यानी खिलौनों का मेला. इसकी शुरुआत होने वाली है. मोदी जी जबरदस्त तरीके से इसका प्रमोशन कर रहे हैं. यह 27 फरवरी से शुरू होकर 2 मार्च तक चलेगा. इस साल कोरोना की वजह से यह वर्चुअल आयोजित किया जा रहा है. मतलब यह ऑनलाइन चलने वाला एक खिलौनों का मेला होगा. हो सकता है अगले साल आपको इस मेले में जाकर घूमने का मौका भी मिले. भारत में बने खिलौनों को प्रमोट करने के लिए पीएम मोदी ने कुछ दिन पहले ये ट्वीट भी किया था.
आप कहेंगे बच्चों के खिलौने ही तो हैं, इतना भी क्या सीरियस होना. ऐसा नहीं है, खिलौनों की बड़ी मार्केट है. इस मार्केट पर कब्जा है चीन का. दुनिया में 85 फीसदी से ज्यादा खिलौने चीन बनाता है. अगर आपके घर में बच्चों के खिलौने हैं, तो चेक करके देखिए ज्यादातर मेड इन चाइना ही होंगे. 2019 में दुनिया भर का खिलौना बाज़ार 105 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था. बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी 0.5 फ़ीसदी से भी कम है. तो ऐसे में बच्चे क्या पीएम मोदी के दिमाग में भी भारतीय खिलौने घूमना लाजमी सी बात है. तो फिर आइए जानते हैं कुछ ऐसे भारतीय खिलौनों के बारे में, जो दुनिया भर में अपनी ताकत दिखा सकते हैं. बत्तो बाई की आदिवासी गुड़िया इसे मध्य प्रदेश की पहचान माना जाता है. इसका जलवा ऐसा है कि इसे खास जीआई टैग देने की तैयारी है. हर क्षेत्र अपनी यूनिकनेस के लिए जाना जाता है. कोई प्रॉडक्ट किसी खास क्षेत्र के ही फेमस होते हैं, और उस क्षेत्र की पहचान बन जाते है. बरसों से पहचान बना चुके ऐसे ही प्रॉडक्ट को जीआई टैग दिया जाता है. इस गुड़िया को बत्तो बाई के नाम से इसलिए भी जाना जाता है क्योंकि इस नाम की एक महिला ने कई बरस पहले से पॉपुलर बना दिया. हालांकि ये गुड़ियां पहले भी इस इलाके के घरों में बनाई जाती थीं ,लेकिन इसे पहचान दिलाने में बत्तो बाई का बड़ा योगदान है. यह गुड़िया पेयर यानी गुड्डा-गुड़िया की तरह ही आती है. इसे आदिवासी गुड़िया हस्तशिल्प के तौर पर भी पहचान मिल रही है. यह झाबुआ, ग्वालियर और भोपाल में भी बनाई जा रही है. इनके साथ एक मान्यता ये भी जुड़ी है कि अगर बत्तो बाई की गुड़िया के जोड़े को खरीद कर किसी कुंवारी लड़की को गिफ्ट किया जाए, तो उसकी जल्दी शादी हो जाती है. अब होती है या नहीं इसकी गारंटी तो नहीं है, लेकिन खिलौने हैं तो दिल बहलाने में क्या जाता है.
खासियत - कॉटन और चटख रंगों का इस्तेमाल, अलग-अलग जूलरी और पहनावे के साथ मिलती है.
कीमत - इसकी कीमत साइज के हिसाब से होती है. 9 इंच साइज का पेयर 150 रुपए से 200 रुपए में मिल जाता है.

मध्य प्रदेश के झाबुआ, भोपाल और ग्वालियर के आसपास के इलाकों में बत्तो बाई की गुड़ियां काफी पॉपुलर हैं.
नातुनग्राम का उल्लू हम आपको नातुनग्राम के उल्लू के बारे में इसलिए बता रहे हैं, क्योंकि इसे लेकर भी एक रोचक मान्यता है. अगर आपको अपने घर में पैसों की बारिश करवानी है, तो यह उल्लू घर ले आइए. उल्लू को धन की देवी लक्ष्मी का वाहन माना जाता है, ऐसे में इस डॉल को घर में रख कर लक्ष्मी को घर में परमानेंट एंट्री दी जा सकती है. अरे आप क्या फिर से सीरियस हो गए. फिर कह रहा हूं कि भाई खिलौने हैं दिल बहलाइए, दिल न लगाइए. ये पश्चिम बंगाल के बर्धमान और कोलकाता में आपको मिल जाएंगे. इनका नाम बर्धमान के एक गांव नातुनग्राम की वजह से ही पड़ा है. ये खिलौने लकड़ी को बहुत खास तरीके से काट कर बनाए जाते हैं. बेहतरीन और पक्के रंगो का इस्तेमाल इन्हें खास बना देता है. ऐसा नहीं है कि नातुनग्राम में सिर्फ उल्लू ही बनता है. असल में ये खिलौने बंगाल के भक्ति आंदोलन से जुड़े हैं. 15-16वीं शताब्दी में खिलौने कि शक्ल में राधा-कृष्ण और गौर-निताई की डॉल बनाई गईं. तब इनका एक धार्मिक महत्व होता था, लेकिन अब वह बात नहीं है लेकिन उल्लू अब भी बहुत पॉपुलर है.
खासियत - लकड़ी की मजबूत बनावट और चटक पक्के रंग
कीमत - साइज और बनावट पर निर्भर करता है. 3 इंच का नातुनग्राम उल्लू 30 रुपए का मिल सकता है. बड़े साइज के लिए 3 हजार से 30 हजार तक देने पड़ सकते हैं.

इस खास उल्लू खिलौने के साथ कुछ मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं.
मुंडी हिलाने वाली तंजावुर डॉल इस डॉल का भी अपना ही जलवा है. जिस तरह से यह डॉल अपनी मुंडी और कमर हिलाती है, वह नजारा कहीं और देखने को नहीं मिलता. तमिलनाडु के तंजावुर में बनाई जाने वाली इस डॉल को भारत सरकार की तरफ से खास जीआई टैग दिया जा चुका है. यह मिट्टी से बनाई जाती है और इसकी गर्दन और कमर का हिस्सा कुछ इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि जरा सी हरकत से ही यह हिलना शुरू हो जाता है. बेहतरीन क्वॉलिटी की तंजावुर डॉल तो फूक मारने से भी डांस करना शुरू कर देती है. इसे एक साउथ इंडियन डांसर के तौर पर डिजाइन किया जाता है. हालांकि अब कुछ मॉडर्न डिजाइन भी आने लगी हैं, लेकिन सबसे पॉपुलर इसका क्लासिक साउथ इंडियन डांसर स्टाइल ही है. इन खिलौनों को खास कारीगर हाथों से तैयार करते हैं. तंजावुर डॉल अपने खास केस में भी आती हैं.
खासियत - इनकी बनावट और बेहतरीन रंग
कीमत - 500 रुपए से शुरू हो कर 5000 रुपए तक

इसे भारत की सबसे पॉपुलर डॉल में शुमार किया जा सकता है.
गोल-मटोल कोंडापल्ली खिलौने इन खिलौनों के बारे में एक बात हम यकीन से कह सकते हैं कि इन्हें देखते ही आप एक पल ठहर जरूर जाएंगे. इनकी गोल-मटोल बनावट और फिनिशिंग देख कर आप दंग रह जाएंगे. आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के कोंडापल्ली इलाके में यह खिलौने तकरीबन 400 सालों से बनाए जा रहे हैं. इसे इस इलाके के कुछ खास लोग बनाते हैं, जिनके पुरखे इस काम से जुड़े रहे हैं. इन लोगों को आर्यक्षत्रिय कहा जाता है. इनका वर्णन ब्रह्माण्ड पुराण में मिलता है. इस खिलौने को भी भारत सरकार की तरफ से जीआई टैग मिल चुका है. ये खिलौने एक मुलायम लकड़ी, तेल्ला पोनिकी से बनाए जाते हैं. खिलौने के अलग-अलग हिस्से तैयार करने के बाद इन्हें इमली के बीज और लकड़ी के बुरादे को मिक्स करके बनाए गए एक पेस्ट से जोड़ा जाता है. फिर इस पर पेंट किया जाता है. इन खिलौनों में दशावतारम और डांसिंग डॉल बहुत पॉपुलर हैं.
खासियत - पूरी तरह से ऑर्गेनिक और बेहतरीन फिनिशिंग
कीमत - 500 रुपए से शुरू होकर 4 हजार रुपए तक

कोंडापोल्ली के आसपास 400 सालों से खिलौने बनाने का कारोबार हो रहा है.
तो इस बार जब बच्चे डोरेमॉन और पेपा पिग वाली डॉल खरीदने के लिए भागें तो आप बत्तो बाई की डॉल या कोंडापल्ली खिलौने की तरफ उनका ध्यान दिला सकते हैं.