The Lallantop

रूस ने ऑफर किया TU-160 बॉम्बर जहाज, चीन और पाकिस्तान के इस फाइटर जेट से होगी टक्कर!

रूस ने भारत को अपने घातक TU-160 और TU-22M3 बॉम्बर एयरक्राफ्ट ऑफर किए हैं. ख़बर है कि भारत इस सौदे में दिलचस्पी भी दिखा रहा है. वजह है हमारे पड़ोसी चीन और पाकिस्तान. चीन के बॉम्बर जहाज लंबी दूरी तक भारी मात्रा में विस्फोटक ले जाने में सक्षम हैं.

post-main-image
हवा में उड़ता अमेरिकन B1 बॉम्बर जहाज (IMAGE-विकीपीडिया)

04 मई 2024 को द हिंदू में एक रिपोर्ट छपी. इस रिपोर्ट का शीर्षक था 'Indigenous Bomber Unmanned Aircraft Developed By Bengaluru Firm Unveiled". माने भारत में बने स्वदेशी 'बॉम्बर जहाज़' का पहला लुक जारी. पर इस बॉम्बर के पहले लुक जारी होने और पूरी तरह ऑपरेशनल होने में अभी काफी समय है. ऐसा इसलिए है क्योंकि एक जहाज़ को कई तरह से, कई मौसमों और अलग-अलग ऊंचाइयों पर टेस्ट किया जाता है. पर भारत के चुनौतियां ये देखकर इंतज़ार नहीं करेंगी. लिहाजा भारत ने बॉम्बर जहाज़ खरीदने का मन बना लिया है. किससे? अपने पुराने रक्षा पार्टनर रूस से. ख़बरें हैं कि रूस ने भारत को TU-160 और TU-22M3 बॉम्बर एयरक्राफ्ट ऑफर किए हैं. TU-160 को वाइट स्वान(White Swan) के नाम से जाना जाता है. लंबी दूरी तक मार करने में ये विमान अपनी काबिलियत कई जगहों पर साबित कर चुका है. दूसरा जहाज़ TU-22M3 है. पहले इसे इंडियन नेवी के लिए ख़रीदा जाना था पर किन्हीं कारणों से ये डील बीच में अटक गई.

ग्लोबल फायरपावर के मुताबिक भारत के पास फिलहाल 2296 एयरक्राफ्ट हैं. इसमें फाइटर से लेकर ट्रांसपोर्ट जहाज़ तक शामिल हैं. पर भारत की एयर फ्लीट को देखें तो एक जहाज़ की कमी दिखती है, और वो है बॉम्बर एयरक्राफ्ट. वहीं भारत का पड़ोसी और 'प्यारा दोस्त' चीन अपना मानव रहित बॉम्बर पेश करने वाला है. भारत के लिए क्यों ये चिंता की बात है, वो जानेंगे, पर पहले जानते हैं आखिर ये बॉम्बर एयरक्राफ्ट क्या बला है जिसकी इतनी बातें हो रही हैं.

बॉम्बर जहाज़

साल 1911 में प्रथम विश्वयुद्ध से पहले एक जंग हुई. इस जंग को Italo-Turkish War नाम से जाना जाता है. इटली को चाहिए थे नॉर्थ अफ्रीका के देश जहां वो अपनी कॉलोनी बना सकें इसके लिए उन्हें तुर्की के प्रान्त Tripolitana और साइरेनाइका जो आज का लीबिया है वहां कब्ज़ा करना पड़ा. और इसी के साथ शुरु हुई ये जंग. राइट बन्धुओं की बदौलत तब तक जहाज़ अस्तित्व में आ चुके थे. इसलिए जहाज़ का इस्तेमाल भी इस जंग में हुआ.

दिसंबर 1911 में एक इटैलियन जहाज़ निगरानी के लिए तुर्की के दल के ऊपर था, उसी दौरान जहाज़ से 4 ग्रेनेड फ़ेंके गए. और यहीं से ईजाद हुआ एक टर्म, बॉम्बर जहाज़. यानी वो जहाज़ जिनसे बॉम्ब गिराए जा सकें. इसके बाद आया एयरशिप का दौर. एयरशिप्स का इस्तेमाल बम गिराने के लिए किया जाने लगा पर स्पीड कम होने से ये आसान टारगेट भी थे. इसके बाद इसकी जगह ली ऐसे प्लेन्स ने जिन्हें खासतौर पर बम गिराने के लिए बनाया जाता था. इस दौर में फ़्रांस का एक जहाज़ Voisin एक बहुत ही लोकप्रिय जहाज़ था. फिर इसके बाद तो लैंकास्टर से लेकर जर्मनी के स्टूकर विमानों ने द्वितीय विश्वयुद्ध में खूब सुर्खियां बटोरी. डाइव लगाकर टारगेट के ठीक ऊपर जाना. फिर बम गिराना, बम गिराने का ये तरीका खूब प्रचलित हुआ. फिर आगे चलकर हिरोशिमा और नागासाकी तो सबको याद है. इसमें भी अमेरिका के उस समय के उन्नत बॉम्बर B-29 का इस्तेमाल हुआ था.

B 29 bomber
अमेरिका का B29 जिससे परमाणु हमला किया गया (IMAGE-विकीपीडिया)
दबदबा था, दबदबा है

बात हो अगर एयर पावर की तो बॉम्बर जहाज़ों का दबदबा हमेशा से रहा है. बॉम्बर जहाज़ मुख्य तौर पर दो तरह के होते हैं. स्ट्रेटेजिक और टैक्टिकल. स्ट्रेटेजिक बॉम्बिंग के लिए बड़े और भारी जहाज़ इस्तेमाल होते हैं जो काफी दूरी तक जाकर बम गिराने में सक्षम हैं. वहीं, टैक्टिकल बॉम्बर का इस्तेमाल कम दूरी के मिशन्स में किया जाता है. ये जहाज़ दुश्मन के इलाके में जाकर टारगेट पर बम गिराते हैं जिससे ज़मीन पर लड़ने वाली सेना को मदद मिलती है. जिन देशों के पास बॉम्बर जहाज़ हैं, उनकी एयरपावर का लोहा सभी मानते हैं. वजह है इन जहाजों की क्षमता. बॉम्बर जहाज़ कई हज़ार किलोग्राम तक के बम, विस्फोटक ले जाकर सटीक ढंग से वार करते हैं. जिससे कोलेटरल डैमेज की सम्भावना कम होती है.

भारत की टेंशन

भारतीय एयरफोर्स लगातार आधुनिक और मॉडर्न बनने की राह पर अग्रसर है. लगातार नए-नए प्रयोग जारी हैं जो भारत की एयरपावर को नई ऊंचाई दे सकें. पर भारत के पास अभी कोई भी बॉम्बर जहाज़ नहीं है. वहीं प्यारे पड़ोसी चीन को देखें तो उसके पास बॉम्बर जहाज़ों के कई बेड़े हैं जो काफी दूरी तक दुश्मन पर वार करने में सक्षम हैं. इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में कनाडा और अमेरिका ने अलास्का के पास एक चीनी बॉम्बर को इंटरसेप्ट किया था. भारत अभी बॉम्बर जहाज़ों पर काम कर रहा है. साथ ही भारत ने अमेरिका से B1 सीरीज़ के बॉम्बर जहाज़ खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है. 

अगल वाले पड़ोसी (चीन) के बाद बगल वाले पड़ोसी माने पाकिस्तान को देखें तो उसने 1965 में एक जुगाड़ अपनाया था. पाकिस्तान ने अमेरिका से मिले C-130 को मॉडिफाई किया था जिसका इस्तेमाल भारत के एयरबेसेज़ पर हमले में किया गया था. अब भी पाकिस्तान कुछ जहाज़ों को मॉडिफाई करके उनका इस्तेमाल करता है. चूंकि नए बॉम्बर की तुलना में मॉडिफिकेशन करने काफी कम खर्च आता है, लिहाजा पाकिस्तान ये तरीका अपनाता है. भारत अपने बॉम्बर पर काम कर रहा है, पर इसके डेवलप और टेस्टिंग होने तक के लिए भारत को निश्चित तौर पर कोई न कोई विकल्प तलाशना होगा. खबरें हैं कि भारत, अमेरिकन मेड B-1 बॉम्बर में दिलचस्पी दिखा रहा है. साथ ही भारत रशियन मेड टुपोलेव में भी इंट्रेस्टेड है. 

ओनली फाइटर क्यों?

अब एक सवाल मन में उठता है कि भारत ने बॉम्बर जहाज़ पहले क्यों नहीं ख़रीदे? क्यों भारत ने फाइटर जेट्स या मल्टीरोल फाइटर जेट्स पर ज़्यादा ध्यान दिया. इसकी मुख्य वजह है भारत की चुनौतियां. भारत ने अभी तक पाकिस्तान और चीन से जंग लड़ी है. वैश्विक युद्धों में जैसे कि तालिबान या इस्लामिक स्टेट से जंग में भारत का रोल नहीं रहा. भारत ने हमेशा अपनी सीमा पर जंग लड़ी है इसलिए उसे कभी बॉम्बर की कोई ख़ास ज़रूरत महसूस नहीं हुई. इसके उलट अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन जैसे देशों ने दूसरे उपमहाद्वीप में भी जंग लड़ी है. जैसे अमेरिका 2 दशक तक अफ़ग़ानिस्तान में रहा. इसलिए भारत के उलट बॉम्बर जहाज़ उनकी रेगुलर फ्लीट का हिस्सा रहे हैं. पर अब जैसे-जैसे भारत का कद और क्षमता बढ़ रही है, वैसे-वैसे चुनौतियां भी बढ़ रही हैं. इसलिए वर्तमान में भारत के लिए बॉम्बर जहाज़ की ज़रूरत महसूस हो रही है.

वीडियो: दुनियादारी: क़तर, हमास का समर्थन क्यों करता है?