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संघ के इन 4 चेहरों ने पर्दे के पीछे रहकर BJP को बिहार जिता दिया

कौन हैं भवानी सिंह जिन्होंने मिथिला जिता के एनडीए को बिहार जिता दिया?

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पीएम मोदी के साथ भवानी सिंह. (फोटो: फेसबुक)
बिहार चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और एनडीए बहुमत के आंकड़े को पार कर गई है. सभी एग्जिट पोल्स को ठेंगा दिखाते हुए भाजपा को 74, जदयू को 43, वीआईपी को 4 और हम को 4 सीटें मिली हैं.
पर कहानी सिर्फ इतनी सी नहीं है. इस जीत के पीछे कई ऐसे चेहरे हैं जिनकी बात नहीं हो रही. हम ऐसे ही कुछ ऐसे चेहरों के बारे में बात करेंगे. जिन्होंने लगभग हारे से दिख रहे बिहार को एनडीए की झोली में डाल दिया. ये चेहरे संघ से जुड़े वो लोग हैं जो पर्दे के पीछे रहकर काम करते हैं. यानि कि संगठन मंत्री. बीजेपी की वर्किंग से जो लोग वाकिफ हैं. वो संगठन मंत्रियों के रोल के बारे में जानते होंगे. तो बिहार का खेल बदलने में कुछ संगठन मंत्रियों ने बड़ा रोल निभाया.  सबको पता है बिहार के संगठन महामंत्री हैं एन नागेंद्र नाथ. एक दशक से अधिक समय से बिहार में सक्रिय हैं. मगर चुनाव से ठीक पहले वह बीमार पड़ गए. दो बार कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद उनके स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें आराम दिया गया. और यहीं से एंट्री हुई चार संगठन मंत्रियों की. दो यूपी से, एक झारखंड और एक दिल्ली से.
पहला नाम भवानी सिंह. दूसरा नाम धर्मपाल सिंह. तीसरा नाम पवन शर्मा. चौथा नाम रत्नाकर.
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बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ भवानी सिंह. (फोटो: फेसबुक)


इन चारों संगठन मंत्रियों को बिहार को चार भाग में बांटकर जिम्मेदारी सौंपी गई. और इन्होंने चुनाव से ठीक पहले जिम्मेदारी संभालकर पूरा गेम पलट डाला.
गेम पलटने की बात है तो सबसे पहला नाम लेना बनता है यूपी के बृज औऱ कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र के संगठन मंत्री भवानी सिंह का जिन्हें मिथिला क्षेत्र के दरभंगा, कोसी और पूर्णिया जोन की जिम्मेदारी दी गई थी. और यहां बीजेपी और एनडीए की परफॉर्मेंस एकदम धमाकेदार रही. धमाकेदार इसलिए क्योंकि ये वो इलाका है जहां 2015 में महागठबंधन का कब्ज़ा था. राजद का प्रभाव रहा है.
लालू के किले को ढहाया
2015 चुनाव की बात करें तो जदयू और राजद एक साथ थे और बीजेपी अपने अन्य सहयोगियों के साथ. और इस चुनाव में दरभंगा जोन (समस्तीपुर, दरभंगा और मधुबनी जिले) की 30 सीटों में एनडीए सिर्फ 4 सीट जीत पाई थी.
कोसी जोन (सुपौल, सहरसा और मधेपुरा जिले) की बात करें तो क्षेत्र की 13 सीटों में से बीजेपी सिर्फ 1 सीट जीत पाई थी. ऐसे ही पूर्णिया जोन (अररिया, कटिहार, पूर्णिया और किशनगंज जिले) की 24 सीटों में से सिर्फ 6 सीट जीत सकी थी. माने कुल 67 सीटों में से एनडीए 11 सीट जीत पाई थी. इसमें से बीजेपी ने 10 और रालोसपा ने एक सीट जीती थी.
अबकी क्या हुआ?
भवानी सिंह की एंट्री ने यहां एनडीए का पासा पलट दिया. करीब दो महीने बिहार में रहके संगठन की चूड़िया भवानी सिंह ने यूं कसीं कि इस क्षेत्र में एनडीए ने 67 सीटों में से 45 सीटें जीत लीं. 11 से सीधा 45. 34 सीटों की बढ़त.
विस्तार से बात करें तो दरभंगा जोन की 30 सीटों में से एनडीए ने 23 सीट जीती. इसमें से बीजेपी ने 11, जदयू ने 10 और वीआईपी ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की. महागठबंधन सिर्फ 7 सीट जीत पाई.
कोसी जोन की 13 सीटों में से अबकी 10 सीटें एनडीए के खाते में गई और 3 महागठबंधन के. एनडीए को गई 10 सीटों में से 8 जदयू को मिली और 2 बीजेपी को.
 
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दरभंगा जिले में सभा को संबोधित करते हुए भवानी सिंह. (फोटो: फेसबुक)


पूर्णिया जोन जिसे सीमांचल भी कहते हैं. इस इलाके में अबकी एनडीए ने 12 सीटों पर जीत दर्ज की. 7 सीटें महागठबंधन के खाते में गई और 5 सीटें एमआईएम जीती. एनडीए को मिली 12 सीटों में 8 बीजेपी ने जीती और जदयू ने 4.
आपको बता दें कि भवानी सिंह को मिली कुल 74 सीटों में से 40 सीटें जदयू के हिस्से में थीं और जदयू ने उनमें से 23 पर जीत दर्ज की. बीजेपी के हिस्से आई 28 सीटों में से 23 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की और विकासशील इंसान पार्टी के खाते में गई 6 सीटों में से 2 पर वीआईपी ने जीत दर्ज की.
कौन हैं भवानी सिंह?
भवानी सिंह की इस परफॉर्मेंस के साथ ही आपको उनका इतिहास भी बता देते हैं. उन्होंने 2019 लोकसभा चुनाव से लेकर 2017 विधानसभा चुनाव में यूपी में बड़ा रोल निभाया था. समाजवादी पार्टी के गढ़ माने जाने वाले इटावा, बदायूं क्षेत्र को बीजेपी की झोली में डाल दिया था. यही वजह थी कि 2019 चुनाव में ब्रज और कानपुर क्षेत्र में लोकसभा की 23 सीटों में से बीजेपी ने 22 सीटें जीतीं. सिर्फ मैनपुरी में हार मिली. इसी तरह 2017 विधानसभा चुनाव में 120 सीटों में से 109 सीटों पर भवानी सिंह ने जीत दिलाई. मात्र 11 सीटों पर हार मिली. और इसी परफॉर्मेंस को देखते हुए भवानी सिंह को एनडीए के लिए बिहार में सबसे मुश्किल माने जा रहे मिथिला क्षेत्र के दरभंगा, कोसी और पूर्णिया जोन का काम दिया गया.
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बाएं से दाएं- धर्मपाल सिंह, रत्नाकर और पवन शर्मा.


अगला नाम है पवन शर्मा का, जिनके पास तिरहुत क्षेत्र का प्रभार था. यहां एनडीए ने 49 में से 34 सीटों पर जीत दर्ज की. पवन शर्मा पहले दिल्ली के संगठन मंत्री रहे हैं. फिलहाल बिहार के सह प्रभारी हैं. नॉर्थईस्ट में भी उनको जिम्मेदारी मिली हुई है.
बिहार से सटे राज्य झारखंड के संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह को भी बिहार भेजा गया था. उनको यहां के मगध क्षेत्र की जिम्मेदारी मिली थी. जिसमें 19 में से 12 सीटों पर फतह दिलाने में घर्मपाल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
इसी तरह रत्नाकर के पास बनारस से सटे बिहार के शाहाबाद इलाके की 23 सीटों की जिम्मेदारी थी. रत्नाकर फिलहाल यूपी के बनारस औऱ गोरखपुर क्षेत्र के संगठन मंत्री हैं.
कुल मिलाकर इन चार लोगों ने पर्दे के पीछे रहके बीजेपी या कहें एनडीए के लिए वो कर दिखाया जिसकी उम्मीद कम लोग कर रहे थे. कारण नीतीश के खिलाफ नाराजगी, एंटी इंकंबेंसी, युवाओं का गुस्सा वगैरह. मगर इन चारों ने इन फैक्टर्स के ऊपर संगठन की तरकीब लगा एनडीए की नैया पार लगा दी.