पॉलिटिकल असाइलम. यानी राजनीतिक शरण. दो वजहों से ये शब्द पिछले कुछ दिनों से चर्चा में रहा.
पॉलिटिकल असाइलम क्या है, कैसे मिलता है? फ्रांस में रुके भारतीयों ने भी मांगा
भारत के 25 नागरिकों ने फ़्रांस से राजनीतिक शरण AKA पॉलिटिकल असाइलम की मांग की है. क्या होता है ये पॉलिटिकल असाइलम? कौन, किससे, कब मांग सकता है? इसके नियम-कायदे क्या हैं? आज यही सब जानेंगे.
# शाहरुख खान की नई फिल्म डंकी', जो इललीगल तरीके से किसी भी देश में घुसने वाले लोगों की कहानी कहती है.
# फ्रांस में रोका गया भारतीय यात्रियों से भरा विमान, जिसके ज़्यादातर यात्रियों को वापस भेज दिया गया.
ज़्यादातर हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कुल 303 यात्रियों में से सिर्फ 276 ही भारत पहुंचे. दो को फ्रांस सरकार ने पूछताछ के लिए रोका है और 25 ऐसे यात्री हैं, जिन्होंने फ़्रांस से राजनीतिक शरण AKA पॉलिटिकल असाइलम की मांग की है. तो क्या होता है ये पॉलिटिकल असाइलम? कौन, किससे, कब मांग सकता है? इसके नियम-कायदे क्या हैं? आज यही सब जानेंगे.
लेकिन पहले पूरे मामले का बैकग्राउंड समझते हैं.
22 दिसंबर 2023 को खबर आई कि फ़्रांस के वैट्री एयरपोर्ट पर एक विमान मानव तस्करी के संदेह में रोक लिया गया है. ये विमान दुबई से सेंट्रल अमेरिका के निकरागुआ जा रहा था. यात्रा के दौरान ईंधन भरवाने के लिए विमान को फ्रांस में उतारा गया था. उसी दौरान उसे आगे उड़ान भरने से रोक दिया गया. विमान में 303 भारतीय यात्री थे. ए-340 कहलाने वाली ये फ्लाइट रोमानिया की कंपनी लिजेंड एयरलाइन्स द्वारा ऑपरेट की जा रही थी. फ्रांस में भारतीय दूतावास को यात्रियों से मिलने के लिए कॉन्सुलर एक्सेस दे दिया गया. वो मामले की जांच में जुट गए. तीन-चार दिन तक काफी हंगामा रहा. फ्रांस ने यात्रियों में से दो लोगों को हिरासत में लिया. फिर काफी जद्दोजहद के बाद 26 दिसंबर को ये विमान भारत वापस भेज दिया गया.
जैसा कि पहले बताया, विमान मुंबई पहुंचा तो उसमें 303 नहीं 276 यात्री थे. दो फ्रांस में ही हिरासत में ले लिए थे, और बचे हुए 25 लोगों ने फ्रांस में ही रह जाने के लिए आवेदन करने की इच्छा जताई. यानी पॉलिटिकल असाइलम मांगा. इन 25 यात्रियों में 5 नाबालिग हैं. अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत पॉलिटिकल असाइलम की मांग करने वालों को उनके मूल देश वापस नहीं भेजा जा सकता है. इसी वजह से वो 25 लोग अभी फ्रांस में ही हैं.
# क्या होता है ये पॉलिटिकल असाइलम?
राजनीतिक शरण को अगर एकदम सिंपल भाषा में बताया जाए, तो यूं समझिए कि किसी नागरिक को उसके अपने देश से दी गई सुरक्षात्मक पनाह. इसे एक उदाहरण से समझिए. मान लीजिए कि भारत का कोई नागरिक किन्हीं वजहों से अपने आप को देश में सेफ नहीं महसूस करता है. और वो किसी और देश से, मिसाल के तौर पर कनाडा से, शरण देने की अपील करता है. अगर कनाडा उसे अपने यहां रहने की इजाज़त देता है, तो यूं दी गई पनाह पॉलिटिकल असाइलम कहलाएगी.
हालांकि इसमें कई पेंच हैं. जैसे, ऐसी शरण मांगना भारत के उस नागरिक का अधिकार नहीं है. वो सिर्फ मानवता के आधार पर विनती कर सकता है. ना ही कनाडा पर ऐसी शरण देने का कोई बंधन है. वो अपना हिताहित देखते हुए, ऐसी किसी भी अपील को मंज़ूर या खारिज कर सकता है. ऐसे कई केसेज हुए हैं, जिनमें पॉलिटिकल असाइलम मांगने वालों को इनकार किया गया है.
# किन स्थितियों में मांगा जा सकता है पॉलिटिकल असाइलम?
अमूमन ऐसी शरण मांगने वाले व्यक्ति दावा करते हैं कि उन्हें उनके मुल्क से या तो जान का खतरा है, या उन्हें धमकियां मिल रही हैं, या उनके साथ गरिमामय सुलूक नहीं किया जा रहा. ये सब चीज़ें मानवाधिकारों का सीधा-सीधा उल्लंघन हैं. तो इन आधार पर शरण की मांग जायज़ मानी जाती है. यूएन के यूनाइटेड डिक्लेरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स के आर्टिकल 14 में इसका साफ़-साफ़ उल्लेख है. ऐसी शरण को बेसिक मानवाधिकार कहा गया है. शरणार्थियों के मामलों में यूएन के जारी किए इंटरनेशनल एग्रीमेंट से जितने भी राष्ट्रों ने सहमति जताई है, वे शरण की तमाम जायज़ मांगों को मानने के लिए बाध्य है. हां, ये बात उनके अपने विवेक पर छोड़ी गई है कि शरण की मांग जायज़ है या नहीं. यानी इसका फैसला वे खुद करें.
जिन लोगों की मांगे जायज़ मानी जा सकती हैं, या जिन्हें कंसीडर किया जाता है, उन्हें ये साबित करके दिखाना होता है कि उन्हें उनके देश में प्रताड़ित किया जा रहा है. ये प्रताड़ना नीचे लिखी किसी भी वजह को आधार बनाकर हो सकती है.
# व्यक्ति का धर्म
# उसके राजनीतिक विचार
# किसी ख़ास सोशल ग्रुप की मेंबरशिप
# व्यक्तिगत रहन-सहन या सेक्शुअल ओरिएंटेशन
यहां एक बात गौरतलब है कि आतंकवादी कृत्यों, देश के खिलाफ जासूसी, या मानवता के खिलाफ हमले में सम्मिलित लोगों की अपील को कंसीडर ही नहीं किए जाने की परिपाटी चली आ रही है.
# मशहूर पॉलिटिकल असाइलम केसेज
अपना देश छोड़कर दूसरे देश में राजनीतिक शरण लेने का सिलसिला काफी पुराना है. उन्नीसवीं सदी में कार्ल मार्क्स तक ने यूनाइटेड किंगडम में राजनीतिक शरण ली थी. तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा निर्वासन के बाद भारत में लंबे अरसे से शरण पाए हुए हैं. ऐसे कुछेक और केसेज देखते हैं.
1. स्टालिन की बेटी, स्वेतलाना अलिलुयेवा
इस लिस्ट में हमने पहला नाम चुना है, रशियन तानाशाह जोसफ स्टालिन की बेटी स्वेतलाना अलिलुयेवा का. एक मुल्क के सत्ताधीश रहे शख्स की बेटी का किसी और देश में शरण हासिल करना अपने आप में दिलचस्प घटना है. हालांकि ये सब हुआ स्टालिन की मृत्यु के कई साल बाद. हुआ कुछ यूं कि 1963 में स्वेतलाना को कुंवर ब्रजेश सिंह नामक एक भारतीय कम्युनिस्ट से प्रेम हुआ. वो काफी अरसा साथ रहे, लेकिन उन्हें शादी करने की इजाज़त नहीं मिली. 1966 में ब्रजेश सिंह की फेफड़ों की बीमारी से डेथ हो गई. स्वेतलाना उनकी अस्थियां लेकर भारत आईं और इसी दौरान उन्होंने भारत से राजनीतिक शरण मांगी. उनकी मांग को खारिज किया गया और उन्हें तत्काल रशिया लौटने के लिए बोला गया. इसके बाद स्वेतलाना नई दिल्ली स्थित यूएस एम्बेसी गईं और उनसे पॉलिटिकल असाइलम मांगा. अपनी इच्छा लिखित में सबमिट करने के बाद उन्हें अमेरिका में शरण मिल गई. 2011 में अपनी मौत तक स्वेतलाना अमेरिका में ही रहीं.
2. ईरान के शाह, मुहम्मद रज़ा पहलवी
मुहम्मद रज़ा पहलवी ईरान के वो शासक रहे, जिन्हें वेस्टर्न वर्ल्ड शाह के नाम से जानता था और जिन्होंने खुद को शहंशाह की उपाधि दी थी. उन्होंने 1941 से रूल करना शुरू किया था और 1979 की ईरानी क्रांति में उन्हें उखाड़ फेंके जाने तक, वो सत्ता में बने रहे. सत्ता से बेदखल होने के बाद मुहम्मद रज़ा पहलवी पनाह पाने एक मुल्क से दूसरे मुल्क तक भटकते रहे. पहले वो इजिप्ट गए, जहां उनका एक तरह से स्वागत ही हुआ. उसके बाद वो मोरक्को गए, किंग हसन द्वितीय की शरण में. हालांकि किंग हसन में उनका भरोसा ज़्यादा दिन रहा नहीं और वो वहां से बहामाज़ के पैराडाइज़ आइलैंड कूच कर गए. कुछ अरसा वो मेक्सिको के प्रेसिडेंट के पास, जो उनके दोस्त भी थे, मेक्सिको में भी रहे. उसके बाद 1979 के आखिरी महीनों में अमेरिका में उनका इलाज चला. हालांकि अमेरिका में उन्हें असाइलम नहीं मिल पाया. वहां से निकाले जाने के बाद वो थोड़ा अरसा पनामा में रहे. लेकिन वहां भी उन्हें लेकर हंगामा हुआ और अंत में उन्होंने फिर से इजिप्ट से पनाह मांगी. जो कि उन्हें दे दी गई. वो कैरो में रहने लगे और यहीं पर कुछ महीने बाद जुलाई 1980 में उनकी डेथ हो गई.
यहां रुककर आपको एक लल्लनटॉप किस्सा मुख़्तसर में सुना देते हैं. इन्हीं शाह मुहम्मद रज़ा पहलवी साहब से जुड़ा हुआ. सत्तर के दशक में एक बार शाह पाकिस्तान गए. उनकी दिलजोई के लिए पाकिस्तानी पंजाब के गवर्नर ने उस वक़्त की फ़िल्मी अदाकारा नीलू को नाचने के लिए बुलावा भेजा. नीलू ने इनकार कर दिया. तो उन्हें लेने पुलिस भेज दी गई. नीलू नहीं मानीं. पुलिस ने उन्हें जबरन ले जाना चाहा, तो उन्होंने ख़ुदकुशी की कोशिश की. इसी घटना पर हबीब जालिब ने एक कहरबरपा नज़्म लिखी थी, जो बाद में एक फिल्म में भी इस्तेमाल की गई.
"तू कि ना-वाक़िफ़-ए-आदाब-ए-शहंशाही थी
रक़्स ज़ंजीर पहन कर भी किया जाता है”
खैर, आगे बढ़ते हैं.
3. विकीलीक्स फाउंडर, जूलियन असांज
जूलियन पॉल असांज एक ऑस्ट्रेलियन कंप्यूटर प्रोग्रामर हैं, जिन्होंने 2006 में विकीलीक्स की स्थापना की. और पंगा ले लिया. विकीलीक्स ने तमाम मुल्कों के और ख़ास तौर से अमेरिका के ऐसे-ऐसे लीक्ड डॉक्यूमेंट्स छापे कि हंगामा मच गया. प्रभावशाली लोगों और सरकारों को वो खटकने लगे. 2010 में स्वीडन ने उनके खिलाफ यूरोपियन अरेस्ट वॉरंट जारी किया. इस वॉरंट के खिलाफ जूलियन ने अपील की, जो खारिज हो गई. तब वो बेल जंप करके फरार हो गए और लंडन में इक्वाडोर की एंबेसी में शरण ली. 2012 में उन्हें राजनीतिक उत्पीड़न के आधार पर इक्वाडोर में असाइलम मिल गया. जो कि 2019 में रद्द भी कर दिया गया. 11 अप्रैल, 2019 इसके रद्द होते ही, पुलिस एम्बेसी में घुस गई और उन्हें गिरफ्तार किया गया. उन्हें बेल एक्ट तोड़ने का दोषी पाया गया और 50 हफ्ते जेल में बिताने की सज़ा सुनाई गई. तब से अब तक वो लंडन की जेल में हैं और अमेरिका उनके प्रत्यपर्ण की कोशिशें कर रहा है.
4. अमेरिकन व्हिसल-ब्लोअर, एडवर्ड स्नोडेन
एडवर्ड जोसेफ स्नोडेन अमेरिकन कंप्यूटर इंटेलिजेंस कंसलटेंट और व्हिसल-ब्लोअर हैं, जिन्होंने अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी (NSA) के बेहद गुप्त दस्तावेज लीक कर दिए थे. मामला 2013 का है, जब स्नोडेन NSA के एम्प्लॉयी थे. उनके लीक किए हुए डॉक्यूमेंट्स पर दी गार्डियन और वॉशिंग्टन पोस्ट जैसे अखबारों में सनसनीखेज़ आर्टिकल्स लिखे गए. उनके खिलाफ अमेरिकी सरकार ने एस्पियानेज एक्ट लगा दिया. सरकारी दस्तावेजों की चोरी का आरोप भी लगाया. स्नोडेन भागकर मॉस्को पहुंचे. जहां एक महीने से ज़्यादा वक्त तक वो एयरपोर्ट पर ही रहे. उसके बाद रशिया ने उन्हें एक साल का वीज़ा देते हुए शरण दी. इस वीज़ा की अवधि बढ़ती ही रही और स्नोडेन रशिया में ही रहे. अक्टूबर 2020 में उन्हें रशिया में हमेशा के लिए रहने की इजाज़त मिल गई. सितंबर 2022 में उन्हें प्रेसिडेंट व्लादिमीर पुतिन ने रशिया की नागरिकता प्रदान की. कहा जाता है कि पुतिन ने ऐसा अमेरिका को चिढ़ाने के लिए किया. वजह चाहे जो हो, स्नोडेन अब रशियन नागरिक हैं.
2018 में स्नोडेन ने ये कहकर सनसनी मचा दी थी कि भारत में आधार के डेटा का ग़लत इस्तेमाल हो सकता है. जिसको हमने सीरियसली नहीं लिया. खैर.
तो ये थी अथ श्री असाइलम कथा.