"इसमें कोई शुबहा नहीं है कि फ़ैज हमीद साहब और उनकी जो टीम है, वो पूरी तरह से मुनव्विस है. जो हमारे लोग तोड़े गए, हमारे जो कैंडिडेट्स हैं उनसे शेर का निशान छुड़वाने में और उनको जीप का निशान दिलवाने में उनका (हमीद का) किरदार है. उन लोगों को पार्टी छोड़ने पर मजबूर करने में उनका किरदार है. बहुत सारे लोग हमारी पार्टी छोड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन उनसे जबरन ऐसा करवाया गया."नवाज़ शरीफ ने मीडिया के कैमरों पर ये बात कही. तारीख-
4 जुलाई, 2018 लंदन
नवाज के साथ उनकी बेटी मरियम भी थीं. नवाज का इल्ज़ाम था कि फ़ैज़ हमीद उनके नेताओं, उनके उम्मीदवारों को जबरन पार्टी से छुड़वा रही है. और ये सब बस इसलिए कि उन्हें हराकर इमरान खान को जिताया जा सके.
नवाज के बयान के एक रोज बाद का दिन. पाकिस्तान की एक अदालत ने एवनफील्ड रेफरेंस केस में नवाज को 10 साल कैद सुनाई.
10 जुलाई, 2018 रावलपिंडी
पाकिस्तानी सेना की मीडिया विंग (ISPR)के डायरेक्टर-जनरल आसिफ़ गफ़ूर की प्रेस कॉन्फ्रेंस. पाकिस्तान में चुनाव होने वाले थे. चुनाव कितने निष्पक्ष होंगे, क्या तैयारियां हैं, सेना किस तरह बिल्कुल दखलअंदाजी नहीं कर रही, ये सब बोल रहे थे गफ़ूर. इसी में उन्होंने नाम लिया-फै़ज़ हमीद. कहा-
उन्होंने नाम लेना शुरू किया है जनरल फ़ैज़ का. उनको पता ही नहीं है कि जनरल फ़ैज़ के काम क्या हैं? दहशतगर्दी के खिलाफ हमारी जो जंग है, उसे अच्छे तरीके से करने में ISI के इस डिपार्टमेंट का क्या रोल है, आप सोच भी नहीं सकते. ये जितनी बातें आप स्पेकुलेट करते हैं, अगर वो सही भी हों तो भी वो पांच पर्सेंट भी नहीं हैं जो जनरल फ़ैज़ का डिपार्टमेंट कर रहा है. मैं एक दिन बस मैं आपको ये बताऊं कि उनके डिपार्टमेंट का जो रोल है और जो काम वो करते हैं टेररिज़म रोकने के लिए और इंटरनल सिक्यॉरिटी के लिए, स्टेट के कुछ सीक्रेट होते हैं जो नहीं बता सकते, मगर ये जो मैं प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताता हूं कि हमने इतने टेररिस्ट हमले रोके, तो वो ऐसे ही नहीं एवर्ट हो सकते. उसमें भी जनरल फ़ैज़ का काम है.जिस वक़्त गफूर ने ये कहा, उस वक़्त जनरल हमीद ISI की काउंटर-इंटेलिजेंस विंग को लीड कर रहे थे.
16 जून, 2019
पाकिस्तानी सेना की तरफ से एक छोटी सी प्रेस रिलीज जारी हुई. इसमें कुल पांच नाम थे. पांचों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का ज़िक्र था. पांचवें नंबर पर था फ़ैज़ हमीद का नाम. लिखा था- लेफ्टिनेंट जनरल फ़ैज़ हमीद अपॉइंटेड एज़ डायरेक्टर जनरल ISI.
ताकि मिलिट्री का कंट्रोल ढीला न पड़े आसिफ़ गफ़ूर ने जिन फैज़ हमीद की खुलेआम तारीफ़ की थी, वो अब पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के नए मुखिया बनाए गए हैं. वो पाक आर्मी चीफ जनरल क़मर बाजवा के करीबी माने जाते हैं. फ़ैज़ हमीज पाक सेना की बलोच रेजिमेंट से ताल्लुक रखते हैं. ऑन-पेपर तो ISI चीफ चुनने का काम प्रधानमंत्री का है. मगर असल में ये करती है वहां की आर्मी. माना जा रहा है कि फ़ैज़ जैसे हार्डलाइनर को ये जिम्मा देने का मतलब है कि मिलिटरी का जो साम्राज्य है पाकिस्तान में, वो कहीं से ढीला पड़ने नहीं जा रहा है. उसका कंट्रोल और बढ़ेगा. ये तब है, जब पाकिस्तान की जेब में पैसा नहीं. और आर्मी पर लोकतंत्र को पनपने देने के लिए वेस्ट का दबाव है. और साथ ही उसपर अपनी ज़मीन में जमे आतंकियों से भी निपटने का प्रेशर है. एक आशंका ये भी जताई जा रही है कि फ़ैज़ को ISI चीफ बनाकर पाकिस्तान भारत के लिए और आक्रामक होने जा रहा है. इसमें काउंटर-इंटेलिजेंस चीफ का उनका पुराना अनुभव भी काम आएगा.

यही है वो प्रेस नोट, जिसमें फ़ैज़ हमीद की अपॉइंटमेंट की जानकारी दी गई.
फ़ैज़ का ISI चीफ बनना दो महीने पहले ही तय हो गया था! 12 अप्रैल, 2019. फ़ैज़ हमीद का प्रमोशन हुआ. उन्हें लेफ्टिनेंट जनरल की रैंक दी गई. फिर अप्रैल में ही उन्हें जनरल हेडक्वॉर्टर (GHQ) में अडजुटेंट जनरल बना दिया गया. ये प्रमोशन देकर ISI चीफ बनाना पहले भी हो चुका है.
हमीद से पहले कौन थे ISI चीफ? सितंबर 2018 में असीम मुनीर को तरक्की देकर लेफ्टिनेंट जनरल बनाया गया. इसके एक महीने बाद अक्टूबर 2018 में वो ISI चीफ बना दिए गए. बिल्कुल यही ट्रेंड फ़ैज़ हमीद के साथ भी दिखा. अप्रैल में प्रमोशन. फिर जून में ISI चीफ.
इतनी जल्दी मुनीर को हटाया क्यों? ISI चीफ बनाए जाने से पहले मुनीर मिलिट्री इंटेलिजेंस के हेड थे. उत्तरी पाकिस्तान में तैनात फोर्सेज़ के कमांडर भी थे वो. मुनीर से पहले ISI चीफ थे लेफ्टिनेंट जनरल नावेद मुख्तार. उनके रिटायर होने पर मुनीर को लाया गया. फ़ैज़ के अपॉइंटमेंट के लिए असीम के रिटायर होने का भी इंतज़ार नहीं किया गया. इसीलिए लगता है कि Pakistan Army उनके काम से खुश नहीं थी. आठ महीने में ही उन्हें हटा दिया गया. वो सबसे कम टाइम के लिए ISI Chief रहे.
पुलवामा से पाकिस्तान को क्या मिला? भारत ने पुलवामा हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ बताया था. इस पूरे एपिसोड से पाकिस्तान को कोई फ़ायदा हुआ नहीं. अंतरराष्ट्रीय दबाव भी बढ़ा. भारत के साथ सहानुभूति भी गई. भारत को आक्रामक होने का कारण भी मिला. और उसके बाद हुआ बालाकोट हमला. उसमें भी पाकिस्तान की किरकिरी हुई. कि भारत उसके घर में घुसकर मिलिट्री ऑपरेशन कर गया. इस पूरे प्रकरण से पाकिस्तान को नुकसान ही हुआ. भारत लगातार पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिश कर रहा है. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी ये बात उठा रहा है. शायद ऐसी ही वजहों से वो अब गुजरांवाला कॉर्प्स के प्रभारी हुए हैं.
क्या है ISI? भारत का स्टीलफ्रेम हैं IAS. वही देश चलाते हैं. ऐसे ही पाकिस्तान का स्टीलफ्रेम है वहां की सेना. वो पाकिस्तान चलाती है. हमारे यहां तो फिर भी और कई संस्थाएं हैं. पाकिस्तान में नॉर्मल या इमरजेंसी, हर मौसम बस सेना है. इस सेना की आंख, नाक और कान है ISI. हाथ और पैर भी. ISI उसके लिए ज़रूरी खाद-पानी भी जुटाती है. ISI उसके काम भी करवाती है. दूसरे देशों में पहुंचकर सेना के मंसूबे भी पूरे करती है ISI. भारत में हम पाकिस्तान से जुड़ी जिस चीज का सबसे ज्यादा नाम लेते और सुनते हैं, वो ISI ही है. ISI ने सबसे ज्यादा नाम कमाया था अफगानिस्तान में. जब सोवियत ने वहां हमला किया था. वहां CIA की मददगार थी ISI. वैसे ISI बस सुरक्षा नहीं देखती. पाकिस्तान की विदेश नीति में भी इनका हिस्सा है. सबसे ज्यादा अफगानिस्तान और भारत के साथ.
खुफिया विभाग का काउंटर इंटेलिजेंस क्या करता है? इंटेलिजेंस यानी खुफिया विभाग. इसका काम होता है देश की सुरक्षा के लिए खुफिया जानकारियां जुटाना. परदे के पीछे रहकर सब देखते रहना कि सही चल रहा है कि नहीं. कोई साज़िश तो नहीं की जा रही. कोई देश को नुकसान पहुंचाने की कोशिश तो नहीं कर रहा. आपके दुश्मन देश की खुफिया एजेंसी इसी काम में अड़ंगा लगाती है. तो काउंटर-इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट का काम होता है उन विदेशी खुफिया एजेंसियों से निपटना. उनका जवाब, उनकी काट, उनका तोड़ निकालना. विदेशी जासूसों को पकड़ना. ISI में जो डिपार्टमेंट ये काम देखता है, उसी के मुखिया थे फ़ैज़ हमीद. देश की सुरक्षा और खुफिया एजेंसी के कामकाज के लिहाज से ये बहुत बड़ी जिम्मेदारी है.

सरकार ने कट्टरपंथियों के आगे झुकते हुए उनकी मांगें मान लीं. कानून मंत्री को भी हटा दिया. बदले में कट्टरपंथियों से ये गारंटी ली कि वो उनके खिलाफ कोई फ़तवा नहीं निकालेंगे. ये रहा वो समझौते का कागज़ (फोटो: सोशल मीडिया)
नवाज सरकार और इस्लामिक कट्टरपंथियों में समझौता करवाया था! 8 नवंबर, 2017. पाकिस्तान में नवाज शरीफ की सरकार थी. एक इस्लामिक कट्टरपंथी पार्टी 'तहरीक़-ए-लबाइक या रसूल अल्लाह' (TLY) ने फैज़ाबाद इंटरचेंज में झंडा गाड़कर धरना शुरू किया. उन्हें शिकायत थी इलेक्शन्स बिल 2017 से. जिसमें सांसदों के लिए 'Oath' शब्द को बदलकर 'Declaration' कर दिया गया था. उनके हिसाब से ये इस्लाम के खिलाफ था. तो ये लोग कानून मंत्री ज़ाहिद हमीद का इस्तीफ़ा मांग रहे थे. 22 दिन तक धरने पर बैठे रहे ये लोग. पूरे देश में प्रदर्शन होने लगे. हिंसा. आगजनी. इस्लामाबाद जैसे रूक गया, पैरेलाइज़्ड हो गया. 26 नवंबर को जाकर सरकार और TLY के बीच एक समझौता हुआ. दोनों पक्षों के बीच डील करवाई थी सेना ने. कहते हैं कि सेना ने नवाज को कमज़ोर करने के लिए कट्टरपंथियों के तमाशे को शह दिया. समझौते में भी उसने सरकार की किरकिरी का सारा इंतज़ाम किया था.
समझौते के मुताबिक, सरकार की तरफ से प्रदर्शनकारियों के ऊपर जो भी केस दर्ज़ किए गए थे वो वापस लिए गए. इसमें टेररिज़म ऐक्ट के तहत दर्ज़ केस भी थे. कानून मंत्री बर्खास्त कर दिए गए. कुल मिलाकर सरकार ने एक सिरफिरी भीड़ के आगे घुटने टेक दिए. ये नवाज सरकार की घनघोर बेइज़्ज़ती थी. कहते हैं, इस पूरे प्रकरण में फ़ैज़ हमीद का बड़ा रोल था. शायद ठीक ही कहते हैं. क्योंकि फ़ैज़ हमीद ने बाक़ायदा गारंटर इस समझौते के ऊपर दस्तखत किए थे.
फ़ैज़ हार्डलाइनर माने जाते हैं. कट्टर इस्लामिक कट्टरपंथियों से नज़दीकी मानी जाती है उनकी. ISI और पाक सेना के तीन सबसे प्रायॉरिटी मुद्दे हैं- भारत, अफगानिस्तान और बलूचिस्तान. इसके अलावा बीते कुछ समय में पाकिस्तान के अंदर विरोध की आवाज़ें भी बढ़ी हैं. पाकिस्तान के सामने एक साथ कई मोर्चों पर लड़ने की चुनौती है. पाकिस्तान मतलब यहां पाकिस्तानी सेना है. उसे अपना साम्राज्य सलामत रखने के साथ ही सारे विरोधियों और आलोचकों को भी डील करना है. इस डीलिंग के लिए ही फ़ैज़ को लाया गया है.
शंघाई सहयोग संगठन: PM मोदी ने इमरान खान के सामने ही पाकिस्तान को खरी खोटी सुना दी