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चुनाव नतीजों के बाद आंध्र प्रदेश के इस शहर के लोगों को लाखों-करोड़ों का मुनाफा कैसे होने लगा?

चंद्रबाबू नायडू (Chandrababu Naidu) के चुनाव जीतने के बाद अचानक अमरावती (Amravati) में जमीनों के दाम आसमान छूने लगे हैं. इसके पीछे वजह है, अमरावती मास्टर प्लान. जानिए क्या है Amravati Master Plan?

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चंद्रबाबू नायडू और अमरावती शहर | फाइल फोटो: आजतक

शुरुआत करते हैं एक सवाल के साथ. अगर आपकी जमीन के दाम 3 दिन में दोगुने हो जाएं तो आपको कैसा लगेगा? शायद आपको अक्षय कुमार वाली फिल्म ‘फिर हेराफेरी’ का वो डायलॉग याद आ जायेगा. वही 25 दिन में पैसा डबल. लेकिन अगर हम आपसे कहें कि ये कोई जुमला नहीं है, बल्कि आंध्र प्रदेश के अमरावती में रहने वाले लोग इसके साक्षी हैं, तो? असल में 8 जून को द इकानॉमिक टाइम्स में एक रिपोर्ट छपी. इसके मुताबिक 4 जून को चुनाव के नतीजे आने के बाद से अमरावती में जमीनों के दाम अचानक से आसमान छूने लगे. 3 दिन में जमीन के दाम डेढ़ से दोगुना तक बढ़ गए.

कमाल की बात है न? जिस दिन चुनावी नतीजों की वजह से स्टॉक मार्केट गिर रहा था. निवेशकों को लाखों करोड़ों का नुकसान हो रहा था और इस नुकसान से मार्केट को उबरने में समय लगा. उसी वक़्त देश के एक कोने में ज़मीन के दाम डेढ़ से दोगुना बढ़ गए. सिर्फ इतना ही नहीं. आंध्र प्रदेश से एक और रोचक खबर भी है. 2 जून के बाद से आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद की जगह अमरावती हो गयी है. लेकिन किसी शहर को राजधानी बोल देने से वो जगह राजधानी नहीं होती है. वहां ऑफिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर यानी सरकारी कामकाज के लिए बिल्डिंग और जरूरी मूलभूत सुविधाएं भी होना जरूरी हैं. लेकिन अमरावती में इस वक़्त ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है. इन सब के बीच कई सवाल खड़े होते हैं. जैसे- आखिर अमरावती में अचानक से जमीन का भाव डेढ़ से दो गुना क्यों बढ़ा? ये अमरावती मास्टर प्लान क्या है? और क्या चंद्रबाबू नायडू शपथ लेने के बाद बिना मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर वाली राजधानी से प्रदेश चला पाएंगे?  

थोड़ा पीछे चलते हैं. तारीख 1 मार्च 2014. देश की संसद में एक कानून पास हुआ. आंध्र प्रदेश रीऑर्गनइजेशन एक्ट, 2014. हालांकि कानून को लागू होने में 3 महीने का समय लगा. 2 जून 2014 से कानून लागू हुआ. इस दिन संयुक्त आंध्र प्रदेश को दो हिस्सों में बांट दिया गया. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना. ये बंटवारा दशकों से चल रहे आंदोलन और विवाद को खत्म करने की एक कोशिश थी. लेकिन बंटवारे की एक खासियत है, अक्सर बंटवारे से मूल विवाद तो खत्म हो जाते हैं, लेकिन कई नई समस्याएं खड़ी हो जाती हैं.

मिसाल के तौर पर पंजाब. 1966 में पंजाब का विभाजन हुआ. हरियाणा नाम का एक नया राज्य बना. इसके अलावा पंजाब की कुछ ज़मीन हिमाचल प्रदेश को भी मिली और चंडीगढ़ नाम की यूनियन टेरिटरी भी बनी. 1966 से आज तक पंजाब और हरियाणा के बीच चंडीगढ़ को लेकर विवाद है. इसके अलावा इन दोनों राज्यों के बीच सतलज नदी के पानी को लेकर भी विवाद है.

बस ऐसा ही कुछ आंध्र प्रदेश के मामले में भी हुआ. विवाद था कल्चर और भाषा को लेकर. बंटवारे के बाद ये मुद्दा तो सॉल्व हो गया, लेकिन लगातार आंध्र प्रदेश की तरफ से इस बंटवारे को लेकर कई शिकायतें आई. जैसे राजस्व का बंटवारा, या संयुक्त आंध्र प्रदेश के क़र्ज़ का बंटवारा. जिसके लिए बार-बार स्पेशल पैकेज की डिमांड भी हुई. लेकिन आंध्र प्रदेश के सामने एक और समस्या थी. राजधानी. इस बटवारे में आंध्र प्रदेश को राजधानी नहीं मिली.

असल में बंटवारे में उस वक्त संयुक्त आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद को दस साल के लिए तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की साझा राजधानी बनाया गया. कानून के हिसाब से दस साल की मियाद पूरी होने के बाद हैदराबाद सिर्फ तेलंगाना की राजधानी रह जाएगा. दस साल तो 2 जून 2024 को पूरे हो गए. अब आंध्र प्रदेश की राजधानी अमरावती है. वही अमरावती जहां मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर भी नहीं है.

10 साल में आंध्र प्रदेश ने अपनी राजधानी क्यों नहीं बनाई?

सबसे पहले समझिये राज्य की पॉलिटिकल क्रोनोलॉजी माने 2014 में विभाजन के बाद प्रदेश में राजनैतिक लेवल पर क्या बदलाव हुए. उसे जानना जरूरी है.

असल में मार्च 2014 तक प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी. इसी समय प्रदेश का विभाजन हुआ. अप्रैल-मई में देश के आम चुनावों के साथ ही आंध्र प्रदेश विधान सभा के चुनाव भी हुए. इसमें चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी जीत गयी. चंद्रबाबू नायडू तीसरी बार मुख्यमंत्री बने. साल 2015 में उन्होंने अमरावती को राजधानी बनाने पर काम शुरू किया.  

उस वक़्त टीडीपी एनडीए का हिस्सा थी. उन्हें भरोसा था कि 2014 में आई नरेंद्र मोदी सरकार उनकी आर्थिक रूप से मदद करेगी. इसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार से स्पेशल केटेगरी स्टेटस मांगा. स्पेशल स्टेटस एक तरीके का आर्थिक राहत पैकेज होता है. इसके अलावा उन्होंने अमरावती को कैपिटल बनाने के लिए रुपए मांगे. 50 हज़ार करोड़ के प्रोजेक्ट के लिए केंद्र सरकार की तरफ से सिर्फ ढाई हज़ार करोड़ रुपये ही मिले और स्पेशल केटेगरी स्टेटस भी नहीं मिला. इससे परेशान होकर चंद्रबाबू नायडू ने 2018 में एनडीए का साथ छोड़ दिया. 2019 के विधान सभा चुनाव में वो चुनाव हार गए. और अमरावती का प्लान धरा का धरा रह गया.

2019 में सरकार में आये वाईएसआरसीपी के नेता जगन मोहन रेड्डी. उन्होंने 2020 में चंद्रबाबू नायडू के प्लान को बदल दिया. और 3 कैपिटल फार्मूला अपनाया. इसके लिए आंध्र प्रदेश की विधान सभा में एक कानून पास हुआ. आंध्र प्रदेश डीसेंट्रालाईज़ेशन एंड इंक्लूसिव डेवलपमेंट ऑफ़ ऑल रीज़न्स एक्ट 2020. 3 कैपिटल फार्मूला के तहत आंध्र प्रदेश में 3 राजधानियां होंगी. इसके हिसाब से अमरावती में सिर्फ लेजिस्लेटिव या विधायका बनेगी. विशाखापतनम में मंत्रालय और चीफ मिनिस्टर होंगे यानी सरकार की लोकेशन विशाखापतनम होगी और हाई कोर्ट कुर्नूल में होगा.

अब इस 3 कैपिटल फार्मूला के चक्कर में बहुत बवाल हुआ. और नवंबर 2021 में इस कानून को वापस ले लिया गया. माने दो साल में जीरो प्रोग्रेस. कुछ समय के अंतराल में जगन मोहन रेड्डी सरकार ने विशाखापतनम को प्रदेश की राजधानी घोषित कर दिया. लेकिन तब तक एक और बड़ी समस्या खड़ी हो गयी. असल में चंद्रबाबू नायडू जब मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने गुंटूर के किसानों से अमरावती प्रोजेक्ट के लिए 30 हज़ार एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. अब वहां कोई डेवलपमेंट न होने की वजह से किसानों ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. मार्च 2022 में हाई कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार और कैपिटल रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी को कड़े निर्देश दिए. हाईकोर्ट ने कहा कि अमरावती को राज्य की राजधानी बनाया जाये और डेवलपमेंट का काम 6 महीने में पूरा किया जाये.

इसके खिलाफ जगन मोहन रेड्डी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.  लेकिन वहां से भी जगन मोहन रेड्डी सरकार को कोई राहत नहीं मिली. इसी कानूनी तिया पांचे को मैनेज करते-करते 2024 आ गया और 4 जून 2024 को चुनाव के नतीजे आये. जगन मोहन रेड्डी हार गए और प्रदेश में फिर से चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बन गयी. और सरकार बनने के साथ ही एक क्लियर मैसेज भी आया. यही कि चंद्रबाबू नायडू साल 2015 में बने अमरावती मास्टर प्लान को लागू करेंगे. इसी वजह से अमरावती में अचानक से जमीनों के दाम बढ़ गए हैं.  

क्या है ये अमरावती मास्टर प्लान? 

असल में अमरावती कोई जिला नहीं है. ये कृष्णा नदी के किनारे बसे गुंटूर जिले का एक हिस्सा है. इस शहर को कृष्णा नदी के दाहिने तट पर बनाने का प्लान है. अब नदी के किनारे है तो प्लान में रिवर फ्रंट होना लाजमी है. और इसके जरिये अमरावती को ग्रीन एंड ब्लू सिटी बनाने का उद्देश्य है. इसके लिए शहर में पेड़ पौधों के साथ तालाब और झील भी बनाई जाएंगी.

कृष्णा नदी से लगकर बनेगा पूरा शहर. क्या-क्या होगा शहर में. इसके अंदर होगे 9 छोटे छोटे हब. कौन-कौन से? चलिए जानते हैं.

गवर्नमेंट सिटी 
जस्टिस सिटी 
फाइनेंस सिटी 
नॉलेज सिटी 
इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी सिटी 
हेल्थ सिटी 
स्पोर्ट्स सिटी 
मीडिया सिटी 
और टूरिज्म सिटी.

रिवर फ्रॉंट से लगकर बनेगी टूरिज्म सिटी. इसमें क्या क्या होगा. रिवर फ्रंट है तो इसके ये हिस्से भी साथ में आएंगे -

उन्दावली गुफाएं.
कोंडापल्ली का किला
कनकदुर्ग मंदिर 
अमरावती मंदिर 
भगवान बुध का स्टेच्यू 
नीलकोण्डा की पहाड़ियां भी इसका हिस्सा होगीं.

अमरावती का मास्टर प्लान

टूरिज्म सिटी के नीचे लाइन से स्पोर्ट्स सिटी, गवर्नमेंट सिटी और फाइनेंस सिटी है. नाम से ही ये बात जाहिर है कि स्पोर्ट्स सिटी में खेल से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर बनाए जाएंगे, वहीं फाइनेंस सिटी में फोकस आर्थिक और व्यपारिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर होगा.

इस प्रोजेक्ट की सबसे खास बात ये है की नॉलेज सिटी और इलेक्ट्रॉनिक्स सिटी. नॉलेज सिटी को एक एजुकेशन हब की तरह विकसित करने का प्लान है. इसमें यूनिवर्सिटी, तकनीकी शिक्षा के कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, प्रोफेशनल कॉलेज तो होंगे ही. साथ में प्राइमरी से लेकर इंटरमीडिएट लेवल तक स्कूल भी होंगे.

अब बात करते हैं इलेक्ट्रॉनिक्स सिटी की. प्लान के मुताबिक इसे दक्षिण भारत का सबसे बड़ा आईटी हब बनाने का उद्देश्य है.

लेकिन ये सब तो प्लान है. ये कब तक इम्प्लीमेंट होगा, ये भी एक डिबेट का विषय हो सकता है. लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी सवाल ये कि फिलहाल के लिए आंध्र प्रदेश हैदराबाद पर अपना क्लेम खो चुका है. अमरावती को राजधानी घोषित तो कर दिया गया है लेकिन अभी अमरावती में तो सरकार चलाने के लिए बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर भी मौजूद नहीं है. ऐसे में चंद्रबाबू नायडू तब तक अपनी सरकार कैसे चलाएंगे? इसे समझने के लिए हमने बात की इंडिया टुडे की पत्रकार अक्षिता नन्दगोपाल से

अक्षिता का कहना है,  “अभी अमरावती में मेन सेक्रेटरिएट नहीं बना है. लेकिन टेम्परेरी तौर पर काम करने के लिए वहां एक छोटी सेक्रेटरिएट बिल्डिंग है और सरकार का सारा कामकाज अमरावती से ही होगा. लेकिन अभी कई मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर अमरावती में मौजूद नहीं है. अमरावती में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवेलपमेंट को लेकर चंद्रबाबू नायडू के सामने ये बड़ा चैलेंज होने वाला है.”

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