बात वायरल वीडियो के साथ ही शुरू कर लेते हैं. हरे कुर्ते में टीका लगाए रुद्राक्ष पहने एक आदमी स्टेज पर बैठा है. कल्ट गुरू नित्यानंद कैलासा वाले के साथ. भारी-भरकम्प गद्दी है. त्रिशूल जड़ा है पीछे. व्यक्ति के हाथ में काग़ज़ है, गोया वो कुछ प्रेज़ेंट करने वाला हो. करता भी है, एक प्रपोज़ल. पहले प्रस्ताव सुनिए-
"अगले जन्म में करोड़पति" बनाने का दावा करने वाले राजीव मल्होत्रा कौन हैं?
'पुनर्जन्म ट्रस्ट मैनेजमेंट कंपनी' खोलना चाहते हैं. बिल गेट्स को अगले जन्म में पैसा पहुंचाएंगे.

"आप में से जो भी इन्वेस्टमेंट बैंकिंग या वेंचर कैपिटलिज़्म में हैं, ये प्रस्ताव आपको दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति बना देगा. अगर आप बिल गेट्स के पास जाएं, तो उनकी सबसे बड़ी समस्या ये है कि उन्होंने जो भी कमाया, वो उनके अगले जन्म में किसी काम नहीं आएगा. तो हम बिल गेट्स के पास जाएंगे और उनसे कहेंगे कि आपके पास दस हज़ार करोड़ हैं. आप दान वग़ैरह करते हो, ताकि आपको स्वर्ग मिल जाए. लेकिन अगर आप उस 10 हज़ार करोड़ में से पांच हज़ार करोड़ हमें दे दें, तो हम अगले जन्म में आपको ढूंढ कर ये पैसा दे देंगे.
शख्स आगे कहता है,
ये मुमकिन है कि अगले जन्म में आप ग़रीब पैदा हों. बिल गेट्स अगले जन्म में ग़रीब हो सकते हैं. वॉरेन बफ़े अफ़्रीका के किसी गांव में ग़रीब परिवार में पैदा हो सकते हैं. जो लोग आकाश में बैठकर कर्म का हिसाब-किताब करते हैं, हो सकता है वो कहें कि इस जन्म में अपने सुख भोग लिया; अगले में दुख भोगिए. तो अगर अगले जन्म में हम उन्हें ढूंढ कर, पांच हज़ार करोड़ में से 5-10 लाख भी दे दें, तो भी वो बहुत ख़ुश हो जाएगा. प्रस्ताव ये है कि एक ट्रस्ट मैनेजमेंट कंपनी शुरू की जाए. आमतौर पर ट्रस्ट मैनेजमेंट कंपनियां एक ही जीवन में आपके बच्चों-रिश्तेदारों को आपका पैसा दे देती हैं. ये पहली इंटर-लाइफ़ पुनर्जन्म ट्रस्ट मैनेजमेंट कंपनी होगी."
इस बात पर सामने से नित्यानंद अपनी चुटिल मुस्कान के साथ कहते हैं कि ये मुमकिन है. इसमें थोड़ी रिसर्च लगेगी. यहां याद दिला दें कि कथित गॉडमैन नित्यानंद को गुजरात पुलिस ने भगोड़ा घोषित किया हुआ है.
“पांच हज़ार करोड़ दे दो, अगले जन्म में ढूंढ कर पांच-दस लाख दे दिया जाएगा.” ये स्कीम सुन कर आपको क्या लगा? लक्ष्मी चिट फंड का एक अंतर-जीवन संस्करण. लेकिन ये प्रस्ताव देने वाले कोई गुरू नहीं हैं, स्कॉलर हैं. JNU में भी पढ़ाया है. किताबें भी लिखी हैं. नाम है, राजीव मल्होत्रा.
क्यों चर्चा में हैं? IIT कानपुर के इंस्टीट्यूट लेक्चर सीरीज़ में सोमवार, 27 फरवरी को बतौर स्पीकर राजीव मल्होत्रा और विजया विश्वनाथन को बुलाया गया. लेक्चर का टाइटल था, 'हार्वर्ड बनाम IIT- क्या सोशल साइंसेज़ भारत में हार्ड साइंसेज़ को कंट्रोल करेगा?' ऑथर अमित शांडिल्या ने राजीव मल्होत्रा की ये पुरानी वायरल वीडियो शेयर की और लिखा कि IIT कानपुर का न्योता निंदनीय है.
कौन हैं राजीव मल्होत्रा?राजीव मल्होत्रा एक लेखक और विचारक हैं. 15 सितंबर 1950 को नई दिल्ली में जन्मे. सेंट स्टीफंस कॉलेज से फिज़िक्स की पढ़ाई की. फिर न्यूयॉर्क चले गए और वहां की सिरैक्यूज़ यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस पढ़े. इसके बाद राजीव मल्होत्रा ने इन्फ़ॉरमेशन टेक्नॉलजी और मीडिया इंडस्ट्री में बतौर आंत्रप्रेन्योर काम शुरू किया. 1994 में ही उन्होंने रिटायरमेंट ले लिया. तब वो सिर्फ़ 44 साल के थे.
राजीव एक संस्था चलाते हैं. नाम है 'इनफ़िनिटी फ़ाउंडेशन'. रिटायरमेंट के बाद, 1995 में न्यू जर्सी में उन्होंने इस संस्था की स्थापना की. मक़सद था प्राचीन भारतीय धर्मों की कथित ग़लत व्याख्या से लड़ना और विश्व सभ्यता में भारत के योगदान को दर्ज कराना. एक तो राजीव ख़ुद फ़िज़िक्स और कंप्युटर साइंस के छात्र. दूसरे, सलाहकार बोर्ड में भी ज़्यादातर सदस्य सॉफ़्टवेयर इंडस्ट्री से ही थे.
फ़ाउंडेशन के नाम पर ही एक यूट्यूब चैनल भी है. राजीव यहां AI, हिंदू सभ्यता के साहित्य और छात्रों के साथ अपने इंटरैक्शन के वीडियो डालते हैं.

फ़ाउंडेशन से इतर, मल्होत्रा भारतीय संस्कृतियों पर एक 'हिंदू राष्ट्रवादी' नज़रिया रखते हैं. अक्सर भारत की संस्कृति और समाज की पश्चिमी समीक्षा के ख़िलाफ़ लिखते-बोलते रहते हैं. वो अब तक 9 किताबें पब्लिश कर चुके हैं. उनकी हालिया किताब 'स्नेक्स इन द गंगा' कई चर्चाओं का मौज़ू बनी. स्नेक्स इन द गंगा यानी गंगा में सांप. राजीव मल्होत्रा ने इसे विजया विश्वनाथन के साथ मिलकर लिखा है. ये रूपक है. गंगा हमारे संदर्भों में एक सुरक्षित जगह है. राजीव का दावा है कि इस सुरक्षित जगह में भीतर सांप छिपे हुए हैं. मतलब ‘धर्म के दुश्मन आसपास ही हैं’.
अक्टूबर 2018 में मल्होत्रा को दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फ़ॉर मीडिया स्टडीज़ में विज़िटिंग प्रोफेसर के तौर पर नियुक्त किया गया था. 6 नवंबर 2018 को उन्होंने स्कूल ऑफ संस्कृत एंड इंडिक स्टडीज में ‘संस्कृत गैर-अनुवाद योग्य’ टॉपिक पर अपना पहला लेक्चर दिया. राजीव की इस विषय में गहरी रुचि है. मसलन, धर्म का अंग्रेज़ी तर्जुमा रिलीजन नहीं है. कुछ जानकार तो यहां तक कहते हैं कि अंग्रेज़ी में धर्म का शब्द है ही नहीं. इसी तरह से कई ऐसे शब्द हैं जिनका ठीक-ठीक तर्जुमा तक नहीं किया गया है.
हालांकि, भाषा विज्ञान में गहरे उतरेंगे तो ट्रांसलेशन की थियरी ये कहती है कि दो भाषाओं के दो शब्द कभी एक-दूसरे का सटीक तर्जुमा हो ही नहीं सकते. राजीव का ज़ोर संस्कृत से अंग्रेज़ी में है. वो लोगों को बताते हैं कि संस्कृत के शब्दों को अंग्रेजी में क्या कहा गया, उनका अर्थ क्या लिया गया और वे अर्थ सही थे या नहीं.
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