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जिस कावेरी जल विवाद पर पूरा बेंगलुरू बंद है, वो आखिर है क्या?

कावेरी जल विवाद का जिन्न फिर जिंदा होता दिख रहा है, देखना ये है कि कांग्रेस और डीएमके इसे फिर कैसे बोतल में बंद करेंगे?

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करीब डेढ़ सौ साल पुराना है कावेरी जल विवाद, अब डीएमके और कांग्रेस की एकता के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है | फाइल फोटो: आजतक

दक्षिण भारत के दो राज्य कर्नाटक और तमिलनाडु. कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार और तमिलनाडु में कांग्रेस-डीएमके गठबंधन की सरकार. अब दोनों सरकारों के बीच एक मुश्किल खड़ी होती दिखा रही, एक विवाद जो बोतल में बंद था फिर बाहर निकलता दिख रहा है. करीब डेढ़ सौ साल पुराना - कावेरी जल विवाद.

तमिलनाडु को कावेरी का पानी दिए जाने के फैसले पर किसान संगठनों ने 26 सितंबर को बेंगलुरु बंद बुलाया था. सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक शहर पूरी तरह बंद रहा. स्कूल-कॉलेज भी नहीं खुले. शहर में धारा-144 लगाई गई थी. तमिलनाडु से आने वाली बसों को भी रोका गया. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उनके अपने फसलों के लिए पानी नहीं है. ऐसे में तमिलनाडु को पानी देना सही नहीं है.

दरअसल, कावेरी वाटर मैनेजमेंट अथॉरिटी (CWMA) ने आदेश दिया था कि कर्नाटक 15 दिनों तक तमिलनाडु को हर दिन 5000 क्यूसेक पानी रिलीज करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने भी 21 सितंबर को इस फैसले को बरकरार रखा था. हालांकि कोर्ट ने 7200 क्यूसेक पानी प्रतिदिन रिलीज करने की मांग को खारिज कर दिया था. तमिलनाडु को पानी दिये जाने के इसी फैसले के खिलाफ ये विरोध हो रहा है. 29 सितंबर को भी अलग-अलग संगठनों ने 'कर्नाटक बंद' बुलाया है.

कुछ साल पहले देश की सबसे बड़ी अदालत ने ये विवाद लगभग सुलझा दिया था. लेकिन, कुछ समय पहले कर्नाटक ने कुछ ऐसा बोला कि झगड़े के लक्षण दिखने लगे. कहा कि वो पड़ोसी राज्य तमिलनाडु को कावेरी नदी का पानी दे पाने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि उसके यहां की नदियों और जलाशयों में खुद के भर का पानी नहीं है.

जून महीने में दिल्ली में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से मुलाकात के बाद कर्नाटक के जल संसाधन मंत्री डीके शिवकुमार ने कहा था,

"हमारी पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए तक पर्याप्त पानी नहीं है. मानसून में देरी होने के कारण गंभीर संकट आ गया है. अगर हम पानी छोड़ना भी चाहें तो हमारे पास पानी नहीं है. बेंगलुरु शहर भी कावेरी नदी पर ही निर्भर है.''

डीके शिवकुमार ने केंद्र सरकार से कहा था कि वो इस मामले को सुलझाने के लिए ट्रिब्यूनल का गठन अभी न करे, क्योंकि वो तमिलनाडु के साथ पहले बातचीत के जरिए इस मामले को सुलझाना चाहते हैं.

कांग्रेस-डीएमके मुश्किल में

तमिलनाडु को पानी न देने के डीके शिवकुमार के बयान का तमिलनाडु में विरोध शुरू हो गया. विपक्षी पार्टी AIADMK और बीजेपी ने डीएमके प्रमुख और तमिलनाडु के सीएम स्टालिन से इस मामले पर जल्द कार्रवाई करने की मांग की है. आंदोलन की चेतावनी दी थी. कावेरी जल विवाद एक ऐसा मुद्दा है जिसे लेकर हिंसा का एक लंबा इतिहास रहा है. अब सवाल ये है कि आखिर दोनों राज्य या कहें तो कांग्रेस और उसकी साथी पार्टी डीएमके इस विवाद को कैसे सुलझाएगी.

जिसे अंग्रेज भी न सुलझा पाए वो कावेरी विवाद क्या है?

कावेरी दक्षिण भारत की एक नदी है. ये कर्नाटक के कोडागू जिले से निकलती है और तमिलनाडु से होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है. कावेरी घाटी में एक हिस्सा केरल का भी है और समंदर में मिलने से पहले ये नदी पांडिचेरी के कराइकाल से होकर गुजरती है. कावेरी नदी लगभग 750 किमी लंबी है, जो कुशालनगर, मैसूर, श्रीरंगापटना, त्रिरुचिरापल्ली, तंजावुर और मइलादुथुरई जैसे शहरों से गुज़रती हुई तमिलनाडु से बंगाल की खाड़ी में गिरती है.

कावेरी के बेसिन में कर्नाटक का 32 हज़ार वर्ग किमी और तमिलनाडु का 44 हज़ार वर्ग किमी का इलाका शामिल है. ये दोनों ही राज्य सिंचाई के पानी की ज़रूरत की वजह से कावेरी के मुद्दे पर दशकों तक लड़ते रहे. कावेरी नदी जल के वितरण और इस्तेमाल पर दोनों के बीच का विवाद 140 साल से भी ज्यादा पुराना है. सबसे पहले 1881 में इस पर तकरार सामने आई, जब तत्कालीन मैसूर राज्य ने कावेरी पर एक बांध बनाने का निर्णय लिया. तत्कालीन मद्रास राज्य ने इस पर आपत्ति की. ब्रिटिश लोगों की मध्यस्थता के बाद काफी साल बाद 1924 में जाकर इस पर एक समझौता हो पाया. लेकिन विवाद आजादी के पहले और आजादी के बाद भी जारी रहा.

कावेरी नदी का रूट
कावेरी नदी का रूट

1990 में जब चीजें ज्यादा ही भड़क रही थीं, तो केंद्र सरकार ने 2 जून 1990 को ट्रिब्यूनल बना दिया, जिसने आगे कई सालों तक ये विवाद सुलझाने की कोशिश की. इससे लोगों का तो नहीं, पर सुप्रीम कोर्ट का सिरदर्द कुछ कम हो गया. 1991 में ट्रिब्यूनल ने एक अंतरिम आदेश दिया था कि कर्नाटक कावेरी के पानी का एक हिस्सा तमिलनाडु को देगा और ये भी तय किया गया कि हर महीने कितना पानी छोड़ा जाएगा. हालांकि, इस पर कोई आखिरी फैसला नहीं हो पाया.

कर्नाटक ने कहा- अंग्रेजों ने भेदभाव किया

उस समय कर्नाटक का तर्क ये था कि ब्रिटिश राज के समय वो एक रियासत था, जबकि तमिलनाडु सीधे-सीधे ब्रिटिश राज के अधीन था. ऐसे में अंग्रेजों के समय 1924 में कावेरी विवाद पर जो समझौता हुआ था, उसमें उसके साथ न्याय नहीं हुआ. ऐसे में जब 1956 में नए राज्य बन गए, तो उन पुराने समझौतों को रद्द माना जाना चाहिए. कर्नाटक का दूसरा तर्क ये है कि वहां खेती का विकास तमिलनाडु की अपेक्षा देर से हुआ और नदी पहले उसके पास आती है, तो सारे पानी पर उसका अधिकार है.

तमिलनाडु की तरफ से ये तर्क दिया जाता है कि 1924 के समझौते के तहत उसे कावेरी का जितना पानी मिलना चाहिए था, उसे उतना दिया जाना चाहिए और इस पूरे मामले में पिछले समझौतों के आधार पर काम होना चाहिए. उसे हर बार पानी के लिए कोर्ट में गुहार लगानी पड़ती है.

ट्रिब्यूनल का आखिरी फैसला सुन कर्नाटक भड़क गया

साल 2007 में ट्रिब्यूनल ने इस मामले पर अपना आखिरी फैसला सुनाया. इस फैसले के मुताबिक तमिलनाडु को 419 TMC पानी मिलना चाहिए था. ये फैसला आने से पहले तमिलनाडु 562 TMC पानी मांग रहा था, जो नदी के कुल पानी का दो-तिहाई हिस्सा था. दूसरी तरफ कर्नाटक 465 TMC पानी मांग रहा था, लेकिन ट्रिब्यूनल ने कहा कि कर्नाटक को 270 TMC पानी सालाना मिलेगा. ट्रिब्यूनल ने ये फैसला कावेरी बेसिन में 740 TMC पानी मानते हुए सुनाया था. फैसले के हिसाब से केरल के हिस्से में 30 TMC और पुडुचेरी को 7 TMC पानी मिलना था.

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कर्नाटक इसलिए भड़का हुआ था, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में उससे इतना ज़्यादा पानी देने के लिए नहीं कहा गया था. ट्रिब्यूनल का फैसला कर्नाटक पर भारी पड़ रहा था. ट्रिब्यूनल के फैसले से कोई भी राज्य खुश नहीं था. ज़ाहिर है, विवाद फिर होना था. हुआ भी. साल 2012 में. आखिरकार इस बार सुप्रीम कोर्ट को बीच में आना पड़ा और कर्नाटक को समझाइश देनी पड़ी कि वो तमिलनाडु को और पानी दे. कर्नाटक सरकार ने माफी मांगी और पानी देने की पेशकश की, लेकिन इससे राज्य में हिंसा फैल गई.

2018 में जाकर जंग कुछ थमी

2012 के बाद इस लड़ाई ने 2016 में जोर पकड़ा था. अगस्त 2016 में तमिलनाडु ने कर्नाटक की शिकायत करते हुए कहा था कि इस साल फिर से कर्नाटक ने कम पानी दिया है. वहीं कर्नाटक में बचाव में तर्क दिया कि बारिश पर्याप्त नहीं हुई है, इसलिए पानी कम है. जब रिजर्व में पानी है ही नहीं, तो कहां से दे दें.

कावेरी के पानी को लेकर प्रदर्शन करते लोग

मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. कावेरी जल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने 16 फरवरी, 2018 को फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक अब तमिलनाडु को 177.25 TMC पानी मिलेगा, जो पहले 192 TMC था. यानी तमिलनाडु के हिस्से में आने वाला पानी 14.75 TMC घटा दिया गया. वहीं कर्नाटक को 192 TMC पानी देने का फैसला सुनाया गया है. यानी ये फैसला कर्नाटक को फायदा देने वाला था. वहीं केरल को 30 TMC और पुडुचेरी को 7 TMC पानी आवंटित किया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने 22 पॉइंट्स में अपना फैसला सुनाया. तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने फैसला सुनाते हुए एक महत्वपूर्ण बात कही- 'नदी का जल राष्ट्रीय संपत्ति है, जिस पर किसी एक राज्य का अधिकार नहीं है.'

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