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सम्राट अशोक क्या सच में महान राजा थे या सच कुछ और है?

किताब The Ocean Of Churn ने कई सवाल खड़े किए हैं, जिनके जवाब नहीं दिए गए.

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अशोक महान. जिसे दुनिया के सबसे महान राजाओं में गिना जाता है. एक योद्धा, जो कलिंग में खून देखकर बदल गया. शांति की बात करने लगा. और जगह-जगह स्तम्भ गड़वा दिए. जिन पर लिखा था कि कैसे प्रजा को खुश रखना चाहिए. पर ऐसे स्तम्भ कलिंग में नहीं हैं. क्यों? वहां तो सबसे पहले होने चाहिए थे. फिर उससे पहले वो कलिंग में गया ही क्यों था? क्या अपने 99 भाइयों को मारते वक़्त खून नहीं देखा था? फिर अशोक के शांति प्रस्ताव के बाद हर राजा ने उसके सामने समर्पण क्यों कर दिया और अशोक के मरते ही उसका सारा साम्राज्य छिन्न-भिन्न क्यों हो गया?
जिन स्तंभों और लिखी हुई चीजों से अशोक की महानता रची गई, उन्हीं चीजों से अशोक की नई व्याख्या हुई है.

500 अधिकारियों का सिर अशोक ने अपने हाथ से काटा था!

303 ईसा पूर्व में चन्द्रगुप्त मौर्य के मरने के बाद, उनके बेटे बिन्दुसार ने अफगानिस्तान से बंगाल तक अपना राज्य बढ़ाया. फिर वो भी 274 ईसा पूर्व में बीमारी के बाद मर गए. उसके पहले उन्होंने अपने एक बेटे सुशीमा को प्रिन्स घोषित कर दिया था. पिता के मरते वक़्त सुशीमा भारत-अफगानिस्तान बॉर्डर पर था. भागते हुए पटना आया. पर वहां पर अशोक खड़ा था. ग्रीक योद्धाओं की मदद से उसका कब्ज़ा था गद्दी पर. ऐसा प्रतीत होता है कि सुशीमा को गेट पर ही मार दिया गया. एक संभावना ये भी है कि उसको आवां में जिन्दा भून दिया गया! इसके बाद शुरू हुआ कत्लों का सिलसिला. जो 4 साल तक चला. बुद्धिस्ट किताबों में दिया है कि उसने अपने 99 भाइयों को मार दिया. सिर्फ तिस्स को छोड़ दिया. कई अधिकारियों को भी मारा गया. अशोक ने 500 अधिकारियों को अपने हाथ से काटा था! 270 ईसा पूर्व में अशोक राजा बन गया. उस समय उसको चंडाशोक कहा जाने लगा था.
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अशोक का साम्राज्य

कलिंग की लड़ाई का बौद्ध धर्म से कुछ लेना-देना नहीं था

कहानी ये है कि कलिंग की लड़ाई के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया. पर बुद्धिस्ट टेक्स्ट से पता चलता है कि लड़ाई के पहले से ही अशोक बौद्ध धर्म मानता था. कलिंग की लड़ाई से उसका कोई मतलब नहीं था. यहां तक कि अशोक के गुणगान करने वाले लेखक चार्ल्स एलन भी इस बात को मानते हैं. धर्म को लेकर राजा अलग-अलग काम करते रहते थे. चन्द्रगुप्त मौर्य का थोड़ा-बहुत रुझान जैन धर्म की तरफ था. बिन्दुसार ने एक सेक्ट आजीविका को थोड़ा-बहुत संभाला था. पर इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है. थाईलैंड में हिन्दू देवता ब्रह्मा की मूर्तियां हैं. थाईलैंड के राजा का राज्याभिषेक अभी भी ब्राह्मण पुजारी ही करते हैं.
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अशोक के राज्य में बौद्ध धर्म का प्रचार

कलिंग को लेकर दुविधा है. नन्द वंश ने पहले ही इसको जीत लिया था. कलिंग की हैसियत ज्यादा थी नहीं. फिर अशोक गया क्यों? कटक से थोड़ी दूर पर राधानगर है. आर्कियोलॉजिस्ट देबराज प्रधान के मुताबिक इसी जगह पर अशोक के अफसरों ने लड़ाई का प्लान किया था. और भुवनेश्वर के नजदीक धौली में लड़ाई हुई. अशोक के अपने स्तंभों के मुताबिक एक लाख लोग मरे थे. डेढ़ लाख कैदी बने थे. पर धौली में जो स्तम्भ अशोक ने गड़वाया है, उसमें कहीं भी किसी तरह के दुःख या अफ़सोस का जिक्र नहीं है. यहां तक कि वहां से हज़ार किलोमीटर दूर गड़े स्तंभों पर भी हिंसक भाषा में ही सन्देश है: देवानाम्प्रिय अशोक अपने पछतावे के बावजूद ताकत रखता है कि जो लोग अपने अपराधों के लिए शर्मिंदा नहीं है, उनको मार दे. काफी संभावना है कि अशोक ने ऐसे स्तंभों का इस्तेमाल पॉलिटिकल प्रभाव के लिए किया था.

 पेंटिंग के लिए एक जैन को परिवार समेत जिन्दा जला दिया गया

बुद्धिस्ट टेक्स्ट अशोकवदना में लिखा है कि अशोक ने बंगाल में आजीविका सेक्ट के 18 हज़ार लोगों को एक बार में मरवा दिया था. अशोक के बारे में इसमें एक और जिक्र है. एक जैन ने एक तस्वीर बनाई थी. जिसमें उसने बुद्ध को एक जैन गुरु के सामने झुकते दिखाया था. अशोक ने उस जैन को परिवार समेत घर में बंद करवा के आग लगवा दिया. उसके बाद ऐलान करवा दिया कि जो भी एक जैन का सिर काट के लायेगा उसको सोने का एक सिक्का मिलेगा. ये सिलसिला तब ख़त्म हुआ जब एक हत्यारे ने एक बौद्ध भिक्षु को मार दिया, जो कि अशोक का बचा हुआ भाई तिस्स था.
अशोक की ये सारी कहानियां ठीक 'कार्टून' बनाने वाली घटनाओं के जैसी हैं. अशोक की महानता की कहानियां काफी नई हैं. ऐसा मानते हैं कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इस चीज को हाईलाइट किया गया था. फिर बाद में जवाहरलाल नेहरू की सोशलिस्ट पॉलिसी को बढ़ावा देने के लिए अशोक को और महान बताया गया. पर ध्यान से पढ़ने और खोजने पर पता चलता है कि अशोक वो नहीं था, जो लोग सोचते हैं. उसके मरने के बाद उसका राज्य तुरंत छिन्न-भिन्न हो गया. बड़े राजाओं का प्रताप लम्बे समय तक चलता था. ऐसा लगता है कि अशोक का राज्य डर पर खड़ा था.


ये अंश लिया गया है संजीव सान्याल की किताब The Ocean Of Churn से जो वाइकिंग प्रकाशन ने पब्लिश की है.
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