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वे राज्य जो 2 से ज्यादा बच्चे वालों को न सरकारी नौकरी देते हैं, न लोकल चुनाव लड़ने की परमिशन

UP की प्रस्तावित टू चाइल्ड पॉलिसी पर हंगामा हो रहा है, इन राज्यों में पहले से है ऐसा ही कानून.

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टू चाइल्ड पॉलिसी को लेकर अलग-अलग राज्यों में क्या नियम है? आइए जानते हैं. (सांकेतिक फोटो)
उत्तर प्रदेश सरकार नई जनसंख्या नीति लाई है. 2021-2030 के लिए प्रस्तावित इस नीति के जरिए सरकार परिवार नियोजन को लेकर लोगों को जागरूक करने पर फोकस करेगी. नई जनसंख्या नीति के तहत यूपी सरकार ने जो लक्ष्य रखे हैं, उन्हें पूरा करने के लिए कानून भी लाया जा रहा है. यूपी जनसंख्या विधेयक 2021 का ड्राफ्ट तैयार है. इस ड्राफ्ट में ये प्रमुख प्रस्ताव हैं-
# 2 से अधिक बच्चे होने पर सरकारी नौकरियों में आवेदन नहीं कर पाएंगे. # 2 बच्चों से ज़्यादा वाले स्थानीय निकाय का चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. # 2 बच्चों से ज्यादा वाले लोगों को सब्सिडी वाली सरकारी सुविधाओं का फायदा नहीं मिलेगा. # जो जनसंख्या नीति का पालन करेगा, उसे प्रोत्साहन दिए जाएंगे. अगर कोई सरकारी नौकरी में है तो उसे अतिरिक्त वेतन वृद्धि दी जाएगी. उसके पेंशन प्लान में सरकार का कंट्रीब्यूशन 3 परसेंट बढ़ेगा. प्राधिकरण के मकान और प्लॉट के आवंटन में वरीयता दी जाएगी. बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा निशुल्क होगी. इस तरह की कई सुविधाएं दी जाएंगी. # परिवार नियोजन के तरीके अपनाने वालों को प्रोत्साहन दिया जाएगा. जैसे अगर बीपीएल (आर्थिक रूप से कमजोर) परिवार में कोई एक बच्चे के बाद नसबंदी करा लेता है तो उसे एक लाख रुपया एकमुश्त दिया जाएगा. # ग्रेजुएशन तक बच्चे की पढ़ाई और इलाज राज्य सरकार के जिम्मे होगा. # बच्चों को मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे कॉर्सेस में दाखिले के दौरान वरीयता दी जाएगी. एक ही संतान होने पर प्रोत्साहन ज्यादा दिया जाएगा. # इसमें कोई दंडात्मक प्रावधान नहीं रखा गया है. जो व्यक्ति बातों को नहीं मानेगा, उसे प्रोत्साहन नहीं मिलेगा.
World Population Day उत्तर प्रदेश के लिए नई जनसंख्या नीति की घोषणा हाल ही में योगी आदित्यनाथ ने की है. (फाइल फोटो-PTI)

इस ड्राफ्ट को लेकर कई तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं. सियासी बवाल हो रहा है. लेकिन आपको बता दें कि ऐसा करने जा रहा यूपी पहला राज्य नहीं है. 2 से ज्यादा बच्चे वालों को सरकारी नौकरियों से वंचित करने और लोकल बॉडी इलेक्शन लड़ने पर रोक का नियम पहले से ही कई राज्यों में है.
इस स्टोरी में इसी पर बात करेंगे कि यूपी से पहले किन-किन राज्यों ने अपने यहां इस तरह का नियम लागू किया है. राजस्थान राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. रघु शर्मा का 14 जुलाई बुधवार को एक बयान आया. बढ़ती जनसंख्या को चिंता की वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि देश एक परिवार में एक बच्चा यानी 'हम दो हमारे एक' पर विचार करे.
हालांकि राजस्थान में भैरों सिंह शेखावत ने मुख्यमंत्री रहते हुए वैसा कानून लागू कर चुके हैं, जैसा यूपी सरकार अब करने की तैयारी में है. 1994-95 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने कानून बनाया था- राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994
. इसके मुताबिक, जिन जनप्रतिनिधियों के दो से अधिक बच्चे होंगे, वो पंचायत और निकाय चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. चुनाव जीतने के बाद 2 से ज़्यादा बच्चे हो गए तो पद से हटाने का भी इसमें प्रावधान है.
इसके बाद 2002 में राजस्थान में यह कानून भी बना दिया गया कि दो से ज्यादा बच्चे होने पर सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती. सरकारी नौकरी में आने के बाद दो से ज्यादा बच्चे हुए तो प्रमोशन पांच साल तक रोक दिया जाएगा. नौकरी में रहते हुए तीन से ज्यादा बच्चे पैदा करने पर कंपलसरी रिटायरमेंट का भी नियम बना.
वसुंधरा राजे ने अन्नपूर्णा योजना का नाम बदले जाने पर अशोक गहलोत पर निशाना साधा है. (File Photo: PTI) वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत (File Photo: PTI)

हालांकि वसुंधरा राजे सरकार ने 2018 में इस प्रावधान को खत्म कर दिया
. राजस्थान राज्य मंत्रिमंडल ने राजस्थान सिविल सेवा (पेंशन) नियम 1996 की धारा 53 (ए) के तहत उस प्रावधानों को हटाने का फैसला किया था, जिसमें तीसरे बच्चे के जन्म पर सरकारी कर्मचारी की अनिवार्य सेवानिवृत्ति करने की बात लिखी थी. इसके अलावा, सरकारी नौकरी में रहते हुए दो से ज़्यादा बच्चे होने पर पांच साल तक प्रमोशन रोकने वाले क़ानून को बदलकर तीन साल कर दिया गया. मध्य प्रदेश मध्य प्रदेश में 2001 से ही टू चाइल्ड पॉलिसी लागू है. मध्य प्रदेश सिविल सेवा नियमों के तहत अगर तीसरा बच्चा 26 जनवरी 2001 के बाद जन्मा है तो उसका पिता को सरकारी नौकरी का पात्र नहीं माना जाएगा.
Shivraj Singh Chouhan मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान. (तस्वीर: पीटीआई)

यह नियम उच्च न्यायिक सेवाओं (higher judicial services) पर भी लागू होता है. मध्य प्रदेश में साल 2005 तक स्थानीय निकाय चुनावों के उम्मीदवारों के लिए दो बच्चों के मानदंड का भी पालन किया गया. हालांकि तत्कालीन भाजपा सरकार ने आपत्तियों के बाद इसे बंद कर दिया. इसके पीछे तर्क ये दिया गया कि ऐसा नियम विधानसभा और संसदीय चुनावों में लागू नहीं है. गुजरात 2005 में राज्य सरकार ने स्थानीय कानून में संशोधन किया ताकि दो से अधिक बच्चों वाले किसी भी व्यक्ति को स्थानीय स्वशासन निकायों- पंचायतों, नगर पालिकाओं और नगर निगमों के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जा सके. कानून में संशोधन
 के समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे.
गुजरात का सीएम रहते मोदी ये कानून लेकर आए थे. (सांकेतिक फोटो) गुजरात का सीएम रहते मोदी ने ही दो अधिक बच्चों वालों पर पाबंदी का नियम बनाया था. (सांकेतिक फोटो)

यह अधिनियम गुजरात में 14,000 ग्राम पंचायतों, 26 जिला पंचायतों, 223 तालुका पंचायतों, 159 नगरपालिकाओं और आठ नगर निगमों पर लागू होता है. पंचायतें ग्रामीण विकास विभाग के अधीन होती हैं. नगर पालिका और नगर निगम शहरी विकास विभाग के अधीन हैं. प्रत्येक स्तर पर अलग-अलग प्राधिकरण सुनिश्चित करते हैं कि टू चाइल्ड पॉलिसी को लागू हो. महाराष्ट्र महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति अधिनियम
स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से उन लोगों को अयोग्य घोषित करता है, जिनके दो से अधिक बच्चे हैं. इनमें ग्राम पंचायत से लेकर नगर निगम तक के चुमनाव आते हैं. इसके अलावा, महाराष्ट्र सिविल सेवा नियम, 2005 के जरिए दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति को राज्य सरकार में पद धारण करने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है. दो से अधिक बच्चों वाली महिलाओं को भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ लेने की अनुमति नहीं है. 2005 का महाराष्ट्र सिविल सेवा नियम कहता है कि अगर किसी व्यक्ति के 2005 के बाद दो से अधिक बच्चे हैं तो वह सरकारी नौकरी के लिए योग्य नहीं है.
एक आरटीआई से खुलासा हुआ है कि महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने सिर्फ 16 महीने में 155 करोड़ रुपए प्रचार पर खर्च कर दिए. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे. फाइल फोटो.
तेलंगाना और आंध्र प्रदेश इसी तरह का नियम दक्षिण के कई राज्यों में भी है. तेलंगाना में दो से अधिक बच्चों वाला व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता. हालांकि अगर किसी व्यक्ति के 30 मई, 1994 से पहले से दो से अधिक बच्चे थे, तो उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा. इसी तरह आंध्र प्रदेश पंचायत राज अधिनियम, 1994
 के जरिए ऐसे ही नियम आंध्र प्रदेश पर लागू किये जा चुके हैं. यहां भी दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति के चुनाव लड़ने पर पाबंदी है. उत्तराखंड उत्तराखंड सरकार ने उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम में 2019 में संशोधन किया था. इसके बाद दो से अधिक बच्चों वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था. हालांकि, ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत वार्ड सदस्य चुनाव की तैयारी करने वाले कुछ लोगों ने इस संशोधन को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. इस पर कोर्ट ने निर्देश दिया था कि संशोधन 25 जुलाई 2019 के बाद ही लागू होगा. इससे पहले वालों पर नहीं. ओडिशा ओडिशा जिला परिषद अधिनियम भी दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को पंचायत और शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ने से रोकता है. 1991 में ओडिशा जिला परिषद अधिनियम लाया गया था. इसमें दो से ज्यादा बच्चे वालों को चुनाव लड़ने के अयोग्य बताया गया है. ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले में एक सरपंच को 2 बच्चों संबंधी नियम तोड़ने पर कुर्सी गंवानी पड़ी थी. उन्होंने राज्य के पंचायत चुनावों के दौरान नॉमिनेशन फाइल करते वक्त 2 बच्चों वाले मानक का पालन नहीं किया था. असम असम में भी जनसंख्या नीति पहले से लागू है. 2019 में, पिछली भाजपा सरकार ने फैसला किया था कि दो से अधिक बच्चों वाले लोग 1 जनवरी, 2021 से सरकारी नौकरी के पात्र नहीं होंगे. स्थानीय चुनावों में भी टू चाइल्ड पॉलिसी का नियम लागू किया जा चुका है.
हालांकि असम के नए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने पिछले महीने था कि राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने वालों के लिए धीरे-धीरे टू-चाइल्ड पॉलिसी लागू की जाएगी. उनका कहना था कि कर्ज माफी हो या कोई अन्य सरकारी स्कीम, हम धीरे-धीरे इन योजनाओं के लिए जनसंख्या नीति लागू करेंगे. जनसंख्या मानदंड चाय बागानों, SC\ST समुदायों पर लागू नहीं होंगे, लेकिन भविष्य में सरकार से लाभ प्राप्त करने वाले अन्य सभी लोगों पर लागू होंगे.