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पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान हुई हिंसा पर राजनीति शुरू, सरकार 'नाकाम' और जनता परेशान

पंचायत चुनाव के दौरान हुई हत्याओं का आरोप सत्ता और विपक्ष एक दूसरे पर लगा रहे हैं.

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बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान जमकर हुई हिंसा (सांकेतिक फोटो: इंडिया टुडे)

''पश्चिम बंगाल में राजनैतिक हिंसा का इतिहास और संस्कृति रही है.''

इस एक तर्क के पीछे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी 12 साल से छिपी हुई हैं. सूबे में 8 जुलाई को पंचायत चुनाव थे. भयानक हिंसा हुई. बैलेट बॉक्स लेकर भागते लोग, जलती हुई मतदान पेटियां, गोलीबारी, सड़कों पर पड़े बम और पार्टियों के बीच हिंसक झड़पें - सब देखने को मिला. वो भी तब, जब कलकत्ता हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में केंद्रीय बलों की तैनाती को लेकर लंबी जिरह हो चुकी थी. बार-बार अदालतें ये कह रही थीं कि चुनाव शांतिपूर्ण होना चाहिए और बार-बार राज्य सरकार अर्ज़ कर रही थी जनाब हम तो बैठे ही शांतिपूर्ण मतदान के लिए हैं. भरोसा रखिए. लेकिन जब से पंचायत चुनाव की घोषणा हुई, हिंसा शुरू हो गई. मतदान से पहले 20 लोगों की हत्या की ख़बरें थीं, मतदान वाले दिन 20 और लोगों की जान ले ली गई.

मतदान. संसदीय लोकतंत्र में ख़ुद को अभिव्यक्त करने का ज़रिया. कोई मतदान करने जाए और उसे गोली मार दी जाए, या उस पर बम फेंक दिया जाए, तब लोकतंत्र बेमानी हो जाता है. सूबे की मुख्यमंत्री ज़िम्मेदारी से भाग रही हैं और इस हिंसा में हिस्सेदार रही बाकी पार्टियां सब कर-कुरा के गंगा स्नान कर चुकी हैं. अब वो लोकतंत्र के खतरे वाली दलील दे रही हैं, वही दलील, जो उनकी ओर उछाली जाती है, तो उनके कान में मोम जम जाता है. आगे बढ़ा जाए, इससे पहले आपको कुछ कहानियां सुनाते हैं.

1. TMC समर्थक अमजद हुसैन. जगह, नदिया ज़िले का छपरा. अमजद, 10 अन्य टीएमसी कार्यकर्ताओं के साथ वोट देने जा रहे थे. कथित तौर पर कांग्रेस समर्थकों ने उन पर हमला कर दिया. ग्यारहों गंभीर रूप से घायल हो गए और उन्हें छपरा के प्राथमिक हेल्थ सेंटर में भर्ती कराया गया. पहुंचने पर डॉक्टरों ने अमजद को मृत घोषित कर दिया.

2. भाजपा के पोलिंग एजेंट माधब बिस्वास. उत्तर बंगाल में कूच बिहार ज़िला. कथित तौर पर TMC समर्थकों ने बिस्वास को बूथ में घुसने से रोका. इस पर दोनों की भिड़ंत हो गई. मामला बढ़ा और माधव बिस्वास को गोली मार दी गई. जिला भाजपा अध्यक्ष सुकुमार राय भी वहीं थे. उन्होंने ही ये वाक़या बताया है.

3. उत्तर दिनाजपुर ज़िला. दो हत्याएं. पहली, ज़िले के चकुलिया इलाक़े में TMC पंचायत उम्मीदवार मुहम्मद शाहीन शाह की हत्या कर दी गई. उम्मीदवार की ही हत्या कर दी गई. उन्हें पड़ोसी राज्य बिहार के किसनगंज मेडिकल कॉलेज और अस्पताल ले जाया गया था, मगर वहां पहुंचने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. शाह के भाई जुल्फ़िकार ने आरोप लगाया कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने शाह की हत्या कर दी. वहीं, ज़िले के गोलपोखर इलाके़ में पोलिंग के दिन कांग्रेस कार्यकर्ता मोहम्मद जमीलुद्दीन की हत्या कर दी गई और उसकी लाश जागीरबस्ती बाज़ार इलाक़े में छोड़ दिया गया. पुलिस के मुताबिक़, दोपहर के करीब जागीरबस्ती में TMC और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हुई और इसी में जमीलुद्दीन की हत्या कर दी गई.

4. TMC कार्यकर्ता अनीसुर ओस्तागर. उम्र, 50 साल. दक्षिण 24 परगना ज़िले के बसंती इलाक़े में एक बूथ के बाहर लाइन में खड़े थे. वोट देने का इंतज़ार कर रहे थे. अज्ञात लोगों ने उनपर बम फेंक दिया. बम सीधे उनके दाहिने कान पर लगा और विस्फोट में उनकी मौत हो गई. आगे-पीछे खड़े लोग तुरंत भाग गए. एक्सप्रेस की स्वीटी कुमारी ने स्थानीय लोगों से बात की, तो पता चला कि निर्दलीय उम्मीदवार के गुट के लोगों ने बम फेंका था.

5. मुर्शीदाबाद ज़िले की सूरत आपको बंगाल की सूरत बता देगी. यहां चार हत्याएं रिपोर्टेड हैं.

- ज़िले के नौवदा इलाक़े में कांग्रेस कार्यकर्ता हाजी नियाक़त अलि की बम हमले में मौत. आरोप, TMC पर.
- लालगोला में CPI(M) कार्यकर्ता रोशन अली की हत्या कर दी गई. वोट देने गए थे. रुकवा लिए गए. पीट-पीट कर हत्या कर दी गई. आरोप, TMC पर.
- नज़ीरपुर इलाक़े में एक बम हमले में TMC कार्यकर्ता यासीन शेख़ की मौत हो गई.
- TMC के ही एक दूसरे कार्यकर्ता सबीरुद्दीन शेख़ की लाश, मुर्शिदाबाद के खारग्राम में एक खाली जमीन पर पड़ी मिली. TMC ने आरोप लगाए कि कांग्रेस समर्थकों ने धारदार हथियार से सबीरुद्दीन की हत्या की है. मरने वाले सबीरुद्दीन पर ये भी आरोप हैं कि वो कांग्रेस कार्यकर्ता फूलचंद शेख़ की हत्या का मुख्य आरोपी है. फूलचंद शेख़ की हत्या नामांकन के पहले दिन हुई थी. हालांकि, TMC और सबीरुद्दीन के परिवार ने इन आरोपों को ख़ारिज किया है.

ये तो कुछ घटनाएं हैं. बमबारी और गोलीबारी की असंख्य घटनाएं हैं. क़त्ल किए गए लोगों का आंकड़ा 40 पार बताया जा रहा है. और वोटिंग के दौरान जब ये सब हिंसा की घटनाएं हो रही थीं, राजनीतिक दल एक दूसरे को जिम्मेदार बताने में लगे हुए थे. वोटिंग शुरू होने के कुछ समय बाद ही CPIM के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने TMC पर निशाना साधते हुए एक वीडियो शेयर किया. इस वीडियो में बैलट पेपर और बॉक्स बाहर बिखरे पड़े थे. उन्होंने ट्वीट कर कहा, ''वोटिंग खत्म. डायमंड हॉर्बर के एक बूथ पर बैलट पेपर, बॉक्स की स्थिति देखिए.''

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि टीएमसी राज्य में आंतक की बारिश कर रही है. वहीं विधानसभा में नेता विपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने TMC के साथ-साथ राज्य चुनाव आयोग पर भी बरसे. और केंद्र से हस्तक्षेप की मांग की. अधिकारी ने कहा कि राज्यपाल ने राजीव सिन्हा को नियुक्त करके सबसे बड़ी गलती की.

सुवेंदु ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने केंद्रीय बलों का उपयोग नहीं किया. जिनकी तैनाती हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हुई थी. वोटिंग खत्म होने के बाद सुवेंदु अधिकारी के नेतृत्व में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने चुनाव आयोग के कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया और वहां ताला जड़ दिया. बीजेपी नेता अमित मालवीय ने ट्वीट कर चुनाव आयुक्त राजीव सिन्हा को कायर बताया. कहा कि उन्होंने खुद को कमरे में बंद कर लिया और विपक्ष के नेता से मिलने से इनकार कर दिया. शर्म की बात है कि इस आदमी को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी दी गई थी. राजीव सिन्हा को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का करीबी बताया जाता है. वे पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव भी रह चुके हैं.  

इन सबके बीच टीएमसी लगातार हिंसा के लिए बीजेपी को जिम्मेदार बताती रही. टीएमसी सांसद कुणाल घोष ने कहा कि हिंसा में जो लोग मारे गए उनमें से ज्यादातर लोग टीएमसी के हैं. उन्होंने कहा कि बीजेपी शासित राज्यों में ज्यादा हत्याएं होती हैं. वोटिंग के दौरान कुछ जगह हिंसा हुई है लेकिन ज्यादातर बूथों में शांति रही. लोग मतदान को लेकर जश्न के मूड में थे.

ये तो था राजनीतिक दलों का पक्ष. अब बारी उनकी जिनके कंधों पर चुनाव कराने की जिम्मेदारी थी. राजीव सिन्हा ने कहा कि हिंसा की अधिकतर घटनाएं 4 जिलों में हुई. बाकी जगह दिक्कत नहीं हुई. ये पूछे जाने पर कि क्या वे इसे शांतिपूर्ण चुनाव कहेंगे? राजीव सिन्हा ने कहा कि अभी वे इस पर कुछ नहीं कह सकते.

वहीं दूसरी तरफ BSF के DIG SS गुलेरिया ने कहा कि जहां-जहां सेंट्रल फोर्स तैनात थी वहां हिंसा की घटनाएं नहीं हुई. गुलेरिया ने ये भी जोड़ा कि सेंट्रल फोर्सेज को संवेदनशील बूथों की जानकारी नहीं दी गई. आखिर तक मांगने के बावजूद.

राज्य के चुनाव आयुक्त राजीव सिन्हा से गवर्नर सीवी आनंद बोस भी नाराज नजर आए. 6 जुलाई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राज्यपाल ने कहा था कि राजीव सिन्हा पंचायत चुनावों के दौरान अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहे हैं. उन्होंने सड़क पर गिरती लाशों के लिए राज्य निर्वाचन आयुक्त को जिम्मेदार बताते हुए कहा था, 

"मैंने आपको नियुक्त किया, आपने लोगों को निराश किया. आप अपने कर्तव्य को पूरा करने में विफल रहे हैं. आप सड़कों पर गिरती लाशों के लिए जिम्मेदार हैं."

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए टीएमसी महासचिव अभिषेक बनर्जी ने राज्यपाल को मणिपुर और मध्यप्रदेश भेजने की बात कही थी. अभिषेक बनर्जी ने कहा,

'राज्यपाल बेहद सक्षम और बुद्धिमान हैं. मैं केंद्र सरकार से अनुरोध करूंगा कि उन्हें तुरंत मणिपुर और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भेजना चाहिए. ऐसी बुद्धि और विवेक वाले व्यक्ति की बंगाल में नहीं, बल्कि मणिपुर की डबल इंजन सरकार में अधिक आवश्यकता है.'

अगले दिन 9 जुलाई को राज्य के अलग-अलग हिस्सों में बीजेपी और कांग्रेस दोनों की ओर प्रदर्शन किए गए. दिनाजपुर में तोड़फोड़ और आगजनी की शिकायत के बाद प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज भी किया गया. बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग ऑफिस के सामने प्रदर्शन किया.   राज्य की बीजेपी इकाई ने केंद्रीय गृहमंत्री को चिट्ठी लिखकर केंद्रीय हस्तक्षेप की मांग भी की. कहा कि टीएमसी ने बंगाल में लोकतंत्र की हत्या की और सुरक्षा बल मूकदर्शक बने रहे. वहीं दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस ने विपक्ष को हिंसा के लिए जिम्मेदार बताया और कहा कि वोटर्स की सुरक्षा करने में केंद्रीय विफल रहे.

आज यानी 10 जुलाई को 19 जिलों के 697 बूथों पर दोबारा वोटिंग हुई. कड़ी सुरक्षा के बीच. हिंसा की कोई बड़ी खबर आज बुलेटिन लिखे जाने तक तो नहीं आई है. बीजेपी दोबारा वोटिंग को नाटक बता रही है. सुवेंदु अधिकारी ने राज्यपाल से राज्य में आर्टिकल 355 लागू करने की मांग की है. आर्टिकल 355, केंद्र सरकार को आंतरिक और बाहरी खतरों से राज्य की रक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाने का अधिकार देता है. सुवेंदु अधिकारी का कहना है कि राज्यपाल ने खुद जमीनी हालात देखे हैं. उन्हें 355 लागू करना चाहिए.

और राज्यपाल क्या कर रहे हैं?

राज्यपाल हैं दिल्ली में. शाम को उनकी मुलाकात केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और फिर उसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से हुई. हालिया घटनाक्रम, हमने आपको बता दिया. हिंसा कब शुरू हुई, क्यों हुई, किसने की? इस पर स्पष्ट जवाब नहीं, दावे हैं. जो जांच के बाद पुष्ट होंगे. मगर बंगाल में चुनावी हिंसा का माज़ी रहा है. चुनाव के समय दूसरे राज्यों में भी हिंसा होती है, लेकिन अनिवार्य रूप से नहीं. पश्चिम बंगाल, इस मामले में अलग है. पंचायत चुनाव हों, या विधानसभा से लेकर लोकसभा, सूबे में चुनाव के आसपास हिंसा की घटनाएं होती ही हैं. जैसे ये चुनावी प्रक्रिया का कोई "अभिन्न" हिस्सा हो.

बीता पंचायत चुनाव ही ले लें. लोकतांत्रिक गणतंत्र, 'गन-तंत्र' कैसे बनता है -- इसका नमूना है. बमबारी, बूथ कैप्चरिंग, गोलीबारी से लेकर पत्रकारों पर हमले. ऐन चुनाव वाले दिन 13 लोगों की मौत हुई थी. कुल संख्या, 20 पार थी. और ये केवल ममता बनर्जी की बात नहीं. चाहे कांग्रेस का समय हो या फिर 34 साल चला वाम शासन, हिंसा कभी नहीं रुकी. बैलेट और बुलेट का पुराना और डरावना नाता रहा ही.

बंगाल के इतिहास और संस्कृति बूझने वाले किसी भी एक्सपर्ट से आप बात करेंगे, तो वो एक लाइन तो ज़रूर बताएंगे: कि बंगाल में राजनीतिक हिंसा, इतिहास और संस्कृति का हिस्सा रहा है. बरतानी हुक़ूमत के दौर में ही राजनीतिक हिंसा की ज़मीन तैयार हो गई थी.

> 1770 में बंगाल में अकाल पड़ा था, मौतें हुईं थी. इसके साथ ख़ूब हिंसा भी हुई थी. एक सदी बाद 1870 और 1880 के बीच भी ऐसा ही हुआ- अकाल, मौतें और हिंसा. आज़ादी से पहले भी - 1943 में - ऐसा ही हुआ.

> फिर तक़सीम से ठीक पहले और बाद माने 1946 से 47 तक भीषण दंगे हुए थे. सांप्रादायिक विवाद की वजह से कलकत्ता की सड़कों पर हज़ारों लोग क़त्ल कर दिए गए थे.

> देश आज़ाद हुआ. इसके बाद कम्युनिस्ट विचार की पार्टियों ने 'सर्वहारा क्रांति' करने का माहौल बनाया. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (CPI) संसदीय लोकतंत्र का विरोध कर रही थी. उनका मत था कि भारत में भी रूस और चीन की तरह 'सर्वहारा की सत्ता' स्थापित हो. ये उनकी पार्टी लाइन थी और इसीलिए CPI पर बैन भी लगाया गया था. हालांकि, कुछ ही समय बाद पार्टी इस लाइन से अलग हुई और मेनस्ट्रीम राजनीति में आई. 1951 का पहला लोकसभा चुनाव लड़ा. माने, पार्टी ने भारत में सशस्त्र क्रांति का विचार छोड़ दिया और देश की संसदीय लोकतंत्र व्यवस्था को माना. उन दिनों कांग्रेस के सामने विपक्ष के रूप में सबसे बड़ी पार्टी CPI ही थी.

> हालांकि, कम्यूनिस्ट आंदोलन के एक हिस्से ने हिंसा का विचार नहीं त्यागा था. लेकिन वो सत्ता में नहीं थीं. जानकार कहते हैं, कि चुनावी हिंसा का एक प्रस्थान बिंदू कम्युनिस्टों का सत्ता में आना ही है. 1967 में CPI(M) गठबंधन के ज़रिये बंगाल में पहली बार सत्ता में आई. कांग्रेस से नेताओं के एक धड़े ने अलग होकर बांगला कांग्रेस बनाई थी. बांग्ला कांग्रेस, CPM और दूसरे दलों ने मिलकर यूनाइटेड फ्रंट बनाया और इस मोर्च के चलते ही आज़ादी के बाद कांग्रेस पहली बार पश्चिम बंगाल में सत्ता से बाहर हुई. मोर्च की सरकार में बांग्ला कांग्रेस के अजय मुखर्जी मुख्यमंत्री बने और CPM के ज्योति बसु, उप-मुख्यमंत्री. यहीं से शुरू होती है "संगठित हिंसा". फ़ुट-सोल्जर्स की अराजकता ने जगह क़ब्ज़ानी शुरू की.

एक पंक्ति में कहें, तो कम्युनिस्ट सत्ता में आते हैं. ट्रेड संघ मज़बूत होते हैं. फ़ैक्ट्रियों में हड़ताल होने लगती हैं. फ़ैक्ट्री लगाने वाले सूबे से बचने लगे और हज़ारों-हज़ार युवक - जो इस वजह से बेरोज़गार हुए - वो बन गए पॉलिटिकल पार्टीज़ के सिपाही. इसके साथ ही सूबे में पार्टी-स्टेट और पार्टी सोसायटी की अवधारणा भी पुख़्ता होती रही. ये पॉलिटिकल साइंस के बोरिंग टॉपिक नहीं हैं. इनका संकेत समझेंगे तो आप माथा पीट लेंगे कि इतनी छीछालेदर इसी मुल्क में हो गई और हमें मालूम भी नहीं चला. पार्टी स्टेट एक ऐसी व्यवस्था को कहते हैं, प्रशासन पर पार्टी का दफ्तर हावी हो जाता है. इसके चलते राजनैतिक विकल्प खत्म होने लगते हैं. चाहे ऐलान न हुआ हो, तंत्र काम ही इस तरह करने लगता है कि सत्ताधारी पार्टी के अलावा कोई और सरकार में घुस ही नहीं पाता.

इतना ही नहीं, जब पार्टी सोसायटी की स्थिति बनती है, तो हालात और गंभीर हो जाते हैं. तब पार्टी लोगों की निजी ज़िंदगी में दखल देने लगती है.
> शादी-तलाक जैसे घरेलू मुद्दे,
> दुर्गा उत्सव के लिए पंडाल कितना बड़ा लगेगा
> लोकल फुटबॉल क्लब और जिम में किसकी चलेगी

इस तरह की बेहद महीन और निजी चीज़ों में दाखिल होकर पार्टी के लोग मनमानी करने लगते हैं. सत्ता के शिखर से गली नुक्कड़ तक जब आपकी चलने लगती है, अथॉरिटी सी मिल जाती है, तो करप्शन पैदा होता ही है. फिर यही लोग, कभी इस पार्टी कभी उस पार्टी में आते-जाते हैं. सत्ता परिवर्तन भी हो जाए, तो राजनैतिक संस्कृति में परिवर्तन नहीं आता. आप खुद गौर कीजिए - वाम मोर्चा, तृणमूल और अब भारतीय जनता पार्टी - जो भी पार्टी पश्चिम बंगाल में सत्ता को लेकर गंभीर हुई है, वो इस खेल में हिस्सेदार बनी है. चूंकि तृणमूल कांग्रेस के हाथ में सत्ता है, इसीलिए कानून व्यवस्था से जुड़े प्रश्न हम उसी पर उठा रहे हैं.

यहां आपको ये भी बता दें कि पंचायत चुनाव के दौरान राज्य में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती को लेकर भी काफी विवाद हुआ था. जिसके बाद विपक्षी दलों ने कलकत्ता हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी. हाईकोर्ट ने राज्य में सुरक्षा बलों की तैनाती का आदेश दिया था. बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. हाईकोर्ट ने नतीजे आने के बाद अगले 10 दिनों तक केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश दिया था.

हमने आपको सारे पक्षों की जानकारी दी. अब अपने दिल की बात कहते हैं. जो भी नेता परिवर्तन का वादा लेकर आते हैं, उन्हें अपने कहे को इतने भी हल्के तरीके से नहीं लेना चाहिए, कि सूबा पश्चिम बंगाल बन जाए. वाम के कार्यकाल को तृणमूल के लोगों ने ''वाम संत्रास'' कहा था. कहा था कि इसीलिए पोरिबोर्तन लाना है. ये पोरिबोर्तन 12 साल से कहां रुका पड़ा है, इसका जवाब दिए बिना ममता बैनर्जी ये नहीं कह सकतीं कि पहले भी होता था, अब भी होता है. पहले होता था, तो पहले वालों की सरकार भी चली गई. अब आप आए हैं. आप बताइए कि आप क्या करेंगी. बात-बात में कहानी आज़ादी के बाद से शुरू करने वाले नेताओं को अब समझना होगा कि जनता और प्रेस इस तरह मूर्ख नहीं बनने वाली. आपसे गलती हुई है. मानिए. और सुधार कीजिए. वर्ना इतिहास आपको कैसे याद रखेगा, इसपर आप जो थोड़ा बहुत नियंत्रण है, उसे खो देंगे. बाकी जनता समझदार है. और उनसे कहीं ज़्यादा नेता समझदार हैं.

वीडियो: बंगाल हिंसा का कड़वा सच, खुद ममता बनर्जी झेल चुकीं पर ये हिंसा क्यों नहीं रुकती?