीटों पर बैठे थे. और कई ने सीटों के बीच के रास्ते और टॉयलेट के पास जगह ले ली थी. डब्बे इतने खचाखच भरे थे कि टीटी टिकट भी नहीं चेक कर पाए. S/6 कोच, जो इस पूरी घटना का केंद्र बना, ट्रेन के बीचोबीच था. उसमें भी कमोबेश यही हाल था. पैसेंजर्स से बातचीत के बाद आयोग ने ये अनुमान लगाया कि S/6 कोच में करीब 200 लोग थे. खैर, गोधरा स्टेशन पर सुबह 8 बजे के करीब इस कोच में आग लग गई. आग किसने लगाई, इसे लेकर ही पूरा विवाद है. लेकिन फिलहाल जानते हैं, आग लगने के बाद क्या हुआ. जब तक फायर ब्रिगेड और बाकी मदद पहुंचती, S/6 कोच भकभका के जल उठा. जब तक आग बुझाई जाती, 59 लोगों की जान चली गई. यहां से असंख्य कहानियों, थ्योरीज़, और दंगों का सिलसिला शुरू हुआ. जिसने पूरे गुजरात और फिर पूरे देश में भूचाल ला दिया.
लेकिन ये सवाल बना रहा कि ये आग लगी कैसे? घटना के तुरंत बाद कई तरह की बातें हुईं-
- विश्व हिंदू परिषद और अन्य हिंदू संगठनों ने इसे हिंदुओं के खिलाफ एक प्री-प्लांड साजिश करार दिया.
- गुजरात सरकार ने भी इसे साजिश बताया और कहा कि कश्मीर के आतंकवादियों और गोधरा के कट्टरपंथियों ने इसे मिलकर अंजाम दिया है.
- इससे विपरीत एक पक्ष का मानना था कि ये एक हादसा है.
तो फिर सच क्या था? ये साज़िश थी, आतंकवादी गतिविधि या फिर एक हादसा? इसके लिए आपको कुछ चीज़ें समझनी होंगी. मसलन-
- नानावती कमीशन की रिपोर्ट
- फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी की रिपोर्ट
- उमेश चंद्र बनर्जी रिपोर्ट
- अदालतों के फैसले
नानावती कमीशन रिपोर्ट
साबरमती एक्सप्रेस कांड और उसके बाद हुए दंगों की जांच के लिए गुजरात सरकार ने एक सिंगल मेंबर जांच कमेटी बनाई. इस कमेटी के लिए गुजरात हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस के. जी. शाह को नियुक्त किया गया, लेकिन उनकी नियुक्ति पर विवाद हुआ. आरोप लगाए गए कि जस्टिस शाह भारतीय जनता पार्टी के करीबी हैं. सार्वजनिक दबाव के बाद सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस जी. टी. नानावती को इस कमेटी का चेयरमैन नियुक्त किया गया.
हालांकि के. जी. शाह कमेटी के मेंबर बने रहे. साल 2008 में कमेटी ने रिपोर्ट सबमिट की. रिपोर्ट पूरी होने से कुछ महीने पहले ही जस्टिस KG शाह का निधन हो गया. जिसके बाद इस कमेटी में उनकी जगह गुजरात हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस अक्षय मेहता को नियुक्त किया गया था.
क्या था रिपोर्ट में?
रिपोर्ट के मुताबिक, 27 फरवरी की सुबह 7:43 पर साबरमती एक्सप्रेस गोधरा स्टेशन पर पहुंची. गोधरा स्टेशन पर 5 मिनट का हॉल्ट था. स्टेशन के बगल में घांची मुसलमानों की बस्ती थी, जिनमें से कई लोग स्टेशन पर चाय और अन्य सामान बेचने का काम करते थे. इनमें से ज्यादातर के पास लाइसेंस नहीं था, जो उन दिनों रेलवे स्टेशन पर एक आम बात हुआ करती थी.
बहरहाल, नानावती कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार उस रोज़ गोधरा स्टेशन पर जब ट्रेन रुकी. कुछ कारसेवक उतरे तो उनकी कुछ मुस्लिम वेंडर्स के साथ नोक झोंक हो गई. सिद्दीक़ बकर नाम के एक चाय वाले के साथ हाथापाई के आरोप लगे.
एक आरोप ये भी है कि सोफिया बानो नाम की एक मुस्लिम लड़की से छेड़छाड़ हुई और उसे ट्रेन में बैठाने की कोशिश की गई. लेकिन सोफिया ने शोर मचाया, जिसके बाद उसे छोड़ दिया. हालांकि, कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में जब सोफिया का बयान लिया तो वो इस निष्कर्ष पर पहुंची कि ये बात सच नहीं थी. क्योंकि अगर ऐसा होता तो उस वक़्त कई रेलवे गॉर्ड और कई अन्य वेंडर्स भी स्टेशन पर मौजूद थे. किसी ने ये होते हुए देखा होता. इसके पहले भी इस ट्रेन जर्नी के दौरान उज्जैन और एक दो और स्टेशन पर भी कारसेवकों और मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच नोक झोंक की ख़बरें आई थीं. जो जन-मोर्चा अखबार में छपी भी थीं.
इन सभी घटनाओं के बाद 7 बज कर 50 मिनट के करीब ट्रेन स्टेशन से चली. 60-70 मीटर चलते ही ट्रेन के 4 डिब्बों में चेन खींची गई और ट्रेन रुक गई. ऐसा क्यों हुआ? यहां पर दो तरह कि थियोरी कमीशन के सामने आईं. कुछ का कहना था कि चंद कारसेवक प्लेटफॉर्म पर छूट गए थे. जिसकी वजह से चेन खींची गई. जबकि दूसरे पक्ष का मानना था कि ट्रेन को जलाने के मकसद से उसे रोका गया था. यहां एक सवाल ये भी था कि ट्रेन को स्टेशन पर ही क्यों नहीं रोका गया? स्टेशन से थोड़ा आगे जाकर ट्रेन क्यों रोकी गई?
दरअसल, हर स्टेशन के बाहरी छोर पर कुछ केबिन्स बने होते थे. पीले रंग से पुते छोटे छोटे कमरों को शायद आपने आज भी देखा होगा. इनका काम ट्रेन की मूवमेंट और ट्रैक्स को मैनेज करना होता था. लेकिन ये इलाका एकदम खुला होता था. जबकि, स्टेशन में ट्रैक्स के दोनों तरफ दीवारें होती हैं. इसलिए भीड़ घुसकर अटैक नहीं कर सकती.
कई हिन्दू संगठनों और गुजरात सरकार का मानना था कि चेन देर से इसलिए खींची गई ताकि उसे ‘A’ cabin के पास रोका जा सके. नानावती रिपोर्ट आगे कहती है कि जब ट्रेन रुकी, तो भीड़ ने ट्रेन पर पत्थरबाजी करना शुरू किया. इससे बचने के लिए ट्रेन में बैठे यात्रियों ने खिड़किया बंद कर लीं. कई लोग बचने के लिए ऊपर वाली बर्थ्स पर चढ़ गए. लेकिन इसी दौरान अचानक S6 में आग लग गई या लगा दी गई. आग कैसे लगी, इसके 2 वर्जन हैं.
- ट्रेन में मौजूद पैसेंजर्स के अनुसार, कुछ इन्फ्लेमेबल लिक्विड और जलती पोटलियों को ट्रेन के अंदर फेंका गया.
- जबकि गुजरात सरकार की तरफ से जांच कर रही टीम ने कमीशन को बताया कि अपराधियों ने S6 और S7 के बीच जो कनेक्टिंग डक्ट होती है उसे तोड़ा और अंदर घुसकर करीब 60 लीटर पेट्रोल ट्रेन में उड़ेला और आग लगा दी.
आग कैसे लगी, ये इस घटना का सबसे बड़ा सवाल था. ये बात कुछ हद तक साफ़ हुई फॉरेंसिक साइंस लबोरेटरी FSL की रिपोर्ट से.
कैसे लगी आग?इस सवाल का जवाब बेहद जरूरी था कि आग लगी कैसे? क्या अंदर कोई शॉर्ट सर्किट हुआ, किसी पैसेंजर की गलती से आग लगी, या बाहर से किसी ने आग लगाई? इसकी जांच करने की जिम्मेदारी मिली अहमदाबाद की FSL लैब को. इस रिपोर्ट ने सभी सवालों को अड्रेस किया. रिपोर्ट के मुताबिक, आग शॉर्ट सर्किट से नहीं बल्कि एक इन्फ्लेमेबल लिक्विड से लगी थी. FSL लैब ने हालांकि ट्रेन पर बाहर से ही बाल्टियों और डिब्बों से पेट्रोल फेंकने वाली बात को खारिज कर दिया. क्राइम सीन को समझने के लिए बाकायदा एक सिम्युलेशन किया गया. मतलब, पूरी निगरानी में फिर से उसी घटनाक्रम का रूपांतरण किया गया.
उसी स्थान पर एक ट्रेन की बोगी को रखा गया. अलग-अलग तरह के कंटेनरों का इस्तेमाल करके बोगी पर पानी डाला गया ताकि आग फैलने के तरीके का परीक्षण किया जा सके. रिपोर्ट के अनुसार, बोगी की खिड़की की ऊंचाई जमीन से सात फीट थी. ऐसी स्थिति में, बाहर से बाल्टी या जरी-कैन की मदद से पेट्रोल या कोई इन्फ्लेमेबल लिक्विड फेंकना संभव नहीं था, क्योंकि क्राइम सीन को रीक्रिएट करते समय ज्यादातर लिक्विड बोगी में जाने के बजाय बाहर ही गिर रहा था. माने आग लगाने पर बोगी के बाहर और नीचे का हिस्सा ज्यादा जलना चाहिए. लेकिन अगर S6 की तस्वीर देखेंगे तो समझ आता है कि बाहर की तरफ ऐसे निशान नहीं थे.
इसी सिम्युलेशन में एक और चीज टेस्ट की गयी. जिससे पता चला कि बोगी के अंदर सीट नंबर 72 के पास खड़े होकर इन्फ्लेमेबल लिक्विड डाला गया था. स्लीपर कोच में 72 नंबर सीट उस बोगी की आखिरी सीट होती है. FSL रिपोर्ट के अनुसार, जलने का पैटर्न भी यही बताता था कि सीट नंबर 72 के पास टेंपरेचर सबसे ज्यादा था. करीब 4 गुना ज्यादा. FSL की रिपोर्ट ने ये साफ कर दिया कि ट्रेन में आग बाहर से नहीं बल्कि अंदर से लगाई गई थी. सीट नंबर 72 के पास से करीब 60 लीटर ज्वलनशील तरल डालकर आग को फैलाया गया. इस रिपोर्ट को नानावती कमीशन और SIT ने भी कंसीडर किया. ये चार्जशीट का भी हिस्सा बनी. ये पता चल गया कि आग कैसे लगी. लेकिन अगला सवाल ये कि आग लगाई किसने?
साज़िश के किरदारनानावती कमीशन की रिपोर्ट में कुछ थ्योरीज़ का जिक्र है. इसके अनुसार, इस घटना के जिम्मेदार नामों में शामिल थे, नानु मिया, मौलवी उमर, रज़ाक कुर्कुर और सलीम पनवाला. एक बार इन सभी के बारे में भी जान लेते हैं. नानावती कमीशन और फिर SIT की तरफ से फाइल चार्जशीट में मौलाना उमर और नानुमिया इस घटना के मास्टरमाइंड थे.
- मौलाना उमर गोधरा क्षेत्र में देवबंदी-तबलीग़ जमात आंदोलन का एक प्रमुख नेता था. कुछ देर पहले हमने बताया था कि गोधरा स्टेशन के पास घांची मुस्लिम समुदाय के लोग रहते थे. इस समुदाय में तबलीग़ जमात के काफी फ़ॉलोअर्स माने जाते हैं. मौलाना उमर पर इस साजिश में शामिल होने और इसकी जांच में रुकावट डालने के आरोप लगे.
- नानुमिया उत्तर प्रदेश का रहने वाला था, वो CRPF में कॉन्सटेबल था और उसे अप्रैल 2000 में नौकरी से निकाल दिया गया था.
- इसके अलावा रज़ाक कुर्कुर और सलीम पानवाला गोधरा रेलवे स्टेशन पर अपनी दुकान चलाते थे.
अजय कनुभाई, जो गोधरा स्टेशन पर एक चाय की टपरी पर काम करते थे और इस केस में विटनेस भी थे. उन्होंने कमीशन को बताया कि सलीम पानवाला और रज़ाक कुर्कुर स्टेशन पर मौजूद सभी वेंडर्स पर अपनी धाक जमाते थे. उनकी मर्जी के बगैर स्टेशन पर कोई व्यक्ति समान नहीं बेच सकता था. यहां तक कि रेलवे के अधिकारी और सुरक्षा बल भी उनको कंट्रोल नहीं कर पाते थे.
किसने लगाई आग?कमीशन को डिप्टी एसपी नोएल परमार ने बताया कि पूछताछ के दौरान रज़ाक कुर्कुर ने बयान दिया कि नानुमिया अपने गोधरा दौरों के दौरान अक्सर अमन गेस्ट हाउस जाता था. रज़ाक कुर्कुर अमन गेस्ट हाउस का मालिक था और ये गेस्ट हाउस स्टेशन के बेहद करीब था. जब उसने आखिरी बार अमन गेस्ट हाउस का दौरा किया, तो उसने रज़ाक कुर्कुर और दूसरे लोगों को बताया कि कैसे कश्मीर में मुस्लिम ऑर्गनाइजेशंस प्रशासन से लड़ रही थीं.
डिप्टी एसपी का कहना है कि ऐसी बातों से नानुमिया ने रज़ाक कुर्कुर और अन्य लोगों को उकसाने की कोशिश की.इसके बाद हाजी बिलाल, रज़ाक कुर्कुर और सलीम पनवाला घटना से एक दिन पहले अमन गेस्ट हाउस में मिले. वहां मिलकर एक साजिश रची. पेट्रोल पंप पर उस वक़्त मौजूद कर्मचारियों ने कमीशन को बताया कि 26 तारीख की रात करीब 10 बजे, कुर्कुर और पनवाला कालाभाई पेट्रोल पंप गए. उनके बाकी साथी, जैसे सलीम जर्दा, शौकत, इमरान शेरी, और जबीर बेहरा, थ्री-व्हीलर टेम्पो में पेट्रोल पंप पहुंचे. इन लोगों ने 140 लीटर पेट्रोल कनस्तरों में भरवाया.
पुलिस से पूछताछ के दौरान इन अपराधियों ने बताया कि इन कनस्तरों को अमन गेस्ट हाउस के पीछे, कुर्कुर के घर में रखा गया था. जब साबरमती एक्सप्रेस स्टेशन पहुंची और प्लेटफॉर्म पर सद्दीक बकार का झगड़ा हुआ, तब सलीम पानवाला और उसके साथियों ने भीड़ को भड़काना शुरू किया. उन्होंने अफवाह फैलाई कि कारसेवकों ने मुस्लिम लड़की को किडनैप कर लिया है और उसे ट्रेन में बैठाकर ले जा रहे हैं. लड़की वाली बात सुनकर आसपास के लोगों ने ट्रेन पर पथराव शुरू कर दिया.
शौकत, रफीक, इमरान शेरी, और उनके बाकी साथी कुर्कुर के घर पर रखे पेट्रोल से भरे कनस्तर टेम्पो में लेकर केबिन A के पास पहुंचे. लतीको नाम के शख्स ने एक बड़े चाकू से पेट्रोल के कनस्तरों के ऊपरी हिस्से में छेद किए और कोच S-6 और S-7 के बीच के वेस्टिब्यूल यानी दोनों डिब्बों को जोड़ने वाले क्लैंप को काटा. उसके बाद इन सब ने मिलकर अंदर करीब 60 लीटर पेट्रोल डाला. और आग लगा दी. कुर्कुर और पानवाला ने अपनी निगरानी में इस कांड को अंजाम दिया. और कमीशन के मुताबिक, इस पूरे कांड का मास्टरमाइंड था- मौलाना उमर.
गौर करने वाली बात ये भी है कि 2004 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी. आनन-फानन में तब की UPA सरकार ने गोधरा कांड और उसके बाद हुए गुजरात दंगों की जांच के लिए एक नई कमेटी बनाई. इस कमेटी का जिम्मा सौंपा गया सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस उमेश चंद्र बनर्जी को. इन्होंने 4 महीने में ही रिपोर्ट बना भी दी. माने एक तरफ नानावती कमेटी की रिपोर्ट को बनने में 6 साल लगे दूसरी तरफ इस कमेटी ने 4 महीने में रिपोर्ट सौंप दी.
इस रिपोर्ट ने गोधरा कांड को साजिश नहीं बल्कि एक एक्सीडेंटल एक्ट बताया गया. इस रिपोर्ट के खिलाफ गुजरात हाई कोर्ट में याचिका दाखिल हुई और हाई कोर्ट ने इस रिपोर्ट की बातों को रिजेक्ट कर दिया और इस कमेटी की जांच को ही गैर संवैधानिक घोषित कर दिया गया. सवाल नानावती कमीशन की रिपोर्ट पर भी उठे, लेकिन कोर्ट ने इस रिपोर्ट को जजमेंट के दौरान कंसीडर किया. माने इसमें कुछ खामिया थीं, आरोप भी थे, लेकिन नानावती कमीशन की रिपोर्ट कोर्ट को कुछ हद तक तर्कसंगत लगी. कैसे?
स्पेशल कोर्टगोधरा ट्रेन कांड मामले में विशेष अदालत के जज पी.आर. पटेल ने अपने फैसले में माना कि 26 फरवरी 2002 की रात गोधरा के अमन गेस्ट हाउस में एक "साज़िश" रची गई थी. इस बैठक में रज़ाक कुर्कुर के साथ सलीम पानवाला और उसके साथी शामिल थे. जज ने कहा कि 27 फरवरी 2002 को 'A' केबिन के पास चेन खींचकर ट्रेन रोकी गई. इसके बाद पांच आरोपियों अयूब पटेलिया, इरफान कलंदर, महबूब पोपा, शौकत पटेलिया और सिद्दीक वोहरा ने S-6 और S-7 कोच के बीच के वेस्टिब्यूल को तोड़ा, S-6 कोच में घुसे और पेट्रोल डालकर कोच में आग लगा दी.
इस आगजनी में 59 लोगों की मौत हो गई. जिसमें 27 औरतें और 10 बच्चे थे. सरकार की तरफ से पक्ष रखने वाले पब्लिक प्रॉसिक्यूटर जे.एम. पंचाल के अनुसार, अदालत ने इस थ्योरी को कई पहलुओं पर खरा पाया. मसलन, FSL की साइंटिफिक रिपोर्ट. वहां मौजूद लोगों ने जो बयान दिए और उस समय घटनाओं की एक-दूसरे से जो कड़ियां जुड़ीं. 11 लोग जिसमें रज़ाक कुर्कुर भी शामिल था, उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई. 20 लोगों को आजीवन कारावास हुआ. लेकिन कोर्ट ने पुलिस और कमीशन की ओर से आरोपित मौलाना उमर को बाइज्जत बरी कर दिया. ट्रायल कोर्ट के फैसले के बाद ये मामला हाई कोर्ट पहुंचा. साल 2017 में गुजरात हाई कोर्ट ने इस मामले पर अपना जजमेंट दिया. हाई कोर्ट ने 11 लोगों की फांसी को आजीवन कारावास में बदल दिया. इसके पीछे High court ने दो तर्क दिए.
- पहला, हाई कोर्ट का कहना था कि आग एक ही तरफ से लगाई गई. माने दूसरे तरफ से भागने का रास्ता छोड़ दिया गया था. यानी आरोपियों का मकसद इतनी बड़ी संख्या में मौतों का नहीं था.
- हाई कोर्ट ने दूसरा रीज़न ये दिया कि कोच में भीड़ ज्यादा थी. इस वजह से ज़्यादा मौतों की जिम्मेदार वो भीड़ भी थी जो ट्रेन के भीतर थी.
इस जजमेंट के बाद 10 अक्टूबर 2017 को इंडियन एक्सप्रेस में एक रिपोर्ट छपी. जिसमें S6 में उस वक्त मौजूद लोग जो बच गए लेकिन करीबियों को खो बैठे थे, उन्होंने इस जजमेंट को गलत माना. उनका कहना था कि ये फैसला समाज को एक गलत संदेश देगा. आगे इस केस का क्या हुआ? अभी ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है. जनवरी 2025 में इस पर सुनवाई होनी है.
गोधरा कांड भारतीय इतिहास के सबसे बड़े हादसों में से एक है. इस घटना के बाद हुए दंगों ने देश की राजनीति का रुख मोड़ दिया.
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