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अमेरिका की पोल खोलने वाले एडवर्ड जोसेफ़ स्नोडेन की पूरी कहानी!

एडवर्ड जोसेफ़ स्नोडेन, CIA का एक जासूस, जिसने अमेरिका के सबसे ख़तरनाक सीक्रेट्स का भंडाफोड़ कर दिया.

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एडवर्ड जोसेफ़ स्नोडेन, CIA का एक जासूस, जिसने अमेरिका के सबसे ख़तरनाक सीक्रेट्स का भंडाफोड़ कर दिया.

“मेरा नाम एडवर्ड जोसेफ़ स्नोडेन है. मैं पहले सरकार के लिए काम करता था, लेकिन अब आम लोगों के लिए करता हूं. मुझे ये अंतर समझने में तकरीबन तीन दशक लग गए. और, जब मैंने ये समझा, मेरे लिए दफ़्तर में मुश्क़िलें शुरू हो गईं. नतीजतन, मैं अब आम जनता को उनसे बचाने की कोशिश करता हूं, जो मैं पहले हुआ करता था. सेंट्रल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (CIA) और नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी (NSA) का एक जासूस. मैं किसी नौजवान इंजीनियर की तरह था, जिसे ये गुमान था कि वो दुनिया को बेहतरी की तरफ़ ले जा रहा है.”

अपनी आत्मकथा ‘परमानेंट रेकॉर्ड’ में एडवर्ड स्नोडेन ने अपनी पहचान कुछ यूं दर्ज़ की है. स्नोडेन कौन? 

अगर इस शख़्स का परिचय तलाशने जाएं तो कुछ-कुछ ऐसा सामने आएगा.

- सीआईए का एक जासूस, जिसने अमेरिका के सबसे ख़तरनाक सीक्रेट्स का भंडाफोड़ कर दिया.

- जिसने अमेरिका की जनता को बताया कि सरकार उनके फ़ोन से लेकर लैपटॉप तक में घुसी हुई है.

- जिसे उसका अपना मुल्क़ गद्दार मानता है, जबकि बाकी दुनिया में उसे सच्चाई का झंडाबरदार माना गया.

- जिसे अपने देश में ख़तरा महसूस हुआ तो वो भागकर रूस चला गया.

- और, जिसको व्लादिमीर पुतिन ने 26 सितंबर को रूस की स्थायी नागरिकता दे दी है.

तो, आज हम जानेंगे,

- एडवर्ड जोसेफ़ स्नोडेन की पूरी कहानी क्या है?
- उन्हें अमेरिका गिरफ़्तार क्यों करना चाहता है?
- और, स्नोडेन की मिली रूसी नागरिकता का मतलब क्या है?

शुरुआत एक लड़के के परिवार से. ये परिवार अमेरिका के दक्षिण-पूर्व में बसे राज्य नॉर्थ कैरोलाइना में रहता था. इसमें सबसे बुजुर्ग थे, लड़के के दादा. वो फ़ेडरल इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (FBI) से रिटायर हुए. पिता कोस्ट गार्ड में थे, जबकि लड़के की मां नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी में काम करती थी. जब वो बड़ा हुआ तो ख़ुद यूएस आर्मी में शामिल हो गया. वो लड़का एडवर्ड स्नोडेन था.

इस कहानी को यहां पर अल्पविराम देते हैं. थोड़ा पीछे चलते हैं.

साल 1963. वियतनाम वॉर रफ़्तार पकड़ रहा था. इसी दौरान वर्जीनिया के सीआईए हेडक़्वार्टर में एक नौजवान की नौकरी लगी. उसका नाम सैम एडम्स था. सैम का काम ग्राउंड से आ रही जानकारियों को पढ़कर रिपोर्ट तैयार करना था. ऐसे लोगों को इंटेलिजेंस एनालिस्ट कहा जाता है. सैम ने दो साल तक कॉन्गो डेस्क पर काम किया. फिर उसका ट्रांसफ़र वियतनाम डेस्क पर कर दिया गया. उसे साउथ वियतनाम में मौजूद दुश्मनों की गिनती करनी थी. जब सैम ने पड़ताल की तो उसका माथा ठनका. पता चला कि साइगॉन में मौजूद अमेरिकी जनरल्स सफेद झूठ बोल रहे हैं. वे दुश्मन की संख्या को आधा करके बता रहे थे. ऐसा इसलिए ताकि अमेरिकी जनता को जीत का भ्रम बना रहे. ये बात सीआईए में सैम के अफ़सरों को भी पता थी. लेकिन उन्होंने इसे राष्ट्रपति के पास पहुंचने नहीं दिया. नतीजा, वियतनाम वॉर आगे बढ़ता गया और साथ में हताहतों की संख्या भी. सैम सच्चाई बाहर लाने के लिए एजेंसी के अंदर लड़ाई लड़ते रहे. मगर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा. वियतनाम वॉर अपने चरम पर जाकर खत्म हुआ.

सैम एडम्स ने 1973 में एजेंसी छोड़ दी. बाद में वो वर्जीनिया में अपने कैटल फ़ार्म में काम करने लगे. उन्हें ताउम्र इस बात का मलाल रहा कि वो बाहर जाकर सच की लड़ाई नहीं लड़ पाए. अगर वो ऐसा करते तो वियतनाम में हज़ारों अमेरिकी सैनिकों की जान बच सकती थी. ये मलाल उनके साथ ही चला गया. अक्टूबर 1988 में हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई.

जिस बरस सैम की मौत हुई, उसी समय छह साल का एक बालक एडवर्ड अपने जीवन की पहली हैकिंग कर रहा था. उसने अपने घर की सभी घड़ियों की टाइमिंग बदल दी. ताकि उसे सोने के लिए ज़्यादा समय मिल सके. आगे चलकर वो स्कूल के सिस्टम को हैक करने लगा. सिलेबस के साथ छेड़छाड़ करने लगा. इरादा ये कि कम मेहनत में परीक्षा निकल जाए. वो स्कूल को एक अवैध सिस्टम मानता था, जहां विरोध या आलोचना की कोई गुंजाइश नहीं थी. आख़िरकार, 16 बरस की उम्र में उसने स्कूल छोड़ दिया.

एडवर्ड स्नोडेन (AP)

1990 का दशक इंटरनेट-क्रांति का था. एडवर्ड को इंटरनेट पर मज़ा आने लगा. कंप्यूटर्स से उसकी दोस्ती हो गई. स्कूल छोड़ने के बाद उसने कम्युनिटी कॉलेज में दाखिला लिया. वहां उसने कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की. 2004 में वो आर्मी में गया. लेकिन चार महीने बाद ही उसे डिस्चार्ज कर दिया गया. फिर उसने मेरीलैंड यूनिवर्सिटी के एक सेंटर में उसने सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी पकड़ ली. उसके पास कोई डिग्री नहीं थी, लेकिन कंप्यूटर के ज्ञान ने उसकी राह आसान कर दी. 9/11 के हमले के बाद अमेरिकी एजेंसियों को तकनीक में पारंगत नौजवानों की ज़रूरत थी. इसी क्रम में 2006 में एडवर्ड को सिक्योरिटी क्लीयरेंस मिल गया. उसे CIA में कंप्यूटर टेक्नीशियन की नौकरी मिल गई. यहां से उसके खुफिया करियर की शुरुआत हुई.

स्नोडेन अपने काम में माहिर था. वो जल्दी ही सफ़लता की सीढ़ियां चढ़ने लगा. 2009 में उसने CIA से इस्तीफा दे दिया. उसके बाद वो NSA के लिए प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टर के तौर पर काम करने लगा. एडवर्ड डेल कंपनी का स्टाफ़ था. लेकिन असल में वो NSA के लिए काम कर रहा था. कुछ समय बाद उसे जापान भेजा गया. स्नोडेन को एजेंसी का ग्लोबल बैकअप तैयार करने की ज़िम्मेदारी दी गई. अगर कभी NSA का हेडक़्वार्टर तबाह हो जाता है, तब भी इस बैकअप में सारा डेटा मौजूद रहेगा. NSA का दावा है कि स्नोडेन ने इसी दौरान खुफिया जानकारियों की चोरी शुरू कर दी थी. हालांकि, एजेंसी को इस बात की जानकारी बहुत समय बाद मिली.

2013 में स्नोडेन हवाई में NSA के रीजनल ऑपरेशंस सेंटर में काम कर रहा था. ये सेंटर चीन और नॉर्थ कोरिया पर निगरानी रखता है. मई 2013 में उसने मेडिकल लीव के लिए अप्लाई किया. वहां से वो सीधा हॉन्ग कॉन्ग पहुंचा. वहां उसने ब्रिटिश अख़बार गार्डियन और अमेरिकी अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट के खोजी पत्रकारों को मिलने बुलाया. उन्हें इंटरव्यूज़ दिए और अपने पास मौजूद पूरा डेटा सौंप दिया.

अख़बारों ने स्नोडेन का नाम लिए बिना रिपोर्ट्स पब्लिश करनी शुरू कर दीं. इन लीक्स ने अमेरिका समेत पूरी दुनिया को हैरान कर दिया. इसमें कई चौंकाने वाले खुलासे थे.
पहला, अमेरिकी सरकार अपने करोड़ों नागरिकों पर नज़र रख रही थी. लोगों के कॉल डिटेल्स रिकॉर्ड किए जा रहे थे. वो भी, बिना किसी कोर्ट के वॉरंट के. टेलिकॉम कंपनियां सरकारी एजेंसियों के लिए माध्यम का का काम कर रहीं थी. लीक से पहले तक खुफिया एजेंसियां इस तरह की निगरानी से साफ़ मना कर रहीं थी.

दूसरी चीज़ ये पता चली कि NSA अमेरिकी टेक कंपनियों, जैसे, गूगल, फ़ेसबुक, याहू, माइक्रोसॉफ़्ट, यूट्यूब, एपल और स्काइप से दुनियाभर के लोगों का डेटा निकाल रही थी. उनके पास इन कंपनियों के सर्वर्स का एक्सेस है. इसे प्रिज़्म प्रोग्राम के नाम से जाना जाता था. गार्डियन ने खुलासा किया कि इसमें यूके की एजेंसियों की भी मिलीभगत है.

स्नोडेन ने 2013 में गार्डियन को दिए इंटरव्यू में कहा था,
NSA ने एक ऐसा सिस्टम तैयार किया है जिससे किसी भी चीज पर निगरानी रखी जा सकती है. बस वो चीज किसी नेटवर्क से जुड़ी होनी चाहिए.

तीसरी चीज ये पता चली कि NSA के पास दुनियाभर के लगभग हर ऐसे व्यक्ति का डेटा है, जिसने कभी फ़ोन या लैपटॉप का इस्तेमाल किया. इस लिस्ट में उन देशों के नागरिक थे, जिनके साथ अमेरिका के अच्छे संबंध थे. एक जर्मन पत्रिका डेर स्पीगल ने दावा किया कि अमेरिका ने यूरोपियन यूनियन के दफ़्तर में जासूसी वाले यंत्र लगाए थे.
अमेरिका एजेंसियों ने जर्मनी की तत्कालीन चांसलर एंजेला मर्केल के फ़ोन कॉल्स को भी ट्रैक किया. इसको लेकर जर्मन सरकार ने अक्टूबर 2014 में अमेरिका के राजदूत को तलब किया था.
इन सबके अलावा, कई देशों के दूतावासों और लैटिन अमेरिकी सरकारों पर भी नज़र रखी जा रही थी. और भी कई खुलासे थे, जो अख़बारों ने सीरीज़ में पब्लिश किए.

अभी तक अख़बारों में एडवर्ड स्नोडेन का कहीं नाम नहीं आ रहा था. लेकिन 09 जून 2013 को स्नोडेन ने सामने आने का फ़ैसला किया. उनका कहना था कि जब मैंने कुछ ग़लत नहीं किया है तो मैं क्यों छिपकर रहूं.

तब गार्डियन ने उनका इंटरव्यू पब्लिश किया. लगभग 10 मिनट के इस इंटरव्यू का कुछ हिस्सा सुन लीजिए.
एक सवाल था,

आपने व्हिस्लब्लोअर बनने का फ़ैसला क्यों लिया?

- NSA अपने सिस्टम के जरिए लगभग हर चीज पर नज़र रख सकती है. अगर मैं आपकी पत्नी के फ़ोन पर आपके मेल्स चेक करना चाहूं तो वो भी हो सकता है. मैं आपके ईमेल्स, पासवर्ड्स, फ़ोन रेकॉर्ड्स, क्रेडिट कार्ड्स सब देख सकता हूं.
मैं ऐसे समाज में नहीं रहना चाहता, जो इस तरह की चीजें करता है… मैं ऐसी दुनिया में नहीं जीना चाहता जहां हर चीज़ रेकॉर्ड की जा रही है.

अगला सवाल.
आपको लगता है कि आपने जो किया वो एक अपराध है?
- सरकार अपनी तरफ़ से पर्याप्त अपराध कर चुकी है. मेरे ऊपर ये आरोप लगाना ग़लत होगा.

अब आपके साथ क्या होने वाला है?
- कुछ अच्छा तो नहीं ही होगा.

आपने हॉन्ग कॉन्ग को क्यों चुना?
- किसी अमेरिकी व्यक्ति के लिए इससे बड़ी त्रासदी क्या होगी कि उसे ऐसी जगह पर छिपना पड़ रहा है, जहां प्रेस फ़्रीडम नहीं के बराबर है. फिर भी, हॉन्ग कॉन्ग आज़ादी के मामले में चीन से बेहतर है. यहां फ़्री स्पीच की मज़बूत परंपरा रही है.

इंटरव्यू रिलीज़ होने के बाद अमेरिका परेशान हो गया. उसने जासूसी कानून के तहत स्नोडेन पर मुकदमा दायर कर दिया. अमेरिका ने स्नोडेन को प्रत्यर्पित करने की अपील की. हॉन्ग कॉन्ग ने ऐसा करने से मना कर दिया. लेकिन तब तक स्नोडेन का हॉन्ग कॉन्ग में रहना ख़तरनाक हो चुका था. ये चर्चा चलने लगी थी कि अमेरिकी एजेंट्स स्नोडेन और डॉक्यूमेंट छापने वाले पत्रकारों की हत्या कर सकते हैं. फिर स्नोडेन का संपर्क विकिलीक्स के फ़ाइंडर जूलियन असांज से हुआ. स्नोडेन को इक्वाडोर में शरण दिलाने की बात तय हुई. वो हॉन्ग कॉन्ग से मॉस्को के रास्ते इक्वाडोर जाने वाले थे. जैसे ही स्नोडेन का जहाज मॉस्को में उतरा, उसी समय ख़बर आई कि अमेरिका ने उनका पासपोर्ट कैंसिल कर दिया है. फिर उन्होंने कई देशों में शरण की गुहार लगाई. इनमें रूस भी था. 40 दिनों तक एयरपोर्ट के इंटरनैशनल ट्रांजिट ज़ोन में रहने के बाद रूस ने उन्हें शरणार्थी का दर्ज़ा दे दिया. एक बरस बाद रूस ने उन्हें रेजिडेंस परमिट दे दिया. 2017 में इसकी समयसीमा तीन साल के लिए और बढ़ा दी गई. 2020 में उन्हें परमानेंट रेजिडेंसी का अधिकार मिल गया.

एडवर्ड स्नोडेन पिछले नौ बरस से रूस में रह रहे हैं. उन्होंने कई मौकों पर वापस अपने मुल्क़ लौटने की इच्छा जताई है. एक शर्त के साथ. वो ये कि उन्हें निष्पक्ष ट्रायल दिया जाएगा. लेकिन ये मौका उन्हें कभी नहीं मिला. अब उसकी संभावना लगभग खत्म हो गई है.
दरअसल, 26 सितंबर 2022 को रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने एक हुक्मनामे पर दस्तखत किया. इसके तहत 75 विदेशी लोगों को रूस की नागरिकता दी गई है. इसमें एक नाम एडवर्ड स्नोडेन का भी है. स्नोडेन अब रूस के नागरिक बन गए हैं. हालांकि, उन्होंने अभी तक अमेरिका की नागरिकता छोड़ी नहीं है.
रूस की नागरिकता मिलने के बाद स्नोडेन ने ट्वीट किया,
“अपने माता-पिता से बरसों तक अलग रहने के बाद, मैं और मेरी पत्नी नहीं चाहते कि हम अपने बच्चों से दूर रहें. दो बरस के इंतज़ार और लगभग दस सालों तक निर्वासन में रहने के बाद, इस स्थिरता से हमारे परिवार पर बहुत फ़र्क़ पड़ेगा. मैं उनकी और हम सबकी निजता के लिए प्रार्थना करता हूं.”

अब ये जान लेते हैं कि स्नोडेन के खुलासों के बाद अमेरिका में क्या हुआ?
अमेरिका में स्नोडेन के ऊपर तीन चार्ज़ लगे. तीनों मामलों में अधिकतम दस-दस साल की सज़ा का प्रावधान है. यानी, अगर स्नोडेन अमेरिका गए और उनके ऊपर लगे दोष साबित हुए तो उन्हें 30 बरस की जेल हो सकती है.

लीक के बाद अमेरिका के उस समय के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने NSA का पक्ष लिया. उन्होंने कहा कि अमेरिका को बचाने के लिए ये ज़रूरी है. ओबामा ये भी बोले कि NSA ने कभी कुछ ग़लत नहीं किया है. ओबामा प्रशासन ने अगस्त 2013 में एक स्वतंत्र पैनल की स्थापना की. पैनल ने मास रेकॉर्डिंग, विदेशी नेताओं की निगरानी और खुफिया प्रोग्राम्स के बेहतर संचालन का सुझाव दिया. कई सुझावों पर अमल किया गया. कुछ अमेरिकी संसद में पहुंचे. उनके ऊपर कानून बनाने को लेकर बहस शुरू हुई. इन सबके बावजूद पूरी दुनिया में डिजिटल प्राइवेसी को लेकर बहस जारी है. ओबामा के कार्यकाल के आख़िर में उन्हें क्षमादान देने की मांग भी तेज़ हुई थी. लेकिन इसपर कोई फ़ैसला नहीं लिया जा सका.

जिन दो अख़बारों, गार्डियन और वॉशिंगटन पोस्ट, ने सबसे पहले स्नोडेन द्वारा लीक किए गए दस्तावेज छापे थे, उन्हें 2014 में पुलित्ज़र प्राइज़ से नवाज़ा गया.

इन सबके बीच एडवर्ड स्नोडेन की विरासत को लेकर चर्चाओं का दौर चलता रहा. आज भी चल रहा है. एक धड़ा स्नोडेन को फ़्रीडम ऑफ़ स्पीच के नायक की तौर पर देखता है. दूसरे धड़े का कहना है कि स्नोडेन ने राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता से खिलवाड़ किया. उनके कारण अमेरिका का सिक्योरिटी सिस्टम कमज़ोर हुआ.

एक आरोप ये भी लगता है कि स्नोडेन ने रूस को अमेरिका की खुफिया जानकारियां साझा की हैं. इसी वजह से उन्हें वहां शरण मिली हुई है. स्नोडेन और पुतिन दोनों इससे इनकार करते हैं.

एक और सवाल ज़ोर-शोर से उठ रहा है.
अब चूंकि स्नोडेन रूस के नागरिक बन गए हैं, तो क्या वो भी यूक्रेन के मोर्चे पर लड़ने जाएंगे? पुतिन ने 21 सितंबर को आंशिक लामबंदी का आदेश दिया था. बोले कि यूक्रेन वॉर में सैनिकों की संख्या कम पड़ रही है, तो नए लोगों को लड़ने भेजा जाएगा. ऐसे लोग, जिनका रशियन आर्मी में काम करने का पुराना अनुभव रहा है. क्या स्नोडेन भी इस केटेगरी में आएंगे? स्नोडेन की वकील के मुताबिक, नहीं. उन्हें यूक्रेन के मोर्चे पर नहीं जाना होगा. क्यों? क्योंकि उनका रशियन आर्मी में काम करने का अनुभव नहीं रहा है.

पुतिन ने भाषण में ऐसा क्या कहा कि लोग रूस छोड़कर भागने लगे?