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नाइजीरिया की किडनैपिंग इंडस्ट्री की पूरी कहानी क्या है?

नाइजीरिया में ये अपराध इतना फल-फूल क्यों रहा है?

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नाइजीरिया में ये अपराध इतना फल-फूल क्यों रहा है? (AFP)

एक रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इंतज़ार करते 32 लोग अचानक से गायब हो जाते हैं. और, मुल्क़ की सरकार को ज़रा सा भी फ़र्क नहीं पड़ता है. उनके लिए ये रोज़मर्रा की घटना थी. ये घटना किसी और सामान्य देश में हुई होती तो सरकार को उलटा लटका दिया गया होता. लेकिन अफ़्रीकी महाद्वीप की सबसे बड़ी आबादी वाले देश नाइजीरिया में इस तरह की घटनाएं दिनचर्या का हिस्सा हैं.

दरअसल, रेलवे स्टेशन से लोग अपने आप गायब नहीं हुए थे. उनका अपहरण हुआ था. बाद में उनके परिवारवालों से फिरौती मांगी जाने वाली थी. जो पैसे दे पाएंगे, उन्हें छोड़ दिया जाएगा. जिनके घरवाले पैसे जुटाने में नाकाम होंगे, उनका भविष्य अनिश्चित रहेगा. इन मामलों में सरकारी मदद की उम्मीद बेमानी रहती है. ये नाइजीरिया की किडनैपिंग इंडस्ट्री की कहानी है, जो अब ब्लैक होल में तब्दील हो चुकी है.

एक समय तक किडनैपिंग का इस्तेमाल राजनैतिक विरोधियों को निपटाने या दहशत पैदा करने में किया जाता था. फिर इसमें बोको हराम को इसमें मौका दिखा. उन्होंने सेक्स-स्लेव बनाने और बेचकर पैसे कमाने के लिए स्कूली लड़कियों को उठाना शुरू किया. धीरे-धीरे इसमें दूसरे छोटे-मोटे क्रिमिनल गैंग्स भी शामिल होने लगे. उन्हें इसमें बढ़िया फायदा दिख रहा था. आर्थिक संकट और अराजकता से परेशान सरकार के लिए इस पर फ़ोकस करना मुश्किल था. इसके चलते किडनैपिंग इंडस्ट्री का ग्राफ़ लगातार ऊपर बढ़ता गया. नाइजीरिया की रिसर्च फ़र्म ‘SBM इंटेलिजेंस’ की रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई 2021 से जून 2022 के बीच लगभग 13 करोड़ रुपये फिरौती के तौर पर दिए गए. ये वो रकम थी, जिसका रेकॉर्ड उपलब्ध था. असल संख्या इससे कई गुणा अधिक है. इसकी गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से लगाइए कि, नाइजीरिया की पोलिटिकल पार्टियां किडनैपिंग इंडस्ट्री को खत्म करने के दावे को अपने मेनिफ़ोस्टो में शामिल करती हैं.

तो आइए जानते हैं,

- नाइजीरिया की किडनैपिंग इंडस्ट्री की पूरी कहानी क्या है?
- और, नाइजीरिया में ये अपराध इतना फल-फूल क्यों रहा है?

किडनैपिंग शब्द का एक दिलचस्प इतिहास है. ये अंग्रेज़ी के दो शब्दों से मिलकर बना है. Kid और Nab. Kid का मतलब बच्चा. और, Nab का मतलब ज़बरदस्ती छीनकर ले जाना.
17वीं सदी के आख़िरी सालों में ब्रिटेन में पैसों के लिए अमीर परिवार के बच्चों को उठाने की घटनाएं काफी बढ़ गई थी. उस समय Kidnapping टर्म पहली बार चलन में आया था.
17वीं सदी में ही अफ़्रीकी देशों से बच्चों को चुराकर ग़ुलामी के लिए बेचे जाने की कहानियां मिलती हैं. इसे भी किडनैपिंग का नाम दिया गया.
मेरियम-वेब्सटर डिक्शनरी में किडनैपिंग की परिभाषा दी गई है. इसमें लिखा है,,
- Kidnapping is an act to seize and detain or carry away by unlawful force or fraud and often with a demand for ransom.
यानी, अवैध बलप्रयोग या फ़र्जी तरीके से फिरौती के लिए किसी व्यक्ति को उठाकर ले जाना अपहरण है.

ये तो हुआ शब्द-परिचय. अब मुल्क़ से रूबरू हो लेते हैं.

> नाइजीरिया अफ़्रीकी महाद्वीप के पश्चिमी तट पर बसा है. इसकी दक्षिणी सीमा ‘गिनी की खाड़ी’ से लगती है. इसके पड़ोसियों में बेनिन, चाड, कैमरून और नाइजर का नाम आता है.

> नाइजीरिया की आबादी लगभग 22 करोड़ है. वहां दो धर्मों का दबदबा है. लगभग 53 प्रतिशत आबादी इस्लाम, जबकि 46 प्रतिशत के आसपास लोग ईसाई धर्म को मानते हैं. उनके बीच दशकों से जातीय संघर्ष चलता आया है. उसका एक अलग इतिहास है.

> एक समय तक नाइजीरिया अफ़्रीकी महाद्वीप में कच्चे तेल का सबसे बड़ा उत्पादक देश था. उसकी आर्थिक स्थिति इतनी बेहतर थी कि उसे पॉजिटिव लहजे में ‘अफ़्रीका का दानव’ कहा जाता था. पिछले कुछ समय में तेल की चोरी और प्रोडक्शन साइट्स पर होने वाले हमलों के चलते इसमें रुकावट आई. सितंबर 2022 में आई ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज़ (OPEC) की रिपोर्ट के अनुसार, नाइजीरिया तेल पैदा करने के मामले में चौथे नंबर पर पहुंच गया. अंगोला, अल्जीरिया और लीबिया टॉप-तीन में पहुंच गए हैं. ऑयल प्रोडक्शन वाला फ़ैक्ट याद रखिएगा. क्योंकि आज की कहानी का एक सिरा इससे भी जुड़ा है.

> नाइजीरिया की राजधानी अबुजा है. ये शहर 1980 के दशक में बसाया गया था. नाइजीरिया को अक्टूबर 1960 में ब्रिटेन से आज़ादी मिली थी. उस समय लागोस को राजधानी का दर्ज़ा दिया गया था. जब लागोस की आबादी बढ़ने लगी, तब नया कैपिटल बनाने का फ़ैसला लिया गया. दिसंबर 1991 में अबुजा को नाइजीरिया की राजधानी बना दिया गया. हवाई रास्ते से नई दिल्ली से अबुजा की दूरी लगभग आठ हज़ार किलोमीटर है.

> भारत और नाइजीरिया, दोनों ही कॉमनवेल्थ का हिस्सा हैं. भारत ने 1958 में नाइजीरिया में अपना डिप्लोमैटिक मिशन बिठा दिया था. पंडित जवाहरलाल नेहरू नाइजीरिया जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे. वो सितंबर 1962 में नाइजीरिया के दौरे पर गए थे.

अब आपको नाइजीरिया का आइडिया लग गया होगा. अब हम मूल विषय की तरफ लौटते हैं. वहां की किडनैपिंग इंडस्ट्री को समझते हैं.
नाइजीरिया में किडनैपिंग का चलन 1990 के दशक में शुरू हुआ था. इसका इस्तेमाल राजनैतिक संदेश देने के लिए किया जाता था. नाइजीरिया में एक इलाका नाइजर डेल्टा का है. सबसे ज़्यादा क्षमता वाले तेल के कुएं नाइजर डेल्टा में ही हैं. इसके बावजूद इस इलाके के लोग सबसे ज़्यादा ग़रीब हैं. मानवाधिकारों का सबसे अधिक हनन भी यहीं होता है.सत्ताधीशों ने पैसा खाकर रिफ़ाइनिंग के मानकों से समझौता किया. तेल रिसावों को समय पर साफ़ नहीं किया गया. इसके चलते स्थानीय लोगों में गंभीर बीमारियां हुईं. जहां देशभर में औसत उम्र 54 बरस है. जबकि नाइजर डेल्टा में ये आंकड़ा 40 साल के आसपास है.

तेल रिसाव के चलते खेती वाली ज़मीन ख़राब हुई. पानी प्रदूषित हुआ. नदियों में मछलियों की आवक घटी. ये सब  स्थानीय लोगों के जीवनयापन का मुख्य स्रोत थे. तेल के खनन ने उनकी रोजी-रोटी का अंतिम जरिया ही छीन लिया. इसके ख़िलाफ़ कई चरमपंथी गुट खड़े हुए. उन्होंने कच्चे तेल की चोरी शुरू कर दी. कुछ गुट पाइपलाइंस को बर्बाद करने लगे. कुछ गुट इससे आगे निकले. उन्होंने रिफ़ाइनरीज में काम करने वाले विदेशी इंजीनियर्स और दूसरे स्टाफ़्स को किडनैप करना शुरू किया. काउंसिल फ़ॉर फ़ॉरेन रिलेशंस (CFR) की रिपोर्ट के अनुसार, इन गुटों का पहला मकसद होता था, सरकार को और दुनिया को अपनी समस्या के बारे में बताना. ताकि कोई उनकी सुध लेने की सोचे. फिरौती उनका साइड-प्रोडक्ट हुआ करता था. मगर जल्दी ही इसका चाल-चरित्र बदलने वाला था.

ये नया चैप्टर जुलाई 2009 में खुला. जब नाइजीरिया में बोको हराम का उभार हुआ. बोको हराम एक इस्लामी संगठन के तौर पर 2002 में अस्तित्व में आ चुका था. ये दो शब्दों से मिलकर बना है, बोको और हराम. बोको अंग्रेज़ी भाषा के बुक का अपभ्रंश है, जबकि हराम का मतलब वर्जित. बोको हराम का मतलब हुआ, पश्चिमी शिक्षा वर्जित है. जो कोई उनके खांचे में फिट नहीं बैठता था, उनके अनुसार, वो इस्लाम का दुश्मन था. और, वे ऐसे लोगों को मिटाने पर आमादा थे. जुलाई 2009 में इसने नाइजीरिया और आसपास के इलाकों में इस्लामिक ख़िलाफ़त की स्थापना के लिए मिलिटरी ऑपरेशन शुरू किया. उन्होंने सेना, पुलिस के साथ-साथ आम लोगों पर भी हिंसक हमले शुरू कर दिए. 

आज फ़ोकस किडनैपिंग इंडस्ट्री पर रहेगा.

जब बोको हराम के हमले शुरू हुए, तब सेना ने भी जवाब दिया. जुलाई 2009 में ही सेना ने गुट के संस्थापक मोहम्मेद युसुफ़ को मार दिया. उन्होंने बोको हराम को भी भारी नुकसान पहुंचाया. सरकार को लगा कि अब तो खेल खत्म. लेकिन ये ग़लतफहमी साबित हुई. अबूबकर शेकाऊ ने गुट की कमान अपने हाथों में ली. वो पुराने वाले से ज़्यादा बर्बर निकला.
उसने नरसंहार और लूटपाट के साथ किडनैपिंग को भी अपने एजेंडे में शामिल किया. बोको हराम के आतंकी गांवों में लूटपाट मचाते. बुजुर्गों और पुरुषों की हत्या कर देते. बाकी बचे बच्चों और महिलाओं को अपने साथ ले जाते. बच्चों को वे भविष्य के लिए तैयार करते थे. जबकि महिलाओं और बच्चियों का इस्तेमाल सेक्स-स्लेव के तौर पर किया जाता था.

बोको हराम के लड़ाके (AFP)

बोको हराम के द्वारा किडनैपिंग की सबसे बड़ी घटना अप्रैल 2014 में सामने आई. जब इस गुट ने चिबुक में एक स्कूल से 276 लड़कियों का अपहरण किया था. इस घटना पर पूरी दुनिया में बवाल हुआ. नाइजीरिया सरकार पर दबाव बना. तब सरकार ने फिरौती देकर लगभग डेढ़ सौ लड़कियों को छुड़ा लिया गया. फिरौती की रकम के बारे में कभी कोई पुष्ट जानकारी नहीं मिल पाई. अपहरण की गई लड़कियों में से लगभग एक सौ अभी भी लापता हैं. उनके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.

जानी-मानी वॉर रिपोर्टर क्रिस्टिना लैम्ब ने अपनी किताब ‘आवर बॉडीज़, देयर बैटलफ़ील्ड’ में लिखा है कि, चिबुक की घटना तो महज एक उदाहरण भर थी. नाइजीरिया में अपहरण की 90 प्रतिशत घटनाएं रिपोर्ट तक नहीं होती हैं. क्रिस्टिना लैम्ब ने अपनी किताब में पूरी दुनिया में कॉन्फ़्लिक्ट के दौरान महिलाओं पर होने वाले अत्याचार की कहानियां सुनाई हैं. इस्लामिक स्टेट द्वारा यज़ीदी लड़कियों की खरीद-बिक्री और उनके सामूहिक बलात्कार की घटना हो या म्यांमार में रोहिंग्या लड़कियों पर बर्बरता. लैम्ब ने सर्वाइवर्स की कहानियां हुबहू उतारी हैं. अगर आप कुछ नया समझना-बरतना चाहते हैं तो ये किताब ज़रूर पढ़ें.

खैर, जब नाइजीरिया सरकार ने बोको हराम को पैसे दिए, तब बाकी आपराधिक संगठनों को इसमें मौका दिखा. इसका नतीजा ये हुआ कि इस धंधे में और भी लोग शामिल होते गए. तब से हर साल अपहरण की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं. अकेले 2020 में एक हज़ार से अधिक लोगों का अपहरण हुआ था. रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, 2011 से 2020 के बीच नाइजीरिया में किडनैपर्स ने लगभग 130 करोड़ रुपये फिरौती के तौर पर वसूले. 2021 तक किडनैपिंग की घटनाएं पूरे देश में फैल चुकी थी. बोको हराम उत्तरी नाइजीरिया तक सीमित था. अब तो ये कहावत चलने लगी है कि, अगर आप नाइजीरिया में हैं तो आप कभी भी कहीं से भी किडनैप किए जा सकते हैं.

अब सवाल ये उठता है कि, इस अपराध में बढ़ोत्तरी की वजह क्या है?

इसकी तीन बड़ी वजहें हैं.

पहली, आर्थिक. जैसा कि हमने पहले बताया, नाइजीरिया एक समय तक अफ़्रीका में कच्चे तेल का सबसे बड़ा उत्पादक था. इसी की बदौलत मुल्क़ ने तरक्की भी की थी. उसके विकास मॉडल की चर्चा पूरी दुनिया में होती थी. लेकिन सितंबर 2022 में वो चौथे स्थान पर खिसक गया. तेल की चोरी और प्रोडक्शन साइट्स में तोड़फोड़ के चलते भारी नुकसान हुआ. कुछ कंपनियों ने काम करना बंद कर दिया. इसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है.

दूसरी वजह बेरोज़गारी से जुड़ी है. नाइजीरिया की आधी से अधिक युवा आबादी के पास कोई रोजगार नहीं है. किडनैपिंग के तौर पर उन्हें एक विकल्प मिलता है. किडनैपिंग को सरकार और पुलिस भी बहुत गंभीरता से नहीं लेती है. इसलिए, इस बिजनेस का हिस्सा बनने वाले नौजवानों की संख्या बढ़ रही है.

तीसरी वजह का संबंध सरकार की नाकामी से है. नाइजीरिया पहले से ही इस्लामी आतंक और दूसरी बड़ी समस्याओं से जूझ रहा है. उनके लिए किडनैपिंग बहुत बड़ा अपराध नहीं है. सरकार के पास संसाधनों की भी कमी है. अधिकतर मामलों में, सरकारी एजेंसियां तत्परता से कार्रवाई नहीं करती. इसलिए, परिवारवालों के लिए फिरौती देना ज़्यादा बेहतर विकल्प बन जाता है. इसके अलावा, ग़रीबी, भ्रष्टाचार, राजनैतिक हिंसा और सांप्रदायिकता ने किडनैपर्स के लिए उपजाऊ ज़मीन तैयार कर दी है.

इस अपराध पर लगाम लगाने के लिए सरकार क्या कर रही है?

2022 में नाइजीरिया सरकार ने किडनैपिंग के ख़िलाफ़ कानून को सख़्त बना दिया. अब किडनैपिंग के दोषियों के लिए मौत की सज़ा का प्रावधान है. इसके अलावा, सरकार ने फिरौती देने वालों को भी अपराध के दायरे में लाया. किडनैपर्स को फिरौती देने वालों के लिए अधिकतम 15 बरस तक की सज़ा तय की गई है. सरकार का कहना था कि इससे पैसों के लिए होने वाली किडनैपिंग पर लगाम लगेगी. लेकिन नाइजीरिया के अंदर ही इसका भारी विरोध हुआ.

जानकारों का कहना है कि आम लोगों का पुलिस पर से भरोसा उठ चुका है. उनके पास पैसे देकर अपने लोगों को छुड़ाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. अगर उन्हें इसके लिए भी अपराधी ठहराया जाने लगा तो ये ग़लत होगा. ये किडनैप हुए लोगों के लिए दोहरी मौत की खाई की तरह है. असल में, सरकार को अपना गिरेबान पकड़ने की ज़रूरत है. अगर समस्या की जड़ पर चोट नहीं की गई तो सारे नियम-कानून धरे के धरे रह जाएंगे. उनसे सबसे ज़्यादा नुकसान पीड़ित पक्ष को होगा. और, ये बात किसी भी मुल्क़ की सेहत और उसके भविष्य के ख़िलाफ़ जाती है

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