# अगर किसी व्यक्ति ने कोर्ट में किसी अपराधी की ज़मानत कराई है और कोर्ट ने ज़मानत की रकम अदा करने का आदेश दिया हो, लेकिन रकम अदा ना किया गया तो कोर्ट जमानत कराने वाले की संपत्ति की कुर्की के आदेश दे सकता है.
# कोर्ट में किसी भी केस की प्रोसिडिंग के दौरान किसी आदेश को न मानने पर.
इस लिस्ट के अलावा भी कुछ केस होते हैं, जो क्रिमिनल और सिविल तो नहीं कहे जाते, लेकिन इनकी कानूनी प्रक्रिया सिविल केस जैसी ही रहती है. इन मामलों में भी कोर्ट द्वारा तय रकम अदा न करने पर या कोर्ट का ऑर्डर न मानने पर कुर्की का वारंट जारी हो सकता है. जैसे MACT यानी मोटर व्हीकल एक्ट, धारा 138 N.I. एक्ट यानी चेक बाउंस होने की स्थिति में, धारा 125 CRPC यानी गुजारा भत्ता अधिनियम, और NCLT यानी नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के नियमों के मुताबिक़ रकम या संपत्ति की देनदारी न करने पर कुर्की वारंट जारी हो सकता है.
मुज़फ्फरपुर शेल्टर होम केस में बिहार सरकार में मंत्री रहीं मंजू वर्मा जब 3 महीने तक फरार रहीं तब उनके घर की कुर्की की गई थी (प्रतीकात्मक फोटो साभार - ANI)
यहां तक हमने समझ लिया कि कुर्की वारंट क्या है और किन मामलों में कुर्की का ऑर्डर कोर्ट जारी कर सकता है. लेकिन क्या कोर्ट किसी मामले में दोषी के खिलाफ़ बिना नोटिस के कुर्की का वारंट जारी कर देता है? जवाब है- नहीं. समझने के लिए पहले समझिए कि कोर्ट ‘फरार अभियुक्त’ किसे कहता है.
CRPC की धारा 82 के मुताबिक, अगर कोर्ट को किसी केस में ये लगता है कि उसने जिसके खिलाफ वारंट जारी किया है वो जान-बूझकर कोर्ट में पेश नहीं हो रहा या कोर्ट से छिप रहा है तो ऐसे व्यक्ति के नाम कोर्ट एक नोटिस जारी करता है, इस नोटिस को व्यक्ति के घर या ऑफिस के आस-पास चस्पा कर दिया जाता है. इस नोटिस में एक तारीख़ मेंशन होती है. कोर्ट उम्मीद करता है कि फरार व्यक्ति उस तारीख तक कोर्ट में हाजिर हो जाए. अब अगर दी गई तारीख़ तक भी आरोपी कोर्ट में हाज़िर न हो तो कोर्ट उसे फरार अपराधी घोषित कर देता है. इसके बाद कोर्ट कुर्की का वारंट जारी करता है. जो बाद में कुर्की के ऑर्डर में तब्दील होता है.
यहां तक हम मोटा-माटी दो बातें समझ चुके हैं – एक कि कुर्की ऑर्डर कब जारी किया जाता है और दूसरा कि कुर्की का वारंट कुर्की के ऑर्डर में कब तब्दील होता है. लेकिन ज़रा कुर्की के मामले में कोर्ट के अंदर की कानूनी प्रक्रिया भी समझ लें.
#कुर्की की कानूनी प्रक्रिया-
सामान या प्रॉपर्टी की कुर्की धारा 83 CRPC के तहत होती है. इसे ऐसे समझिए कि ये खुद में तो एक केस है ही, क्रिमिनल और सिविल केसेज़ में भी ज़रूरत होने पर प्रोसिडिंग में थोड़े बदलाव के साथ इसी धारा के तहत कार्रवाई होती है.
क्रिमिनल केसेज़ की बात करें तो अगर कोई व्यक्ति किसी क्रिमिनल केस में कोर्ट के ऑर्डर नहीं मानता तो उसी कोर्ट में धारा 82 और 83 के तहत एप्लीकेशन लगाई जाती है और कोर्ट धारा 82 के तहत कुर्की का वारंट और 83 के तहत कुर्की का ऑर्डर जारी कर देता है.
सिविल केस की बात करें तो सिविल केस और जो हर्जाने, मुआवजे वाले केस आपको हम पहले बता चुके हैं, सभी एक ही प्रक्रिया के तहत कुर्की के ऑर्डर तक पहुंचते हैं. इनमें पहला काम तो है केस लड़ना, ये लंबा भी चल सकता है. इसके बाद मान लीजिए आप केस जीत गए और कोर्ट ने ऑर्डर दे दिया कि फलां कंपनी या शख्स आपको इतनी रकम अदा करेगा या प्रॉपर्टी का मामला है तो प्रॉपर्टी पर कब्ज़ा देगा. लेकिन अगर फिर भी ऐसा नहीं होता तो उसी कोर्ट में Execution का केस अलग से डालना होता है. जिस पर कोर्ट दोषी के खिलाफ़ कुर्की का ऑर्डर जारी कर देता है.
कई मामलों में कोर्ट के निर्णय अपने अपराध की जघन्यता का स्तर देखते हुए विवेक के आधार पर भी हुए हैं (प्रतीकात्मक फोटो- आज तक)
#कुर्की का ऑर्डर जारी होने के बाद की प्रक्रिया-
कुर्की का ऑर्डर जारी होने के बाद क्या होता है, आपको संक्षिप्त में बताते हैं
# छोटे सामान की रिकवरी के लिए कोर्ट की तरफ से एक ऑफिसर भेजा जाता है, इसको जज की ही पावर्स मिली होती हैं, सामान की रिकवरी से लेकर सीज़ करने तक की कार्रवाई ये कर सकता है.# किसी प्रॉपर्टी से रिकवरी के मामले में एक रिसीवर की नियुक्ति होती है, जो ज़मीन की वैल्यू तय करके उसकी नीलामी की प्रक्रिया को सुपरवाइज़ करता है. रिसीवर को 1908 के CRPC की धारा 5 के तहत प्रॉपर्टी की नीलामी और बिक्री के अधिकार होते हैं.# कुर्की होने वाली प्रॉपर्टी अगर नष्ट हो जाने वाली है, जैसे कोई पशुधन या अन्य कोई चल संपत्ति तो कोर्ट सीधे इसकी बिक्री कर सकता है. बिना नीलामी किए भी.# अगर प्रॉपर्टी की बिक्री से आई रकम रिकवरी अमाउंट से ज्यादा है तो पहले कोशिश की जाती है कि उतने ही हिस्से की बिक्री की जाए जितने से रिकवरी की रकम और कोर्ट का खर्च अदा हो जाए, अगर ऐसा संभव नहीं है तो पूरी प्रॉपर्टी बेचकर रिकवरी अमाउंट और कोर्ट के खर्च के बाद बची रकम दोषी को वापस कर दी जाती है. कुर्की की प्रक्रिया तो समझ ली, अब ज़रा ये भी जान लीजिए कि किन सामानों की कुर्की हो सकती है, और किनकी नहीं.
#कुर्क किए जा सकने वाले एसेट्स-
CPC की धारा 60 के मुताबिक, अचल संपत्ति जैसे ज़मीन, मकान, दुकान या चल संपत्ति जैसे कोई सामान, करेंसी, चेक, लेन-देन के डॉक्यूमेंट्स, प्रॉमिस लेटर या कोई भी ऐसा सामान जिसे बेचा जा सकता है उसकी कुर्की की जा सकती है. इसी धारा 60 के ही मुताबिक, बच्चों के कपड़े, बर्तन, महिलाओं के गहने, लकड़ी या सोने के कारीगरों के औजार वगैरह कुर्की के लिए एलिजिबल आर्टिकल्स की केटेगरी में नहीं आते. इसके अलावा कुछ अधिकार भी हैं जिन्हें कुर्क नहीं किया जा सकता जैसे – मुकदमा कायम करने का अधिकार, पेंशन का अधिकार, बीमा पॉलिसी की रकम वगैरह.
अब ये जान लें कि कुर्की का ऑर्डर होने के बाद दोषी क्या कर सकता है?#CRPC की धारा 84 के तहत कुर्की के ऑर्डर के खिलाफ़ आपत्ति डाली जा सकती है . लेकिन शर्त है कि ये आपत्ति या दावा, कुर्की-ऑर्डर जारी होने के 6 महीने के अंदर करना होगा. और ये दावा वो व्यक्ति ख़ुद नहीं कर सकता जिसके खिलाफ़ कुर्की का आदेश जारी किया गया है.
#किसी क्रिमिनल केस में अगर आदमी फरार है और इसलिए उसके खिलाफ़ कुर्की का आदेश किया गया है तो उसके पास कुर्की की कार्रवाई से पहले अदालत में पेश होने का ऑप्शन रहता है. ऐसे में अगर कोर्ट चाहे तो कुर्की रोककर बाकी कानूनी प्रक्रिया अपना सकता है.
पटना में लालू यादव की बेनामी संपत्ति सीज़ की गई थीं (फोटो सोर्स -आज तक)
#संपत्ति के कुर्क होने के बाद-
CRPC की धारा 85 के तहत कुर्क की गई संपत्ति सरकार के अधीन रहती है. अगर कुर्की की तारीख से 2 साल के अंदर फरार घोषित हो चुका दोषी कोर्ट में हाजिर हो जाए और कोर्ट को समझा दे कि वो कोर्ट के वारंट के डर से या किसी और वजह से कोर्ट से छिपा हुआ नहीं था. माने हाजिर न होने का कोई वैलिड रीज़न दे दे तो कोर्ट उसकी कुर्क हो चुकी प्रॉपर्टी को रिलीज़ कर सकता है. अगर दोषी को रिकवरी के बदले कुछ अमाउंट ही देना है तो कोर्ट इसकी भरपाई किसी और तरीके से कराने को भी राजी हो सकता है.
ये तो था कुर्की का वो तिया-पांचा जो क़ानून की धाराओं के हिसाब से चलता है. लेकिन हमारे देश में क़ानून की देवी का कहना ये है कि चाहे सौ मुजरिम छूट जाएं, लेकिन निर्दोष एक भी न फंसने पाए. इसी का फायदा लोग कुर्की वाले केसेज़ में भी उठाते हैं, ऐसी जुगत लगाते हैं कि मामला टलता रहता है. पहला तो ये कि कुर्की के आदेश के खिलाफ़, हायर कोर्ट में अपील कर देते हैं, मामला अगर ज़मीन का है तो ज़मीन के दूसरे हिस्सेदार से केस फ़ाइल करवा देते हैं, ऐसे में मामला लंबा खिंच जाता है. इसी बीच मौक़ा मिला तो ज़मीन ही बेच दी जाती है.