नेपाल के पोखरा में रविवार, 15 जनवरी को एक यात्री विमान दुर्घटनाग्रस्त (Nepal Plane Crash) हो गया. विमान में कुल 72 लोग सवार थे. इसमें से 68 पैसेंजर और 4 क्रू मेंबर्स थे. हादसे में 69 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है. क्रैश हुआ विमान येती एयरलाइंस (Yeti Airlines) का था.
फ्लाइट के टेक-ऑफ से लेकर लैंडिंग तक, ATC का रोल कितना महत्वपूर्ण होता है?
उड़ान के दौरान पायलट को ATC को क्या-क्या बताना होता है?
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इस घटना को लेकर नेपाल की एयरपोर्ट अथॉरिटी की ओर से कहा गया कि हादसा तकनीकी खराबी की वजह से हुआ था. विमान के पायलट ने पहले पूर्व की तरफ से लैंडिंग की परमिशन मांगी थी, जिसकी परमिशन मिल गई थी. थोड़ी देर बाद पायलट ने पश्चिम की तरफ से लैंडिंग की परमिशन मांगी और दोबारा परमिशन दे दी गई थी. लेकिन बाद में हादसा हो गया.
इस जानकारी के सामने आने के बाद कई सवाल उठ रहे हैं. मसलन, एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) की तरफ से पायलट को कौन-कौन से निर्देश दिए जाते हैं? ये निर्देश कितने जरूरी हैं? पूरा लेखा-जोखा जानते हैं.
ये बात समझने के पहले एक उदाहरण लेते हैं. आपने एक प्रक्रिया के बारे में सुना होगा. फोटोसिंथेसिस नाम की. इसके जरिए पौधे अपना खाना बनाते हैं. सूर्य की रौशनी से. यानी सूरज की रौशनी पौधे के लिए बहुत जरूरी होती है. इसी तरह से किसी भी विमान की उड़ान के लिए ATC, यानी एयर ट्रैफिक कंट्रोल एक महत्वपूर्ण अंग की तरह काम करता है. ATC किसी भी विमान के लिए ऑक्सीजन की तरह काम करता है.
लल्लनटॉप से बात करते हुए RTR इंस्ट्रक्टर और पायलट अरविंद पांडे ने बताया,
“फ्लाइट के टेक ऑफ से लेकर लैंडिंग तक की सारी प्रक्रिया ATC की परमिशन के बिना नहीं की जा सकती है. हमें ATC को हर एक चीज के बारे में जानकारी देनी होती है. वो भी पूरे डेटा के साथ.”
ATC द्वारा दिए गए निर्देशों के महत्व के बारे में बताते हुए अरविंद ने आगे बताया कि एक पायलट अपने विमान को ATC के निर्देशों के बिना डिंसेंड तक नहीं कर सकता. मतलब, अगर विमान 10 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा हो और पायलट विमान को उस ऊंचाई से नीचे लाना चाहता हो, तो इसके लिए भी ATC से अनुमति लेनी होगी. ये इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ATC को फ्लाइट ज़ोन में उड़ रहीं सभी फ्लाइट्स के बारे में जानकारी होती है. जो कि किसी पायलट के पास नहीं होती. पायलट सिर्फ अपने विमान के बारे में जानकारी रखता है.
विमानों को पास आने से रोकता है ATCकिसी भी विमान के टेक ऑफ के दौरान प्रतिकूल मौसम से लेकर विमान की स्थिति के बारे में पायलट को जानकारी दी जाती है. इसके बाद ही विमान को टेक ऑफ की परमिशन मिलती है. विमान के टेक ऑफ के बाद पायलट अपने विमान की ऊंचाई, स्पीड और बाकी जरूरी डेटा के बारे में ATC को लगातार सूचित करता है.
हवा में क्रूज के दौरान पायलट को अपने विमान की पोजीशन के बारे में भी ATC को सूचित करना होता है. इसे मैंडेटरी रिपोर्टिंग पॉइंट (Mandatory Reporting Point) कहा जाता है. इतनी टेक्निकैलिटी में नहीं जाते हैं. आसान भाषा में कहें तो अगर आप किसी विमान को उड़ा रहे हैं और दिल्ली से लखनऊ ले जा रहे हैं, तो दो मैंडेटरी पॉइंट की जानकारी आपको ATC को देनी होगी. यानी अगर आप दिल्ली से उड़े हैं और अगले दो मैंडेटरी पॉइंट मेरठ और बरेली हैं, तो आपको ATC को इन दोनों के बारे में बताना होगा. इसके साथ ही ATC को ये भी बताना होगा की आप इन दोनों जगहों पर किस समय पहुंचेंगे.
ATC को इससे विमानों के सेपरेशन में मदद मिलती है. यहां सेपरेशन का मतलब ये है कि हवा में उड़ रहे विमानों को एक जगह पर आने से रोकना. इससे ATC विमानों को टकराने की स्थिति में आने से रोकता है. ATC को हर विमान के पायलट से मैंडेटरी पॉइंट की जानकारी मिलती है, और इसी जानकारी से ATC ये सुनिश्चित करता है कि दो विमान एक समय पर एक जगह न पहुंचें.
तो ये बात तो साफ है कि ATC के निर्देशों के बिना विमान न ही उड़ान भर सकता है और न ही लैंड कर सकता है. पायलट भी ATC की अनुमति के बिना कोई भी कदम नहीं उठा सकता है. यही नहीं, अगर पायलट ATC के किसी नियम को तोड़ता हुआ पाया गया तो उसका कमर्शियल पायलट लाइसेंस (CPL) रद्द किया जा सकता है. पायलट को ग्राउंड कर दिया जाता है. यानी फिर पायलट को किसी भी विमान को उड़ाने की अनुमति नहीं दी जाती.
वीडियो: Nepal Plane Crash: नेपाल में 68 यात्रियों को ले जा रहा प्लेन क्रैश, अबतक क्या-क्या पता लगा?