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इस आदमी की हत्या के चलते पूरे मिडिल ईस्ट में आग लग जाएगी!

Ismail Haniyeh Assassination: इस्लामिक जगत के देशों ने Ismail Haniyeh की हत्या की निंदा की है. इधर, इजरायल की नेतन्याहू सरकार के मंत्रियों ने खुशी जाहिर की है. ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि इस हत्या के बाद पूरे मध्य-पूर्व में हालात और बिगड़ सकते हैं.

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Ismail Haniyeh की हत्या ईरान की राजधानी तेहरान में हुई. (फाइल फोटो: AFP)

उसके माता पिता को उनके घर से निकाल दिया गया था. एक रिफ्यूजी कैंप में उसका जन्म हुआ. रिफ्यूजियों के लिए बनाए गए स्कूल में ही उसने पढ़ाई की. जब वो यूनिवर्सिटी पहुंचा तो स्टूडेंट पॉलिटिक्स में शामिल हो गया. फिर एक नए-नवेले समूह का हिस्सा बना. उसे जेल में डाला गया. उसके ‘देश’ से उसे निकाल दिया गया. वो वापस आया. उस ‘देश’ का प्रधानमंत्री बना. फिर अपने संगठन का सबसे बड़ा राजनीतिक और कूटनीतिक चेहरा. 62 साल की उम्र में इस शख्स की हत्या कर दी गई. हम बात कर रहे हैं फिलिस्तीन के उग्रवादी समूह हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माइल हानिया (Ismail Haniyeh Killed) की.

31 जुलाई को सुबह खबर आई कि इस्माइल हानिया की ईरान की राजधानी तेहरान में हत्या कर दी गई. हमास ने इसकी जिम्मेदारी इजरायल पर डाली. कहा कि एक छल भरे जायनवादी हमले में हानिया की जान ले ली गई और इसका जवाब जरूर दिया जाएगा. इधर, ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स ने भी हानिया की मौत की पुष्टि की. कहा कि हानिया ईरान के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने आए थे. वहीं इजरायल की तरफ से कोई बयान नहीं आया.

इस्लामिक जगत के देशों ने हानिया की हत्या की निंदा की है. कुछ ने तो सीधे-सीधे इजरायल को जिम्मेदार ठहराया है. इधर, इजरायल की सरकार की तरफ से भले ही इस हत्या को लेकर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है, लेकिन नेतन्याहू सरकार के कई मंत्रियों ने इस हत्या पर खुशी जाहिर की है. ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि इस हत्या के बाद पूरे मध्य-पूर्व में हालात और बिगड़ सकते हैं. यह क्षेत्र एक लंबे सैन्य संघर्ष में फंस सकता है. ऐसे में यह जानना जरूरी हो गया है कि आखिर इस्माइल हानिया थे कौन?

स्टूडेंट पॉलिटिक्स में एक्टिव

हानिया का जन्म 1962 में गाजा सिटी के एक रिफ्यूजी कैंप में हुआ था. हानिया के माता-पिता को उनके घर से 1948 में निकाल दिया गया था. हानिया की शुरुआती पढ़ाई UN द्वारा चलाए जा रहे एक स्कूल में हुई थी. फिर गाजा की इस्लामिक यूनिवर्सिटी में हानिया ने अरबी साहित्य की पढ़ाई की. यहीं पर वो एक स्टूडेंट एक्टिविस्ट के तौर पर उभरे. लोकल पॉलिटिक्स में एक्टिव हुए और विरोध-प्रदर्शनों का हिस्सा बने.

फिर जब हमास का गठन हुआ तो 1987 में हानिया इसके सदस्य बने. हमास की गतिविधियों में शामिल होने के चलते इजरायल ने कई बार हानिया को गिरफ्तार किया. 1992 में जब उन्हें रिहा किया गया, तब इजरायल ने उन्हें देश निकाला दे दिया और लेबनान भेज दिया. एक साल बाद हानिया गाजा लौट आए. हमास के फाउंडर शेख अहमद यासीन के साथ उनकी नजदीकी बढ़ी और यहीं से हमास के भीतर हानिया का उदय शुरू हुआ.

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तेहरान में Ismai Haniyeh की हत्या की निंदा करते लोग. (फोटो: AP)

शेख अहमद यासीन के साथ हानिया की एक तस्वीर अकसर सामने आती रहती है. इस फोटो में हानिया शेख अहमद यासीन की फोन पर बात करने में मदद कर रहे हैं. इस फोटो के हवाले से कहा जाता है कि हानिया शेख अहमद यासीन की उत्तराधिकारी की भूमिका में आ गए थे. और जब साल 2004 में इजरायल ने शेख अहमद यासीन की हत्या की, तब एक तरह से हमास की इस्माइल हानिया के हाथों में ही आ गई.

फिलिस्तीन में चुनाव और हमास की जीत

इसी दौरान हानिया ये वकालत करने लगे थे कि हमास को राजनीतिक प्रक्रिया का हिस्सा बनना चाहिए. मतलब, हथियारबंद संघर्ष से इतर चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेना चाहिए. हमास इस रास्ते पर चला और जब 2006 में फिलिस्तीन में चुनाव हुए तो हानिया के नेतृत्व में हमास को अप्रत्याशित जीत हासिल हुई. हानिया फिलिस्तीन के प्रधानमंत्री बने. लेकिन फिलिस्तीन को आर्थिक मदद पहुंचाने वाले लोगों ने हमास के नेतृत्व वाली सरकार को स्वीकार करने से मना कर दिया. इजरायल ने भी इस सरकार को मान्यता नहीं दी. वहीं फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास की पार्टी फतह भी हमास की जीत से नाखुश थी.

ऐसे में फतह और हमास के बीच तनाव बढ़ता गया. इस बीच महमूद अब्बास ने 2007 में हमास के नेतृत्व वाली सरकार को भंग कर दिया. हालांकि, हानिया ने अब्बास का ये आदेश नहीं माना और गाजा पट्टी से अपना शासन जारी रखा. इधर, वेस्ट बैंक के मामले महमूद अब्बास देखते रहे.

फिर आया साल 2017 और हमास के नेता के तौर पर इस्माइल हानिया ने इस्तीफा दे दिया. हालांकि, हानिया को हमास के पॉलिटिकल ब्यूरो का हेड बनाया गया. एक तरह से हमास का पॉलिटिकल चीफ. साल 2018 तक हानिया कतर आ गए और यहीं से हमास के राजनीतिक कामकाज देखने लगे.

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Iran के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान के शपथ ग्रहण समारोह में इस्माइल हानिया. (फोटो: AP)

इस्माइल हानिया काफी तीखी बयानबाजी करते रहे थे. हालांकि, इसके बाद भी उनकी छवि एक व्यवहारिक और बात सुनने वाले नेता के तौर पर थी. खासकर, अरब राजनयिकों और अधिकारियों के बीच. अपनी इसी छवि के चलते हानिया इजरायल-हमास युद्ध के संदर्भ में मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे थे. अरब देशों से लगातार बात कर रहे थे. कतर में रहते हुए वो कभी ईरान जाते तो कभी लेबनान. हानिया इजरायल और हमास के बीच सीजफायर यानी युद्ध रोकने के संबंध में मध्यस्थता कर रहे थे.

हालांकि, हमास की लड़ाकू क्षमता विकसित करने में हानिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. खासकर, ईरान से सैन्य सहायता लेने में. साल 2022 में हानिया ने बताया था कि हमास को ईरान से 70 मिलियन डॉलर यानी करीब 5 अरब 86 करोड़ रुपये की सैन्य सहायता मिली. साल 2017 में जब हानिया ने गाजा छोड़ा, तब उनकी जगह याहया सिनवार ने ली.

याहया सिनवार ने करीब दो दशक इजरायल की जेलों में गुजारे हैं. याहया सिनवार की छवि एक कट्टरपंथी शख्स की है. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि हमास से जुड़े मामलों में आखिरी फैसला सिनवार का ही होता है. कई मौकों पर सिनवार ने सीजफायर को लेकर चल रही बातचीत को खराब किया है.

अमेरिका ने घोषित किया आतंकवादी

जैसा कि हमने बताया कि 2017 के बाद से इस्माइल हानिया को हमास का राजनीतिक और कूटनीतिक चेहरा माना जाने लगा. वो बातचीत और चर्चाओं में हिस्सा लेने लगे. लेकिन इजरायल की नजर में उनकी छवि कभी भी नहीं बदली. इजरायल पूरे के पूरे हमास नेतृत्व को आतंकवादी मानता है. इजरायल ये भी आरोप लगा चुका है कि हानिया के नेतृत्व के दौरान फिलिस्तीन को मानवीय सहायता के तौर पर जो फंड मिला, उसका इस्तेमाल हमास की आतंकवादी गतिविधियों के लिए हुआ.

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इधर, साल 2018 में अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने इस्माइल हानिया को आतंकवादी घोषित कर दिया था. अमेरिकी विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया था कि हानिया हमास की हिंसक गतिविधियों का हिस्सा हैं और इन गतिविधियों से आम लोगों की भी जान जा रही है.

इस साल अप्रैल में खबर आई थी कि हानिया के तीन बेटे हाजिम, आमिर और मोहम्मद इजरायल की एयरस्ट्राइक में मारे गए थे. इस हमले में हानिया की तीन पोतियों और एक पोते की भी मौत हो गई. इन मौतों के बाद हानिया ने कहा था उनके बेटे हमास की हिंसक गतिविधियों में नहीं शामिल थे. ये भी कहा था कि इस हमले के बाद भी सीजफायर की मांग जारी रहेगी और ये भी कि उजाड़ दिए गए फिलिस्तीनियों को उनके घरों में बसाया जाए.

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