चाय पीते-पीते राय ने पूछा- वाजपेयी जी, क्या ये सच है कि ओम मेहता आपसे मिलने आए थे? वाजपेयी ने तपाक से जवाब दिया. बोले- नहीं, वो बड़े आदमी हैं. वो नहीं आए थे मुझसे मिलने. मैं उनसे मिलने गया था.
राय भौंचक. उनका नेता ये क्या कह रहा है? कि वो खुद कांग्रेस नेता से मिलने गया था! ओम मेहता मामूली आदमी नहीं थे. गृह मंत्रालय में भले राज्यमंत्री हों, लेकिन गृहमंत्री ब्रह्मानंद रेड्डी से कहीं ज्यादा ताकतवर थे. वो इसलिए कि ओम मेहता इंदिरा के करीबी थे. सत्ता की कुर्सी से जितनी नजदीकी होगी, आदमी भी उतना ही ताकतवर हो जाएगा.

इमरजेंसी के वक्त वाजपेयी को भी जेल में बंद किया गया था. फिर तबीयत खराब होने पर वो एम्स भेज दिए गए. इसके बाद उन्हें दिल्ली स्थित उनके घर में नजरबंद कर दिया गया था.
वाजपेयी की बात सुनकर राय साहब कुछ देर चुपचाप बैठे रहे. फिर पूछा कि ओम मेहता से हुई मुलाकात से क्या बात निकली. वाजपेयी थोड़ी देर चुप रहे. फिर उन्होंने बोलना शुरू किया. असल में ABVP नेताओं और कार्यकर्ताओं ने देश के कई हिस्सों में खूब बवाल काटा था. सरकारी संपत्ति की तोड़-फोड़. आगजनी. हिंसा. खूब गुंडागर्दी की गई थी ABVP की तरफ से. वाजपेयी ने राम बहादुर राय को ये सब याद दिलाया. फिर बोले-
ABVP को अपनी गलती मान लेनी चाहिए. आपको सरकार से माफी मांग लेनी चाहिए.वाजपेयी की ये बात सुनकर राम बहादुर राय को गुस्सा तो बहुत आया. मगर वो गुस्सा पी गए. कहा, ABVP कार्यकर्ताओं ने हिंसा नहीं की है. बोले-
हम पर लगाए गए इल्जाम गलत हैं. सरकार भले हमको जेल में डाल दे, लेकिन हम किसी भी कीमत पर माफी नहीं मांगेंगे.इस पर वाजपेयी ने दिया राम बहादुर को ज्ञान. कहा-
तुम जवान-जहान लोगों के लिए ऐसी बातें करना आसान है. मेरे जैसे बड़े-बूढ़े नेता तो लोकतांत्रिक तरीका पसंद करते हैं. अरे भाई, हम चुनाव चाहते हैं कि नहीं? हमको लोकतंत्र तो चाहिए ही न.राम बहादुर चुप तो हो गए, मगर माफी नहीं मांगी. आगे चलकर वो 'जनसत्ता' अखबार के संपादक बने. उस दिन उन्होंने जो देखा, वो असल में वाजपेयी की राजनीति का स्टाइल था. जब जैसा, तब तैसा टाइप.
ये किस्सा हमें मिला उल्लेख एन पी की किताब 'द अनटोल्ड वाजपेयी: पॉलिटिशयन ऐंड पैराडॉक्स' में. पेंगुइन पब्लिकेशन्स की किताब है. कीमत है 599 रुपये.
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