देश में बागेश्वर बाबा (Bageshwar Baba) को लेकर रार तकरार अभी ख़त्म भी नहीं हुई कि एक और बाबा को लेकर विवाद शुरू हो गया है. ये बाबा कोई संन्यासी बाबा नहीं बल्कि पहले किसान, फिर किसान से नेता और उसके बाद आश्रम खोल बाबा (Kanpur Karauli Baba) बन गए. अब बाबा करते तो चमत्कार का दावा हैं, लेकिन बाबा का दर्शन करने गए एक शख्स ने कथित तौर पर उनसे कहा कि उनके कथित चमत्कार ने काम नहीं किया. बस फिर क्या, आरोप है कि बाबा के बाउंसरों ने भक्त को पीट दिया. पिटने के बाद भक्त ने पुलिस में मामला दर्ज करा दिया तो बाबा सफ़ाई देकर पिटाई के आरोपों से इनकार कर रहे हैं.
कानपुर का करौली बाबा वायरल, डेढ़ लाख का 'चमत्कार' जान झन्ना जाएंगे!
भक्त का आरोप है कि 'चमत्कार' फेल हुआ तो बाबा ने मुंह तोड़ दिया.
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अब आप सोच रहे होंगे कि आख़िर ये कौन बाबा हैं? तो आइए, आपको बाबा का नाम और बाबा के किस्से बताते हैं. ये बाबा हैं करौली बाबा. न न, नैनीताल वाले बाबा नीम करौली नहीं, बल्कि कानपुर वाले संतोष सिंह भदौरिया उर्फ करौली बाबा. जब ये बाबा किसान नेता थे तब इनकी पहचान संतोष सिंह भदौरिया की थी लेकिन पिछले कुछ सालों में इनकी पहचान करौली बाबा की हो गई है. बाबा रहने वाले तो उन्नाव के हैं लेकिन गंगा पार कानपुर में एक ज़मीन पर आश्रम बनाकर बाबा बन गए. बाबा के दरबार में जाने के लिए भक्तों को 100 रुपये की पर्ची कटानी पड़ती है और विशेष पूजन के लिए विशेष दान करना पड़ता है.
बाबा चर्चा में क्यों हैं?दरअसल, चमत्कार करने का दावा करने वाले करौली बाबा के दरबार में घरेलू समस्याओं से परेशान नोएडा के एक डॉक्टर ने मुराद पूरी न होने की शिकायत कर दी. डॉ सिद्धार्थ चौधरी नाम के इस शख्स की शिकायत के मुताबिक़, उसकी बात सुनते ही बाबा के सेवादारों या यूं कहें बाउंसरों ने उन्हें पास के एक कमरे में ले जाकर लात, घूसों और लोहे की सरिया से बुरी तरह पीट डाला. पिटाई में घायल डॉक्टर सिद्धार्थ की नाक की हड्डी टूट गई और सिर में कई जगह चोट आई. इसके बाद डॉक्टर ने बाबा के ख़िलाफ़ FIR करा दी. फिर बाबा चर्चा में आ गए.
किसान नेता से नेता और नेता से बाबा बनने का संतोष सिंह भदौरिया उर्फ करौली बाबा का इतिहास दिलचस्प है. 90 के दशक में संतोष सिंह कई घटनाओं में गंभीर धाराओं में आरोपी थे. इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे किसानों का नेता बनकर अपनी पैठ बनाने का काम किया. इस दौर में संतोष सिंह भदौरिया पर ज़मीनों पर कब्जे के भी आरोप लगे. किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के संपर्क में आकर संतोष सिंह किसानों के मुद्दों पर काम करने लगे. फिर किसानों को पुलिस की हिरासत से छुड़ाने के आरोप में जेल गए, लेकिन बाहर आते ही लोकप्रिय हो गए.
किसानों के बीच लोकप्रिय हुए संतोष सिंह भदौरिया UPA सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे श्रीप्रकाश जायसवाल से नजदीक आए. जायसवाल ने उन्हें कोयला निगम का चेयरमैन बनाकर लाल बत्ती दिलवा दी. विवाद हुआ तो निगम से हटा भी दिए गए. स्थानीय स्तर पर संतोष सिंह ने राजनीति में अपने पैर जमाने की भी भरपूर कोशिश की, लेकिन ज़्यादा सफलता नहीं मिली. राजनीति में सफलता न मिलने पर संतोष सिंह भदौरिया अचानक गुमनामी में चले गए. वापसी हुई तो नेता से बाबा बनकर और करौली बाबा का आश्रम शुरू कर दिया.
आश्रम में क्या होता है?करौली बाबा का आश्रम क़रीब 14 एकड़ में फैला बताया जाता है. आश्रम में हर रोज़ क़रीब 3-4 हजार भक्त पहुंचते हैं. यहां आने वाले भक्तों को आश्रम आने पर 100 रुपये की रसीद कटानी होती है. पर्ची कटाने वालों की मुराद पूरी होने की मियाद 15 दिन की होती है. अगर 15 दिनों में मुराद पूरी नहीं हुई तो फिर 100 रुपये की पर्ची कटेगी. पर्ची कटाने वाले को बदले में सफेद रंग का धागा बांधने को दिया जाता है. अगर भक्त को आश्रम में बाबा से मिलना है तो 5100 रुपये और अगर हवन कराना हो तो उसके लिए 5000 रुपये की पर्ची कटानी पड़ती है. बाक़ी विशेष हवन पूजन के लिए विशेष राशि तय है, जो एक डेढ़ लाख रुपये या उससे भी ज्यादा तक जाती है.
करौली बाबा के आश्रम के हर वक़्त हवन चलता रहता है. दूर दूर से भक्त तरह-तरह की समस्याएं लेकर आते हैं. किसी को पारिवारिक कष्ट है तो कोई व्यक्तिगत समस्याओं से पीड़ित. बाबा का दावा है कि वो हर तरह के कष्टों को भगवान शिव का नाम लेकर हर लेते हैं. विशेष हवन बाबा ख़ुद करते हैं, जिसके लिए विशेष ख़र्च करना होता है. फिर बाबा कष्ट पूछकर आंखें बंद कर चमत्कार का दावा करते हैं. बताया जाता है कि बाबा लोगों के इलाज का दावा भी करते हैं. इसके लिए डेढ़ लाख रुपये लिए जाते हैं.
वीडियो: पड़ताल: करौली हिंसा के बाद धमकी भरे वायरल वीडियो का दावा झूठा है!