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यूपी का वो गैंगस्टर, जिसने रन आउट होते ही अंपायर को गोली मार दी

फिल्मी कहानी से कम नहीं खान मुबारक की जिंदगी?

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आंबेडकरनगर के माफ़िया खान मुबारक के बारे में कहा जाता है कि उसकी अदावत सीधे दाऊद इब्राहिम से, और दोस्ती सीधे छोटा राजन से रही है.

छोटा राजन के शार्पशूटर और अंडरवर्ल्ड डॉन जफर सुपारी के भाई गैंगस्टर खान मुबारक की हरदोई जेल में मौत हो गई. निमोनिया से पीड़ित मुबारक जेल के अस्पताल में भर्ती था. मुबारक के खिलाफ यूपी के अलग-अलग थानों में 40 केस दर्ज थे. साल 2020 में उसे लखनऊ जेल से हरदोई जेल शिफ्ट किया गया था. आंबेडकरनगर के रहने वाले मुबारक के अपराध का इतिहास कई जिलों में फैला है. जानिए खान मुबारक की पूरी कहानी. 

जुलाई 2015. सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ. देखने में थोड़ा फ़िल्मी, लेकिन काफ़ी ख़ौफ़नाक. इस वीडियो में कुर्ता पायजामा पहने एक अधेड़ व्यापारी एकदम सीधा खड़ा है. अपने सिर पर एक बोतल रखकर. व्यापारी की भंगिमा डर से भरी हुई है. उसके सामने दुबला-सा एक आदमी खड़ा है. उसके हाथ में चमचमाती हुई पिस्टल है. जैसे ही व्यापारी सिर पर बोतल रखकर खड़ा होता है, पिस्टल वाला आदमी बोलता है,

“हां. ये हुई बात.”

इतना कहकर पिस्टल वाला आदमी तड़ाक से गोली चला देता है. गोली न बोतल को लगती है, न व्यापारी को. पिस्टल वाला आदमी बोलता है,

“बच गया बे…”

इस वीडियो का एक और हिस्सा है. पिस्टल वाला आदमी व्यापारी को कोड़ों से पीट रहा है. वीडियो के एक सीन में पिस्टलधारी व्यक्ति व्यापारी से पैर पकड़कर माफ़ी मांगने को बोल रहा है. 
व्यापारी को उस दिन माफ़ी मिल गयी. लेकिन सदमा था. दिल के मरीज़ व्यापारी की कुछ दिनों बाद मौत हो गयी. पुलिस ने दावा किया कि उसे कोई जानकारी नहीं मिली. जब ये वीडियो सामने आया तो लोगों को लगा कि हंसी-मज़ाक़ में शूट किया गया नाटकीय वीडियो है. लेकिन नहीं. वीडियो असली था. यूपी के आंबेडकरनगर का वीडियो था. व्यापारी का नाम था बाज़ू खान. बाज़ू खान की ग़लती क्या थी? बाज़ू खान ने आवाज़ उठायी थी. जो पिस्टल वाला आदमी था, वो रंगदारी मांगता था. बाज़ू खान ने एक शादी में दूसरे व्यापारियों से कहा था कि पिस्टल वाले आदमी को फिरौती मत दो. बस इसी बात की सज़ा इस वीडियो में मिलती दिखाई दे रही थी.

लेकिन कौन था ये पिस्टल वाला आदमी? इतनी जुर्रत करने वाला? इस आदमी का नाम है ख़ान मुबारक. आंबेडकरनगर का माफ़िया खान मुबारक. कई हत्याओं के साथ-साथ देश की बड़ी-बड़ी घटनाओं में नामज़द. अदावत सीधे दाऊद इब्राहिम से, और दोस्ती सीधे छोटा राजन से. साल 2000 के बाद कई मौक़ों पर इलाहाबाद, फ़ैज़ाबाद, आंबेडकरनगर समेत कई इलाक़ों में अपनी सक्रियता का प्रमाण देने वाला माफ़िया ख़ान मुबारक. रनआउट देने वाले अंपायर को गोली मारने से लेकर बसपा के नेता की हत्या तक, सब कुछ ख़ान मुबारक के नाम से नत्थी है. और ये पूरी कहानी बताने का बहाना है ख़ान मुबारक, उसके सहयोगियों और परिजनों की संपत्ति की कुर्की. जो साल-दो साल से जारी है. योगी आदित्यनाथ की सरकार में. ताज़ा घटना है 13 जुलाई को आंबेडकरनगर में गिराया गया ख़ान मुबारक के बहनोई का मकान.

क्रिकेट मैच के अंपायर को मारी गोली

यूपी के माफ़ियाओं और अपराधियों में कमोबेश एक ट्रेंड साफ़ दिखाई देता है. अक्सर ये माफ़िया किसी न किसी बदले की आग या किसी ग़लती के चक्कर में अपराध जगत में एंट्री लेते हैं. लेकिन लोग बताते हैं कि आंबेडकरनगर के हंसवार गांव के रहने वाले खान मुबारक की एंट्री ऐसे नहीं हुई थी. प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) का वो राजनीतिक और आपराधिक रूप से सक्रियता वाला समय था, जब मुबारक ने इस फ़ील्ड एंट्री मारी थी. और शह मिली थी बड़े भाई की. बड़े भाई का नाम ख़ान ज़फ़र उर्फ़ ज़फ़र सुपारी. ख़बरें बताती हैं कि आंबेडकरनगर के ही रहने वाले ज़फ़र सुपारी ने 15 साल की उम्र में गांव के एक लड़के की हत्या कर दी थी. अपराध में एंट्री हो गयी. धीरे-धीरे छोटा राजन से क़रीबी बढ़ गयी. लोग बताते हैं कि ख़ान मुबारक पर इसका असर पड़ा. घर में कोई रौबदार हो, तो अमूमन छोटे रौब का रास्ता पकड़ लेते हैं. ज़फ़र का असर पड़ा मुबारक पर.

अब चलते हैं इलाहाबाद. यहां पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एमए की पढ़ाई कर रहे मुबारक ने एक क्रिकेट मैच में हिस्सा लिया. क्रीज पर मुबारक बैटिंग कर रहा था. दौड़कर रन पूरा करने की जुगत में था, लेकिन दूसरी टीम ने गिल्ली उड़ा दी. अंपायर ने रनआउट दे दिया. अपील नहीं सुनी गयी. मुबारक को ग़ुस्सा आया. ख़बरें बताती हैं कि मुबारक ने अंपायर की गोली मारकर हत्या कर दी. क्राइम की दुनिया में सीधे-सीधे एंट्री हो चुकी थी.

इसके बाद कई सारे अध्याय जुड़े. कभी डाकघर लूटने का तो कभी किसी व्यापारी की रंगदारी के मामले में हत्या कर देने का. कई सालों में पेशा इतना फैला कि आंबेडकरनगर क्रिमिनल रूप से एक्टिव टॉप 3 जिलों में आ गया. साल 2020 में न्यूज़ 18 से बातचीत में यूपी STF के प्रमुख अमिताभ यश ने कहा भी था,

“हमने आपराधिक रूप से एक्टिव जिलों की सूची बनायी, जिसमें आंबेडकरनगर टॉप 3 में आया. यहां और टांडा में कोई भी व्यापारी कार्य करता था, तो उसे रंगदारी देनी होती थी. और सारे अपराधों के पीछे ख़ान मुबारक का नाम सामने आता था.”

मुन्ना बजरंगी से हो गयी लड़ाई 

बहरहाल, इसी सबके बीच छोटा राजन और पूर्वांचल के दूसरे माफ़िया मुन्ना बजरंगी के बीच अदावत शुरू हो चुकी थी. और जब साल 2006 में खान मुबारक ने कथित तौर पर इलाहाबाद में डाकघर लूटा, तो इससे मुन्ना बजरंगी का माथा ठनका. क्योंकि लोग बताते हैं कि मुन्ना बजरंगी और उसके तमाम शूटरों की आरामगाह इलाहाबाद हुआ करता था. वारदात कहीं हो, इलाहाबाद में मुन्ना बजरंगी गैंग आराम करने आता था. खान मुबारक के एक्टिव होते ही आपराधिक सत्ता का संतुलन थोड़ा गड़बड़ हो गया. मुन्ना बजरंगी ने अपने ख़ास लोगों जैसे बंटी अफ़रोज़, संजीव जीवा और बच्चा यादव को नए शूटर जोड़ने के काम में लगाया था.
 

मुन्ना बजरंगी
मुन्ना बजरंगी

निर्णायक मोड़ तब आया, जब खान मुबारक ने मुन्ना बजरंगी के एक क़रीबी डॉक्टर से 25 लाख रुपए की रंगदारी मांग ली. इस बात का पता लगा संजीव जीवा को. मुन्ना बजरंगी को जीवा ने लेस दिया. मतलब खान मुबारक की चुग़ली कर दी. फिर खान मुबारक और मुन्ना गैंग के बीच शूटआउट का दौर शुरू हुआ. कभी झूंसी में तो कभी साउथ मलाका में. कभी सीधे खान मुबारक और मुन्ना के शूटरों के बीच, तो कभी दोनों के शूटरों के ही बीच, गोलीबारी होने लगी. STF सक्रिय हुई. ख़बरें बताती हैं कि पुलिस घुसी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हॉस्टल में. पूर्वांचल के कई सक्रिय शूटर हॉस्टल से दबोचे गए. इधर बंटी अफ़रोज़ ने छोटा राजन और ख़ान मुबारक के क़रीबी फ़िरोज़ को मार दिया. 

काला घोड़ा शूटआउट

कहा जाता है कि इन घटनाओं के बाद पुलिस की दबिश बढ़ी तो खान मुबारक मुंबई चला गया. अपने भाई के साथ रहा. छोटा राजन से क़रीबी और बढ़ गई. और फिर वो घटना हुई, जिससे किसी न किसी अपराधी का ग्राफ़ ज़रूर चढ़ता है. बड़ी कहानी से पहले जानिए एक छोटी कहानी. दो लोग. नाम अमज़द खान और हिमांशु चौधरी. दोनों ड्रग्स का काम करते थे. और छोटा राजन के क़रीबी ड्रग कारोबारी एजाज़ पठान से 50 लाख रुपए ले लिए. पैसे लौटाए बिना अमज़द खान और हिमांशु जाकर मिल गए दाऊद इब्राहिम से. और इस सबके दसियों साल पहले यानी 1993 में दाऊद और छोटा राजन अलग हो चुके थे. और अलग होकर एक दूसरे के जानी दुश्मन भी हो चुके थे. मुंबई ही नहीं, थाईलैंड, नेपाल, मलेशिया, बैंकॉक और दुबई में कई सारी बड़ी-छोटी घटनाएं दोनों के बीच हो चुकी थीं. इधर पुलिस ने भी एक मामले में अमज़द खान और हिमांशु चौधरी को अरेस्ट कर लिया था. एजाज़ इन दोनों से खार खाए बैठा था. छोटा राजन को सुपारी दे दी गयी.

छोटा राजन
छोटा राजन

 
ये छोटा राजन के लिए निर्णायक मौक़ा था. सुपारी पूरा करने का, दाऊद इब्राहिम के गुर्गों को उड़ाने का और मुंबई पुलिस के सामने मिसाल क़ायम करने का. इनको एक साथ ही निबटाने का समय आ गया था. छोटा राजन ने ये काम दो लोगों को दिया. अपने क़रीबी ज़फ़र सुपारी और राजेश यादव को. इन लोगों ने पूर्वांचल, खासकर इलाहाबाद से, शूटर बुलाए.
 

Baccha Pasi
बच्चा पासी

 
16 अक्टूबर 2006. मुंबई के काला घोड़ा इलाक़े में पुलिस की एक वैन हिमांशु और अमज़द को पेशी वास्ते कोर्ट लेकर जा रही थी. एक मौक़े पर एक पुलिस वैन को चारों ओर से घेर लिया गया. चारों ओर से गोलियां चलने लगीं. और गोलियां तब तक चलीं, जब तक वैन के अंदर बैठे लोगों के जिस्म ठंडे नहीं हो गए. काम पूरा हो गया था. छोटा राजन ने हत्या करवायी थी. ख़बरों के मुताबिक़, जिन लोगों ने मिलकर दिनदहाड़े इस शूटआउट को अंजाम दिया था, उनके नाम थे - बच्चा पासी, ओसामा खान, निहाल कुमार, नीरज वाल्मीकि, ज़फ़र सुपारी और खान मुबारक. न्यूज़ 18 की ख़बर के मुताबिक़, जब बाद में STF ने खान मुबारक को गिरफ़्तार किया, तभी पूछताछ में उसने ये नाम उगले थे. दिनदहाड़े हुआ ये हत्याकांड इतिहास में काला घोड़ा शूटआउट के नाम से दर्ज हुआ. मुंबई क्राइम ब्रांच ने बच्चा पासी, ज़फ़र सुपारी और ख़ान मुबारक को अरेस्ट कर लिया.
 

दाऊद इब्राहिम
दाऊद इब्राहिम

 
इसके बाद ख़बरों में फ़िल्म जगत से जुड़े दो लोगों के मर्डर की साजिश में भी खान मुबारक का नाम आता है. राजकुमार संतोषी और हिमेश रेशमिया. ख़बरें बताती हैं कि इन दो लोगों की हत्या करने की सुपारी छोटा राजन ने ली थी. शूटरों को लगाया जाना था. ख़ास सहयोगी एजाज़ लकड़ावाला ने शूटरों की भर्ती का काम लिया. मदद की जेल में बंद खान मुबारक ने. लखनऊ और बाराबंकी से शूटर बुलाए गए. मुंबई क्राइम ब्रांच ने इंटरसेप्ट किया. काम नहीं हो पाया.

इसके अलावा भी जेल में रहते हुए खान मुबारक ने कई घटनाओं को अंजाम दिया. कभी रंगदारी मांगना तो कभी किसी व्यापारी का हत्या करवा देना. कुछ मौक़ों पर खान मुबारक बाहर आता, तो भी क़िस्से जुड़ ही जाते.

कैशवैन की लूट और बड़ी पकड़

15 मई 2007. शाम के 8 बजे. इलाहाबाद में एक कैश वैन पर हमला हुआ. लूट की नीयत से. लूट तो असफल रही लेकिन वैन के साथ रहने वाले दो गार्ड मारे गए. और एक और गार्ड ने अपनी बंदूक से दो लुटेरों को ढेर कर दिया. जब दोनों लुटेरों की शिनाख्त की गयी तो एक का नाम पता चला सौरभ सिन्हा, और दूसरे का नाम था विनय रंजन गुप्ता. ख़बरों के मुताबिक़, दोनों के पास से फ़ोन बरामद किए गए. फ़ोन के कॉल डीटेल रिकार्ड निकाले गए. सारे तार आंबेडकरनगर जा रहे थे. इनकी मौत के कुछ दिनों बाद पुलिस ने इनके फ़ोन से उस नम्बर पर फोन लगाया, जिस पर सबसे अधिक बात हुई थी. उधर से फ़ोन उठाया खान मुबारक ने. पुलिस का शक यक़ीन में बदल गया था. अरेस्ट हुआ और फिर हुई पूछताछ. ख़बरें बताती हैं कि इसी पूछताछ में खान मुबारक ने काला घोड़ा शूटआउट का राज उगल दिया था.

जेल से कराया अपने ही ‘दोस्त’ का क़त्ल

2007 से लेकर 2012 तक खान मुबारक नैनी सेंट्रल जेल में बंद रहा. ख़बरें चलती रहीं. लेकिन साल 2011 में एक बड़ी घटना सामने आयी. छोटा राजन के क़रीबी ओसामा की हत्या की. ओसामा छोटा राजन के ख़ास लोगों में शामिल था, और उसके काला घोड़ा शूटआउट में भी शामिल होने की ख़बरें आती हैं. तो सितम्बर 2011 में एक दिन लोगों ने इरादतगंज रेलवे क्रॉसिंग के पास एक लाश पड़ी देखी. लाश गोलियों से छलनी थी. शिनाख़्त हुई तो वो ओसामा की लाश निकली. कुछ लोगों ने कहा कि छोटा राजन गैंग का मेम्बर ओसामा पुलिस को छोटा शकील के बारे में जानकारी देता था, इसलिए दाऊद गिरोह ने मार दिया. लेकिन कुछ जानकार ये भी बताते हैं कि बाद के वर्षों में ओसामा छोटा शकील के गिरोह में शामिल हो गया था, और ये बात छोटा राजन को क़तई पसंद नहीं आयी. छोटा राजन ने ज़फ़र सुपारी को काम तमाम करने को बोला, और कहते हैं कि ज़फ़र सुपारी ने ये काम सौंपा अपने भाई खान मुबारक को. नैनी जेल में रहते हुए खान मुबारक ने ओसामा की हत्या करवा दी. इस हत्या के लिए उसने अपने पुराने साथी राजेश यादव की मदद ली और सुपारी चढ़ी 50 लाख की.

जेल से बाहर आते ही क़त्ल

2012 में खान मुबारक जेल से निकला. और बाहर आते ही फिरौती का काम शुरू. और इस बार टांडा तहसील के बहुचर्चित भट्ठा व्यापारी और ट्रांसपोर्टर अईनुद्दीन से रंगदारी मांगी गई. रंगदारी नहीं मिली. अईनुद्दीन की मौत हो गयी. इस समेत वह कई मामलों में जेल गया, बाहर आता रहा.
 

Khan Mubarak 1
अपने सहयोगियों के साथ खान मुबारक

 
कारोबार का रुख थोड़ा-सा बदल चुका था. ज़मीन का कारोबार, रंगदारी और फिरौती. दूसरे लोगों को शूटर चाहिए होते, तो वो भी खान मुबारक मुहैया कराता था. काम मूलतः हंसवार, आंबेडकरनगर के अपने घर से करता था. और यहीं पर एक और ख़ूनी दुश्मनी शुरू हो गयी. हंसवार के रहने वाले बसपा नेता जुगराम मेहंदी से. जुगराम मेहंदी पर ख़ुद लूट, हत्या, हत्या के प्रयास के मुक़दमे दर्ज थे, तो इधर खान मुबारक भी कम नहीं था. संघर्ष बढ़ता गया. जुगराम पर खान मुबारक के लोगों के ऊपर हमले के आरोप लगे तो खान मुबारक ने जुगराम के लोगों पर हमले कराए. और आख़िर में 15 अक्टूबर 2018 को एक शूटआउट में खान मुबारक ने कथित तौर पर जुगराम मेहंदी की हत्या करवा दी.

लेकिन एक साल पीछे चलिए. 2016 में जेल से बाहर आने के बाद 2017 में लखनऊ से यूपी STF ने फिर से खान मुबारक को अरेस्ट कर लिया. तब से लेकर अभी तक खान मुबारक जेल में है. 2018 में फ़ैज़ाबाद जेल से उसका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उसने कहा था,

“मुझ पर हमला करने की कोशिश की जा रही है. खान मुबारक एक न ख़त्म होने वाली ऑर्गनाइज़ेशन का नाम है. मुझ पर हमला हुआ तो खादी और ख़ाकी दोनों को ही नहीं बख़्शा जाएगा.”

ये सीधी चेतावनी थी. जेल से वीडियो आने पर बवाल हुआ था. लेकिन फिर जुगराम मेहंदी की हत्या के बाद ये भी समीकरण बन गए कि जेल से वीडियो ही नहीं, शायद हत्या भी करायी जा सकती है. अभी ख़ान मुबारक हरदोई जेल में बंद था. तीन दर्जन से ज़्यादा मुक़दमे दर्ज थे. कहते हैं कि कोई गवाह नहीं मिलता था इसलिए उसका बाहर आना आसान हो जाता था.

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