GI Tag होता क्या है
मान लीजिए, आप किसी दफ्तर में काम करते हैं या दिल्ली के किसी कॉलेज में पढ़ते हैं. अक्सर ऐसा होता है कि आपके सहपाठी या ऑफिस में काम करने वाले दोस्त, जब अपने घर जाते हैं, तो आपके लिए अपने यहां की फेमस चीज लाते हैं. कई बार खुद से, तो कई बार फरमाइश करने पर. जैसे राजस्थान की बीकानेरी भुजिया. ओडिशा और पश्चिम बंगाल का रसगुल्ला. या ऐसी बहुत सारी चीजें.
कहने का मतलब है कि भारत में हर क्षेत्र अपनी यूनिकनेस के लिए जाना जाता है. कोई प्रॉडक्ट किसी खास क्षेत्र का ही फेमस होता है, और उस क्षेत्र की पहचान बन जाता है. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि ये एकदम से हो जाता है. कई मामलों में किसी खास क्षेत्र के किसी खास प्रॉडक्ट को अपनी पहचान बनाने में दशकों, तो कभी सदियों लग जाते हैं. जैसे बनारसी साड़ी. बनारसी साड़ी ने लंबे समय में अपनी पहचान बनाई है.
लेकिन मान लीजिए कि कोई वैसे ही किसी साड़ी को बनारसी साड़ी का नाम दे दे और उसे मार्केट में बेचने लगे. ऐसे में होगा क्या कि एक तो जो ऑरिजनल बनारसी साड़ी है, उसकी साख को बट्टा लगेगा. दूसरा ये कि बनारसी साड़ी बनाने वाले को उसका क्रेडिट नहीं मिलेगा. ऐसे में बात आई कि जिस चीज की उत्पत्ति जहां हुई है, उसे बेचने का अधिकार उसी के पास होना चाहिए, जिससे वहां के लोगों को ही फायदा मिले. ऐसे में उन प्रॉडक्ट को प्रमाणित करने की बात हुई. उसी से आया GI Tag.

GI Tag यानी Geographical Indicator. भौगोलिक संकेतक. GI Tag उन प्रोडक्ट को मिलता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है. जीआई टैग उस उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी विशेषता को दर्शाता है. दिसंबर, 1999 में संसद ने माल के भौगोलिक उपदर्शन (रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 पारित किया. अंग्रेजी में कहें, तो Geographical Indications of Goods (Registration and Protection) Act, 1999. इसे 2003 में लागू किया गया. इसके तहत भारत में पाए जाने वाले यूनीक प्रॉडक्ट के लिए जी आई टैग देने का सिलसिला शुरू हुआ.
मान लीजिए कि देवघर में ही एक खास किस्म का पेड़ा बनता है, जो काफी हद तक फेमस है. यहां के लोग चाहते हैं कि उनके पेड़े को एक पहचान मिल जाए, मान्यता मिल जाए. तो वे रजिस्ट्रार ऑफ जियोग्राफिकल इंडिकेशन, यानी जीआई के लिए अप्लाई कर सकते हैं.
GI Tag किन प्रॉडक्ट को दिया जाता है
1. एग्रीकल्चर गुड्समतलब खेती से जुड़े प्रॉडक्ट जैसे- बासमती चावल, दार्जिलिंग टी, किसी खास किस्म का मसाला और ऐसे ही प्रॉडक्ट, जो एक विशेष क्षेत्र में मिलते हैं.
2. हैंडीक्राफ्ट्स
जैसे चंदेरी साड़ी, महाराष्ट्र सोलापुर की चद्दर, कर्नाटक का मैसूर सिल्क. तमिलनाडु का कांचीपुरम सिल्क.
3. Manufactured प्रॉडक्ट्स
जैसे तमिलनाडु का इस्ट इंडिया लेदर, गोवा की फेनी, महाराष्ट्र की Nashik Valley Wine, उत्तर प्रदेश के कन्नौज का इत्र.
4. खाद्य सामग्री
आंध्र प्रदेश के तिरुपति का लड्डू, राजस्थान की बीकानेरी भुजिया, तेलंगाना के हैदराबाद की हलीम, पश्चिम बंगाल का रसोगुल्ला, मध्य प्रदेश का कड़कनाथ मुर्गा.
कैसे मिलता है
अगर किसी प्रॉडक्ट के लिए GI Tag हासिल करना है, तो ऐसा नहीं है किसी एक व्यक्ति के अप्लाई करने से जीआई टैग मिल जाएगा. मान लीजिए कि ओडिशा में कोई दुकानदार रसगुल्ला बनाता है और वह जीआई टैग के लिए अप्लाई करे, तो उसे मिल जाएगा, ऐसा नहीं है. ओडिशा में रसगुल्ला बनाने वालों का जो असोसिएशन है, उसी तरह बाकी प्रॉडक्ट बनाने वालों का जो असोसिएशन है, वो अप्लाई कर सकता है. कोई कलेक्टिव बॉडी अप्लाई कर सकती है. सरकारी स्तर पर अल्पाई किया जा सकता है.
GI Tag के लिए किन बातों का ध्यान रखना होता है
अप्लाई करने वाले को बताना पड़ेगा कि उन्हें ही जीआई टैग क्यों दिया जाए. सिर्फ बताना नहीं पड़ेगा, ऐतिहासिक प्रूफ भी देना होगा. प्रॉडक्ट की यूनिकनेस के बारे में उसके ऐतिहासिक विरासत के बारे में. जैसे रसगुल्ला को लेकर बंगाल और ओडिशा भिड़ गए थे. कड़कनाथ मुर्गे पर छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश, दोनों ने दावा कर दिया था. पश्चिम बंगाल और ओडिशा, दोनों राज्यों ने अपने-अपने दावों के संदर्भ में प्रूफ दिया. बाद में ये फैसला हुआ कि दोनों राज्यों को जीआई टैग मिल गया. ओडिशा का रसगुल्ला और बंगाल का रसगुल्ला. लेकिन कड़कनाथ को मध्य प्रदेश का माना गया. और एमपी को ही जीआई टैग मिला.अप्लाई कहां करना होता है
Controller General of Patents, Designs and Trade Marks (CGPDTM) के ऑफिस में. चेन्नई में इस संस्था का हेडक्वाटर है. ये संस्था एप्लीकेशन चेक करेगी. देखेगी कि दावा कितना सही है. पूरी तरह से छानबीन करने और संतुष्ट होने के बाद उस प्रॉडक्ट को जीआई टैग मिल जाएगा.टैग मिलने का मतलब क्या है
प्रमाणपत्र. सर्टिफिकेट का मिलना. सरकार की ओर से एक सर्टिफिकेट मिलता है. साथ ही मिलता है एक लोगो. जो टैग मिलता है, उसका प्रयोग एक ही समुदाय कर सकता है. जैसे ओडिशा के रसगुल्ला के लिए जो लोगो मिला, उसका इस्तेमाल ओडिशा के लोग कर सकते हैं. रसगुल्ले के डिब्बे पर. जीआई टैग 10 साल के लिए मिलता है. हालांकि इसे रिन्यू करा सकते हैं.ठीक है GI Tag मिल गया, पर इससे होगा क्या
जीआई टैग उसी प्रॉडक्ट को मिलता है, जो एक खास एरिया में बनाया जाता है या पाया जाता है. जीआई टैग मिलने से पता चल जाता है कि ये चीज उस पार्टिकुलर एरिया में मिलती है. जैसे महाराष्ट का अल्फांसो आम. एक बार पहचान मिलने के बाद एक्सपोर्ट बढ़ जाता है. साथ ही टूरिज्म भी बढ़ता है. लोग उसी बहाने उस एरिया में पर्यटन के लिए जाते हैं. खेती से जुड़ा प्रॉडक्ट होने पर किसानों को फायदा मिलता है. वैसे ही Manufactured प्रॉडक्ट को जीआई टैग मिलने पर उस प्रॉडक्ट को बनाने वाले लोगों को फायदा मिलता है. फेक प्रॉडक्ट को रोकने में मदद मिलती है. जहां के जिस प्रॉडक्ट को जीआई टैग मिला है, उसे कोई और नहीं बेच सकता. यह जीआई के नियमों के खिलाफ होगा. गलत तरीके से GI Tag या लोगो का इस्तेमाल करने पर यह अपराध की श्रेणी में आएगा.
इंटरनेशनल लेवल पर क्या है
अब तक हमने भारत की बात की. लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जीआई टैग होता है. जीआई टैग को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में एक ट्रेडमार्क की तरह देखा जाता है. WTO. वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन. इसके तहत Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights (TRIPS) एक एग्रीमेंट है, जिसे ज्यादातर बड़े देशों ने साइन कर रखा है. इसके सदस्य देशों के बीच इस बात पर सहमति है कि वो एक-दूसरे के जीआई टैग का सम्मान करेंगे. अगर किसी एक देश ने किसी एक प्रॉडक्ट पर जीआई टैग दे दिया है, तो दूसरे देश उसी प्रॉडक्ट पर या उसी तरह के फेक प्रॉडक्ट को रोकने की कोशिश करेंगी. क्योंकि अतंरराष्ट्रीय लेवल पर किसी प्रॉडक्ट के ऑरिजन को लेकर उसे किसने फेमस किया, उसे लेकर विवाद होते रहते हैं. इसलिए TRIPS एग्रीमेट आया, ताकि इस तरह के विवाद को इसके तहत हल किया जा सके. उसी तरह एक और ट्रीटी है लिस्बन एग्रीमेंट. इसके तहत भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर GI Tag से जुड़े विवादों का निपटारा किया जाता है.लोकसभा में तीन लेबर बिल पास; इनके बारे में कितना जानते हैं आप?