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लोकसभा चुनाव में हार के बाद बंगाल BJP में खलबली क्यों मची हुई है? अब ये फैसला भविष्य तय करेगा

पिछले कुछ सालों में BJP ने पश्चिम बंगाल (West Bengal) में दूसरे दलों के वोट बैंक में सेंधमारी जरूर की. लेकिन अब उसे पार्टी के भीतर ही आंतरिक कलह का सामना करना पड़ रहा है. BJP के लिए आगे की राह भी आसान नहीं लग रही, उसे जल्द ही राज्य में एक ऐसा फैसला भी लेना है, जिसपर हर 'गुट' की निगाह लगी है.

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शुभेंदु अधिकारी और दिलीप घोष. (फाइल फोटो)

लोकसभा चुनाव 2019 में जब पश्चिम बंगाल में बीजेपी की धमाकेदार एंट्री हुई तब राजनीति के कई जानकारों ने कहा कि अब पार्टी ने राज्य में अपनी जड़ें जमा ली हैं. बीजेपी तब लोकसभा की 18 सीट जीत गई थी. इस चुनाव में बीजेपी 30 से पार सीट जीतने का दावा कर रही थी. लेकिन चुनाव परिणाम से पता चलता है कि जड़ पनपने के बदले सिकुड़ गई. और हार के बाद पार्टी के भीतर अंतर्कलह की खबरें आने लगीं. बीजेपी के एक खेमे ने राज्य की पार्टी लीडरशिप पर सवाल उठाना शुरू कर दिया. राज्य में पार्टी अगले प्रदेश अध्यक्ष को भी चुनने वाली है, इसलिए पार्टी के भीतर शुरू हुई इस खलबली की चर्चा दिल्ली तक चल रही है. बीती 19 जून को भविष्य के फैसलों को लेकर कोलकाता में टॉप लीडरशिप की बैठक भी हुई.

पश्चिम बंगाल बीजेपी के लिए उन राज्यों में एक है जहां उसकी अभी तक राज्य में सरकार नहीं बनी है. देश के पहले आम चुनाव यानी 1952 में जनसंघ को देश भर में सिर्फ तीन सीटों पर जीत मिली थी. इनमें से दो सीटें पश्चिम बंगाल की थीं. कलकत्ता दक्षिण-पूर्व और मिदनापुर-झाड़ग्राम. तब शायद जनसंघ को लगा था कि इस राज्य में पार्टी अपना सबसे बड़ा आधार बना सकती है. पार्टी को यहां बहुत संभावना दिख रही थी क्योंकि जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी यहीं से थे. लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और बाद में बीजेपी के विस्तार के बावजूद ये सपना आज भी अधूरा है. दूसरे दलों के वोट बैंक में बीजेपी ने सेंधमारी जरूर की. लेकिन अब उसे पार्टी के भीतर ही आंतरिक कलह का सामना करना पड़ रहा है.

कट टू 2024. इस लोकसभा चुनाव में भाजपा पश्चिम बंगाल को लेकर बहुत कॉन्फिडेंट नजर आ रही थी. बंगाल बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने एक इंटरव्यू में कह दिया था कि भाजपा ने राज्य में 35 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है. यहां तक कहा था कि अगर बीजेपी टीएमसी से एक सीट भी ज्यादा जीत गई तो ममता बनर्जी 2026 तक सरकार नहीं चला पाएंगी. लेकिन पार्टी सिर्फ 12 सीटों पर सिमट गई. वोट परसेंट भी करीब 2 फीसदी घट गया. इस हार के बाद पानी का बुलबुला फूट गया और पार्टी के भीतर नाराज नेताओं की बयानबाजी शुरू हो गई. अब चुनाव में हार और इन नाराजगियों पर बीजेपी डैमेज कंट्रोल भी शुरू कर चुकी है. मैराथन बैठकें चल रही हैं.

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट बताती है कि पार्टी नेताओं ने माना है कि जिलाध्यक्षों के बीच तालमेल नहीं होना भी लोकसभा चुनाव में हार का एक बड़ा कारण रहा. 17 जून को कोलकाता में पार्टी की मीटिंग हुई थी, जिसमें सांसद समेत कई नेताओं ने इस मुद्दे को उठाया था. कुछ नेताओं ने दिलीप घोष को मेदिनीपुर के बजाय बर्द्धमान-दुर्गापुर से लोकसभा चुनाव लड़वाने की भी आलोचना की. घोष इस सीट से चुनाव हार गए.

हार के बाद घोष पार्टी के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं. 8 जून को दिलीप घोष ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था- 'ओल्ड इज गोल्ड'. इससे पहले 6 जून को एक और पोस्ट में उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी का बयान लिखा था.

पोस्ट में लिखा गया था, 

"एक चीज हमेशा ध्यान रखिए कि पार्टी के पुराने से पुराने कार्यकर्ता को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. अगर जरूरत पड़े तो 10 नए कार्यकर्ताओं को अलग कर दीजिए क्योंकि पुराने कार्यकर्ता हमारी जीत की गारंटी हैं. नए कार्यकर्ताओं पर बहुत जल्दी भरोसा नहीं करना चाहिए."

मेदिनीपुर से चुनाव नहीं लड़ने को भी उन्होंने मुद्दा बनाया है. 7 जून को घोष ने कहा कि पिछले एक साल से वे अपना पूरा समय और पैसे मेदिनीपुर में लगा रहे थे. लेकिन उन्हें वहां से लड़ने नहीं दिया गया है. उन्होंने कहा कि लोग अब दोनों सीट (मेदिनीपुर और बर्द्धमान-दुर्गापुर) के रिजल्ट को देख सकते हैं.

बीजेपी में नाराजगी क्यों?

चुनाव नतीजों के बाद पश्चिम बंगाल बीजेपी में गुटबाजी साफ नजर आ रही है. दिलीप घोष ने जो बयान दिया, उसमें उनका इशारा सीधे-सीधे शुभेंदु अधिकारी की तरफ था. हालांकि 10 जून को प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने पार्टी के भीतर अनबन की खबरों को खारिज किया था. दिल्ली के बंग भवन में मजूमदार ने कहा था कि वे फिलहाल पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे. अगले प्रदेश अध्यक्ष को लेकर अटकलों को खारिज करते हुए उन्होंने कहा था कि पार्टी में पदाधिकारियों को चुने जाने की एक प्रक्रिया है.

BJP के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार (फाइल फोटो- पीटीआई)

चूंकि बीजेपी में एक व्यक्ति एक पद की व्यवस्था है. सुकांत मजूमदार केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री बनाए गए हैं. इसलिए आने वाले समय में मजूमदार को प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ना ही पड़ेगा.

राज्य की राजनीति पर लंबे समय से लिखने वाले सीनियर पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी बताते हैं कि बीजेपी में ये गुटबाजी पहले से थी. नया बनाम पुराने का विवाद चल रहा है.

प्रभाकर कहते हैं, 

"नए में वे लोग हैं जो दूसरे दलों से आए हैं और पुराने वे जो बीजेपी के पुराने नेता हैं. पुराने नेताओं में असंतोष पहले से ही था क्योंकि कुछ दिन पहले टीएमसी से आए लोगों को टिकट मिले. ये उनकी नाराजगी की बड़ी वजह रही. पुराने नेताओं ने ऐसे नेताओं के लिए ज्यादा मेहनत भी नहीं की. ये गुटबाजी भी हार की एक बड़ी वजह रही है."

पश्चिम बंगाल में तीन खेमे, सबसे मजबूत कौन?

राज्य की राजनीति को समझने वाले बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी के तीन खेमे बने हुए हैं. पहला मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सुंकाता मजुमदार. दूसरा, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष. और तीसरा नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी का. शुभेंदु फिलहाल केंद्रीय नेतृत्व के सबसे नजदीक माने जाते हैं.

खेमे भले तीन हों, लेकिन जानकार कहते हैं कि बंगाल बीजेपी में केंद्रीय नेतृत्व का दबदबा है. सरकार और संगठन के बड़े मंत्री लगातार बंगाल के दौरे पर रहते हैं. कहा जाता है कि लगभग सारे फैसले दिल्ली से ही होते हैं. बंगाल अध्यक्ष की कुर्सी पर कोई भी हो, फैसला दिल्ली में होता है, प्रदेश अध्यक्ष-मंत्री का काम सिर्फ फैसले का पालन कराना होता है.

इसलिए सुकांत मजूमदार को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे कोई ठोस वजह भी नहीं मानी गई थी. वे स्कूल के दिनों से RSS से जुड़े हैं. आलाकमान अध्यक्ष पद के लिए एक मृदुभाषी, लो प्रोफाइल नेता को खोज रहा था. और संघ से जुड़े होने की वजह से सुकांत इस कैलकुलेशन में एकदम फिट बैठ गए थे.

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इंडिया टुडे के सीनियर पत्रकार ऋतिक मंडल कहते हैं कि चुनाव के दौरान भी कई बार ऐसा हुआ कि दिल्ली के नेता आए और झगड़ा निपटाने में हस्तक्षेप किया. चुनाव की बागडोर शुभेंदु अधिकारी के पास थी.

ऋतिक मंडल आगे बताते हैं, 

"कम से कम 30 उम्मीदवारों के नाम का प्रस्ताव शुभेंदु अधिकारी ने दिया था. इसलिए कई पुराने नेता इस बार बैठ गए. ना प्रचार में नजर आए और ना ज्यादा एक्टिव दिखे. अगर बीजेपी अच्छा करती तो क्रेडिट शुभेंदु को ही जाता. लेकिन हार के बाद पार्टी के पुराने लोग इसी समय का इंतजार कर रहे थे. रायगंज से पिछली बार सांसद रहीं देबश्री चौधरी ने भी पार्टी को चिट्ठी लिखी है. इसके अलावा अग्निमित्रा पॉल ने भी सवाल उठाए हैं."

शुभेंदु पिछले विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले दिसंबर 2020 में तृणमूल कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे. उन्होंने नंदीग्राम से ममता के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ा. और ममता को हरा दिया. ममता को हराने के बाद शुभेंदु की राजनीतिक हैसियत बढ़ गई. आलाकमान के फेवरेट बन गए. उनको बीजेपी ने विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से नवाज दिया.

डैमेज कंट्रोल में जुटी बीजेपी

हार के बाद नाराज खेमों से लगातार बयानबाजी जारी है. शुभेंदु हार के लिए हुई समीक्षा बैठक तक में नहीं पहुंचे. प्रभाकर मणि तिवारी बताते हैं कि बैठक के दिन शुभेंदु कूचविहार चले गए थे. उनसे जब इस पर पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि केंद्रीय नेताओं ने उन्हें हिंसा पीड़ितों से मिलने को कहा है.

बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी. (फाइल फोटो- पीटीआई)

लेकिन अब पार्टी डैमेज कंट्रोल मोड में है. प्रभाकर कहते हैं कि हाल में जो भी मीटिंग हुई हैं उनमें नेताओं को चुप्पी बरतने की हिदायत दी गई है.

वे कहते हैं, 

"गुटबाजी अब सतह पर आ गई है, इसमें कोई गोपनीयता नहीं है. प्रदेश अध्यक्ष के लिए दिलीप घोष की दावेदारी मजबूत है. लेकिन केंद्रीय नेतृत्व किसी नए नाम पर भी सोच सकता है ताकि आगे और टकराव ना हो."

पश्चिम बंगाल के एक और सीनियर पत्रकार जयंतो घोषाल कहते हैं कि हार के बाद सभी हारे गए नेताओं को लिखित में रिपोर्ट देने को कहा गया है. इसके अलावा सभी बड़े स्टेकहोल्डर्स से भी जवाबदेही मांगी गई है.

प्रदेश अध्यक्ष की रेस में कौन आगे?

सुकांत के बाद प्रदेश अध्यक्ष में कई नामों पर चर्चा चल रही है. सबसे पहला नाम दिलीप घोष का ही चल रहा है. घोष RSS के शाखा कार्यकर्ता से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष तक बने हैं. यही वजह है कि पार्टी में कार्यकर्ताओं से लेकर पदाधिकारियों तक उनकी पकड़ है. 2021 में अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद से इनका खेमा अलग हो गया. फिलहाल इसे बंगाल बीजेपी का सबसे कमजोर खेमा माना जाता है. क्योंकि चुनाव के दौरान इस खेमे की आलाकमान ने नहीं सुनी. खुद दिलीप घोष की सीट बदल दी गई. तभी से उन्होंने नाराजगी जाहिर करनी शुरू कर दी थी. कह रहे थे कि उनके खिलाफ साजिश चल रही है.

घोष के पार्टी अध्यक्ष रहते हुए ही बीजेपी ने 2019 में लोकसभा की 18 सीटें जीती थीं. लेकिन 2021 चुनाव में बीजेपी को उम्मीद से कम सीटें मिलीं. हालांकि, पार्टी को अब तक की सबसे ज्यादा (77) सीटें मिली थीं. लेकिन पार्टी अपने प्रदर्शन से खुश नहीं थी. उनसे पद छीन लिया गया. कहा जाता है कि घोष के खिलाफ पार्टी के कई नेताओं ने माहौल बनाया था.

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दिलीप घोष जब तक प्रदेश अध्यक्ष थे तब तक कोलकाता में RSS का हेडक्वॉटर केशवकुंज भी भाजपा का एक पावर सेंटर माना जाता था. क्योंकि उनकी RSS के पदाधिकारियों से अच्छी बनती है. कहा जा रहा है कि इस झगड़े में फिलहाल घोष को आरएसएस का सपोर्ट मिला हुआ है.

जयंतो घोषाल कहते हैं कि पार्टी बड़े चेहरे के अलावा भी 5-6 नामों पर विचार कर रही है. और अब पार्टी आरएसएस के साथ भी बातचीत कर रही है. क्योंकि संघ भी नाराज है. इसलिए अब पुराने लोगों को साथ लाने की कोशिश चल रही है. वे कहते हैं कि एक नाम जगन्नाथ सरकार का भी चल रहा है. वे शुभेंदु अधिकारी के करीबी हैं. ये एक नया चेहरा होगा और बीजेपी पक्षपात के आरोपों से भी बच जाएगी.

हाल में आरएसएस समर्थिक एक पत्रिका 'स्वस्तिका' में लिखा गया कि ममता बनर्जी के खिलाफ एक "सही और स्वीकार्य" चेहरा नहीं होने के कारण बीजेपी उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर सकी. ये भी लिखा गया कि बीजेपी नेताओं को हार के पीछे अपनी गलतियों को समझना पड़ेगा.

बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष. (फाइल फोटो)

ऋतिक मंडल भी बताते हैं कि दिलीप घोष को वापस लाकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश हो सकती है. इससे दूसरे नाराज नेता भी मान जाएंगे.

क्या शुभेंदु के नाम पर सहमति बन सकती है? इस सवाल के जवाब में प्रभाकर मणि तिवारी कहते हैं, 

“शुभेंदु के आने के बाद एक द्वंद्व शुरू हुआ. शुभेंदु लगातार ताकतवर होते चले गए. लोकसभा चुनाव के दौरान उम्मीदवारों के नाम फाइनल करने के लिए उन्होंने कई बार अमित शाह से मुलाकात की थी. लेकिन बीजेपी अभी उस स्थिति में नहीं है कि शुभेंदु को प्रदेश अध्यक्ष बनाए, अगर बनाती है तो पार्टी टूटने की कगार पर पहुंच जाएगी. कई लोग पार्टी छोड़ भी सकते हैं.”

भाजपा ने चुनावों में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया. लेकिन ये भी सच है कि कुछ साल पहले तक लेफ्ट, कांग्रेस और तृणमूल की त्रिकोणीय लड़ाई के बीच राज्य में पार्टी ने अपनी पकड़ बनाई है. और राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी हुई है.

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