27 अगस्त, 2018. आज फिर देश में बायोफ्यूल की बात हो रही है. कारण ये है कि भारत उन चार देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने बायोफ्यूल का इस्तेमाल करके हवाई जहाज उड़ाया है. बाकी तीन हैं – अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया. इसमें से भी केवल अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में ही बायोफ्यूल का इस्तेमाल कॉमर्शियल फ्लाइट्स में हो रहा है.
जट्रोफा के बीज से बने बायोफ्यूल से उड़ने वाली देश की पहली एयरलाइन्स बनी है ‘स्पाइस जेट’. अपनी दाईं टंकी में बायोफ्यूल और एटीएफ (एविएशन टर्बाइन फ्यूल) का मिश्रण और बाईं टंकी में प्लान बी यानी 100% एटीएफ भरे हुए इस विमान ने देहरादून से दिल्ली के लिए लिए सफल उड़ान भरी.
# बायो फ्यूल क्या है?
कहते हैं कि मरा हुआ हाथी भी लाख का होता है. लेकिन हाथी ही नहीं दरअसल लाखों साल पहले मरा हुआ हर कोई जानवर आज लाखों का है. ज़मीन के अंदर दबकर वो फॉसिल फ्यूल (यानी जीवाश्म से बनने वाला इंधन) बन गया है. पेट्रोल डीज़ल, ये सब फॉसिल फ्यूल ही हैं. फॉसिल फ्यूल बनने में बहुत समय लगता है. सालों या सदियों नहीं, युगों.अब अगर इस लाखों साल की नेचुरल प्रोसेस को कुछ दिनों या घंटों की साइंटिफिक प्रोसेस में बदल दें तो जो फ्यूल मिलेगा उसका नाम होगा बायोफ्यूल.
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चिंता मत कीजिए इसके लिए किसी जानवर को मारने की ज़रूरत नहीं. जिस तरह एग्रीकल्चर की क्रांति से मानव मांसाहारी से शाकाहारी बना (वेल, काफी हद तक) वैसे ही इसी एग्रीकल्चर वाली क्रांति से बायोफ्यूल भी शाकाहारी बन चुका है. कबका. तिल और मूंगफली से निकलने वाले तेल ‘शाकाहारी बायोफ्यूल’ ही हैं. और वेजिटेबल ऑइल का तो नाम ही ‘वेजिटेबल ऑइल’ है. इसके अलावा गोबर गैस भी एक बायोफ्यूल है.
लेकिन जैव ईंधन ने हमारे सीमित स्त्रोत को असीमित तो बेशक नहीं बनाया लेकिन उसका विस्तार अवश्य कर दिया है.
लेकिन तेल में ‘तेलियता’ होना ही काफी नहीं. अलग अलग गुणों के चलते अलग-अलग तरह के तेल मार्केट में हैं. किसी के घर में घी के दिए जलते हैं किसी के घर में मोमबत्तियां.
ज्वलनशीलता से लेकर उपलब्धता, शुद्धता और मूल्य तक ढेरों ऐसी बातें हैं जो निर्धारित करते हैं कि कौन सा बायोफ्यूल या फ्यूल किस काम के लिए प्रयोग में आएगा. इसके अलावा टॉक्सिकनेस (जहरीलापन) भी बहुत महत्वपूर्ण कारक है यह निर्धारित करने के लिए कि अमुक तेल खाद्य है या अखाद्य.
# जट्रोफा के बीज से बना फ्यूल -
जट्रोफा गर्म मौसम और बंजर मिट्टी में उग सकता है. इसके बीज में पाए गए तेल को उच्च गुणवत्ता वाले डीजल ईंधन में परिवर्तित किया जा सकता है. चूंकि जेट्रोफा अखाद्य है इसलिए इसका ईंधन में ही मुख्यतः उपयोग हो सकता है. इसके अलावा सूखे का सामना करने की क्षमता होना, स्वाभाविक रूप से कीट-खरपतवार से लड़ने की क्षमता और एवरेज क्वालिटी की मिट्टी में उग जाना इसे बायो फ्यूल की दुनिया का गेम-चेंजर बनाता है. भारत में खेती के लिए उपलब्ध ज़मीन में से 20% से अधिक ज़मीन को उपर्युक्त मानकों के हिसाब से ‘जट्रोफा आरक्षित’ ज़मीन कहा जा सकता है.
# इससे क्या फायदा होगा?
सबसे पहला फायदा तो हमने पहले ही जान लिया कि ऊर्जा का ये स्रोत पेट्रोल, डीज़ल की मोनोपॉली को खत्म करेगा. साथ ही समाज ‘ऊर्जा का स्रोत खत्म हो जाने’ वाली बात से डरना बंद कर देगा. दूसरी और तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात कि इसे पारंपरिक ईंधन से क्रमशः सस्ता और कम प्रदूषण करने वाला भी पाया गया है.देहरादून के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ पेट्रोलियम संस्थान में जट्रोफा को छत्तीसगढ़ से लाया गया. छत्तीसगढ़ के 500 से ज़्यादा परिवारों ने इसकी खेती की थी. ये छत्तीसगढ़ वाली बात इसलिए बताई जिससे कि हम जान सकें कि भविष्य में ‘कैश क्रॉप’ उगाने वालों को भी इस बायो फ्यूल का फायदा होगा. ‘कैश क्रॉप’ वो फसलें होती हैं जो खाने में तो उपयोग में नहीं आती लेकिन फिर भी बहुत महंगे में बिकती हैं. कपास इस ‘कैश क्रॉप’ का एक और उदाहरण है.
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