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मोहम्मद यूनुस को 'गरीबों का बैंकर' क्यों कहते हैं? बांग्लादेश में अब इन्हीं की सुनी जाएगी

मुहम्मद यूनुस पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के मुखर आलोचक माने जाते हैं. हसीना के इस्तीफे का उन्होंने स्वागत किया है. और देश में हो रहे इस बदलाव को देश की "दूसरी आजादी" बताया है.

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मुहम्मद यूनुस के खिलाफ 100 से ज्यादा केस दर्ज हैं. (फोटो- रॉयटर्स)

पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे और देश छोड़कर भागने के बाद बांग्लादेश राजनीतिक संकटों से घिरा हुआ है. देश की संसद भंग कर दी गई है. सेना की पहल पर अंतरिम सरकार बनाने की तैयारियां चल रही हैं. और इस अंतरिम सरकार के गठन का मुख्य सलाहकार बनाने की जिम्मेदारी मिलने वाली है, नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस को. शेख हसीना सरकार के खिलाफ आंदोलन करने वाले आयोजक ने मुहम्मद यूनुस को ये प्रस्ताव दिया था. बांग्लादेशी अखबार 'द डेली स्टार' ने पुष्टि की है कि मुहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार में मुख्य सलाहकार बनने की मांग को स्वीकार कर लिया है.

मुहम्मद यूनुस पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के मुखर आलोचक माने जाते हैं. हसीना के इस्तीफे का उन्होंने स्वागत किया है. और देश में हो रहे इस बदलाव को देश की "दूसरी आजादी" बताया है. यूनुस फिलहाल पेरिस में हैं. वहां वे ओलंपिक्स खेलों में बतौर स्पेशल गेस्ट बुलाए गए थे. लेकिन अपने इलाज के कारण वे अब भी वही हैं. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो मौजूदा स्थिति को देखते हुए यूनुस "बहुत जल्द" बांग्लादेश लौट सकते हैं.

मुहम्मद यूनुस के हवाले से एक सूत्र ने 'द डेली स्टार' को बताया कि आंदोलनकारी छात्रों की तरफ से जब उनसे संपर्क किया गया, तो उन्होंने मुख्य सलाहकार बनने से इनकार कर दिया. यूनुस ने कह दिया कि उन्हें अभी बहुत सारा काम निपटाना है. सूत्रों के मुताबिक यूनुस ने कहा, 

"लेकिन छात्रों ने बार-बार अनुरोध किया. फिर मैंने सोचा कि इन छात्रों ने बहुत कुछ भुगता है. अगर छात्रों ने इतना त्याग किया, अगर देश के लोगों ने इतना त्याग किया है, तो मेरी भी कुछ जिम्मेदारी है. तब मैंने छात्रों से कहा कि मैं जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हूं."

यूनुस की कहानी क्या है?

मुहम्मद यूनुस को बांग्लादेश में ग्रामीण बैंक की शुरुआत का श्रेय मिलता है. ये बैंक गरीबों को छोटा-मोटा कर्ज देती है. बदले में कुछ गिरवी रखने की मजबूरी नहीं होती. यही वजह है कि यूनुस बांग्लादेश में खासे लोकप्रिय हुए. उन्हें "गरीबों का मसीहा" तक कहा जाता है.

84 साल के यूनुस का जन्म चिटगांव में हुआ था. 28 जून 1940 को. तब ये अविभाजित भारत था. अपने मां-पिता के 9 बच्चों में सबसे बड़े हैं. उनके पिता दुला मियां पेशे से जौहरी थे. बचपन में यूनुस पर उनकी मां सोफिया खातून का बड़ा प्रभाव था. लेकिन जब वे 9 साल के हुए, तब उनकी मां को मानसिक बीमारी हो गई. कुछ ऐसा कि किसी भी समय वो हिंसक हो जाया करतीं. रात में सभी इस डर से सोने जाते कि कहीं मां उनके पिता पर हमला ना कर दे.

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मुहम्मद यूनुस (फोटो- द डेली स्टार)

यूनुस बचपन से तेज-तर्रार थे. शुरुआती पढ़ाई-लिखाई चिटगांव के ही चर्चित कॉलेजिएट स्कूल से हुई. बाद में, ढाका यूनिवर्सिटी से बी.ए. और एम.ए. किया. 1961 से 65 तक उन्होंने चिटगांव यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ाया. इसके बाद उन्हें 'फ़ुलब्राइट स्कॉलरशिप' मिली. अमेरिका की वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी पूरी की. पढ़ाई के बाद बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर अमेरिका की मिडिल टेनेसी स्टेट यूनिवर्सिटी में पढ़ाया भी.

1971 में बांग्लादेश नया मुल्क बना. पाकिस्तान से अलग होकर. यूनुस 1972 में वापस लौटे. चिटगांव यूनिवर्सिटी में इकॉनमिक्स डिपार्टमेंट के हेड बने. फिर 1974 में बांग्लादेश में भयंकर अकाल पड़ा. यूनुस ने अपने स्टूडेंट्स से किसानों की मदद करने को कहा. लेकिन ये बहुत कारगर नहीं रहा. यूनुस को समझ आया कि सिर्फ ट्रेनिंग से कुछ नहीं होगा. क्योंकि अधिकतर किसानों के पास कोई संपत्ति नहीं थी.

ग्रामीण बैंक और नोबेल प्राइज

यूनुस ने माइक्रो फाइनेंस शुरू किया. शुरूआत में किसानों को 20 से 25 डॉलर तक की मदद दी जाती थी. ये मॉडल इतना पॉपुलर हुआ कि 1983 में बांग्लादेश सरकार ने इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया. और इस तरह ग्रामीण बैंक की स्थापना हुई. रिपोर्ट्स बताती हैं कि इसके जरिये लाखों लोगों को गरीबी से निकालने में मदद मिली. डेली सन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अपनी स्थापना के बाद से बांग्लादेश में करीब 1 करोड़ लोगों को 2 लाख 85 हजार करोड़ रुपये का लोन दिया गया. वहीं, इसका रिकवरी रेट 97.22 फीसदी रहा है. रिपोर्ट की माने तो अब तक इस मॉडल को करीब 100 देशों ने अपनाया.

यूनुस के कामों के कारण साल 1987 में उन्हें बांग्लादेश के सर्वोच्च पुरस्कार 'द इंडिपेंडेंस डे अवॉर्ड' से सम्मानित किया गया था. इसके बाद लगातार वे कई पुरस्कारों से नवाजे गए. 2006 में यूनुस और उनके ग्रामीण बैंक को नोबेल पीस प्राइज से सम्मानित किया गया.

जेल की सजा मिली

अभी मुहम्मद यूनुस पर बांग्लादेश में 100 से अधिक केस चल रहे हैं. ये केस रिश्वतखोरी से लेकर अलग-अलग आरोपों में दर्ज हुए हैं. हालांकि इनमें से किसी मामले में अब तक उन्हें जेल नहीं हुई है.

एक तरफ, दुनिया उन्हें लोकप्रिय ‘गरीबों का बैंकर’ और प्रमुख अर्थशास्त्री के रूप में जानती है. दूसरी तरफ, शेख हसीना उन्हें "गरीबों का खून चूसने वाला" बताती रहीं हैं. और, उनके खिलाफ टैक्स चोरी का आरोप भी लगाती रहती हैं. यूनुस के समर्थकों का आरोप है कि ये सब राजनैतिक प्रतिरोध की वजह से किया जा रहा है.

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इस साल 01 जनवरी को अदालत ने मुहम्मद यूनुस को 6 महीने जेल की सजा सुनाई थी. लेबर कानून के उल्लंघन के आरोप में. कोर्ट ने उन्हें और उनकी कंपनी ग्रामीण टेलिकॉम के तीन सहयोगियों को कामगारों के कल्याणकारी फंड में गबन का दोषी पाया था. हालांकि, बाद में उन्हें जमानत मिल गई. इसे भी उनके समर्थकों ने राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया था. प्रोफेसर यूनुस के वकील अब्दुल्लाह अल-मामुन ने तब बीबीसी को बताया था कि उनके खिलाफ ये केस आधारहीन हैं और सरकार के दबाव में दर्ज किए गए.

शेख हसीना को टक्कर देने की कोशिश

नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद उन्होंने अपनी लोकप्रियता को राजनीति में भुनाने की कोशिश की. साल 2007 में यूनुस ने पार्टी बनाकर शेख हसीना की 'आवामी लीग' को टक्कर देने की कोशिश की थी. तब से शेख हसीना से उनका छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है. कहा जाता है कि इसी वजह से यूनुस को कोर्ट के चक्कर लगवाए जाते हैं.

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मुहम्मद युनूस को शेख हसीना के प्रमुख आलोचकों में गिना जाता है. (फोटो- रॉयटर्स)

2009 में सत्ता में वापसी के बाद हसीना सरकार लगातार उनके खिलाफ केस दर्ज करती रही. साल 2010 में यूनुस पर नॉर्वे के फ़ंड्स के दुरुपयोग के आरोप लगे. नॉर्वे ने आरोपों को खारिज किया. मगर बांग्लादेश सरकार ने जांच शुरू कर दी. 2011 में उनको ग्रामीण बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर पद से ये कहकर हटा दिया गया कि उन्हें 60 की उम्र में रिटायर किया जा रहा है. मगर वो सन 2000 में ही 60 बरस के हो चुके थे. उन्होंने फैसले को अदालत में चुनौती दी. लेकिन अदालत ने उनका निष्कासन बरकरार रखा था.

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अगस्त 2023 में दुनियाभर की 170 चर्चित शख्सियतों ने चिट्ठी लिखकर शेख हसीना सरकार की आलोचना की थी. प्रोफेसर यूनुस पर लगातार केस दर्ज होने के बाद ये चिट्ठी लिखी गई थी. इसमें हसीना सरकार से मोहम्मद यूनुस पर जुल्म बंद करने को कहा गया था.

आरक्षण के खिलाफ प्रदर्शन के बाद पैदा हुए हालिया संकट के पीछे हसीना ने विपक्ष का हाथ बताया था. इस पर प्रोफेसर यूनुस ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा था कि सरकार झूठ बनाने की फैक्ट्री हो चुकती है, जो लगातार झूठ पर झूठ बोल रही है और वो अपने ही झूठ पर अब भरोसा करने लगी है. 4 अगस्त को इस इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि यहां लोकतंत्र खत्म हो चुकी है, लोगों और सरकार के बीच कोई बातचीत नहीं है. यूनुस ने आरोप लगाया था कि ये एक देश, एक पार्टी, एक नेता, एक नैरेटिव वाला देश बन चुका है.

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