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जब हादसे में ब्लैक बॉक्स बच जाता है, तो पूरा प्लेन उसी मैटेरियल का क्यों नहीं बनाते?

जानिए क्या होता है ब्लैक बॉक्स, जो किसी भी विमान हादसे के बाद सबसे पहले खोजी जाने वाली चीज होता है.

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# नाम में क्या रखा है?

सबसे पहली बात - जिस तरह ब्लू मून के दिन चांद नीला या और दिनों की अपेक्षा ज़्यादा नीला नहीं दिखता, उसी तरह ब्लैक बॉक्स भी ब्लैक नहीं होता. ज़्यादातर मामलों में ये ब्लैक बॉक्स चटख नारंगी रंग का होता है, ताकि दुर्घटना स्थल पर ये दूर से ही दिखाई दे सके. तो फिर इसका नाम ब्लैक बॉक्स क्यूं पड़ा? दरअसल इसका नाम ब्लैक बॉक्स इसलिए पड़ा क्यूंकि –
1) कुछ लोग कहते हैं कि पहले के (शुरुआती) ब्लैक बॉक्स वाकई में ब्लैक कलर के होते थे.
2) बाकी लोगों का मानना है कि चूंकि ब्लैक बॉक्स हादसों से जुड़ा है इसलिए इसके लिए यह टर्म – ब्लैक यूज़ किया जाता है - जैसे ‘ब्लैक फ्राइडे’.
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फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (ब्लैक बॉक्स) AirAsia QZ8501



# ब्लैक बॉक्स क्या है?

दरअसल जब कभी कोई विमान हादसे का शिकार होता है तो उसमें कम ही चीज़ें हैं, जो सुरक्षित रह पाती हैं. क्यूंकि विमान क्रैश होने से पहले इतनी ऊंचाई पर होता है कि वहां से नीचे गिरने पर कम ही संभावना होती है कि कोई चीज़ साबुत बचे. और इसलिए हमें कोई सबूत नहीं मिल पाता – जिससे कि पता चल सके, हादसे का क्या कारण था और भविष्य में इससे कैसे बचा जाए.
इसलिए किसी भी विमान में दो डिवाइस बहुत ज़्यादा सुरक्षित रखे जाते हैं. इतने सुरक्षित कि ये किसी भी हादसे से बच सकें. यदि विमान समुद्र या पानी में कहीं गिर जाए तो वहां पर भी काम कर सकें एवं/अथवा नष्ट न हों. इन्हीं दो डिवाइसेज़ को ब्लैक बॉक्स कहा जाता है. ये दो चीजें हैं:
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# 1) कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (सीवीआर) – यह कॉकपिट में होने वाली, पायलट और उसके सहयोगियों के बीच की बातों को और कॉकपिट की अन्य आवाजों को रिकॉर्ड करता है. यह रेडियो में हो रही उन बातों को भी रिकॉर्ड करता है जो कॉकपिट और एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) के बीच होती हैं.
एयर ट्रैफिक कंट्रोल मतलब ग्राउंड (नीचे ज़मीन) में वो स्टाफ जो फ्लाइट को उड़ाने में पायलट की मदद करता है और रेडियो के माध्यम से सदा पायलट के संपर्क में रहता है.
इसमें टक्कर होने से पहले की दो घंटे की सारी वार्तालाप रिकॉर्ड रहती है.
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# 2) डिजिटल फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (डीएफडीआर) - डीएफडीएड विभिन्न उड़ान मापदंडों - जैसे गति, ऊंचाई, उर्ध्वाधर गति, ट्रैक आदि; विभिन्न इंजन मापदंडों - जैसे ईंधन प्रवाह, ईजीटी, थ्रस्ट; अन्य प्रणालियों की स्थिति जैसे – फ्लाइट कंट्रोल, दबाव, ईंधन आदि; जैसे लगभग 90 प्रकार के आंकड़ों की 24 घंटों से अधिक की रिकॉर्डेड जानकारी एकत्रित रखता है.
ये दोनों डिवाइस प्लेन के पिछले हिस्से में लगी रहती हैं क्यूंकि वो हिस्सा अपेक्षाकृत ज़्यादा सुरक्षित होता है.


# कैसे बच जाता है ब्लैक बॉक्स

अब हमने ऊपर कहा था कि विमान क्रैश होने से पहले इतनी ऊंचाई पर होता है कि वहां से नीचे गिरने पर कम ही संभावना होती है कि कोई चीज़ साबुत बचे. तो फिर ब्लैक बॉक्स कैसे बच जाता है?
देखिए, ब्लैक बॉक्स को बनाया ही इसलिए जाता है कि ये बड़े से बड़े हादसे को भी सह सके. यह बॉक्स टाइटैनियम का बना होता है. टाइटैनियम एक बहुत ही मज़बूत धातु है.
अब ये जो बॉक्स है, इसमें सैंडविच के माफ़िक चार लेयर्स होती हैं – एल्यूमिनियम, रेत, स्टेनलेस स्टील और टाइटैनियम.
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यानी ये डिवाइस अंततः टाइटैनियम के सबसे बाहरी बक्से में सुरक्षित रहती है. इन डिवाइसेज़ में जो डेटा डिजिटली सेव होता है, वो नष्ट न हो इसलिए इसे शॉक-प्रूफ भी बनाया जाता है. साथ ही यह एक घंटे तक ग्यारह हज़ार डिग्री के तापमान को और कम से कम दस घंटे तक ढाई सौ डिग्री सेंटीग्रेट के तापमान को सहने की क्षमता रखता है.


# ब्लैक बॉक्स को बनाया ही इसलिए जाता है कि ये बड़े से बड़े हादसे को भी सह सके - तो पूरा एरोप्लेन ही क्यूं नहीं?

एक लाइन में उत्तर देना हो तो हम ये कहेंगे कि - ब्लैक बॉक्स का उद्देश्य होता है खुद को सुरक्षित रखना, जबकि जहाज का उद्देश्य यात्रियों को सुरक्षित रखना.
यानी यदि यात्री ब्लैक बॉक्स वाले मैटेरियल से बने होते तो शायद यात्री बच जाते लेकिन यदि जहाज, जिसमें यात्री सफर कर रहे हैं, वो ब्लैक बॉक्स से बना हो तो हादसे का असर और गंभीर हो सकता है. इसको हम रोजमर्रा देखे जाने वाले एक अन्य सेफ्टी डिवाइस से कंपेयर करते हैं - 'हेलमेट'.
Helmet
अब आप ही बताइए हेलमेट क्यूं नहीं लोहे का बना होता है? इसलिए क्यूंकि यदि वो लोहे का बना होता तो एक्सीडेंट होने की स्थिति में अंदर बंद खोपड़ी को अपेक्षाकृत ज़्यादा चोट लगती.
क्यूं लगती? क्यूंकि फाइबर से बना हेलमेट आघात/इंपेक्ट को अपने में सह करके चटक या फूट जाता है लेकिन लोहा तो न चटकता, न फूटता. तो पूरा इंपेक्ट आपके, हमारे सर को सहना पड़ता.
क्या आप जानते हैं कि किसी हादसे के दौरान विमान के अंदर बैठे यात्रियों में से अधिकतर लोगों की मृत्यु कहीं टकराने से नहीं, बल्कि झटका खाने से होती है. ‘इनर्शिया’. यानी वही नियम जिसके अंतर्गत यदि गाड़ी में ज़ोर का ब्रेक लगे तो आप आगे की ओर को गिर पड़ते हो, क्यूंकि गाड़ी तो झटके से रुक जाती है लेकिन आपका शरीर अब भी उसी दिशा में आगे बढ़ रहा होता है. अब आप यदि कहीं न भी टकराएं तो भी रीढ़ की लचीली हड्डी, गर्दन टूट सकती है. यही होता है एरोप्लेन में भी – ज़्यादातर यात्रियों के साथ.
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तो ब्लैक बॉक्स का उद्देश्य जहां खुद को बचाना है, वहीं एरोप्लेन का पहला उद्देश्य खुद नष्ट होकर यात्रियों को बचाना है. जैसे फाइबर के हेलमेट और लोहे के हथौड़े के बीच यही अंतर है.
दूसरा बड़ा कारण है इन धातुओं का महंगा, बहुत महंगा होना. तीसरा कारण है टाइटैनियम वगैरह का भारी होना.
वैसे अगर थोड़ी लॉजिकल हुआ जाए तो हम जानते हैं कि ट्रेन के पहिए लोहे के और गाड़ी के पहिए रबड़ के होते हैं, क्यूंकि दोनों के उद्देश्य अलग-अलग होते हैं. एक रोड पर चलता है, दूसरा पटरी पर.
इसी तरह हर चीज़ को बनाने के लिए अलग-अलग चीज़ों का उपयोग किया जाता है.
सोने की वायरिंग की जाए, तो विद्युत् व्यवस्था में फिनोमिनल सुधार आ जाए, क्यूंकि सोना कहीं अच्छा सुचालक होता है. लेकिन संभव नहीं न?
काठमांडू में हाल ही में दुर्घटनाग्रस्त हुए यूएस-बांग्ला एयरप्लेन के कॉकपिट का मलवा.
काठमांडू में हाल ही में दुर्घटनाग्रस्त हुए यूएस-बांग्ला एयरप्लेन के कॉकपिट का मलवा.

बस इसीलिए. हर धातु की यूटिलिटी, हर पदार्थ का महत्व अलग होता है. जहां काम आए सुई, क्या करे तलवार? हमने एक लेख किया था प्लास्टिक्स के ऊपर. जिसमें हमने जाना था कि कितने तरह के प्लास्टिक होते हैं और वे कहां-कहां अलग-अलग तरीके से यूज़ होते हैं, जानना चाहते हैं, तो नीचे के लिंक पर पहुंचें -

प्लास्टिक की बोतल में पानी पीने से पहले उसके नीचे लिखा नंबर देख लीजिए




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