कर्नाटक में हिजाब विवाद इस साल की शुरुआत में शुरू हुआ था. (फोटो: इंडिया टुडे)
हिंदू महिलाएं अगर मंगलसूत्र पहन सकती हैं तो मुस्लिम हिजाब क्यों नहीं पहन सकती. ये तर्क संसद में एक सांसद की तरफ से आया. और भी बहुत तरह के तर्क भी आ रहे हैं, सड़क पर झगड़े भी चल रहे हैं. इस सारे झगड़े का केंद्र है कर्नाटक का उडुपी. एक कॉलेज में लड़कियों को हिजाब पहनने से रोकने पर झगड़ा शुरू होगा. बात छोटी सी थी. लेकिन अब बहुत बड़ी बन गई है. एक तरफ मुस्लिम संगठन हैं और दूसरी तरह मुस्लिम संगठन है. झगड़ा अब कोर्ट तक पहुंच गया है. तो क्या है ये पूरा मामला, राजनीति कि इसमें कितनी मिलावट है, और कोर्ट ने हिजाब पहनने पर क्या कहा, सब कुछ रेशा रेशा अलग करके बताएंगे. अंग्रेज़ी में एक कहावत कही जाती है. Devil lies in Detail. यानी गहराई में उतरने पर ही मालूम चलता है कि कौन शैतान है और कौन देवता है. तो इस मामले में भी कौन कितना सही, और गलत है. ये ऊपर ऊपर से समझ नहीं आएगा. बारीकी से देखना पड़ेगा. तो थोड़े इत्मीनान से बैठिए और पूरा मामला समझिए. बात शुरू से शुरू करते हैं. सबसे पहले तो आप हिज़ाब का मतलब समझ लीजिए. अरबी का शब्द है. आड़ या ओट के मानी में इस्तेमाल होता है. और लोकप्रिय अर्थ के हिसाब से जाएं तो मुस्लिम महिलाएं सर ढकने के लिए जो कपड़ा पहनती हैं, वो हिजाब कहलाता है. तो दुनियाभर में मुस्लिम महिलाएं हिजाब पहनती हैं. भारत में भी पहनती रही हैं. कोई नई चीज़ नहीं है. बस हिजाब को लेकर ये झगड़ा नया है. तो झगड़ा शुरू हुआ कर्नाटक के उडुपी ज़िले में. दिसंबर के आखिरी हफ़्ते में. उडुपी में सरकारी महिला इंटर कॉलेज है. नाम है - Government Pre-University College for Girls, Uddupi. इस कॉलेज की आठ मुस्लिम छात्राओं ने आरोप लगाया कि 27 दिसंबर 2021 को कॉलेज प्रशासन ने उन्हें हिजाब पहनकर कक्षाओं में बैठने से रोक दिया. यानी वो कैंपस में तो हिजाब पहन सकती थीं, लेकिन उन्हें हिजाब के साथ कक्षाओं में बैठने से रोका गया. ऐसा लड़कियों का आरोप था. फिर 15 जनवरी को सोशल मीडिया पर इन लड़कियों की तस्वीरें आईं, किताब-क़लम लेकर सीढ़ी पर बैठे हुए. हिजाब पहने हुए. मामले को कुछ स्थानीय मीडिया संस्थाओं ने कवर किया. और मामला बड़ा बनता चला गया या बना दिया गया. अब यहां आपके ज़ेहन में एक स्वाभाविक सा सवाल ये आ सकता है कि दिसंबर में ही ये घटना क्यों हुई. क्या पहले लड़कियां हिजाब पहनकर कक्षाओं में बैठती थी, या उन्होंने दिसंबर में ऐसा करना शुरू किया. मीडिया में जो छात्राओं का बयान है, उसके मुताबिक उन्होंने दिसंबर 2021 से ही क्लास में हिजाब पहनकर बैठना शुरू किया था. यानी वो कॉलेज कैंपस में तो हिजाब पहले भी पहन सकती थी, पहनती होंगी. लेकिन दिसंबर से उनका मन हुआ कि अब क्लास में भी हिजाब पहनकर बैठना है. लड़कियों ने ये भी बताया कि एडमिशन के वक्त उनसे फॉर्म साइन कराया गया था जिसमें ये क्लॉज थी कि क्लास में हिजाब पहनकर नहीं बैठ सकते. अपने पक्ष में लड़कियों ने ये भी तर्क दिया कि उन्होंने अपने सीनियर्स को क्लास में हिजाब पहने बैठा देखा था. ये तो हुआ लड़कियों का पक्ष. अब कॉलेज प्रशासन की तरफ चलते हैं. कॉलेज के प्रिंसिपल रुद्र गौड़ा और कॉलेज विकास समिति के उपाध्यक्ष यशपाल सुवर्णा के मीडिया में बयान हैं. उनका कहना है कि कॉलेज में 150 से ज़्यादा मुस्लिम लड़कियां पढ़ती हैं, लेकिन कभी किसी ने ऐसी मांग नहीं उठाई. प्रशासन का दावा है कि यह लड़कियां कैंपस फ़्रंट ऑफ़ इंडिया से जुड़ी हुईं हैं और इसीलिए मामले को भड़का रही हैं. अब कैंपस फ्रंट इंडिया का ज़िक्र आया है तो इसे भी समझ लीजिए. आपने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI का नाम सुना है. 2006 में बना मुस्लिम संगठन है, दक्षिण भारत के केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे राज्यों में इसका बेस है. अतिवादी गतिविधियों की वजह से भारत सरकार इस संगठन को बैन करने की प्रक्रिया में है. राज्यों से भी इस संगठन की गतिविधियों के बारे में अच्छी रिपोर्ट्स नहीं हैं. इसे बैनड इस्लामिक संगठन SIMI के प्रॉक्सी फ्रंट की तरफ देखा जाता है. और इस संगठन का स्टूडेंट विंग माना जाता है कैंपस फ्रंट ऑफ़ इंडिया को. तो कर्नाटक वाली लड़कियां इसी संगठन से जुड़ी बताई जा रही हैं. हालांकि इसे साबित करने के लिए हमारे पास तथ्य नहीं हैं. लेकिन केंपस फ्रंट ऑफ़ इंडिया इस मामले में शामिल दिखता है. 30 दिसंबर को, यानी छात्राओं को रोके जाने के 3 दिन बाद, केंपस फ्रंट ऑफ़ इंडिया और स्टूडेंट इस्लामिक ऑर्गेनाइज़ेशन इस मामले के संदर्भ में उडुपी के डिप्टी कमिश्नर कुर्मा राव से मिले भी थे. खैर, घटनाक्रम पर लौटते हैं. हर गुज़रते दिन ये मामला बढ़ता गया. कर्नाटक की सरकार तक गया. कर्नाटक सरकार ने 25 जनवरी को एक एक्सपर्ट कमेटी बनाई. आदेश दिया कि जब तक कमेटी किसी फैसले पर नहीं पहुंचती, तब तक सभी छात्राएं 'यूनिफ़ॉर्म रूल' का पालन करेंगी. यानी, क्लासरूम में हिजाब नहीं पहनेंगी. इसके बाद उडुपी के विधायक रघुपति भट्ट का बयान आया. उन्होंने कहा कि "कॉलेज में सालों से एक ड्रेस-कोड है और हिजाब ड्रेस-कोड का हिस्सा नहीं है. अगर छात्राएं हिजाब पहनने पर ज़ोर देंगी, तो उन्हें ऑनलाइन क्लासेज़ लेनी होंगी. उनकी जो क्लासेज़ छूटी हैं, उसकी अटेंडेंस हम उन्हें दे देंगे." यानी इस मामले में यहां विधायक जी की गैर-जरूरी एंट्री हो गई. इसके बाद छात्राओं की तरफ से कर्नाटक हाई कोर्ट का रुख किया गया. उस पर हम बाद में आएंगे. पहले कोर्ट के बाहर हफ्तेभर से जो रहा है वो देख लेते हैं. उडुपी में हिजाब वाली घटना के बाद कर्नाटक के और इलाकों में भी माहौल बदलने लगता है. 31 जनवरी को मंगलुरु का एक वीडियो आता है. इसमें इसमें बड़े-बड़े पोस्टर पर लिखा होता है कि हिंदू इन दुकानों से सामान न ख़रीदें. कथित तौर पर विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने यह पोस्टर लगाए थे. 2 फरवरी को कुछ छात्र भगवा साफ़ा पहन कर कॉलेज आ गए. कहा, अगर हिजाब की अनुमति है भगवा साफ़े की क्यों नहीं? कर्नाटक के कई इंटर कॉलेजों में भी ऐसा हुआ. उडुपी ज़िले के ही बिंदूर गवर्नमेंट इंटर कॉलेज में बजरंग दल के नेताओं ने छात्र-छात्राओं को कथित तौर पर जबरन भगवा स्कार्फ पहनाया, जिसके बाद कॉलेज प्रशासन को इसके ख़िलाफ़ ऐक्शन लेना पड़ा. 3 फरवरी को कुंडापुर में हिजाब पहनी 20 से ज़्यादा मुस्लिम छात्राओं को कॉलेज के गेट पर ही रोक दिया गया. ऐसा ही कर्नाटक के और कॉलेज में भी हुआ. प्राइवेट कॉलेजों में भी. आरएन शेट्टी पीयू कॉलेज, भंडारकर्स, गवर्नमेंट पीयू कॉलेज कुंडापुर, जूनियर कॉलेज बिदूर, ने भी एक गवर्नमेंट आर्डर का हवाला देते हुए हिजाब पहनी लड़कियों को कॉलेज में प्रवेश करने से रोक दिया. एक वीडियो कर्नाटक के मांड्या जिले से आया, जिसकी सोशल मीडिया पर बहुत चर्चा है. मांड्या के PSE कॉलेज में एक छात्रा स्कूटी से हिजाब पहने हुए आती है. जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ती है, सामने से दर्जनों की संख्या में भगवा कपड़े पहने छात्र नारेबाजी करने लगते हैं. जय श्री राम के नारे लगाते हैं. जवाब में हिजाब पहनी छात्रा भी अल्लाह हू अकबर के नारे लगाने लगती है. कॉलेज का स्टाफ बीच बचाव की कोशिश करता है. आखिर में छात्रा कॉलेज के अंदर चली जाती है और बाहर जयश्री राम के नारे और तेज हो जाते हैं. एक और वीडियो को सोशल मीडिया में वायरल है. वीडियो शिवमोगा के कॉलेज का है, जहां एक छात्र पोल पर चढ़कर भगवा झंडा लहराता नजर आता है इस वीडियो पर कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने आरोप लगाया कि तिरंगा झंडा उतारकर भगवा झंडा लगाया गया. ध्वस्त कानून व्यवस्था की बात कही. इसके बाद DK शिवकुमार ने अपनी तिरंगे के साथ एक फोटो भी ट्वीट की. जिसमें लिखा कि बीजेपी से जुड़े कुछ असमाजिक तत्वों ने तिरंगा उतार दिया। मैं सभी से तिरंगे के साथ फोटो पोस्ट करने की अपील करता हूं शिवमोगा में तनाव बढ़ा तो पुलिस ने धारा 144 लगा दी गई. तो कुल मिलाकर हिजाब और भगवा वाला ये झगड़ा कर्नाटक के कई ज़िलों में अलग अलग तरह से सामने आ रहा है. बेलगावी, बगलकोट, शिवमोगा, हासन, यादगीर, कोडागू, मांड्या जैसे कई जिलों से वीडियो आ रहे हैं. राजनीतिक पार्टियां भी प्रदर्शन कर रही हैं. AIMIM ने 7 फरवरी को बेलगावी में हिजाब के समर्थन में प्रोटेस्ट किया. हिजाब के विरोध में बीजेपी के नेता क्या कह रहे हैं? T RAJA ने कहा
कर्नाटक सरकार ने जो किया है वो हर स्टेट में करने की ज़रूरत है. स्कूल पढाई के लिए है ना कि धर्म के प्रचार के लिए
अब हालात ऐसे हो गए हैं कि राज्य सरकार ने 3 दिन के लिए स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए. अब इतने झगड़े में हमें तीन बड़े तर्क या पक्ष में समझ आ रहे हैं. पहला- मुस्लिम पक्ष का कहना है कि हिजाब पहनना उनका बुनियादी अधिकारी है. उन्हें हिजाब पहनने से नहीं रोका जाना चाहिए. इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है. और इसके समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं. दूसरा पक्ष - हिजाब के विरोध में हिंदू संगठन कह रहे हैं कि कक्षाओं में हिजाब पहनकर आएंगे तो हिंदू भी भगवा स्कार्फ के साथ आएंगे. तीसरा - थोड़ा सा मॉडरेट आर्गेयूमेंट ये भी आ रहा है कि हिजाब या बिना हिजाब देश की कोई भी कॉलेज किसी को शिक्षा से वंचित नहीं कर सकती. कोई कॉलेज बच्चों को सिर्फ इसलिए पढ़ने से रोक सकती कि वो हिजाब पहनकर आई हैं. तो इन तर्कों के साथ बहस हो रही थी. सोशल मीडिया और सड़कों पर भी लोग लड़ रहे थे. और हर पक्ष जीत और हार के लिए कर्नाटक हाई कोर्ट की तरफ नज़र करता है. अब अदलिया की तरफ चलते हैं. कर्नाटक हाई कोर्ट में दो याचिकाएं दायर हुई. उडुपी की उसी Government Pre-University College for Girls की मुस्लिम छात्राओं की तरफ से. आयशा, हाजिरा अल्मस, रेशम फारूक, आलिया असदी, शफा, शमीन और मुस्कान जैनब. इन 7 छात्राओं ने याचिका दायर की. इनके वकील बने मोहम्मद ताहिर. ये डिटेल इसलिए बता रहे हैं क्योंकि आगे जब कोर्ट में जिरह पर बात करेंगे तो वकील का नाम बार बार आएगा. इस मामले में दूसरी याचिका दायर की रेशमा फारुक नाम की छात्रा ने. इनके वकील हैं शताबिश शिवान्ना. क्या लिखा था इन याचिकाओं में. कि हिजाब पहनकर गईं मुस्लिम लड़कियों को 28 दिसंबर 2021 को कॉलेज में घुसने नहीं दिया. फिर उनको अपने पेरेंट्स को बुलाकर लाने को कहा गया. लेकिन जब पैरेंट्स गए, तब भी कॉलेज प्रशासन ने उनसे यानी उनके पेरेंट्स् से बात नहीं की और दिनभर बैठाए रखा. छात्राओं ने ये भी कहा कि ऐसा नहीं है कि वो यूनिफॉर्म नहीं पहन कर जा रही हैं. यूनिफॉर्म के साथ हिजाब पहन रही हैं. आरोप ये भी लगाया कि कॉलेज के प्रिंसिपल, वाइस प्रिंसिपल और लेक्चरर्स हिजाब पहनने के लिए उन्हें अपमानित करते हैं. याचिका में उडुपी के बीजेपी विधायक रघुपथी भट्ट का भी ज़िक्र था. आरोप है कि वो कॉलेज के काम में गैरकानूनी तरीके से कॉलेज के कामों में दखल दे रहे हैं. और इस आधार पर बीजेपी विधायक को भी इस मामले में एक पक्ष बनाया गया है. ये सब बताकर छात्राओं ने कहा कि उनको हिजाब पहनने से रोकना, दो बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन है. आर्टिकल-14 और आर्टिकल - 25 का है. अब क्या है इनमें. अनुच्छेद 14 माने Equality before law of The State. यानी समानता का अधिकार. और अनुच्छेद - 25 यानी धर्म की पालना का अधिकार. यानी छात्राओं का तर्क था कि हिजाब पहनना इस्लाम का आवश्यक हिस्सा है, और हिजाब पहनने से रोकना मतलब इस्लाम की प्रैक्टिस से रोकना. यानी संविधान से मिले बुनियादी अधिकार से महरूम रखना. और आपको पता ही होगा, हमारे संविधान के अनुच्छेद 226 में ये प्रावधान है, कि अगर सरकार या किसी संस्था का कोई नियम कानून किसी को बुनियादी हक़ से महरूम रखता है, तो हाई कोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है. तो इसी रेमेडी के लिए लड़कियां हाई कोर्ट गई थीं. अब इत्ती बात समझ आ गई तो कोर्ट में आज की बहस को समझना बहुत आसान हो जाएगा. हाई कोर्ट के जस्टिस कृष्ण दीक्षित की बेंच ने सुनवाई की. और सुनवाई के शुरू में ही उन्होंने सभी पक्षों से एक अहम बात कह दी. कहा कि हम किसी के जज्बात के हिसाब से नहीं, बल्कि कानून की रोशनी में इस केस को देखेंगे. हम संविधान के हिसाब से चलेंगे. जज ने कहा कि मेरे लिए संविधान ही भाग्वद गीता है. क्योंकि मैंने जज बनने के लिए संविधान की शपथ ली है. इसलिए जज्बातों को परे रखिए. फिर छात्राओं के वकील ने जज से कहा कि परीक्षाओं में चंद वक्त बचा है. कम से कम 2 महीने के लिए छात्राओं को हिजाब पहनने की अनुमति दी जाए. जज ने पूछ लिया - क्या दो महीने बाद आप कॉलेज को नियमों को मानने लगेंगे? छात्र रोज़ सड़क पर निकल रहे हैं, अच्छा थोड़ी लगता है. फिर जज साहब ने कर्नाटक सरकार के वकील की तरफ यानी एडवोकेट जनरल की तरफ मुड़े. पूछा कि क्या आप दो महीने के लिए इस विवाद को विराम दे सकते हैं, दो महीने बाद वो नियम मान लेंगे. इस शुरुआती जिरह के बाद आया असली सवाल. एडवोकेट जनरल की तरफ से. पूछा कि जज साहब पहले ये तो तय हो जाए कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत आता भी है या नहीं. कानून के मामले में असली सवाल तो ये है. इसके बाद छात्राओं के पक्ष के एक वकील ने कहा कि सरकार को उदारता दिखानी चाहिए और दो महीने के लिए छात्राओं को हिजाब पहनने की अनुमति मिल जानी चाहिए. फिर चाहे वो हिजाब उसी रंग का हो जिस रंग की यूनिफ़ॉर्म है. इस पर एडवोकेट जनरल ने कहा कि उदारता का तो सवाल ही नहीं है. इसमें सरकार का क्या लेना देना है. यूनिफ़ॉर्म तय करने में शैक्षणिक संस्थाओं की ऑटोनोमी है. फिर छात्राओं के वकील की तरफ से कहा गया कि हिजाब इस्लाम का ज़रूरी हिस्सा है. इसके बाद जज दीक्षित ने अपनी लाइब्रेरी से कुरआन की कॉपी मंगवाई. और ये भी पूछा कि किसी को शक तो नहीं है कि ये कुरआन की सही कॉपी है या नहीं. ये बेंगलुरू के ही शांतिप्रकाशन के छपी कुरआन की कॉपी थी. जो कोर्ट की लाइब्रेरी में मौजूद थी. उसके बाद याचिकाकर्ताओं के वकील ने जज साहब को कुरआन की वो आयत बताईं जहां हिजाब या बुर्का का ज़िक्र था. केरल हाईकोर्ट के पुराने केस का ज़िक्र किया गया, जब 2016 में लड़कियों को हिजाब में मेडिकल इंट्रेस टेस्ट देनी की अनुमति दी गई थी. तो ये सब बहस होती रही है, और आज शाम तक जज साहब किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए. यानी ये तय नहीं कर पाए कि हिजाब मुस्लिम धर्म का जरूरी हिस्सा है या नहीं. इसको लेकर दुनिया भर में मतभेद हैं. मुस्लिम धर्मगुरुओं में भी मतभेद हैं. एक मुस्लिम महिला के लिए हिजाब पहनना कितना ज़रूरी है, ये समझने के लिए हमने शीबा असलम फहमी से बात की. ये मुस्लिम महिलाओं के हकों के लिए काम करती हैं. उन्होंने बताया
कुरान के अनुसार हिजाब का मतलब होता है अवरोध पैदा करना.दो जेंडर के बीच में अवरोध के लिए यह कहा गया. हिजाब पहनने की चीज़ नहीं. प्रेक्टिस करने की चीज़ है. सर ढंकने का कोई तसव्वुर नहीं है. महिलाओं को उनकी छाती ढंकने की बात कुरान में आई है.
यानी कई मुस्लिम महिलाएं मानती हैं कि इस मामले हिजाब पहनना जरूरी नहीं है. बल्कि ये महिलाओं के हकूक को कमतर कर देता है. कपड़ों की राजनीति, उसमें पुरुषवाद का प्रभुत्व है, और उसे संस्कृति का नाम देना, ये किस हद तक अलग अलग संस्कृतियों में होता रहा है, ये भी हमने समझने की कोशिश की. कल्चरल हिस्ट्री के एक्सपर्ट से. डॉ अर्चना वर्मा ने हमें बताया
पितृ सत्ता वाली सोच रखने वाले घरों में हिजाब की प्रेक्टिस की जाती है. हो सकता है इस्लाम आने के पहले ही वो उस इलाके का हिस्सा हो, और इस्लाम ने उसे ले लिया हो. भारत में जो मुस्लिम महिलाएं पढ़ी लिखे परिवार से आती हैं वे हिजाब करते कम ही पाई जाती है. हिजाब ज़्यादा ऐसी महिलाओं में देखा गया है जो कम पढ़ी लिखी हों
तो कुल मिलाकर आपदा में रानजीति का खूब अवसर तलाशा जा रहा है. यूपी के चुनाव में हिजाब का असर दिखने लगा. नेताओं के बयान आने लगे. हर पक्ष को अपने सही होने का भ्रम है.