2014 के बाद से ऐसा कम ही देखा जाता है कि बीजेपी के नेता से जुड़ा कोई विवाद हो, और उसे इस्तीफा देना पड़ जाए. लेकिन 16 मार्च को उत्तराखंड के वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने अपने आवास पर प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भावुक होकर अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी. उन्होंने बजट सेशन के दौरान विधानसभा में एक विवादित बयान दिया था. जिसके बाद विवाद बढ़ता चला गया. इस इस्तीफे की पूरी कहानी समझेंगे लेकिन पहले विवाद की टाइमलाइन पर एक नज़र डाल लेते हैं.
उत्तराखंड के वित्त मंत्री को इस्तीफा क्यों देना पड़ गया, पूरी कहानी ये है!
प्रेमचंद अग्रवाल का इस्तीफा फरवरी में उत्तराखंड विधानसभा के बजट सत्र के दौरान हुए विवाद से जुड़ा हुआ है. पिछले कुछ समय से ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि अग्रवाल को इस्तीफा देना पड़ सकता है.

प्रेमचंद अग्रवाल का इस्तीफा फरवरी में उत्तराखंड विधानसभा के बजट सत्र के दौरान हुए विवाद से जुड़ा हुआ है. पिछले कुछ समय से ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि अग्रवाल को इस्तीफा देना पड़ सकता है. खासतौर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और बीजेपी के मीडिया प्रभारी और पौड़ी गढ़वाल से सांसद अनिल बलूनी के बयान के बाद ये लगभग तय हो गया था कि इस्तीफा ही आखिरी उपचार है.
21 फरवरी – विवाद की शुरुआत
विधानसभा सत्र के दौरान कांग्रेस विधायक मनोज तिवारी ने पहाड़ी जिलों में कुछ अव्यवहारिक नियमों, खासतौर पर पार्किंग से जुड़ी अनिवार्यता पर सवाल उठाया. इस पर कांग्रेस विधायक मदन बिष्ट ने सरकार पर पहाड़ी क्षेत्रों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया.
इससे प्रेमचंद अग्रवाल नाराज हो गए और उन्होंने कहा,
"लोग बार-बार पहाड़ बनाम मैदान की बात करते हैं. क्या उत्तराखंड सिर्फ पहाड़ों के लिए बना है? क्या हमने राज्य के लिए संघर्ष सिर्फ पहाड़ों के लिए किया था? यहां कोई मूल निवासी नहीं है, सब लोग मध्य प्रदेश और गुजरात से आए हैं."
आरोप है कि उन्होंने इस दौरान असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया, जिससे विवाद और बढ़ गया. विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी को बीच-बचाव करना पड़ा और उन्होंने सभी विधायकों को फटकार लगाते हुए कहा कि यह सदन कोई सड़क का अखाड़ा नहीं है. उन्होंने क्षेत्रवाद पर राजनीति करने से बचने और सदन में मर्यादा बनाए रखने की अपील की.
विवाद बढ़ा तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का भी बयान आया. उन्होंने मामला ठंडा करने के उद्देश्य से कहा-
"यह राज्य सभी का है. हमें मिलकर उत्तराखंड का विकास करना है. किसी को भी किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अधिकार नहीं है."
22 फरवरी – कांग्रेस का विरोध
प्रेमचंद अग्रवाल के बयान से कांग्रेस विधायक लाखपत बुटोला (बद्रीनाथ) नाराज हो गए. उन्होंने सदन में कहा, "क्या हम पहाड़ी विधायक यहां सिर्फ अपमान सहने के लिए हैं?" उन्होंने सभी विधायकों से जनता की भावनाओं को समझने की अपील की और बीजेपी सरकार की आलोचना की. जब विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने उन्हें शांत होने के लिए कहा, तो उन्होंने गुस्से में कागज फाड़ दिए और सदन से बाहर चले गए.
24 फरवरी – गंगा में डुबकी और धार्मिक अपील
बढ़ते विवाद को देखते हुए प्रेमचंद अग्रवाल ने धार्मिक रास्ता अपनाने की कोशिश की. उन्होंने खुद को विपक्ष का शिकार बताते हुए मां गंगा से न्याय की प्रार्थना की. प्रयागराज जाने से पहले उन्होंने ऋषिकेश के साईं घाट में पूजा की और कहा,
"अगर मुझसे कोई गलती हुई है, तो मैं सभी से माफी मांगने को तैयार हूं."
26 फरवरी – बीजेपी सांसद ने आलोचना की
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रेमचंद अग्रवाल के बयान की कड़ी आलोचना की. उन्होंने कहा कि एक वरिष्ठ नेता को ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए. उन्होंने वीडियो देखने के बाद कहा कि यह बयान अनुचित था और अग्रवाल को इसकी पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए.
27 फरवरी – मुख्यमंत्री धामी की चेतावनी
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड के लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की. उन्होंने कहा कि कोई भी ऐसा बयान जो राज्य की एकता को नुकसान पहुंचाएगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
7 मार्च- अनिल बलूनी का बयान
प्रेमचंद्र अग्रवाल की मुसीबतें तब और बढ़ती दिखीं बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने उनके खिलाफ बयान दिया. बलूनी ने कोटद्वार में एक कार्यक्रम से इतर संवाददाताओं से कहा,
"यह पूरा मामला बहुत दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है. मैं पार्टी का मुख्य प्रवक्ता हूं और मुझे मर्यादा बनाए रखनी है. लेकिन मैंने उचित मंचों पर इस मामले को मजबूती से उठाकर अपना कर्तव्य निभाया है."
पहले मुख्यमंत्री का बयान आया फिर अनिल बलूनी का. यहां से संकेत मिलने शुरू हो गए थे कि प्रेमचंद्र अग्रवाल को उनके इस बयान के लिए बख्शा नहीं जाएगा.
8 मार्च – बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष का विवादित बयान
विवाद शांत नहीं हुआ था और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के एक बयान ने आग में घी डालने का काम कर दिया. उन्होंने प्रेमचंद अग्रवाल का बचाव किया और उनके खिलाफ प्रदर्शन करने वालों को "सड़क छाप" कह दिया. यह प्रदर्शन उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के आह्वान पर गैरसैंण में हुआ था, जहां लोगों ने प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे की मांग की.
महेंद्र भट्ट के इस बयान से और ज्यादा विवाद खड़ा हो गया. न सिर्फ विपक्षी नेताओं, बल्कि बीजेपी के कई नेताओं और आम जनता ने भी इसकी आलोचना की. बीजेपी विधायक खजान दास ने इस बयान से खुद को अलग करते हुए कहा,
"हम सभी जनता से ही आते हैं. लोगों ने ही हमें इस पद पर बैठाया है, और हमें उनका सम्मान करना चाहिए."
14 मार्च – लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी का विरोध गीत
विवाद और बढ़ गया जब उत्तराखंड के मशहूर लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने होली पर एक गीत "मत मारो प्रेम लाल पिचकारी" जारी किया. यह गाना सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. नेगी पहले भी अपने गीतों के जरिए उत्तराखंड की राजनीति को प्रभावित कर चुके हैं. 2010 के दशक में उनके गीतों से तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की सरकार को भी परेशान कर दिया था.
इससे पहले 6 मार्च को एक इंटरव्यू में नेगी ने कहा था कि प्रेमचंद अग्रवाल के बयान की आलोचना होनी चाहिए, लेकिन इसे ज्यादा नहीं भड़काना चाहिए क्योंकि उन्होंने माफी मांग ली है. दूसरी तरफ, नेगी ने 7 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी की उत्तरकाशी यात्रा के दौरान गैरसैंण में प्रदर्शन के लिए लोगों को इकट्ठा होने को कहा था.
लगातार बढ़ता विवाद और पार्टी के अंदर से भी आती विरोध की आवाज़ों से यह लगभग तय माना जा रहा था कि अग्रवाल को इस्तीफा देना पड़ेगा. होली के पहले से ही यह कहा जाने लगा था कि अग्रवाल के पास सिर्फ होली तक का वक्त है. आखिरकार होली बीती और 16 मार्च को उन्हें इस्तीफा देना पड़ गया.
कांग्रेस इस्तीफे के बाद नहीं मान रही!प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गणेश गोदियाल ने कहा कि उनकी पार्टी इस लड़ाई को आगे भी जारी रखेगी. उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी से सार्वजनिक रूप से माफी मांगने की मांग की है. उन्होंने आरोप लगाया कि ऋतु खंडूरी ने विधानसभा में प्रेमचंद अग्रवाल को बचाने की कोशिश की और राज्य सरकार को इस पूरे मामले में जवाबदेह ठहराया.
हालांकि, राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा भी है कि प्रेमचंद अग्रवाल का इस्तीफा केवल हाल ही के विवाद की वजह से नहीं हुआ है, बल्कि उनके खिलाफ पहले से ही जनता में नाराजगी थी. खासकर, पिछले साल ऋषिकेश में हुई मारपीट की घटना के कारण लोग उनसे नाराज थे.

गौर करने वाली बात ये है कि इस मारपीट के पीड़ित व्यक्ति ने बाद में ऋषिकेश में एक वार्ड से नगरपालिका चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इस जीत को प्रेमचंद अग्रवाल के खिलाफ जनता की नाराजगी के रूप में देखा गया. बताया जाता है कि इस मामले में बीजेपी के भीतर देहरादून से लेकर दिल्ली तक आलोचना हो रही थी. हालांकि, बीजेपी आधिकारिक तौर पर इससे इन इनकार करती है. बीजेपी के उत्तराखंड प्रभारी दुष्यंत गौतम ने लल्लनटॉप से बात करते हुए कहा-
"प्रेमचंद्र अग्रवाल ने इस्तीफा हालिया विवाद को लेकर दिया है. वो इससे आहत थे. और कोई विवाद नहीं है. पार्टी में कोई किसी के खिलाफ नहीं है."
प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे के बाद अब जल्द ही मंत्रिमंडल में फेरबदल होने की संभावना है. उत्तराखंड कैबिनेट में केवल 5 मंत्री बचे हैं, जिनमें मुख्यमंत्री भी शामिल हैं. विधायकों की संख्या के लिहाज से मंत्रिमंडल में कुल संख्या 11 होनी चाहिए.
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