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जब जयप्रकाश नारायण ज़िंदा थे और अस्पताल के बाहर उनकी मौत का हल्ला मच गया था

आज इनका बड्डे है.

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निर्मलेंदु मंडल द्वारा JP का Illustration इंडिया टुडे के लिए.

का 11 अक्टूबर 1902 को जन्मे JP (जयप्रकाश नारायण) गुर्दे की बीमारी के कारण अस्पताल में थे. जसलोक अस्पताल, मुंबई. ये समय था मार्च 1979 का. चंद्रशेखर दिन भर उनके साथ रहते थे. तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगी, तो इंग्लैंड से डॉक्टर बुलाए गए. उन्होंने रिपोर्ट दी कि JP अब बहुत दिनों के मेहमान नहीं हैं.

JP के अंतिम संस्कार पर बातें हो रही थीं चंद्रशेखर उन दिनों इंडियन ऑयल गेस्ट हाउस में ठहरे थे. एक दिन जब वो अस्पताल से गेस्ट हाउस आए, तो उनके साथ रामनाथ गोयनका, मोहन धरिया और नाना जी देशमुख थे. रामनाथ गोयनका राष्ट्रवादी पत्रकार थे. मोहन धरिया तत्कालीन वाणिज्य मंत्री थे और नाना जी देशमुख जनसंघ के पुराने नेता थे. गेस्ट हाउस में रामनाथ गोयनका ने बहुत भावुक होकर कहा-
अगर JP को कुछ होता है, तो हमें प्रयास करना चाहिए कि उनका अंतिम संस्कार उसी प्रकार हो जैसे महात्मा गांधी का हुआ था.
उन्होंने चंद्रशेखर से कहा कि आप मोरारजी देसाई से बात करें. मोरारजी तब देश के प्रधानमंत्री थे. चंद्रशेखर ने इनकार कर दिया. चंद्रशेखर ने कहा-
मैं नहीं चाहता कि मैं इस संबंध में सरकार से कोई बात करूं. यह काम सरकार का है. वो तय करेगी.
फिर मोहन धरिया ने अपनी ओर से थोड़ी और कोशिश की और उनकी बात हुई जॉर्ज फर्नांडीज़ से. जॉर्ज ने कहा कि सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं है. उन्होंने चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम से भी बात की है. इतना सुनते ही रामनाथ गोयनका रोने लगे. चंद्रशेखर से ये देखा नहीं गया. उन्होंने कहा-
आप चिंता न करें. हम सारा प्रबन्ध करेंगे. भारत सरकार का जो मन हो करे, मगर JP को वैसे ही राजकीय सम्मान से विदा किया जाएगा जैसा आप चाहते हैं.
वहां से सब अस्पताल के मालिक मथुरा दास के कमरे में आ गए. वहीं से नाना जी देशमुख ने कहा कि वो जनता पार्टी के मुख्यमंत्रियों से बात कर लेंगे. दूसरे मुख्यमंत्रियों से चंद्रशेखर ने सीधे बात की. सबने कहा कि वो तो पहले से ही तैयार हैं.
Jp India Today
जयप्रकाश नारायण की फाइल फोटो India Today आर्काइव से.

PM कमाल निकले, सुनी-सुनाई बातों पर संसद में शोक मनवा दिया ये बातें जहां हो रही थीं, वहां एक शख्स मौजूद था. खुफिया, मगर पहुंच वाला आदमी. उसने पूरी बात सुनी नहीं कि ठीक से समझ नहीं पाया. जो भी हो, उसने ये नतीजा निकाल लिया कि JP की मौत हो गई और इस बात को अभी लोगों से छुपाया जा रहा है. माने कि ये लोग (चंद्रशेखर और बाकी लोग) ऐलान नहीं कर रहे, लेकिन अंतिम संस्कार के इंतज़ाम में लग गए हैं. उसने दिल्ली ख़बर कर दी और सरकारी तंत्र के रास्ते ये सूचना प्रधानमंत्री तक पंहुच गई. प्रधानमंत्री भी महान निकले. उन्होंने बिना छानबीन कराए, बिना कोई तफ़्तीश करवाए, बस सुनी-सुनाई बातों पर संसद में ऐलान कर दिया. फिर क्या था, संसद में शोक सभा होने लगी.
JP ज़िंदा थे और अस्पताल के बाहर उनकी मौत का हल्ला मच गया इधर ये हो रहा था. उधर JP के करीबियों को रत्तीभर भी ख़बर नहीं थी. वो तो ये हुआ कि चंद्रशेखर ने किसी निजी काम से दिल्ली के पार्टी दफ़्तर में फोन किया. वहां से बताया गया कि सब संसद गए हैं. चंद्रशेखर ने पूछा कि सारे लोग एकसाथ क्यों गए. तब पता चला कि संसद में JP के निधन की शोकसभा की जा रही है. चंद्रशेखर हैरान-परेशान. JP ज़िंदा थे. हालत ख़राब थी, मगर थे तो जीवित. अस्पताल में इलाज हो रहा था उनका. चंद्रशेखर समझ गए कि किसी ने अफ़वाह उड़ा दी है. वो भागे-भागे अस्पताल पहुंचे, तो देखा वहां भी हज़ारों की भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी.
...आख़िरकार कार पर चढ़कर चंद्रशेखर ने ऐलान किया सच तो बताना था. जल्द-से-जल्द बताना था. तो चंद्रशेखर ने वहां अस्पताल के बाहर जाम में फंसी एक कार की छत पर चढ़कर JP के ज़िंदा होने की बात बताई. लोगों का कन्फ़्यूज़न ख़त्म हुआ. इस वाकये के करीब छह महीने बाद तक ज़िंदा रहे JP. जिस दिन गुज़रे, वो तारीख़ थी 8 अक्टूबर, 1979. उनके दिल की धड़कन बंद हो गई थी.
ये किस्सा चंद्रशेखर की आत्मकथा 'जीवन जैसा जिया' से लिया गया है. ये किताब सुरेश शर्मा के संपादन में राजकमल प्रकाशन से छपी है. इसकी क़ीमत है 299 रूपये.

यह स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे शाश्वत उपाध्याय ने लिखी है.

 


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