The Lallantop

कोरोना के जिस JN.1 वैरिएंट की वजह से मास्क पहनने को कहा जा रहा वो है कितना खतरनाक?

JN.1 असल में कोरोना वायरस के BA.2.86 वैरिएंट का वंशज है. यानी इसका सब-लीनिएज है. BA.2.86 को वैज्ञानिक पिरोला वायरस भी कहते हैं.

post-main-image
JN.1, कोविड का नया वैरिएंट है. (प्रतीकात्मक फोटो सोर्स- आजतक)

कोरोना वायरस के एक और वैरिएंट की चर्चा है. नाम है JN.1. केरल और गोवा में इसके केसों की पुष्टि हुई है. केंद्र से लेकर राज्य सरकारों में हलचल है. एडवाइजरी जारी की जा रही हैं. कहीं-कहीं तो मास्क पहनने तक की हिदायत फिर से दी गई है. ऐसे में JN.1 के बारे में जानना जरूरी हो जाता है.

ये भी पढ़ें: JN.1: कोविड का नया वेरिएंट आया, कुछ बातों का ख्याल रखना जरूरी

कोरोना का नया वैरिएंट JN.1

JN.1 के केस भारत में अब मिले हैं, दुनिया में ये साल की शुरुआत से ही फैल रहा है. इसका पहला मामला जनवरी 2023 में यूरोपीय देश लक्ज़मबर्ग में सामने आया था. उसके बाद सितंबर महीने में अमेरिका में इसका केस सामने आया.

JN.1 कोरोना वायरस के BA.2.86 वैरिएंट का वंशज बताया जाता है. यानी इसका सब-लीनिएज है. BA.2.86 को वैज्ञानिक पिरोला वायरस भी कहते हैं. किसी वायरस के अपने गुण और फैलने की क्षमता जानने के लिए वैज्ञानिक उसके म्यूटेशन (वायरस की अपनी संरचना में बदलाव) पर नजर रखते हैं.

मेडिकल जानकारों के मुताबिक पिरोला के मुकाबले JN.1 के स्पाइक प्रोटीन में सिर्फ एक अतिरिक्त म्यूटेशन है, जबकि पिरोला में 30 से ज्यादा म्यूटेशन मिले हैं. स्पाइक प्रोटीन कोशिकाओं में मौजूद रिसेप्टर्स के जरिये उनमें घुसते हैं. इसीलिए स्पाइक प्रोटीन पर कितने म्यूटेशन हैं, ये जानना वैज्ञानिकों के महत्वपूर्ण होता है.

हमने इस बारे में दिल्ली में सीनियर कंसल्टेंट फिजिशियन और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. चंद्रकांत लहारिया से बात की. वो कहते हैं,

“सभी वायरस में म्यूटेशन होते हैं. नॉर्मल फ्लू के वायरस में भी म्यूटेशन होते हैं. JN.1 भी BA.2.86 वैरिएंट का एक सब-लीनिएज है, यानी एक सब-टाइप है. ये कोई बड़ा वैरिएंट नहीं है. नवंबर 2021 में आया ओमिक्रॉन वैरिएंट एक खतरनाक और मेजर वैरिएंट था.”

कितना खतरनाक है JN.1?

कोरोना वायरस के तमाम वैरिएंट्स को WHO दो कैटेगरीज में बांटता है- एक, वैरिएंट ऑफ़ इंटरेस्ट और दूसरी, वैरिएंट ऑफ़ कंसर्न. पहली कैटेगरी वाले वैरिएंट खतरनाक नहीं होते. मरीज को ज्यादा बीमार नहीं करते. हालांकि तेजी से फैलने की क्षमता रखते हैं. दूसरी कैटेगरी वाले वैरिएंट चिंताजनक माने जाते हैं. ये तेजी से संक्रमण फैलाते हैं. इनसे संक्रमित मरीज गंभीर रूप से बीमार हो सकते हैं. कभी-कभी वैक्सीन भी इन वैरिएंट्स पर असर नहीं करती.

पिरोला और JN.1 को फिलहाल वैरिएंट ऑफ़ इंटरेस्ट में रखा गया है. यानी इन दोनों से संक्रमित मरीजों के गंभीर रूप से बीमार होने की आशंका कम है. अभी तक ऐसा कोई सटीक आंकड़ा या साइंटिफिक एनालिसिस सामने नहीं आया है जिससे ये बताया जा सके कि JN.1 गंभीर रूप से बीमार कर सकता है या तेजी से फैल सकता है. हालांकि जब पिरोला वैरिएंट के शुरुआती मामले सामने आए थे तो इसके स्पाइक म्यूटेशन को लेकर चिंताएं जताई गईं. कहा गया था कि पिरोला, इंसानों के इम्यून सिस्टम को आसानी से गच्चा दे सकता है. इसके तेजी से फैलने की भी बात की गई थी. लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है.

JN.1 का संक्रमण वैक्सीन से मिलने वाली इम्युनिटी को बेअसर करने में सक्षम नहीं पाया गया है. WHO के एक टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप के विश्लेषण में ये पाया गया कि पिरोला और JN.1 दोनों वैरिएंट को उन लोगों के खून के सीरम ने बेअसर कर दिया जिन्होंने कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद वैक्सीन ली थी. इस नए वैरिएंट के मद्देनजर ये राहत देने वाली जानकारी है.

फैलने की दर

बीते कुछ दिनों में पूरी दुनिया में पिरोला और इसके करीबी रिश्तेदार JN.1 के मामले बढ़े हैं. अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों के अलावा सिंगापुर और चीन में भी इसके मामले सामने आए हैं.

सिंगापुर के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक,

"सिंगापुर में कोविड के ज्यादातर मामलों में JN.1 का संक्रमण है. लेकिन उपलब्ध वैश्विक और स्थानीय आंकड़ों के आधार पर अभी इस बात के संकेत नहीं हैं कि पिरोला या JN.1, दूसरे वैरिएंट की तुलना में ज्यादा संक्रामक हैं, या फिर गंभीर बीमारी की वजह बनते हैं."

वहीं हमसे बातचीत में डॉ. चंद्रकांत कहते हैं,

“जब एक के बाद एक किसी वायरस के बहुत सारे वैरिएंट एक साथ आते हैं तो उनमें से कोई एक बाकी को रिप्लेस करता है. उसके ही केस बढ़ते हैं. लेकिन कोई वायरस कितना संक्रामक है, ये और भी कई बातों पर निर्भर करता है. सिंगापुर में केस क्यों बढ़े, इसके लिए ये भी देखना होगा कि वहां लोगों का एक दूसरे से कॉन्टैक्ट कितना है, वहां पिछली बार संक्रमण कब हुआ था, वैक्सीन कब और कितनी डोज़ लगी हैं. ये भी है कि सिंगापुर में सर्विलांस सिस्टम कैसा है, संभव है कि वहां तेजी से टेस्टिंग की जा रही हो.”

डॉ. चंद्रकांत ये भी कहते हैं कि कोई खतरनाक वायरस बहुत जल्दी (एक से दो हफ्ते में ही) फ़ैल जाता है. ओमिक्रॉन दो महीने में पूरी दुनिया में फ़ैल गया था, जबकि JN.1 के मामले काफी समय पहले आ चुके हैं. अभी तक ये जानलेवा तरीके से नहीं बढ़ा है.

क्या कोविड वैक्सीन की डोज़ लेने की जरूरत है?

डॉ. चंद्रकांत के मुताबिक भारत में बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन के चलते संक्रमण बढ़ने की आशंका काफी कम है. वो कहते हैं,

“इस वैरिएंट को ऑब्जर्व करने की जरूरत है. लेकिन कोविड के दौरान भारत में सभी को 2 से 3 बार वैक्सीन लग चुकी है. लोग बार-बार संक्रमित हो चुके हैं. इससे नैचुरल इम्युनिटी भी बढ़ गई है. दुनिया का कोई भी देश एडिशनल वैक्सीन देने की बात नहीं कर रहा है. भारत में भी आम लोगों को परेशान होने की जरूरत नहीं है.”

चंद्रकांत समझाते हैं कि अगर सामान्य रूप से कोई वैक्सीन 80 फीसद तक प्रोटेक्शन देती है, तो एक समय के बाद ही उसकी क्षमता कम होगी. इसलिए एडिशनल वैक्सीन देने की जरूरत नहीं है.

वीडियो: विवेक अग्निहोत्री ने दी वैक्सीन वॉर में भारत की कोरोना वैक्सीन बनने की कहानी दिखाई है