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टेस्ला की बर्बादी के पीछे एडिसन नहीं ये आदमी था!

टेस्ला को मिलता नोबल, अगर ये धोखाधड़ी न होती!

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निकोला टेस्ला 19 वीं शताब्दी के महान आविष्कारकों में से एक थे. टेस्ला ने कई बड़ी वैज्ञानिक खोजें की, जिसका उन्हें कभी कोई श्रेय नहीं मिला (तस्वीर- Wikimedia commons)

कहानियों का ऐसा है कि अंडर डॉग हमेशा दर्शकों का फ़ेवरेट होता है. विज्ञान की दुनिया में ऐसा ही एक किरदार है, जिसका नाम है, निकोला टेस्ला. फ़ैंस के लिए टेस्ला हीरो हैं, कम संसाधन में बढ़ा काम करने वाला, दुनिया बदल देने वाला हीरो. लेकिन इस हीरो के सामने एक विलेन है. जो अपनी चालाकी से हर समय हीरो को नीचे खींचने की कोशिश करता है. टेस्ला की कहानी में ये किरदार थॉमस एडिसन निभाते हैं. (Nikola Tesla)

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टेस्ला AC करेंट की खोज करते हैं, तो एडिसन हाथियों को करेंट लगाकर लोगों को डराने की कोशिश करते हैं. कहते हैं टेस्ला का करेंट जान लेवा है. हीरो हार जाता है, लेकिन हार नहीं मानता. उसकी मौत के बाद दुनिया को उसकी क़ीमत का अहसास होता है. टेस्ला का एक भक्त उसके नाम से एक कम्पनी बनाता है. और एक दिन ये कम्पनी एडिसन की कम्पनी को पीछे छोड़ देती है. मिथकों के रूप में सुनाई जाने वाली ये कहानी आपने कई बार सुनी होगी. आज आपको टेस्ला से जुड़ी एक दूसरी कहानी बताएंगे, जिसके बाद आपको पता चलेगा कि टेस्ला की कहानी में एडिसन सिर्फ़ लेवल वन के विलेन हैं. फ़ाइनल बॉस तो कोई और ही है. (Guglielmo Marconi)

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Nikola Tesla
निकोला टेस्ला का जन्म 10 जुलाई 1856 के दिन क्रोएशिया के एक छोटे से शहर स्मिलजान में एक गरीब मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था (तस्वीर- Getty)

शुरुआत एक फट्टे से. वही फट्टा, जिसे लेकर आशिक़ सालों से आंदोलनरत है कि अगर रोज़ ने थोड़ा एडजस्ट किया होता, तो जैक बेचारा बच जाता. फट्टे में कितनी जगह थी? ये बहस चाहे जितनी लम्बी चले, सच ये है कि जैक बेचारा नहीं बच पाया. रोज़ बच गई. जैक की क़ुर्बानी तो हम सबको याद है, लेकिन ‘रोज़’ को बचाने का श्रेय एक और शख्स को जाता है. इस शख़्स का नाम था गुइलेलमो मारकोनी. वही मारकोनी जिसके बारे में बचपन में हमने पढ़ा था, कि उसने रेडियो की खोज की थी. (History of Radio)

टाइटैनिक में मारकोनी की कम्पनी के रेडियो उपकरण लगे थे. आइसबर्ग से टकराते ही इन रेडियो उपकरणों से मदद का संदेश प्रसारित किया गया. क़िस्मत अच्छी थी कि कारपेथिया नाम का एक जहाज़ कुछ 100 किलोमीटर की दूरी पर था. जहाज़ ने ये संदेश देखे और टायटैनिक की मदद को पहुंच गया. कुछ इस तरह 700 लोगों की जान बच गई. इत्तेफ़ाक की बात ये है कि मारकोनी खुद भी टायटैनिक पर सवार होने वाले थे लेकिन ऐन मौक़े पर उन्होंने अपना प्लान बदल दिया. 700 लोगों की जान बचाने वाले उपकरण की खोज के लिए मारकोनी को खूब दुआएं मिली. लेकिन अग़र मारकोनी भी थोड़ा एडजस्ट कर लेते, इन दुआओं का एक हिस्सा किसी और को भी मिल जाता. किसको? ये जानने के लिए लिए चलिए शुरू करते हैं कहानी. (Invention of Radio Technology)

कहानी की शुरुआत होती है साल 1888 में. निकोला टेस्ला के लिए ये साल काफ़ी अच्छा था. क्योंकि इस साल टेस्ला ने क़ई नए आविष्कारों का पेटेंट हासिल किया. मसलन इंडक्शन मोटर और आर्क लाइट. इस समय तक एडिसन और टेस्ला का रास्ता अलग-अलग हो चुका था. एडिसन की राह DC वाली थी, तो टेस्ला की राह AC वाली. एडिसन की तमाम तिकड़में भिड़ाने के बाद भी जीत AC की हुई. लिहाज़ा जीता कौन?- टेस्ला. लेकिन जो जीत जाए, वो अंडर डॉग कैसा.

टेस्ला ने अपने पेटेंट जॉर्ज वेस्टिंगहाउस नाम के एक उद्योगपति को बेच दिए. या कहें किराए में दे दिए. बदले में टेस्ला को वेस्टिंगहाउस की कम्पनी में 60 हज़ार डॉलर के स्टॉक और रॉयल्टी मिली. रॉयल्टी का हिसाब यूं था कि कम्पनी जितनी ज़्यादा बिजली बेचती, टेस्ला को उतना अधिक पैसा मिलता. सब कुछ तय होने के बाद वेस्टिंगहाउस कम्पनी AC वाली बिजली बेचने लगी. सब कुछ सही चल रहा था कि एडिसन एक बार फिर टांग अड़ाने पहुंच ग़ए.

एडिसन की जनरल इलेक्ट्रिक कम्पनी ने वेस्टिंगहाउस कम्पनी पर केस कर डाला. केस के चक्कर में जब खर्चा बहुत बढ़ गया, वेस्टिंगहाउस भागे-भागे टेस्ला के पास पहुंचे. और उनसे गुज़ारिश की कि वो अपनी रॉयल्टी छोड़ दें और पेटेंट भी मुफ़्त में कम्पनी को दे दें, ताकि खर्चा बच सके. वेस्टिंगहाउस ने मुसीबत के वक्त टेस्ला की मदद की थी. लिहाज़ा टेस्ला ने कांट्रैक्ट फाड़ा और करोड़ों की रॉयल्टी छोड़कर चलते बने. बिजली की लड़ाई यहीं ख़त्म हो गई. हालांकि चूंकि टेस्ला का दिमाग़ खुद बिजली था. इसलिए वो नई खोज, नए आविष्कारों में जुट ग़ए.

Wardenclyffe Tower
वार्डेनक्लिफ़ टॉवर, जिसे टेस्ला टॉवर के नाम से भी जाना जाता है. ये एक वायरलेस ट्रांसमिशन स्टेशन था जिसे निकोला टेस्ला ने अपने एक्सपेरिमेंट के लिए 1901-1902 में लॉन्ग आइलैंड में बनवाया था (तस्वीर- Wikimedia commons)

साल 1897 में टेस्ला ने एक और ज़बरदस्त चीज़ का पेटेंट फ़ाइल कर दिया. इस आविष्कार का नाम था- टेस्ला कॉइल.ये एक प्रकार का ट्रांस फ़ॉर्मर था जिसमें एक लोहे के कोर के आसपास लैमिनेटेड तांबे के तार के दो कॉइल लगे होते थे. इस कॉइल में हाई वोल्टेज ऊर्जा पैदा होती थी, लिहाज़ा टेस्ला ने इसका इस्तेमाल रेडियो कम्यूनिकेशन के लिए करने की ठानी. साल 1899 में एक परीक्षण के दौरान उन्होंने बिना तार, हवा में कुछ दूरी पर बल्ब जला दिए. टेस्ला को विश्वास हो गया कि इस तकनीक के ज़रिए वो न सिर्फ़ हवा में संदेश भेज सकते हैं. बल्कि लम्बी दूरी तक बिना तार बिजली भी ट्रांसफ़र कर सकते हैं. इस सपने को अमली जामा पहनाने के लिए और बड़े स्तर पर परीक्षण की ज़रूरत थी. लेकिन टेस्ला सफल होते, इससे पहले ही एक और विलेन उनकी ज़िंदगी में आ खड़ा हुआ.

ये शख़्स कौन था, उसके लिए थोड़ा पीछे चलते हैं. साल 1888 में जर्मन वैज्ञानिक हाइनरिक हर्ट्ज़ ने एक प्रयोग के ज़रिए प्रूव किया कि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें एक जगह से दूसरी जगह ट्रैवल कर सकती हैं. इस खोज के साथ ही, दुनियाभर में वैज्ञानिकों के बीच नई होड़ शुरू हो गई. बिना तार से एक जगह से दूसरी जगह तक संदेश भेजने की होड़. इस रेस में दो लोग सबसे आगे थे. वैसे तीन थे. लेकिन तीसरे की कहानी थोड़ा आगे जाकर बताएंगे. अभी के लिए दो लोगों के बारे में जानिए. इनमें से एक तो टेस्ला ही थे. दूसरे थे, इटली के आविष्कारक गुइलेलमो मारकोनी. वही मारकोनी जिन्हें हम बचपन से रेडियो के आविष्कारक के नाम से जानते आए हैं. मारकोनी को ये ख्याति कैसे मिली?

मारकोनी 1891 से इस दिशा में काम कर रहे थे. ठीक इसी समय टेस्ला ने भी रेडियो ट्रांसमिशन में रुचि लेना शुरू कर दिया था. हालांकि एक अंतर ये था कि टेस्ला को इलेक्ट्रो मैग्नेटिक तरंगों पर भरोसा ही नहीं था. इलेक्ट्रो मैग्नेटिक तरंग जैसी कोई चीज होती है, ये मानने में टेस्ला को 30 साल और लगे. इसके बावजूद 1895 में टेस्ला ने घोषणा की कि वो अपने तरीक़े से एक रेडियो संदेश भेजकर दिखाएंगे.

ये परीक्षण होता, उससे पहले ही टेस्ला की लैब में आग लग गई. जिसमें टेस्ला का सारा पुराना काम जलकर राख हो गया. ठीक इसी समय मारकोनी हवा में रेडियो संदेश भेजने में सफल हो गए और साल 1896 में लंदन में उन्होंने इस तकनीक का पेटेंट भी हासिल कर लिया. मारकोनी एक बड़े और संभ्रांत परिवार से आते थे. इसलिए जल्द ही उन्होंने अपनी कम्पनी खोल ली. और बिज़नेस शुरू करने के लिए अमेरिका में भी पेटेंट दाखिल कर दिया. 10 नवंबर, 1901 को दाखिल की गई इस पेटेंट अर्ज़ी को पेटेंट ऑफ़िस ने ख़ारिज कर दिया. उन्होंने कहा, इस तकनीक के पेटेंट पर टेस्ला का हक़ है.

इधर मारकोनी को आगे बढ़ता देख, टेस्ला ने भी अपने परीक्षण की स्पीड तेज कर दी. हालांकि इस काम के लिए उन्हें काफ़ी सारे पैसों की ज़रूरत थी. टेस्ला ने अमेरिका के एक बड़े उद्योगपति JP मॉर्गन से मदद मांगी. मॉर्गन राज़ी हो गए और उन्होंने टेस्ला को डेढ़ लाख डॉलर दे दिए. अपने परीक्षण के लिए टेस्ला ने 200 एकड़ का एक प्लॉट ख़रीदा. प्लान के अनुसार इस प्लॉट में 187 फ़ीट का एक टावर बनाया जाना था. जिसके ऊपर 68 फ़ीट व्यास का एक अर्धगोलाकार गुम्बद बनाया जाता. 1901 में इस टावर पर काम शुरू हुआ. लेकिन तभी टेस्ला को एक और बुरी खबर मिली.

Guglielmo Marconi
इटली के मशहूर भौतिक विज्ञानी गुइलेलमो मारकोनी - 1909 में वायरलेस टेलीग्राफ़ी की खोज के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला था (तस्वीर- Wikimedia commons)

12 दिसंबर, 1901 के रोज़ मारकोनी अटलांटिक महसागर के पार रेडियो संदेश भेजने में सफल हो गए. हालांकि इस काम में जिस डिटेक्शन उपकरण का इस्तेमाल हुआ था, वो मारकोनी की नहीं, भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु की खोज थी. नवम्बर 1894 में उन्होंने एक प्रैक्टिकल एक्सपेरिमेंट के ज़रिए माइक्रोवेव के अस्तित्व को पहली बार प्रूव किया. कलकत्ता के टाउन हॉल में बंगाल के गवर्नर सर विलियम मैकेंजी के सामने ये प्रदर्शन किया गया था. बोस ने बारूद में विस्फोट कर बिना तार की मदद लिए दीवार के पार एक घंटी बजाकर दिखाई थी. बाद में बोस ने बंगाली में इस पर एक शोध पेपर भी लिखा. जिसे नाम दिया, 'अदृश्य आलोक’. इसमें उन्होंने थियरी दी कि न दिखाई देने वाली ये तरंगें दीवार के आर-पार जा सकती हैं. इसलिए इनका उपयोग कर बिना तार की मदद लिए संदेश भेजे जा सकते हैं.

अटलांटिक के पार संदेश भेजने के लिए मारकोनी ने जो डिज़ाइन बनाया था, वो बोस के आविष्कार ‘मर्क्युरी कोहेनन विद टेलीफोन डिटेक्टर’ की तकनीक पर आधारित था. बोस को इसका श्रेय नहीं मिला. 1899 में JC बोस ने अपने वायरलेस के काम करने के तरीके पर एक पेपर रॉयल सोसायटी में पब्लिश करवाया. लेकिन बोस की वो डायरी खो गई जिसमें इस आविष्कार से जुड़ी सारी डिटेल थी. दूसरी ओर मारकोनी ने बोस के आविष्कार के व्यवसायिक फायदों को समझ लिया और अपने बचपन के दोस्त लुईजी सोलारी के साथ मिलकर एक बेहतर डिज़ाइन बना लिया. मारकोनी ने जो डिज़ाइन बनाया था, उसमें बोस के साथ-साथ टेस्ला के पेटेंट की चोरी भी शामिल थी.

टेस्ला के एक इंजिनीयर दोस्त ने जब टेस्ला को इस बारे में चेताया, टेस्ला ने जवाब दिया,

“अच्छा आदमी है, तरक़्क़ी करना चाहता है, करने दो. वैसे भी अपने काम के लिए 17 पेटेंट तो वो मेरे ही इस्तेमाल कर रहा है.”

टेस्ला मानकर चल रहे थे कि चूंकि पेटेंट उनके पास है. इसलिए उनके साथ अन्याय नहीं होगा. लेकिन टेस्ला के साथ एक बार फिर वही खेल हुआ. 1901 से 1905 तक टेस्ला अपने टावर के साथ एक्स्पेरिमेंट करते रहे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. ये देखकर JP मॉर्गन ने उनकी फ़ंडिंग रोक दी. टेस्ला पर क़र्ज़ा चढ़ने लगा. मजबूरी में उन्हें अपना परीक्षण रोकना पड़ा. उधर मारकोनी की कम्पनी ने ब्रिटेन में धंधा करना शुरू कर दिया था. कुछ ही साल में उनकी कम्पनी का स्टॉक 3 डॉलर प्रति शेयर से 22 डॉलर प्रति शेयर पहुंच गया.

अमेरिकी अरबपति, ऐंड्रू कारनेगी ने मारकोनी की कम्पनी में निवेश किया. दिस इज बिन्नेस’ वाली स्टाइल में दनदनाते हुए एडिसन आए और मारकोनी से बोले, लो भाई हमारा पैसा भी इन्वेस्ट कर लो. इनके अलावा JP मॉर्गन भी मारकोनी के साथ हो लिए. टेस्ला अकेले पड़ गए. लड़खड़ाते अंडर डॉग को क़िस्मत की एक और लात पड़ी. साल 1904 में पेटेंट कम्पनी ने अचानक अपना फ़ैसला बदलते हुए मारकोनी को रेडियो का पेटेंट दे डाला. मारकोनी रेडियो के आविष्कारक बन ग़ए. और यही बात दुनिया को पढ़ाई गई. पेटेंट ऑफ़िस ने ऐसा क्यों किया, पक्के से नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तय था कि धंधे के हिसाब से टेस्ला के बजाय मारकोनी ज़्यादा फ़ायदेमंद थे.

Nikola Tesla
7 जनवरी 1943 के दिन, 86 वर्ष की उम्र में, न्यूयॉर्क, अमेरिका में निकोला टेस्ला का देहांत हो गया (तस्वीर- Getty)

पेटेंट चला गया. परीक्षण फेल हो गया. लेकिन टेस्ला अब भी मायूस ना हुए. सब्र का बांध टूटा जब साल 1909 में नोबेल पुरस्कारों की घोषणा हुई और वायरलेस टेलीग्राफ़ी की खोज के लिए मारकोनी को नोबेल पुरस्कार दे दिया गया. इस बात से टेस्ला इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने मारकोनी की कम्पनी पर केस कर डाला. इतनी बड़ी कम्पनी से टकराने के लिए जो पैसा चाहिए था. वो टेस्ला के पास नहीं था. लिहाज़ा केस घिसटता रहा. आख़िर में साल 1943 में टेस्ला को न्याय मिला. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णय देते हुए रेडियो का पेटेंट दुबारा टेस्ला के नाम कर दिया. हालांकि तब तक बहुत देर हो चुकी थी. फ़ैसला आया, उससे पहले ही टेस्ला की मौत हो चुकी थी. इसके पीछे भी कोर्ट की भलमनसाहत नहीं कुछ और कारण था. हुआ ये कि तब फ़र्स्ट वर्ल्ड वार में अमेरिकी सरकार ने रेडियो का उपयोग किया, वो भी मारकोनी से बिना पूछे. मारकोनी ने सरकार पर केस कर दिया. इसी केस में सरकार को बचाने के लिए कोर्ट ने रेडियो का पेटेंट टेस्ला के नाम कर दिया.

टेस्ला के साथ देर से ही सही कुछ न्याय हुआ. हालांकि इसके बाद भी रेडियो के आविष्कारक के रूप में मारकोनी ही जाने गए. और भारत के वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु, जिन्हें इस खोज का कम से कम आधा क्रेडिट मिलना चाहिए, उन्हें क्रेडिट मिलने में 100 साल से ऊपर लग गए. 2012 में भारतीय वैज्ञानिकों के प्रयासों से सर जगदीश बसु को रेडियो फ्रीक्वेंसी और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियेशन का फ़ाउंडिंग फादर होने का श्रेय मिला.

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