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अर्नोल्ड डिक्स: ऑस्ट्रेलिया का वो 'टनल मैन', जो इंडिया आकर हीरो बन गया

प्रोफ़ेसर डिक्स सुरंग का आकलन करने के लिए 20 नवंबर को उत्तरकाशी पहुंचे थे. शुरू में पहाड़ ढहने की आशंका थी. इसीलिए उन्होंने इलाक़े का मुआयना किया. अनिश्चितताओं के बावजूद, डिक्स इकलौते थे जो अधिकारियों को आश्वासन दे रहे थे कि क्रिसमस से पहले मज़दूरों को बचा लिया जाएगा.

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सिल्क्यारा सुरंग साइट पर प्रो अर्नोल्ड डिक्स (तस्वीर- रॉयटर्स)

उत्तरकाशी सुरंग हादसा. एक ढही हुई सुरंग में फंसे 41 मज़दूर. बीते 17 दिनों से न्यूज़ जगत में यही (Uttarkashi tunnel collapse) बड़ी ख़बर थी. दिवाली के दिन से ही लोगों की नज़रें रेस्क्यू ऑपरेशन पर थीं. जब मज़दूर बाहर आने की कगार पर थे, तब भी न्यूज़ चैनलों के कैमरे वहां तैनात थे. ख़ुश-ख़बरी के इंतज़ार में. 400 घंटों और 652 सरकारी कर्मचारियों के अथक प्रयास के बाद मज़दूर बाहर आ गए. राहत की तस्वीरें सबने देखीं. इन तस्वीरों में एक दढ़ियल विदेशी दिखता है. कौन? अंतरराष्ट्रीय टनलिंग एक्सपर्ट अर्नोल्ड डिक्स.

कौन हैं आर्नल्ड डिक्स?

आर्नल्ड ऑस्ट्रेलिया के नागरिक हैं. स्विट्ज़रलैंड के इंटरनैशनल टनलिंग ऐंड अंडरग्राउंड स्पेस असोसिएशन (जेनेवा) के प्रमुख हैं. तीन दशकों से भूमिगत निर्माण की सुरक्षा के इर्द-गिर्द काम कर रहे हैं. उत्तरकाशी जैसी घटनाओं की तरह ही उन्हें भूमिगत निर्माण से संबंधित क़ानूनी, तकनीकी और पर्यावरणीय एक्सपर्टीज़ के लिए तलब किया जाता है. उनकी वेबसाइट arnolddix.com की पहली पंक्ति है,

"भविष्य की अनिश्चितता और दूरंदेश के ज्ञान का भ्रम प्रोफ़ेसर डिक्स के क़ानूनी, वैज्ञानिक या इंजीनियरिंग के नज़रिए की धुरी है."

भूमिगत सुरक्षा के अलावा भी डॉक्टर डिक्स के और परिचय हैं. उनकी वेबसाइट के मुताबिक़, वो एक भूविज्ञानी, प्रोफ़ेसर, इंजीनियर और वकील भी हैं.

ये उनकी वेबसाइट का होमपेज है.

मेलबर्न के मोनाश विश्वविद्यालय से उन्होंने विज्ञान और क़ानून में डिग्री ली. जेनेवा से पहले उन्होंने 2016 से 2019 तक अंतरराष्ट्रीय NGO 'रेड क्रिसेंट सोसाइटी' के साथ क़तर में काम किया. वहां भी उन्होंने अंडर-ग्राउंड दुर्घटनाओं के लिए रिस्पॉन्स विकसित करने में मदद की. इसके बाद 2020 में अर्नोल्ड 'लॉर्ड रॉबर्ट मेयर पीटर विकरी' के साथ जुड़े. अंडर-ग्राउंड सुरक्षा की जटिलताओं के तकनीकी और नियामक समाधान के लिए उन्होंने अंडर-ग्राउंड चेंबर्स की स्थापना के लिए काम किया.

उत्तरकाशी में कैसे प्लान किया?

प्रोफ़ेसर डिक्स सुरंग का आकलन करने के लिए 20 नवंबर को उत्तरकाशी पहुंचे थे. शुरू में पहाड़ ढहने की आशंका थी. इसीलिए उन्होंने इलाक़े का मुआयना किया. अनिश्चितताओं के बावजूद, डिक्स इकलौते थे जो अधिकारियों को आश्वासन दे रहे थे कि क्रिसमस से पहले मज़दूरों को बचा लिया जाएगा.

अस्थायी मंदिर के बाहर पूजा करते आर्नल्ड डिक्स (फ़ोटो - सोशल मीडिया)

28 नवंबर की सुबह सुरंग के बाहर जो टेंपररी मंदिर बनाया गया, वहां का एक वीडियो भी सामने आया. इसमें अर्नोल्ड ने मज़दूरों को सुरक्षित निकालने के लिए स्थानीय संतों-बाबाओं के साथ प्रार्थना की. मज़दूरों के सुरक्षित बाहर आने के बाद अर्नोल्ड ने कहा कि उन्हें शुक्रिया-अदा करने के लिए वापस मंदिर जाना है. न्यूज़ एजेंसी ANI से बात करते हुए उन्होंने कहा,

"याद कीजिए, मैंने कहा था कि क्रिसमस तक सारे मज़दूर अपने-अपने घर पर होंगे और किसी को भी चोट नहीं पहुंचेगी. क्रिसमस जल्दी आ गया. हमने एक अद्भुत टीम के रूप में काम किया है. भारत के पास सबसे अच्छे इंजीनियर्स हैं. हम संयमित थे और हम जानते थे कि हम कर क्या रहे हैं. मेरे लिए इस सफल मिशन का हिस्सा बनना ख़ुशी की बात थी."

आर्नल्ड अब हीरो हो गए हैं. इसी महीने ऑस्ट्रेलिया से क्रिकेट वर्ल्ड कप हारने के बाद इंटरनेट के भावुक-ख़लिहरों ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों को बहुत गालियां दी थीं. उनके परिवार तक को नहीं छोड़ा. आज ऑस्ट्रेलिया के एक आदमी ने भारत के 41 मज़दूरों को बचाने में अहम भूमिका निभाई है. सोशल मीडिया की दल-बदलू जनता आज ऑस्ट्रेलिया के जयकारे लगा रही है.

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इंडियन एक्सप्रेस के अवनीश मिश्रा की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, बचाव अभियान में 652 सरकारी कर्मचारी काम कर रहे थे. 189 पुलिस विभाग से, 106 स्वास्थ्य विभाग से, 77 भारत तिब्बत बॉर्डर पुलिस के कर्मी, 62 राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) के जवान, 39 राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) के जवान, 46 उत्तरकाशी के जल संस्थान से, 32 बिजली विभाग से और 38 सीमा सड़क संगठन (BRO) के कर्मचारी. इनका भी योगदान क़ाबिल-ए-तारीफ़ है.