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दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा 'ब्लू होल' मिला, बिना ऑक्सीजन के जीवन की गुत्थी सुलझेगी?

वैज्ञानिकों को इस ब्लू होल में क्यों इंटरेस्ट है?

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ब्लू होल का मुंह समुद्र तल से 15 मीटर नीचे है. (प्रतीकात्मक फोटो- Getty)

मेक्सिको में दुनिया का दूसरा सबसे गहरा ब्लू होल मिला है. इसे वहां के युकाटन प्रायद्वीप पर खोजा गया है. ये ब्लू होल करीब 900 फ़ीट गहरा है. इसका क्षेत्रफल 1 लाख 47 हजार स्क्वायर फीट है. यानी करीब 13 हजार 660 वर्ग मीटर. इसके पहले साल 2016 में दक्षिण चीन सागर में सबसे बड़ा ब्लू होल खोजा गया था जो 980 फीट यानी तकरीबन 300 मीटर गहरा था.

युकाटन प्रायद्वीप पर चेतुमल शहर के पास खोजे गए इस ब्लू होल का नाम है- 'ताम जा'. मायन भाषा में इस शब्द का  मतलब होता है- 'गहरा पानी'. इस ब्लू होल का मुंह समुद्र तल से करीब 15 मीटर नीचे है. मेक्सिको में Ecosur नाम का एक पब्लिक रिसर्च सेंटर है. यहां के वैज्ञानिकों ने मेक्सिको के नेशनल काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के साथ मिलकर साल 2021 में पहली बार इस ब्लू-होल की खोज की. इसके बाद फरवरी, 2023 में इस खोज पर आधारित एक स्टडी भी छापी गई थी.

क्या है ब्लू होल?

ब्लैक होल के बारे में हमने सुना है. ये अंतरिक्ष में बहुत ज्यादा ग्रेविटी वाली वो जगहें होती हैं, जिनके आस-पास भी कोई तारा, ग्रह या कोई उपग्रह पहुंचे तो वो इनमें समा जाते हैं. लेकिन ब्लू होल पूरी तरह अलग चीज हैं. ये समुद्रों में पाए जाते हैं. ब्लू होल असल में समुद्र के अन्दर बड़ी-बड़ी खड़ी गुफाएं हैं. समुद्र के निचले तल के भी अन्दर. खड़ी का मतलब ऐसे समझिए कि अभी जो ब्लू होल खोजा गया है उसके किनारों की ढाल, समुद्र तल से 80 डिग्री का कोण बनाती है. ये ब्लू होल तटीय इलाकों में पाए जाते हैं. इनमें से कुछ के अन्दर समुद्री कछुए, शार्क और समुद्री पौधे वगैरह भी होते हैं. इनमें समुद्री जीवन होना बड़ी बात इसलिए है कि इनमें सूरज की रौशनी और ऑक्सीजन बमुश्किल से पहुंचती है.

लेकिन क्या ब्लू होल बनना सामान्य प्रक्रिया है? बिल्कुल नहीं. समुद्र का पानी चूना पत्थर की चट्टानों में आसानी से चला जाता है. इसकी वजह है चूना पत्थर यानी लाइमस्टोन का झरझरा होना. आसान भाषा में कहें तो इसमें छेद होते हैं. जिनके जरिए पानी के केमिकल चूना पत्थर के साथ रिएक्ट करके उसे धीरे-धीरे ख़त्म कर देते हैं. केमिस्ट्री की भाषा में कहें तो चूना पत्थर की चट्टानें डिजॉल्व हो जाती हैं और ब्लू होल बन जाते हैं.

अमेरिकी साइंस वेबसाइट लाइवसाइंस के मुताबिक, संभावना है कि पिछले हिमयुगों के दौरान बार-बार तटीय इलाकों में समुद्र का जल स्तर बढ़ने और घटने के चलते चट्टानें नष्ट हो गईं और खाली जगहें बन गईं जिन्हें अब ब्लू होल कहा जा रहा है. और करीब 11 हजार साल पहले जब आख़िरी हिम युग समाप्त हुआ और समुद्र का वाटर लेवल बढ़ा तो ये गुफाएं पानी से भर गईं. और पूरी तरह से समुद्र में डूब गईं. हालांकि ये थियरी सौ फीसद सही नहीं है. क्योंकि ब्लैक होल की ही तरह किसी ब्लू होल को खोजकर उस तक पहुंचना बहुत आसान नहीं है. इसीलिए कई ब्लू होल्स के बारे में साइंटिस्ट कोई सटीक स्टडी नहीं कर पाए हैं.

अमेरिका की कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी की जियोसाइंटिस्ट लीजा पार्क ब्लू होल्स पर स्टडी कर रही हैं. लीज़ा का कहना है कि ब्लू होल कैसे बनते हैं ये एक रहस्य है. समुद्र के खारे पानी और सामान्य पानी के मिलने पर कुछ रासायनिक क्रियाओं के चलते हलके एसिड्स बन सकते हैं, जिनसे लाइमस्टोन या दूसरे कार्बोनेट यौगिक नष्ट हो जाते हैं. और समुद्र का जल स्तर घटने-बढ़ने से तय होता है कि ब्लू होल कब और कहां बनेगा.

हालंकि कुछ और रिसर्चर्स भी हैं, जो कहते हैं कि सूक्ष्म जीवों की एक्टिविटीज भी समुद्र के तलछट की चट्टानों के डिजॉल्व होने के पीछे की वजह हो सकती हैं.

ब्लू होल खोजने से फायदा

दरअसल ब्लू होल में न के बराबर ऑक्सीजन होती है. सूरज की रौशनी भी सिर्फ ब्लू होल के मुंह तक पहुंचती है. कुल मिलाकर यहां जीवन लायक स्थितियां नहीं हैं. लेकिन साइंटिस्ट्स ने पाया कि फिर भी यहां जीवन है. साल 2012 में रिसर्चर्स ने बहामास के ब्लू होल्स में जांच- पड़ताल कर पाया था कि यहां किसी भी और तरह का जीवन नहीं है, लेकिन बैक्टीरिया हैं. ऐसे में वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्लू होल कई चीजें समझने में मददगार हो सकते हैं. मसलन, हजारों साल पहले जीवन कैसा हुआ करता था, दूसरे ग्रहों पर जीवन (अगर है तो) कैसा है. हमारे सोलर सिस्टम में कहीं और प्रतिकूल स्थितियों में भी जीवन की संभावना के बारे में ये ब्लू होल बता सकते हैं.

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